वड़वानल - 43

वड़वानल - 43

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‘तलवार’ से निकलकर रॉटरे सीधा अपने ऑफिस पहुँचा। उसने घड़ी की ओर देखा - दोपहर का डेढ़ बज रहा था। सूर्यास्त तक, मतलब साढ़े छ: बजे तक पूरे पाँच घण्टे उसके हाथ में थे। उसने फ्लैग ऑफिसर कमाण्डिंग रॉयल इण्डियन नेवी एडमिरल गॉडफ्रे से सम्पर्क स्थापित किया। गॉडफ्रे रॉटरे के सन्देश की राह ही देख रहा था।

‘‘मैंने दोपहर एक बजे ‘तलवार’ के सैनिकों से सम्पर्क स्थापित किया।’’ रॉटरे अपने प्रयत्नों के बारे में बता रहा था। ‘‘सैनिक तिलभर भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।’’

‘‘उनकी माँगें क्या  हैं ?’’ गॉडफ्रे ने पूछा।

‘‘बार–बार पूछने के बाद भी उन्होंने अपनी माँगें नहीं बताईं। मगर एक बात स्पष्ट है कि चाहे किंग की गाली–गलौज से सैनिक क्रोधित हो गए हों, चाहे वे सेवा सम्बन्धी परिस्थितियों के कारण असन्तुष्ट हों, फिर भी इसके पीछे भूमिगत क्रान्तिकारियों और कट्टर कार्यकर्ताओं का हाथ है। मुझे शक है कि यह विद्रोह सिर्फ मुट्ठीभर ज़्यादा खाने के लिए नहीं है।’’ रॉटरे ने स्पष्ट किया.

‘‘ये सब फौरन ख़त्म करो, किंग का तबादला कर दो, सैनिकों की माँग समझ लो। जितनी सम्भव हों  उतनी मान लो। कुछ माँगों के लिए चर्चा का नाटक जारी रखो। ये संक्रमण और जगहों पर न फैलने पाए।  इसलिए  मौके  को  देखकर  झुक जाओ। अगर ज़रूरत पड़े तो आर्मी की मदद लो। By hook or crook you must squash up the problem. And send me four hourly report.'' गॉडफ्रे ने सूचनाएँ दीं.

‘‘सर, मैं शाम को एक बार फिर कोशिश करने वाला हूँ। सर, मेरा ख़याल है कि हमें राजनीतिक पक्ष और राष्ट्रीय नेताओं को इससे दूर रखना चाहिए।’’ रॉटरे ने कहा।

‘‘ठीक है। यह हमारा अन्तर्गत मामला एवं सेना के अनुशासन का प्रश्न है। इसे हमें ही सुलझाने दें।  कृपया  आप  इसमें  हस्तक्षेप  न  करें।  ऐसी  प्रार्थना हम  राष्ट्रीय  पक्षों  से  और  नेताओं  से  कर  सकते  हैं।’’  गॉडफ्रे  ने  सुझाव  दिया।

‘‘आप  सोचते  हैं  कि  वे  इसे  मान  लेंगे ?’’  रॉटरे  ने  सन्देह  व्यक्त  किया।

‘‘कांग्रेस के नेता अब थक चुके हैं। उन्हें आज़ादी की जल्दी मची हुई है। यदि उन्हें यह सुझाव दिया जाए कि सैनिकों का पक्ष लेने अथवा उन्हें समर्थन देने का प्रयत्न करने से स्वतन्त्रता सम्बन्धी वार्तालाप में रोड़ा आ सकता है, तो वे इस सबसे दूर रहेंगे।’’ गॉडफ्रे ने व्यूह रचना बतलाई।

‘‘यदि ऐसा हुआ तो हमारा काम आसान हो जाएगा। आज तक के विद्रोहों की भाँति इस विद्रोह को भी हम  कुचल  देंगे।  मैं  हर  चार  घण्टे  बाद  आपको  रिपोर्ट भेजता हूँ।’’ रॉटरे ने रिसीवर नीचे रखा।

