वह लम्हे
वह लम्हे
जब मैं नौकरी पर से घर आती थी तब मम्मी गरम खाना बना कर देती और फिर रात को दूध देती सुबह सुबह मैं जॉब पर जाने के टाइम पर उठती तो मुझे खाना तैयार मिलता कोई टेंशन नहीं थी खाना बनाने की कई बार तो मैंने देखा कि रात भर मम्मी की तबीयत खराब रहती थी और जब सुबह मैं उठती तो तब वह खाना बनाकर तैयार कर देती थी हां मां की तो बात ही अलग होती है। वह लम्हे हमेशा याद आते हैं जब कोई हमें एक एक रोटी गरम गरम बड़े ही प्यार से खिलाता है और हम एक या दो रोटी और भी ज्यादा खा लेते हैं और इतनी स्वादिष्ट लगती है कि मन ही नहीं भरता और उस पर भी जब मां के हाथ से बना हुआ खाना हो , और अपने हाथ से बना हुआ खाना तो बनाते बनाते ही ठंडा हो जाता है और दूसरों को खिलाते खिलाते ठंडा हो जाता है कभी-कभी तो मन भी करता है की जब किसी को खिला रहे हैं तो अचानक भूख लगने लगती है और उस लम्हे में वह अपनी मां याद आती है और अब वह दिन आ गए जब चाहे कितनी भी भूख लगी हो तब हम पहले पूरे परिवार को खिलाते हैं और फिर खुद खाते हैं और तब तक हमारी भूख भी उड़ जाती है हम औरतों की भी क्या जिंदगी है बचपन में तो गरम गरम खाने को मिलता था एक एक रोटी करारी करारी फूली फूली चाहिए होती थी, वहीं बैठ जाते थे खाने और आज मानो कोई शौक ही नहीं है चाहे गरम मिले या ठंडी एक या दो ही खा कर उठ जाते है और उस पर से अगर बच्चे परेशान करने लगे या पॉटी कर दें तो वह भी छूट जाती है फिर कहां मन करता है खाने का तब तक तो भूख भी भाग जाती है हमारा इंतजार करके।।
जिम्मेदारियों का अहसास यही है बस यही है वह लम्हे जो याद आते हैं और अब भी जब कभी खाना खाते खाते पेट नहीं भरता या मन नहीं करता खाना खाने का तो फिर पीहर ही याद आता है कि चलो एक टाइम के लिए मां से मिलने चलते हैं इसी बहाने खाना तो मिलेगा पेट भर खाने के लिए।
चाहे शादी के बाद करोड़पति क्यों ना मिल जाए लेकिन अगर एक औरत का खाना खुद बना कर खाना पड़ता है और वह भी ठंडा तो उस औरत से बड़ा कोई गरीब नहीं होता।
सब कुछ होते हुए भी अगर पेट भर कर खाना नहीं खा सकती तो वह पूरे दिन खुश भी नहीं रह सकती पेट भर के खाना और मनचाहा गरमा गरम मिल जाए उससे बड़ा कोई अमीर नहीं और वह भी किसी और के हाथ का बना हुआ ।।
अरे क्या हुआ कहां रह गई मेरी थाली में रोटी खत्म हो गई है और अभी तक रोटी क्यों नहीं आई और कहां है दिमाग ।
रोटी फूल भी नहीं रही ठीक से बनाकर लाना इस बार तभी मेरे कानों में यह आवाज पड़ी पति देव जी चिल्ला रहे थे और मैं सोच में पड़ गई थी अचानक बाहर निकल आई अपनी सोच से वो लम्हे भी क्या लम्हे थे बस मां के हाथ का खाना, मां के हाथ का ही होता है ।
मैंने बोला अभी लाई और फटाफट रोटी सेंककर देने चली गई इस बार रोटी फूल गई थी तो भगवान को मन ही मन धन्यवाद किया कि चलो अब तो नहीं सुनना पड़ेगा की रोटी फूली नहीं।
