वड़वानल - 24

वड़वानल - 24

5 mins
330


1 तारीख को शाम चार बजे की चाय हुई। 2 तारीख के डेली ऑर्डर की घोषणा की गई। सर एचिनलेक के आगमन के कारण पूरा रुटीन बदल गया था। परेड के लिए फॉलिन सुबह पौने आठ बजे ही होने वाली थी। सैनिक बगैर ड्यूटी–पास के बाहर न निकलें यह सख्त हिदायत दी गई थी।

चार बजे से आठ बजे वाले पहरेदार पहरे पर आए। दत्त, गुरु, मदन और खान करीब पाँच बजे बाहर निकले। उनके  अनुमान  के  मुताबिक  सेल्यूटिंग  डायस और परेड ग्राउण्ड के आसपास सिग्नल स्कूल के प्रशिक्षार्थी थे। एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक  में  इस  समय  खामोशी  थी।  वहाँ  के  पहरेदार  जाने–पहचाने  थे। मगर वे कहाँ तक साथ देंगे इस बारे में सन्देह था।

छह बजे क्वार्टर मास्टर ने ''Hands to supper'' की घोषणा की। दत्त बाहर निकला। करौंदे की जाली में छिपाकर रखे गए पोस्टरों में से उसने तीस पोस्टर बाहर निकाले और उन्हें सिंगलेट में छिपा लिया। कम्युनिकेशन सेंटर से उसने कल ही गोंद की एक बोतल पार की थी। वह उसके लॉकर में ही थी।

वह बैरेक में आया तो वहाँ सन्नाटा था। बैरेक के बाहर गुरु, मदन और खान  उसकी  राह  देख  रहे  थे।  दत्त  ने  अपनी  प्लेट  और  मग  उठाया  और  चारों मेस की ओर निकले। मौका देखकर उन्होंने अपने मग और प्लेटें छिपाकर रख दीं। काम पूरा होने के बाद ही खाना खाने का उन्होंने निश्चय  किया  था। वे चारों मेस से बाहर निकले और विभिन्न दिशाओं में चले गए। यदि किसी की नज़र उन पर पड़ी होती तो उनकी पोशाक और जल्दबाजी को देखकर यही समझता कि   वे   ड्यूटी   पर   ही   हैं।

चार  घण्टे  खड़े–खड़े  ड्यूटी  करने  की  आदत  न  होने  से  सिग्नल  स्कूल  के ट्रेनी   बुरी   तरह थक गए थे। किसी का ध्यान इस तरफ नहीं है यह देखकर दो–तीन व्यक्ति इकट्ठे होकर गप्पें मारने लगते। मदन और खान ऐसा दिखा रहे थे मानो परेड  ग्राउण्ड  के  बाहर  यूँ  ही  मँडरा  रहे  हों,  मगर  असल  में  वे  उस  परिसर  पर पूरी   तरह   नजर   रखे   हुए   थे।

''Good evening, Sir!'' पास में आकर एक सन्तरी ने उन्हें ‘विश’   किया।

''Good evening भाई! बोलो कैसे हो,’’   मदन ने भी ‘विश’ किया।

''Hello Sir!'' और   दो   पहरेदार   निकट   आए।

चार में से तीन पहरेदार उनके पास आए थे। खान ने चौथे को भी पास में बुला लिया।

मदन अपने जूते का फीता बाँधने के बहाने से नीचे झुका यह संकेत था गुरु और दत्त के लिए। वे दोनों जल्दी–जल्दी सैल्यूटिंग डायस की ओर चल पड़े।

‘‘घर से चिट्ठी तो आई थी ना ?’’ मदन ने सेन्ट्री ड्यूटी पर तैनात सुजान से पूछा। सुजान और मदन एक ही गाँव के थे। सुजान कई बार मेसेंजर ड्यूटी के लिए कम्युनिकेशन सेन्टर जाया करता था, उस समय दोनों का परिचय हुआ था।

‘‘पन्द्रह–बीस  दिनों से नहीं  आई  है।’’  सुजान  ने  कहा।  खान ने जेब  से सिगरेट का पैकेट निकालकर मदन को सिगरेट दी और चारों पहरेदारों के सामने भी   पैकेट   बढ़ा   दिया।