रियर  एडमिरल  रॉटरे  की  स्टाफ  कार  ‘तलवार’  के  परिसर  में  प्रविष्ट  हुई।  तब  साढ़े छह बजे थे। गेट पर पहरा नहीं था। सैनिक बेरोक–टोक ‘तलवार’ में आवाजाही कर  रहे  थे।  रॉटरे  की  चाणाक्ष  नजरों  ने  ताड़  लिया  कि  परिस्थिति  में  कोई  परिवर्तन नहीं हुआ है। स्टाफ कार बैरेक के सामने रुकी। सफेद झक पोशाक वाले ड्राइवर ने  नीचे  उतरकर  अदब  से  कार  का  दरवाज़ा खोला। शासनकर्ता के रोब में ही रॉटरे बैरेक में घुसा। बैरेक में चारों ओर अनुशासनहीनता दिखाई दे रही  थी।

बिस्तर  वैसे  ही  पड़े  थे।  जगह–जगह  सिगरेट  के  टुकड़े,  काग”ज़ों  के  गोले  बिखरे थे। लगता था कि सुबह से बैरेक में झाडू भी नहीं मारी गई है। एक कोने में छह व्यक्तियों का गुट ताश खेलने में मशगूल था। कुछ लोग लेटे थे। जगह–जगह गप्पें मारी जा रही थीं। बैरेक में आए हुए रॉटरे की ओर किसी का भी ध्यान नहीं था।

''Good evening, Friends.'' रॉटरे ने सबका अभिवादन किया। यह उसके खून में रसा हुआ शिष्टाचार था। सैनिकों के मन में अपनापन निर्माण करने की एक चाल थी।

‘‘ऐ, तुरुप चल।’’  पाण्डे सुरजीत सिंह से कह रहा था।

‘‘अबे, तीन तुरुप तो चल चुका, अब कहाँ का तुरुप ?’’ सुरजीत पूछ रहा था।

वे लोग जानबूझकर रॉटरे को अनदेखा कर रहे थे। ये बात रॉटरे के ध्यान में आ चुकी थी; मगर उसने कोशिश जारी रखने का निश्चय कर लिया था।

‘‘फ्रेन्ड्स, मैं फिर एक बार तुम्हारे पास आया हूँ। आज सुबह मैंने दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया था,  तुमसे काम पर  वापस लौटने की अपील की थी,  तुम्हारी ओर से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं मिली इसलिए दुबारा यहाँ आया हूँ,’’ रॉटरे अकेला ही बड़बड़ा रहा था। कोई भी उसकी ओर ध्यान नहीं दे रहा था।

‘‘मैं एक बार फिर तुम्हें आश्वासन देता हूँ कि तुम्हारी समस्याएँ सुलझाने की मैं पूरी–पूरी कोशिश  करूँगा।  तुम्हारे  लिए  मेरे  मन  में  किसी  भी  प्रकार  की द्वेष–भावना  नहीं  है।’’  रॉटरे  पलभर  को  रुका।  उसने  चारों  ओर  नजर  दौड़ाई। आज जितना अपमानित वह पहले कभी नहीं हुआ था। 'Bastards ! ये सब शान्त हो जाने दो, फिर देख लूँगा एक–एक को।’ वह मन ही मन तिलमिला रहा था। मन के भाव चेहरे पर न लाते हुए वह उन्हें समझाने लगा।

‘‘मेरी बस एक ही प्रार्थना है, तुम लोग काम पर वापस आ जाओ !’’

रॉटरे की बातों में छिपी धूर्तता को दत्त, गुरु और खान भाँप गए थे।

‘‘मतलब, पहले सैनिक काम पर आएँ’’ दत्त ने आगे बढ़कर रॉटरे से पूछा, ‘‘और  इसके  बाद  जितनी  सम्भव  होंगी,  आपके  अधिकार  क्षेत्र  में  होंगी  वे  समस्याएँ आप सुलझाएँगे, यही कह रहे हैं ना ?’’

रॉटरे ने गर्दन हिलाई।

‘‘क्या आप हमें बेवकूफ समझते हैं ?’’ दत्त ने पूछा।

‘‘कोई भी ठोस उपलब्धि हुए बिना हम अपना आन्दोलन वापस ले लें ?’’

