विश्वास।
विश्वास।
एक ग्वालिन थी। गांव से गंगा पार कर वह नित्य प्रति दूध बेचने शहर में आती थी। सड़क किनारे एक मंदिर में राम कथा हो रही थी। कथावाचक कह रहे थे कि प्रभु का पवित्र नाम लेने मात्र से भव- सिंधु पार, मनुष्य कर जाता है। इतना सुन वह दूध देने चली गई। बार-बार यह शब्द उसके हृदय में गूंजता रहा। सोचने लगी कि नदी पार करने के लिए नित्य नाविक को पैसा देना पड़ता है। आज मैं उनका (भगवान )का नाम लेकर सीधे नदी पार करूंगी। भवसागर जब सूख जाता है, तो नदी भी सूख जाएगी। इस दृढ़ विश्वास के साथ" राम-राम" की रट लगाती, वह नदी में प्रवेश कर गई। उसकी साड़ी तक न भीगी और वह पार कर गई। नित्य- प्रति वह ऐसे ही किया करती थी।
उसके मन में यह भाव जागा कि कथा -वाचक की कृपा से घाट का खैबा भी बच जाता है, इसलिए उन्हें अपने घर ले जाकर भोजन कराऊँ। आग्रह करने पर कथा-वाचक पंडित जी भोजन के लिए चल पड़े। पंडित जी पीछे थे और वह आगे आगे जा रही थी।
"राम" का नाम लेकर वह नदी में उतर गई, पंडित जी पानी में प्रवेश तो किये, पर कपड़ा भीगने के डर से ऊपर उठाने लगे। आगे पानी अताह था। डूबने के डर से, वे रुक गए। ग्वालिन ने कहा- पंडित जी पार कर जाएं, पानी तो बहुत कम है, पर पंडित जी को साहस ना हुआ। उसने फिर कहा- पंडित जी, आपने ही तो बताया था कि भगवान का नाम लेने से भव -निधि मनुष्य पार कर जाता है, फिर यह तो नदी है। पंडित जी को विश्वास ना हुआ, वे लौट पड़े। पर उन्हें यह स्पष्ट भासता था कि आगे -आगे दो सुंदर हाथ जा रहे हैं और ग्वालिन पीछे से बड़ी चली जा रही है।
" जग में सुन्दर हैं दो नाम चाहे कृष्ण कहो या राम।"