मायके का मीठा
मायके का मीठा


बहू के घर से हमेशा कुछ न कुछ आना ,कभी तोहफे,कपड़े आना बहुत आम बात है।मिठाई तो जैसे हम चलते चलते ताज़ी सब्ज़ी ले आते हैं वैसे बेटी को ससुराल भेजते हुए पिताजी शहर की सबसे महंगी और "फेमस" मिठाई अपने प्यार के साथ बांध दिया करते हैं।और साथ ही माँ के हाथ की मठरी, गुलाबजामुन और गुजिया।
जब मिठाई ससुराल पहुंचती है ,डिजिटल ज़माने में लैंडलाइन के उस पुराने पड़े डब्बे की तरह उपेक्षित सी किसी कोने में पड़ी रहती है।
यूँ सब चटकारे ले लेकर हमारे मायके की मिठाई खाया करते हैं पर साथ ही उसमें क्या बेहतर हो सकता है उसका गुणगान भी गाया करते हैं।
" ये रसगुल्ले थोड़े फीके से लगते हैं,थोड़ी चाशनी और अच्छे से डालते तो और अच्छे लगते"
गुलाबजामुन तो हमारे शहर के खा कर देखो, क्या मुलायम और स्वादिष्ट"
"ये कौन सी मिठाई है, हमने तो कभी ना चखी,कोई पान की भी मिठाई बनाता है भला"
मोयन कम लगता है नहीं तो और मुलायम बनती मठरी।
कभी कभी तो बेचारी टेढ़ी जलेबी भी उनकी टिप्पणियों के आगे सीधी लगती।
मन अंदर तक कचोट जाता अपने घर की इतनी प्यार से बनाई मिठाइयां जब उनकी ज़ुबान से कड़वी हो जाती। आज भी ससुराल आते आते,पापा ने बैग में मिठाई रख दी। बैग नीचे रखते ही सबकी लपलपाती जीभ और आंखें मेरे बैग की तरफ निशाना साधने लगी। तभी मैंने मिठाई का डब्बा निकाला और कमरे में ले जाकर रख दिया।
बड़ी बड़ी आंखें और मूंछो का ताव इस गुस्ताख़ी का जवाब मांग रहा था, "इस बार पापा ने सिर्फ वो फ़ीके वाले रसगुल्ले ही दिए हैं। बाकी मिठाइयां तो यहां और अच्छी और स्वादिष्ट बनती है,तो मैंने उन्हें देने से मना कर दिया।" रसगुल्लों से पूरी चाशनी निचोड़ के फीकापन आता है ठीक वही फीकापन घरवालों के चेहरे पर भी था। और मैं अपने मायके की मिठाई खाने चली गई।
मायके के प्यार की चाशनी में लिपटी । बचपन की यादों की तरह मुलायम। खाने के बाद मीठे पान की तरह स्वादिष्ट। उसका स्वाद हमेशा मुझे उन्हें अपने पास रखता है,उनसे दूर होकर भी।
मायके की मिठाई !