‘‘अरे,  पीते हो ना,  तो लो ना!’’  दास  ने आग्रहपूर्वक उनके हाथों में सिगरेट थमा   दीं।

वे चारों परेशान हो गए। मदन सुजान के गाँव का है। मदन और खान ये   दोनों   एक–दूसरे   को   जानते   हैं; मगर फिर भी वे सीनियर हैं। उनके   सामने   सिगरेट पीना–––।’’

''No, thanks, Sir!'' सुजान  बुदबुदाया।

''Oh, forget about our seniority, come on.'' मदन ने आग्रहपूर्वक कहा।

‘‘हम मेहँदी के उस पार ओट में छिपकर पियेंगे,’’ खान ने सुझाव दिया।

डायस के पीछे की ओर वाली छोटी–सी बगिया और इस बगिया के चारा ओर लगाई गई पाँच–साढ़े पाँच फुट मेहँदी की सुरक्षात्मक बागड़ के बारे में किंग भूल गया था। मेहँदी की ओट में ये छह व्यक्ति आये और उसी समय गुरु एवँ दत्त डायस पर चढ़े।

अब   पहरेदारों   को   कम   से   कम   पन्द्रह–बीस   मिनट   तक   बातों   में   लगाए   रखना आवश्यक था। सिगरेट पीने में सात के करीब मिनट लगते।

‘‘परीक्षा   कब   है ?’’

‘‘अगले   महीने   में।   मगर   अभी   तक   कुछ   भी   पढ़ाई   नहीं   हुई।’’

 ‘‘और फिर ये हर एक दिन बाद वाली चार–चार घण्टे की सेन्ट्री ड्यूटी ने बेहाल कर दिया है।’’   एक   पहरेदार   चिढ़कर बोला।

‘‘कोई बात यदि समझ में न आए तो मुझसे पूछ लेना।’’ मदन ने सलाह दी।

‘‘आपको शायद मालूम नहीं है कि फ्लीट वर्क और क्रिप्टो में यह अव्वल आया   था।’’   खान   ने   जानकारी   दी।

मदन और खान ने हालाँकि पहरेदारों को बातों में उलझा लिया था, मगर साथ ही उनकी चारों ओर बारीक नजर   थी।

‘यदि   किसी   ने   हमें   इस   तरह   खड़े   देख   लिया   तो... बेकार की मुसीबत...सभी पकड़े   जाएँगे।’   मदन   के   मन   का   डर   बोल   रहा   था।

मगर यह ख़तरा तो उठाना ही होगा। लम्बी साँस छोड़ते हुए उसने स्वयँ को   आगाह   किया।   सिगरेट   ख़त्म   हो   चुकी   थी।

दत्त और गुरु समय पर काम पूरा कर लें; वरना... कुछ और समय इन्हें हिलगाए   रखना   होगा।   खान   सोच   रहा   था।

‘‘तुम्हें  ताऊ  रामलाल  के  बारे  में  पता  चला ?’’  मदन  ने  सुजान  से  पूछा।

‘‘नहीं।  क्या  हुआ ?’’

‘‘आज  दसवाँ  दिन  है–––।’’

‘‘अचानक ?   क्या   हुआ   था ?’’

‘‘कुछ पता नहीं चला। प्यारेलाल ने कहलवाया था, कल ही मुझे चिट्ठी मिली   है।’’

ताऊ की यादें ताजा हो गर्इं। खान को अच्छा लगा, थोड़ा और टाइमपास हो जाएगा मगर मन दोनों के बेचैन ही थे।

दत्त और गुरु को बैरेक्स की ओर जाते देखा और मदन की जान में जान आ गई। क्वार्टर मास्टर ने साढ़े सात   का   घण्टा   बजाया।

‘‘चलो,   सब   कुछ   समय   के   भीतर   हो   गया!’’   चारों   ने   राहत   की   साँस   ली।

‘‘सब कुछ ठीक–ठाक हो गया ना ? फिर तेरा चेहरा उतरा हुआ क्यों है ?’’ खान   दत्त   से   पूछ   रहा   था।

