वो अमीर गार्ड
वो अमीर गार्ड


आज सुबह आठ बजे से नीचे फुटपाथ पर कोई 15 -16 साल की लड़की कुछ शोर मचा रही थी। ऊपरी मंजिल से धुंधला ही सही लेकिन उसकी मैली फटी कुर्ती और उसके शरीर से कई गुना छोटी सलवार जो उसके बदन से बाहर आने को आतुर है,दिखाई पद रही थी। उसके साथ एक छोटी सी लड़की भी है जो ठीक उसके साए की तरह ,मुंह में उसकी मैली कुर्ती को दबाये पीछे पीछे चल रही थी। आवाज़ कुछ ठीक से नहीं सुनाई दे रही थी लेकिन वेदना से भरी उस आवाज़ में कुछ “ मांग “ ही थी। बहुत देर हुई उसे वहाँ खड़े खड़े कुछ बोलते हुए ( चिल्लाते हुए) लेकिन कोई आता हुआ दिख नहीं रहा था। थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति मास्क पहने ग्लव्स पहने वहाँ से गुज़र रहा था ,वो थोडा रुका ,लड़की ने मिन्नत की ,लेकिन वो बिना कुछ बोले वहां से चला गया। ऐसे और भी कई लोग वहाँ से गुज़रे लेकिन किसी ने भी रूककर उसकी बात नहीं सुनी।
मेरी बालकनी सोसाइटी के पीछे वाले गेट की तरफ पड़ती है और कोरोना से सुरक्षा के चलते पीछे के दरवाज़े बंद किये हुए थे। मैं चाह कर भी नीचे नहीं जा सकती थी। उसकी करुण पुकार समय के साथ और कारुण्य होती जा रही थी। उसकी बेबसी उसकी चीख में साफ़ छलक रही थी| मैंने एक रुमाल में कुछ पैसे बांधकर नीचे फैंके लेकिन मेरा फ्लैट काफी उंचाई पर होने की वजह से रुमाल अलग दिशा में चला गया और ओझल हो गया। किसी डिब्बे में पैसे रख कर नीचे डालने का विचार मुझे ठीक नहीं लगा क्यूंकि उससे किसी को चोट लगने का डर था।
बहुत व्यथित थी ये सब देखकर। अन्दर जा ही रही थी कि सामन
े वाली बिल्डिंग का सिक्यूरिटी गार्ड ,जो अब तक वहाँ नहीं था ,आ गया। उसने अपनी छोटी सी अटारी जैसे कमरे में जैसे ही कदम रखा,उसे भी उसकी आवाज़ सुनाई दी। बाहर जाने की अनुमति नहीं थी किसी को लेकिन उसने अपने केबिन की खिड़की में से उसे अपने पास बुलाया। जाने वो क्या बोलती रही उसे,वो जेब में हाथ डाले सुनता रहा। कुछ देर बाद देखा तो वो खिड़की से दूर होकर अन्दर गया और कुछ मिनट बाद एक हाथ में खाने का डब्बा ,जो शायद उसके घरवालों ने दिया होगा, और दूसरे हाथ में दो रुमाल लेकर वापस आ गया। सुनाई तो कुछ नहीं दे रहा था लेकिन जो दिख रहा था वो मानवीयता का बेजोड़ उदाहरण था। उसने दूर से उसे डब्बा दिया। और फिर रुमाल देकर उसे मुंह पर बांधने को कहा। साथ ही अपनी बच्ची के मुंह पर भी बंधवाया।
मेरे फैंके हुए रुमाल की चिंता क्षण भर में दूर हो गयी। जब तक ऐसे गार्ड जैसे “ अमीर “ लोग हैं तब तक चिंता की कोई बात ही नहीं। वास्तव में गरीब मुझे वो लगे जो सामने से गुज़रते हुए अपने बड़े से झोले में भरे इतने सामान में से कुछ खाने का सामान उसे ना दे सके। उसे कुछ पैसे ना दे सके। उसकी निसहाय स्थिति को नहीं देख सके। संसाधनों से परिपूर्ण होने पर भी उन्हें राशन कम पड़ जाने की चिंता है लेकिन दूध की एक थैली देने से वो गरीब हो जायेंगे।
सोचने लायक तो ये था कि, उस अनपढ़ और श्रीहीन गार्ड ने अपनी भूख की चिंता किये बिना अपने ही जैसे किसी की भूख मिटाना ठीक समझा। शायद यही है असली “अमीरी“ है ना ?