‘‘वैसी बात नहीं, दोस्तो ! मुझसे जितना सम्भव होगा उतनी समस्याएँ मैं सुलझाऊँगा। मुझ पर भरोसा रखो !’’ रॉटरे ने समझाने की कोशिश की।

‘‘ठीक है। मैं और एक कदम आगे बढ़ता हूँ। दोस्ती का हाथ बढ़ाता हूँ। तुम्हारी मुख्य शिकायतें कमाण्डर किंग के बारे में हैं। हम अपने परस्पर सहयोग का पहला कदम मैं बढ़ाता हूँ - कमाण्डर किंग को इसी क्षण से ‘तलवार’ के कैप्टन के पद से हटाता हूँ। ‘तलवार’  के सारे सूत्र कैप्टन इनिगो जोन्स के हाथों में सौंप  रहा  हूँ।’’

रॉटरे का यह अन्दाजा कि सैनिक उसकी इस घोषणा का स्वागत करेंगे, गलत निकला।

‘‘अब यदि हम खामोश रहे तो रॉटरे इसे हमारी सम्मति मानकर कुछ बातें हम पर लाद देगा। अब हमें बोलना ही  चाहिए।’’  गुरु  ने  दत्त  से  पुटपुटाकर  कहा।

‘‘सिर्फ बोलने से कुछ नहीं होगा। कड़ा विरोध करना चाहिए और हमारी माँगें आगे बढ़ानी चाहिए।’’ दत्त ने कहा।

‘‘हमें जोन्स नहीं चाहिए।’’ खान ने आगे बढ़कर जोर से कहा।

‘‘क्यों नहीं चाहिए ? वह एक अच्छा अधिकारी है।’’ रॉटरे ने अपनी पेशकश का समर्थन किया।

‘‘वो अच्छा होगा तुम्हारे लिए। हम हिन्दुस्तानी सैनिकों की नज़र में उस जैसा नीच और हिन्दुस्तान का द्वेषी अधिकारी और कोई नहीं। वह डॉकयार्ड में था, ‘सरकार’ में था, वहाँ की समस्याएँ वह सुलझा नहीं सका; उल्टे हिन्दुस्तानी सैनिकों को बिना किसी कुसूर के उसने आनन–फानन में सज़ा दे डाली। गोरे सैनिकों का हमेशा बचाव किया। उसका विश्वास है कि हिन्दुस्तानियों का जन्म ही गुलामों की ज़िन्दगी जीने के लिए हुआ है - उस जोन्स  को हम पर मत लादिये।’’

खान शान्ति से मगर दृढ़तापूर्वक कह रहा था।

''It is a good sign. we are establishing communication, filling up the gaps. That's a good spirit. Come on speak out.''

खान के जवाब से उत्पन्न अप्रसन्नता को मन ही में दबाकर, कृत्रिम हँसी से रॉटरे उन्हें बोलने के लिए प्रवृत्त कर रहा था। उसका ख़याल था कि सैनिक जब बोलने लगेंगे तो उनके मन में हो रही हलचल का पता चलेगा, उन्हें क्या चाहिए इसका अनुमान हो जाएगा, उनके पीछे कौन है इसका अन्दाज़ा हो जाएगा।

‘‘फिर तुम्हें कौन चाहिए ?  तुम्हें आख़िर चाहिए क्या ?’’ रॉटरे ने पूछा।

‘‘हमें कोई भी हिन्दुस्तानी अधिकारी चलेगा। अंग्रेज़ अधिकारियों के नीचे हम काम नहीं करेंगे।’’  गुरु चिल्लाया।

‘‘हमें  आजादी  चाहिए।  तुम  यह  देश  छोड़कर  चलते  बनो।’’  मदन चिल्लाया।

और वहाँ एकत्रित सैनिकों ने नारे लगाना शुरू कर दिया:

‘‘क्विट  इण्डिया !’’

‘‘वन्दे मातरम् !’’

