वियोग
वियोग
इस आपा धापी वाली ज़िंदगी में हम सबों के पास भिन्न भिन्न तरह के ग़म है। उनमें से एक है,अपनों से जुदाई का ग़म, चाहे वो जुदाई क्षणिक हो या शाश्वत हो, दुःख तो होता ही है। इस पीड़ा का अनुभव वही कर पाते जो अपने हो या जो उस इंसान से जुड़ा हो।
२०१६ में राजेश ने कॉलेज की पढ़ाई खत्म करते ही, नौकरी लग गयी। इस खबर के आते ही उसके घर और दोस्तों के बीच खुशी की लहर दौड़ गयी हो, सब खुश थे और सब शुभकामनाएं दे रहे थे। राजेश भी खुश था, पर एक बात उसे अंदर अंदर ही खायी जा रही थी, वो नए शहर में कैसे रह पायेगा , उसके सारे घरवाले और दोस्त यहाँ है। दरअसल उसकी पोस्टिंग भोपाल में हुई थी और फिर वो दिन भी आ गया। बड़े भारी मन से राजेश सब से विदा लेते हुए वो भोपाल जाने के लिए चल पड़ा।
ऐसे तो उसके ऑफ़िस वालो ने एक सप्ताह के ठहरने का इंतज़ाम कर दिया था, पर उसके पहले घर ढूंढना था। सब कुछ उसे बोझ सा लग रहा था। एक तो अकेलापन उसे खाये जा रहा था, दूसरा इस नए शहर के अपने नियम कायदे जिसे अपनाने में वो जद्दोजहद कर रहा था हर दिन कोई युद्ध की तरह उसे लग रहा था । खैर उसे घर मिल गया, वो भी एक अच्छी सोसाइटी में।
जैसे जैसे दिन बीतने लगे वो भी अपने काम में व्यस्त हो गया। पर दिल के किसी कोने में अपनों से बिछड़ने का दर्द तो था ही , वो दर्द तब तेज होता जब वो खाली और अकेले होता। रविवार का दिन था, वो सुबह में अपने गर्म कॉफ़ी का आनंद ले रहा था, तभी दरवाज़े पे खटखटने की आवाज़ आयी, वो भी थोड़ा अचंभित था, इस नए शहर में कौन उससे मिलने आ गया..जब दरवाज़ा खोला तो पाया की उसके घर के बगल वाले घर का दरवाज़ा खुला है और करीब ६० साल की वृद्ध महिला, चेहरे पे एक मुस्कान लिए, पूछती है, आप ही इस घर में आये हो ,राजेश बोला हाँ। फिर वो राजेश से ढेरों सवाल पूछी, जैसे कहा काम करते हो, अकेले रहते हो यहाँ, वगैरह वगैरह । पर उनकी आँखें थोड़ी उदास दिख रही थी, लग रहा हो वो कुछ बोलना चाह रही थी, पर उस दिन उन्होंने अपने बारे में कुछ खास नहीं बताया।
अब तो रोज़ राजेश का उस वृद्ध महिला (जिसे राजेश अब आंटी कह कर सम्बोधित करने लगा था ) के साथ कुछ ना कुछ संवाद ज़रूर हो जाता...पर एक सवाल रोज़ वो पूछती.. "कैसे हो राजेश और राजेश बड़े तमीज़ से बोलता, ठीक हूँ ... और वो भी बड़ी शालीनता से पूछता, आप कैसी है? वो भी उत्तर देती ठीक हूँ।
पर राजेश को अक्सर लगता की, उनके अंदर कुछ दर्द है और वो बयान करना चाहती है, पर वो कर नहीं पा रही है।
एक दिन राजेश कही जा रहा था, तभी उसकी नज़र आंटी पर पड़ी तो, आंटी मुस्करायी और वही सवाल फिर से पूछी कैसे हो राजेश ? जब तक वो उत्तर दे पाता आंटी ने राजेश से अचानक पूछा क्या मैं तुम्हें बेटा बुला सकती हूँ ... राजेश थोडा अचंभित हुआ, पर वो मुस्कुराते हुए बोला "हाँ ", आंटी क्यूँ नहीं।
उसी दिन आंटी ने राजेश को रात के खाने पे आमंत्रित किया। करीब ९ बजे राजेश उनके घर गया, मालूम चला आज उनकी शादी का सालगिरह है। पर आंटी और अंकल ने कहा पिछले सात सालों से वो कोई पर्व नहीं मना रहे है। इस बात पे राजेश ने पूछा क्यों ? ऐसी क्या बात हो गयी। आंटी और अंकल के आँखें बात करते करते नम हो गयी थी... मानो सालों का धीरज का बाँध टूट गया। जवाब आया हमने अपना जवान बेटा सात साल पहले खो दिया। और वो रोने लगी। चंद मिनटों के लिए मैं स्तम्भ हो गया। फिर वो बताई उनका बेटा एक आर्मी अफसर था, और एक हादसे में उनकी जान चली गयी। आंटी ने बताया कि आज भी जब वो उस दिन को याद करती है तो उनकी रूह कांप जाती है , वो बतायी मेरे और तुम्हारे अंकल की सालगिरह थी ... और वो कश्मीर से दिल्ली आने वाला था, काफ़ी सारे उसने प्रोग्राम बना रखा था, शाम की फ़्लाइट से आने वाला था, जब शाम से रात होने लगी तो हम उसके फ़ोन पे कॉल करने लगे... फ़ोन ऑफ़ आ रहा था, हमें चिंता होने लगी... पूरी रात निकल गयी, पर उससे हमारी बात नहीं हो सकी। उससे आखिरी बार बात उसी दिन सुबह में हुई थी और उसके बोले हुए शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते है, माँ में जल्द ही आ रहा हूँ ..और इतना बोलते बोलते आंटी फुट फुट कर रोने लगी। फिर अपने को सँभालते हुए आगे बोली हमारी सारी तैयारी धरी की धरी रह गयी। और अगले सुबह में आर्मी ऑफ़िस से कॉल आया की कमांडर प्रताप नहीं रहे, एक शॉर्ट सर्किट होने से इनकी जान चली गयी। आंटी ने अपने आँसू को पोछते हुए बोला " भगवान ने हमे क्यों नहीं बुला लिया, वो तो अभी जवान था",काफी नाइंसाफी हुई है हमारे साथ और मेरे काफी दिलासा देने पे चुप हुई। पर उनकी बातें काफी अनकहे सवालों को खड़ा कर दिया था।
आंटी ने बताया कि वो अपने शरीर के सारे दर्द को बर्दाश्त कर लेती है पर अपने बेटे के जाने का वियोग का दर्द नहीं झेल पाती। और राजेश तब अनुभव किया की ,वो काफी हद तक सही थी। इस वियोग का ना तो कोई इलाज ना भरपाई करने के लिए कोई उपाय। जुदाई क्षणिक हो तो लोगो के पास एक उम्मीद होती है मिलने की पर वो अगर शाश्वत हो तो बस यादें के सहारे जीने की आदत डालनी होती है और आंटी भी वही कर रही है, वो भी पिछले सात सालों से, मुझे एक कविता की कुछ पंक्ति याद आ गयी .. थोड़ा ग़म है सबका किस्सा ,थोड़ा धुप है सबका हिस्सा,आँख तेरी बेकार ही नम है, हर पल एक नया मौसम है।
