वह
वह
मैंने "उसके" बारे में अपनी एक सहेली, मारिया से सुना था। हमेशा की तरह हम सब लंच ब्रेक के समय गपशप कर रहे थे।
"मैं तो आठवीं पास करने के बाद इकरा गर्ल्स इंटरनेशनल स्कूल में एडमिशन लूंगी, तुम लोगों में से कोई जाएगा ?"
"नहीं"
"नहीं"
सब ने एक साथ कहा , सिवाए मरिया के।
" नहीं यार, मैं तो नहीं लेकिन मेरे परोस में "एक लड़की" रहती है, उसने एक बार बताया के कि वह उस स्कूल में ही एडमिशन लेगी।
"अच्छा, तुम्हारी सहेली हैं न वह"?
"नहीं" उसने भिन्ना कर जवाब दिया।
" वो लड़की बहुत अजीब है, जब दिल किया अच्छे से बात कर ली, जब दिल नहीं किया तो अजनबी बन गई। मेरी अम्मी उसकी वजह से मुझे डांटती हैं कि उसकी जैसी बन जाऊ, उसके जैसे सदा रहा करू हुंह।"
"अच्छा?"
"और नहीं तो क्या, इतने ढीले कपड़े पहनती है पुराने ज़माने में जैसे पहनते थे, और आंटियों की तरह हर वक्त इतना बड़ा सा दोपट्टा लेपेटे रखती है, मुझे तो बड़ी उलझन होती है। एक आंख नहीं भाती मुझे वह। बहुत घमंडी है।"
उसने मुझे "उसके" बारे में और भी बहुत कुछ बताया जिससे मेरे दिमाग में यह बात बैठ गई की, ऐसी घमंडी लड़की से दूर रहने में ही भलाई है। पहले तो मैं यह सोच कर खुश हो रही थी की मरिया "उसे" मेरे बारे मैं बताएगी तो जब मैं स्कूल जाऊंगी तब कोई तो होगा जानने वाला, लेकिन अब मैंने अपना इरादा बदल लिया कि पता नहीं कैसी लड़की है?
एडमिशन टेस्ट के समय मैंने जरा कोशिश नहीं की पास होने की क्योंकि मैं अपने पुराने स्कूल छोड़कर इस स्कूल में नहीं आना चाहती थी, लेकिन हाए रे मेरी किस्मत! खैर मेरा एडमिशन हो गया , और मैने पहले दिन अपने नए स्कूल में प्रवेश किया।
क्लास में दो लड़कियां थीं। अन दोनों ने मुझे सिर से पांव तक देखा और उनमें से एक लड़की ने पूछा,"आप नवीं कक्षा की हो?"
"जी" मैंने जवाब दिया।
उन में से लंबी लड़की ने मुझे देखा और फिर वह दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे।मैं समझ गई, क्योंकि नवीं कक्षा की विद्यार्थी होने के मुकाबले मेरी हाइट कम थी। मेरे गहरी सांस अपने अंदर खींची।
"आप इस लाइन में बैठ जाओ प्लीज़" पहली लड़की ने मुझसे कहा तो मैं अपना बैग उठाकर दूसरी लाइन में चली गई।
थोड़ी देर बाद , हमारे क्लास की एक और लड़की आई,उसने ऐनक लगाई हुई थी। वो उछलते हुए उन दो लड़कियों से बात कर रही थी। उसने अभी तक मुझे नहीं देखा था, वो जैसी ही मुड़ी उसकी आंखों में हैरानी दर आई।
उसने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा," आप न्यु एडमिशन हो?"
"जी" मैने झिझकते हुए जवाब दिया।
"नाम?"
"आइशा"
उसने एक दम से पूछा ," मरिया को जानती हो?"
उसने जैसे ही मरिया का नाम लिया मैं समझ गई है लड़की कोई और नहीं बल्कि "वह" है।लेकिन "उसका" बर्ताव काफी दोस्ताना था, नकचिढ़ी तो बिल्कुल नहीं लगी जैसा की मरिया ने बताया था।
"आप अर्शी?" मैंने अपनी हैरानी पर काबू पाते हुए पूछा?
"हां"
"हां"
हम दोनो ने एक साथ कहा और मुस्कुराने लगे।
"मरिया ने बताया था तुम्हारे बारे में।यह वही है जिसके आने का मैने तुमलोगों से कहा था ना?"उसने पहले मुझसे फिर उन दोनो लड़कियों से कहा।
"अच्छा , यह तेरी दोस्त है , ओहो"
"चलो मैं तुम्हें स्कूल दिखाऊं।" वो मेरा हाथ पकड़ कर ले गई और साथ बातें भी करती जाती।
वापिस आकर मैं अपनी सीट पर बैठ कर उसके बारे में ही सोचने लगी कि यह तो इतनी अच्छी है, उसने मुझे एक पल के लिए भी इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि हम आज पहली बार मिल रहें हैं।
"तुम यहां पीछे क्यों बैठी हो?"
मैंने उसे बताना सही नहीं समझा कि उन दोनो लड़कियों ने मुझे दूसरी बेंच से हटा दिया था।
"मैं आपके पास बैठ जाऊं?" मैंने पूछा।
"हां, आ जाओ" उसने मुस्कुराते हुए कहा और मुझे आगे का काम समझने लगी।मेरे दिल में जो उसके बारे में राय थी वो तो कब की बदल गई थी।