करीब पाँच मिनट तक नारे चलते रहे। रॉटरे कुछ क्षण खामोश रहा, फिर जोर–जोर से चिल्ला–चिल्लाकर, हाथ हिला–हिलाकर उसने सैनिकों को शान्त रहने की अपील की। मगर शोरगुल कम हुआ ही नहीं। चीख–पुकार चलती रही।

''Silence please, silence !'' दत्त आगे आया और उसने सैनिकों को शान्त रहने को कहा। सैनिक खामोश हो गए।

‘‘रॉटरे क्या कहना चाहता है यह हम सुन लेते हैं। उसे स्वीकार करना है अथवा नहीं, इसका फैसला हम बाद में करेंगे। सुनने में क्या हर्ज़ है ?’’ दत्त ने सैनिकों को समझाया।

‘‘आप  कहिये,  आपको  जो  कहना  है  कहिये।  वे  शान्तिपूर्वक  सुनेंगे।’’  रॉटरे की ओर देखते हुए दत्त ने कहा।

रॉटरे ने दत्त की ओर देखा। उसकी एक नज़र में कई अर्थ छिपे हुए थे। रॉटरे इस बात को समझ गया था कि  सैनिकों  का  यह  विद्रोह  केवल  वेतन,  खाना, बर्ताव जैसी छोटी–मोटी माँगों की ख़ातिर नहीं था,  बल्कि वह  स्वतन्त्रता  आन्दोलन का एक हिस्सा था; और खान, दत्त तथा गुरु उनके नेता थे। उसने मन ही मन इन घटनाओं की ओर एक अलग दृष्टि से देखने का और अलग तरीके से उन्हें सुलझाने का निश्चय किया।

‘‘मैं तुम्हें एक और मौका देता हूँ, तुम अपने प्रतिनिधि चुनो, अपनी माँगों की फेहरिस्त तैयार करो और सुबह साढ़े नौ बजे तक मुझे दो।’’ उसने सैनिकों से कहा,  ‘‘माँगें पेश करने से पहले तुम काम पर वापस लौटो।’’

‘‘काम पर वापस लौटने की शर्त हम कभी भी मान्य नहीं करेंगे।’’ मदन ने चीखते हुए कहा।

‘‘हमारा कोई भी प्रतिनिधि चर्चा करने के लिए तुम्हारे दरवाज़े पर नहीं आएगा। हमारी ओर से राष्ट्रीय पक्ष का नेता तुमसे चर्चा करेगा। यह नेता कौन होगा यह आपको कल सूचित किया जाएगा।’’ खान ने चिल्लाकर कहा।

‘‘रॉटरे Go back !'' सैनिकों के नारे शुरू हो गए और अपमानित रॉटरे तेज़ी से बैरेक से बाहर निकल गया।

रियर एडमिरल रॉटरे, पश्चिमी किनारे का सर्वोच्च नौदल अधिकारी; किसी अंग्रेज़ अधिकारी की भी उसकी नज़रों से नज़र मिलाकर बात करने की हिम्मत नहीं होती थी; मगर आज... उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। वह समझ ही नहीं पा रहा था कि उसने यह अपमान कैसे सहन किया। मगर यह सच था। उसने अपमान का हलाहल निगला था। बिलकुल शान्ति से। वह दो कदम पीछे हटा था। चीते की तरह छलाँग लगाने के लिए।

‘आज तक के विद्रोहों जितना आसान नहीं है यह विद्रोह। ये सैनिक अकेले नहीं हैं उनके पीछे अवश्य ही राष्ट्रीय नेता, भूमिगत क्रान्तिकारी होने चाहिए।’ वह मन ही मन विचार कर रहा था। ‘सैनिकों के मन में लावा उफ़न रहा है।‘ वह सतर्क हो गया।

‘चाहे  जो  भी  हो  जाए,  राष्ट्रीय  पक्षों  के  हाथ  में  यह  विद्रोह  जाना  नहीं चाहिए। उसका चप्पू अपने ही हाथ में रखना होगा।’ उसने मन ही मन निश्चय किया।

रॉटरे के चेहरे पर अब बेफिक्री का भाव नहीं था; बल्कि ये ‘प्रकरण आसान नहीं है।’ यह चिन्ता थी।

स्टाफ  कार  में  बैठते  हुए  उसने  अपने  आप  से  पूछा, ‘आगे क्या करना चाहिए ?’

‘भूदल सैनिकों की सहायता लेकर यदि इन आन्दोलनकारी सैनिकों को गिरफ़्तार कर लिया जाए तो ?’

