Deepali Mirekar

Inspirational

4.5  

Deepali Mirekar

Inspirational

विद्रोह की पीड़ा

विद्रोह की पीड़ा

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कुछ घाव इतने सालों के पश्चात् फिर से हरे हो रहे थे। जब प्रेरणा एक कलेक्टर के रुप में साक्षात्कार दे रही है। एंकर उससे पूछती हैं " आप ने अपने वैवाहिक संबंध को क्यू तोड़ा है?? अर्थात क्या आपके जीवन में रिश्तों से भी ज्यादा महत्व अधिकार को है?? वह सोच में डूब गई शायद उसे यह पद विद्रोह के परिणाम के रूप में मिला था। जिस अतीत से वह छुटकारा पाकर आगे बढ़ते जा रही थी उस घाव पर बार बार प्रहार होता रहता था।कभी धर्म तो कभी समाज के आड़ में उसके विद्रोह पर तानो के बाण चलते रहते।प्रेरणा का जीवन संघर्ष के अग्निकुंड में तप कर निखर चुका था। प्रेरणा एक मासूम लड़की पारिवारिक नीतियों में उलझकर बचपन के स्वर्गीय जीवन से दूर हो जाती है। खेलने कूदने के उम्र में प्रेरणा की शादी उससे बीस साल बढ़े लड़के से करवा दिया जाता है। बकायदा एक शर्त पर की उसकी उच्चतर शिक्षा पूर्ण होते हि उसे ससुराल भेजा जायेगा। इन सब बातों से अनजान प्रेरणा मनमुक्त जीवन जीती रहती हैं। बचपन में ही मंगलसूत्र का धागा उसके गले में बंध जाता है।

स्कूल से लौटी प्रेरणा मां से पूछती है " मां यह जो मेरे गले में धागा बंधा है वह मेरे सहेली के गले में क्यू नही है?? रोशन काकी कह रही थी, मैं शादीशुदा हूं। खेलना कूदना मुझे शोभा नहीं देता है।बोलो ना मां में क्यू नही खेल सकती।"

मां अपनी दस साल की मासूम बेटी को समझाती है "मेरी गुड़िया रानी सब लड़कियों से अलग है।तुम सौभाग्यशाली हो बिटिया रानी जो इतनी छोटी उम्र में सुहागन का भाग्य मिला है।"

प्रेरणा के पल्ले कुछ नहीं पड़ता है। वह गुड़िया लेकर खेलने चली जाती हैं। शाम में पिता के संग मंदिर जाने के लिए प्रेरणा निकलती हैं तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आती हैं।

प्रेरणा दरवाजा खोलती हैं। दरवाजे पर एक युवा और चार पांच तगड़े लोग खड़े थे। उनको देखकर प्रेरणा डर जाती हैं और दौड़ती हुई जाकर मां के पल्लू में छुप जाती हैं।

वह युवा कोई और नहीं बल्कि प्रेरणा का पति हैं। बाद में पता चलता है की वह प्रेरणा को साथ ले जाने की जिद्द लेकर आए हैं। सारे कायदे कानूनो का होम करके प्रेरणा पर अपना हक़ जताने आए हैं। प्रेरणा के पिता और उसके ससुराल वालो में बातों की झड़प चलती रहती हैं। सब बातों से अनजान प्रेरणा इनके झगड़े से

मासूम बच्ची सहम जाती हैं। पिता अपने जिद्द पर अड़े रहते हैं और प्रेरणा की शिक्षा पूर्ति के पश्चात ही उससे ससुराल भेजने की ठान लेते हैं। प्रेरणा बचपन से यूवा अवस्था तक इसी आतंकी स्थिति का सामना करती रहतीं हैं। युवा अवस्था में आते आते उसे यह पता चलता है की उसका विवाह बचपन में ही हुवा हैं। परंतु अपने पति के प्रति उसकी कोई भावनाएं नहीं है। भाव विहीन संबंध को परिवार और समाज विरुद्ध जाकर वह ठुकराती है।

प्रतिभावान प्रेरणा को शिक्षा पूर्ति के पश्चात जब ससुराल भेजने की तैयारी होती हैं तब वह अपने अधिकारों की मांग करती है। " मां मैं इस शादी को नहीं मानती हूं। मां सिर्फ धागा बांध देने से भावनाओं की डोर नहीं बंध जाती है।। "

प्रेरणा की बाते मां के सीने में तीर के भांति प्रहार करते रहते हैं।

" बेटी तुमारे पिताजी ने उनके भाई की शादी उसके मर्जी के खिलाफ़ जाकर करवाई थी। तुमारे चाचा ने भी भाई का मान रखते हुए उफ तक नही किया। तुमारी शादी चाचा के मर्जी पर हुईं हैं। इसीलिए हमने तब कुछ न कहा और नाही अब कहेंगे।और वैसे भी शादी ब्याह तो नसीब का खेल है तुमारे नसीब में नरेश था सो मिल गया।"

" मां मैं एसे नसीब को नहीं मानती जो एक मासूम बच्ची के साथ अन्याय करता हों। किसी की गलती को नसीब का हवाला देना गुन्ना ही होता है। मैं किसी भी हाल में इस शादी को स्वीकार नही करुंगी। चाहें जिवन भर मुझे इस न्याय परक परिवर्तन की पीड़ा सेहन करनी पड़े।

मां निशब्द होकर बेटी को देखती जा रही थी। ना जाने इसका यह विद्रोह कोनसा तूफ़ान या परिवर्तन लेकर आएगा??इस सोच में वह डूबी रही। 


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