‘‘सब  कुछ  योजना  के  अनुसार  तो  हो  गया,  मगर  जिस  तरह 1 दिसम्बर को अधिकारियों के होश उड़ गए थे,   वैसा इस बार नहीं होगा।’’

 ‘‘ठीक कह रहे हो, मगर इस नयी परिस्थिति में जितना सम्भव था उतना हमने  किया  है। देख,  तेरे और गुरु  के  हाथों  में  रंग  लगा  है  वो  साफ  कर  लो और बढ़े हुए नाखून भी काट लो। नाखूनों के नीचे का रंग चोरी पकड़वा देगा।’’

चारों खाने के लिए बैठे। दत्त गुमसुम था। चेहरे का उत्साह गायब हो गया था। चार ग्रास निगलकर दत्त खाने  की मेज़ से उठ गया।

''Excuse me! मुझे   बाहर   से   चार   की   ड्यूटी   पर   जाना   है।’’

जवाब   का   इन्तजार   न   करते   हुए   वह   दनदनाते   हुए   चला   गया।

‘‘दत्त का मन जब अस्वस्थ होता है तो वह गुमसुम हो जाता है।’’ दत्त के जाने के बाद मदन खान से कह रहा था, ‘‘उसके मन में तूफान मँडरा रहा होगा, ऐसे तूफान में फँसा हुआ दत्त परिणाम की परवाह न करते हुए मनमानी कर  बैठता  है।  हमें  उसे  समझाना  होगा,  वरना  हम  सभी  मुसीबत  में  फँस  जाएँगे।’’

वे तीनों बैरेक में लौटे। दत्त बैरेक में नहीं था। बैरेक के सामने वाले प्रकाशपुंज फेंकते बल्ब बैरेक का सामने वाला परिसर और सामने वाला रास्ता रोशन कर रहे थे।

‘‘दत्त,   कहाँ   गया   था ?’’   वापस   लौटे   हुए   दत्त   से   खान   पूछ   रहा   था।

अस्वस्थ   दत्त   चुप   ही   रहा।

‘‘शान्त रहो। आततायीपन मत करो। अगर तुम पकड़े गए तो हमारी आधी शक्ति घट जाएगी और अगला   कार्यक्रम   असफल   हो   जाएगा।’’

‘‘मैंने हाथों में चूड़ियाँ नहीं पहनी हैं,’’ दत्त के शब्दों में चिढ़ थी। हमारे आदर्श हैं सुभाष बाबू और हमारा नारा है, ‘जीतेंगे या मरेंगे’ यह न भूलो। यदि कोई  एक  पकड़ा  गया,  तो  भी                   Show must go on.'' वह  दनदनाते  हुए  अपने बिस्तर   की   ओर   गया।

‘‘उसे   सोने   दो।   चार   घण्टे   सो   जाएगा   तो   ठीक   हो   जाएगा।’’   खान   ने   कहा।

असल   में   मुझे   भी   बड़ी   नींद   आ   रही   है।   पिछली   तीन–चार   रातों   का   जागरण,   योजना बनाना, उसकी तैयारी करना, पोस्टर्स लिखना––– और यह सब रोज़ के काम को सँभालते हुए,   सबकी  नजरें  बचाते  हुए–––  मन  पर  बड़ा  टेन्शन  था।’’  गुरु  खान और मदन को समझा रहा था। ‘हाथों में चूड़ियाँ नहीं पहनी हैं’ ये उसने टेन्शन के मारे ही कहा था। आज तक हमने एक–दूसरे को सँभाला है, उसी तरह आगे भी सँभालना होगा। हम सबका उद्देश्य एक ही है।’’

वे  तीनों  समझ  ही  न  पाये  कि  उन्हें  कब  नींद  आ  गई।  रात  के  नौ  बज

गए। ऑफिसर ऑफ दि डे का रात का राउण्ड हो गया। बैरेक की बत्तियाँ बुझा दी गईंऔर चारों ओर अँधेरा छा गया। पूरी बैरेक नींद के आगोश में थी, मगर दत्त की आँखों में नींद नहीं थी।

‘‘आज हम ज्यादा कुछ कर ही नहीं सके। और अधिक पोस्टर्स चिपकाने चाहिए थे। नारे लिखने चाहिए थे। वैसे खतरे की तो कोई बात नहीं थी। सब बेकार ही में डर गए थे... मगर मैं क्यों डर  गया ?  सबके  साथ  रहना  है  इसलिए ?’’