‘हालात बिगड़ जाएँगे... यदि भूदल के सैनिक अपने देशबन्धुओं के खिलाफ़ खड़े न हुए तो... यह दावानल पूरे देश में फैल जाए तो... अंग्रेज़ों का बचा हुआ साम्राज्य...’’

इस  ख़याल  के  आते  ही  वह  चौंक  गया  और  उसके  दूसरे  मन  ने  आदेश दिया, ‘सब्र करो।’

‘गॉडफ्रे  को  यह  सब  सूचित  कर  दिया  जाए  और  उसकी  सलाह  के  मुताबिक कार्रवाई की जाए’ उसने निश्चय किया और वह ‘तलवार’ से बाहर निकला।

 खान  के  आदेश से 'Clear lower deck' का बिगुल बजाया गया और सैनिक परेड ग्राउण्ड की ओर भागे।

खान ने वहाँ एकत्रित सभी सैनिकों को इस बात की जानकारी दी कि रॉटरे के बेस में आने के बाद क्या–क्या हुआ।

‘‘दोस्तो ! यह लड़ाई मुझे और किंग के विरुद्ध जिस–जिसने शिकायत की थी उन्हें तो लड़ना ही है; परन्तु चूँकि यह लड़ाई हम सब की है, इसलिए मुझे  इस बात का जवाब चाहिए कि क्या इस लड़ाई को हम आख़िर तक  लड़ें या इसे यहीं रोक दें ?’’ खान के शब्दों में अस्वस्थता थी।

''Unto the last'' एक सुर में जवाब आया।

‘‘यह निर्णय लेने से पहले इस बात को ध्यान में रखो कि संघर्ष बड़ा जटिल है; शायद हमें अपना सर्वस्व गँवाना पड़े,  और हाथ में कुछ भी न आए। क्या आप लोग तैयार हैं ?’’ खान ने पूछा।

“हम अपनी जान की बाज़ी लगाने को तैयार हैं,” एक सुर में जवाब आया।

‘‘तुम्हारी इस जिद के लिए बधाई ! मगर दोस्तो, यह याद रखना कि सपनों को अगर हकीकत में बदलना है तो हमें  अनुशासित होना होगा। रॉटरे यहाँ से तनतनाता हुआ गया है। उसके विरोध में लगाए गए नारों की चुनौती को उसने स्वीकार किया है। उसने कल सुबह साढ़े नौ बजे तक की मोहलत दी है। इस दरम्यान वह हमें नेस्तनाबूद करने की कोशिश कर सकता है। सूर्यास्त के बाद या तो आर्मी का पहरा लगाएगा या फिर ‘तलवार’  में आर्मी घुसाकर हमें कैद कर सकता है। एक बार अगर हम गिरफ़्तार हो गए तो सब कुछ समाप्त हो जाएगा, सिर्फ चौबीस घण्टों में ख़त्म हो जाएगा। क्या हुआ था, कैसे हुआ था, इसका किसी को भी पता लगे बगैर यह संघर्ष समाप्त हो जाएगा और हम भी ख़त्म हो जाएँगे। यदि इसे टालना है तो हमें सावधान रहना होगा, अनुशासित  रहना  होगा,  अनुशासनहीनता  हमारे  लिए  अंग्रेज़ों  जितना  ही  घातक शत्रु है।‘’

खान के एक–एक शब्द में समाई तिलमिलाहट सैनिकों के दिलों तक पहुँची और दस–बारह सैनिकों ने चिल्लाकर कहा, ‘‘हम तैयार हैं। ये बताओ कि करना क्या है !’’

और ‘तलवार’ पर अनुशासित कार्यक्रम की शुरुआत हो गई। ड्यूटी वाच फॉलिन हुए। क्वार्टर मास्टर्स लॉबी,  मेन गेट और अन्य जगहों पर पहरे बिठाए गए। पहरेदारों को सूचनाएँ दी गईं; ‘‘यदि  गोरे  सैनिक  और  अधिकारी बाहर जाएँ तो उन्हें जाने दिया जाए; मगर रात में किसी को भी ‘तलवार’ में प्रवेश न करने दिया जाए। साथ ही ‘तलवार’ की महिला सैनिकों को रोका न जाए, उनके साथ असभ्य व्यवहार न किया जाए।’’


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