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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Action Classics

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Action Classics

विक्टिम कार्ड

विक्टिम कार्ड

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जिंदगी में भी कैसे कैसे खेल खेलने पड़ते हैं। बाद में तो जिन्दगी खुद खेल खेलने लगती है। बचपन में छुप्पम छुपाई सबसे अधिक पसंदीदा खेल होता था। बाद में कबड्डी खेल ने हमें अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। किशोर वय आते आते ताश के पत्ते हाथों में आ गए। इस खेल में "ट्रम्प" का बड़ा महत्व होता है। जिसके पास जितने ट्रंप कार्ड , समझो उसकी जीत उतनी ही पक्की। 

मगर सब दिन होत न एक समान। समय बदला और खेल बदल गये। अब युवावस्था में पहुंच चुके थे। इस अवस्था में "नैनों के पेच लड़ाने का खेल" बहुत प्रिय होता है। हमारे मित्र लोग बहुत खेलते थे। नित नई "पतंगों" के साथ उनके पेच लड़ते थे। हम तो बस "चरखी" पकड़े पकड़े उन्हें देखते रहते थे। पेंच लड़ाने में हमें हमारी "पतंग" कटने का डर लगता था। इसलिए दूर दूर ही रहते थे। शादी के बाद तो हम अपनी "गिल्लियां" बचाने के खेल में ही लगे रहे। श्रीमती जी न जाने कब गिल्लियां उड़ा दे ? 

"ट्रम्प कार्ड" आजकल पुराना हो गया है और आजकल एक नये कार्ड का आविष्कार हुआ है जिसका नाम है "विक्टिम कार्ड"। हमारे ऑफिस में दो महिलाएं काम करती हैं। रोज एक घंटे देर से आती हैं। एक दिन बॉस ने उन्हें डांट दिया कि टाइम से आया कीजिए। बस, फिर क्या था ? नौ नौ आंसू रोने लगीं और महिला होने की दुहाई देने लगीं। बहुत शानदार ढंग से उन्होंने अपने महिला होने का "विक्टिम कार्ड" खेला। मीडिया को बुला लिया और बॉस पर अनर्गल आरोप लगाने शुरू कर दिये। मीडिया को तो बस मसाला चाहिए। तथ्यों की सत्यता की पुष्टि करना अब उसका काम नहीं रहा है। जिसने जो कह दिया , उसके आधार पर हर किसी को कटघरे में खड़ा कर देना ही मीडिया धर्म बन गया है आजकल। बेचारे बॉस ! क्या बेइज्जती हुई उनकी। उसके बाद से उन्होंने कभी किसी महिला को कुछ नहीं कहा। 

मोहम्मद अजहरुद्दीन का नाम तो आपने सुना ही होगा। किस तरह भारतीयों ने उसे एक सेलिब्रिटी बनाया था। मगर जब वह "मैच फिक्सिंग" के आरोपों में घिरा तो जानते हैं उसने क्या कहा ? मैं बताता हूं। उसने कहा कि वह एक अल्पसंख्यक है इसलिए उस पर मैच फिक्सिंग के झूठे आरोप लगाये जा रहे हैं। उसने भी अपना विक्टिम कार्ड खेल लिया। अभी हाल ही में आप लोगों ने बॉलीवुड के किंग के सुपुत्र को ड्रग केस में जेल जाते हुए देखा होगा। क्या क्या नहीं कहा उसके पैरोकारों ने ? वही विक्टिम कार्ड यहां भी खेला गया , अल्पसंख्यक होने का। जब उसके बाप को इस देश की जनता ने अपने सिर आंखों पर बैठाया था तब कभी नहीं कहा कि वह किस समुदाय का है मगर जब जेल की रोटी खानी पड़ी तब याद आया कि वह किस समुदाय का है। यही विक्टिम कार्ड एक बार फिर से खेला गया था। सुना है कि एक "कबाड़ी" भी आजकल यही विक्टिम कार्ड खेल रहा है। 

एक आई ए एस को मैं जानता हूँ। जिन्दगी भर केवल अपनी जाति का भला करते रहे। सवर्णों को गाली देते रहे। अपने मातहत सवर्णों का अपमान करने में उन्हें अति आनंद आता था। अपने नाम के पीछे कभी भी जाति नहीं लिखी। कभी बताई भी नहीं। मगर जब उन्हें मुख्य सचिव नहीं बनाया गया तब तुरंत मीडिया को बुलाकार प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बता दिया कि वे "फलां" जाति के हैं। अमुक वर्ग के होने के कारण उन्हें मुख्य सचिव नहीं बनाया गया है। और उन्होंने भी विक्टिम कार्ड खेलना शुरू कर दिया। 

आजकल कुछ लड़के लड़कियां यूक्रेन से "विक्टिम कार्ड" खेल रहे हैं। लगभग दो महीने से रूस - यूक्रेन विवाद चरम पर है। भारत से लगभग 20000 युवा यूक्रेन में बताये जा रहे हैं। यह 20000 का आंकड़ा सरकारी नहीं बल्कि मीडिया का है। ये वही मीडिया है जो एयर स्ट्राइक में मारे गए लोगों के बारे में सेना के आंकडों पर विश्वास नहीं करता मगर वह चाहता है कि उसके द्वारा दिये गये 20000 के आंकड़े पर सब लोग आंख मूंदकर विश्वास कर लें। 

तो मीडिया ने बताया कि 20000 युवा जो यूक्रेन में डॉक्टरी की पढ़ाई करने गये थे, वहां पर फंस गए हैं। भारत सरकार पिछले दो महीने से बार बार एडवाइजरी जारी कर रही थी कि यूक्रेन छोड़कर भारत लौट आओ। मगर लोग तो अपनी मर्जी के मालिक हैं। ऐसे किसी के कहने पर क्यों आयेंगे ? और वह भी सरकार के कहने पर ! आखिर नहीं आये। भारत सरकार ने विशेष विमानों की व्यवस्था भी की। कुछ लोग लौट आए मगर बहुत से लोग फिर भी नहीं लौटे। 

अब जब रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया है तो यही छात्र अब दहाड़ें मार मार कर रो रहे हैं। गम में मरे जा रहे हैं। वीडियो बना बना कर भेज रहे हैं। भारत सरकार को पानी पी पी कर कोस रहे हैं और कह रहे हैं कि सरकार कुछ नहीं कर रही है। उनके अभिभावकों ने भी आसमान सिर पर उठाया हुआ है। लिबरल मीडिया को तो सरकार विरोधी मसाला मिलना चाहिए। बस, उसे हाथों हाथ लपक लेती है। इन छात्रों ने भी अपना आखिरी हथियार "विक्टिम कार्ड" खेलना शुरू कर दिया है और मीडिया ने अपना "रोल प्ले" करना शुरू कर दिया है। 

इस देश ने तो जिस आदमी को 10 वर्षों तक देश का उपराष्ट्रपति बनाया था जब वही आदमी विक्टिम कार्ड खेलने लगे तो फिर यही कहा जा सकता है कि " आज का सबसे बड़ा हथियार। विक्टिम कार्ड, जो है बहुत असरदार"। 

जय विक्टिम कार्ड। 


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