अनुभव
अनुभव
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रविवार की सुबह में एक अलग सी ताज़गी होती है। उसकी एक खास महक होती है, अफ़सोस ये महक सब महसूस नहीं कर सकते। उसे मात्र वहीं लोग अनुभव कर सकते है, जो रोज़ सुबह उठ कर एक जंग लड़ते है... ये जंग देश के सीमा पे जाने के लिए नहीं है, साहब... ये जंग है अपने अपने दफ़्तर की दहलिज तक पहुँचने के लिए।
रोज़ की तरह आज रहमत को दफ़्तर जाने के कोई जल्दबाज़ी नहीं थी, उसे तो बस इन्तज़ार था, एक अच्छी सी चाय का और उसके साथ आज के अख़बार की। बहुत ही सुकून के साथ वो अपनी बाल्कनी में बैठ गए।
कहानी अधूरी है...कृपया नाम को लेकर हंगामा मत मचायेगा... धर्मनिरपेक्ष देश में है...ये नाम काल्पनिक है... अस्वीकरण कहानी के अंत में डाल दूँगा...