वह   एक   के   बाद   एक   सिगरेट   सुलगा   रहा   था।

बारह कब बज गए, पता ही नहीं चला। एक दृढ़ निश्चय से वह ड्यूटी पर हाज़िर हुआ।

“Come on, get up and fallin on the ground.” बैरेक्स के सारे बल्ब जल रहे थे। गोरे सैनिक हिन्दुस्तानी सैनिकों  के  बदन  से  कम्बल  खींचकर,  डंडे से कोंच–कोंचकर उन्हें उठा रहे थे और परेड ग्राउण्ड पर धकेल रहे   थे।

''Hey you bloody fool, come on get up'' पलंग पर डंडा मारते हुए और कम्बल खींचते हुए एक गोरा सैनिक गुरु को उठा रहा था। आधी नींद में गुरु को कुछ समझ में ही नहीं आया कि हो क्या रहा है और वह दुबारा बिस्तर

पर  लुढ़क  गया।

‘‘ऐ, सुनाय नाय देता? Come on, get up run to the parade ground.'' वही गोरा सैनिक गुरु के बदन पर दौड़ गया।

गुरु उठकर बैठ गया। आधी नींद के कारण उसका सिर चकरा रहा था।

उसका ध्यान दत्त के बेड की ओर गया। कम्बल की तह खुली तक नहीं थी। ‘दत्त की ड्यूटी तो चार बजे खत्म हो गई। वह गया कहाँ ? कहीं रात को उसने   कोई   गड़बड़   तो   नहीं   की ?   उसे   पकड़   तो   नहीं   लिया   गया!...’

''You, Come on, hurry up.'' गोरा सैनिक उस पर फिर बरसा और विचारों की श्रृंखला टूट गई। अंतर्वस्त्र पहने ही   वह   बैरेक   से   बाहर   निकला।

पूरा  परिसर  रोशनी  में  नहा  गया  था।  उजाला  होने  में  करीब  घण्टा–डेढ़  घण्टा था।  हवा  में  काफी  ठण्डक  थी,  मगर  मदन,  गुरु,  दास,  खान  और  सलीम  के  पसीने छूट  रहे  थे।

‘‘एक–दूसरे  से  दूर–दूर  रहो।  मन  का  सन्तुलन  छूटने  न  पाये।  चेहरे  पर  कोई भाव  नहीं।’’  सभी  सवालों  के  जवाब  में – ‘मालूम  नहीं’,  कहना’,  मदन  ने  जाते–जाते सबको सलाह दी। सामने क्या आने वाला है, इसकी किसी को भी कल्पना नहीं थी। परेड ग्राउण्ड पर पूरी शिप्स–कम्पनी फॉलिन हो चुकी थी। हर डिवीजन के सैनिकों की गिनती की जा रही थी। कुल सैनिकों की संख्या का बार–बार मिलान किया   जा   रहा   था।

दास, गुरु, खान, सलीम और मदन की नजरें दत्त को ढूँढ़ रही थीं। दत्त के साथ बारह से चार ड्यूटी करने वाले वहाँ उपस्थित थे, मगर दत्त दिखाई नहीं दे  रहा  था।  उनके  दिल  धक्क  रह  गए।

‘दत्त पकड़ा तो नहीं गया ?’   सभी के दिमाग में यही   सवाल था।

‘किससे पूछें ?’ गुरु ने सोचा। ‘मगर, नहीं पूछताछ करने का मतलब होता सन्देह  उत्पन्न  करना,’  उसका  दूसरा  मन  कह  रहा  था।  ‘यदि  दत्त  पकड़ा  गया है, तो अब हम कर ही क्या सकते हैं ? सारी शंकाएँ, सारी उत्सुकता दबाते हुए, चेहरा निर्विकार रखना चाहिए और प्रस्तुत परिस्थिति का सामना करना चाहिए।’

''Hey you bloody, black. come on more forward. Double up.'' गोरा सैनिक चीख रहा था।

गुरु होश में आया, गालियाँ देने वाला वह सिपाही मुझसे जूनियर है, यह बात उसके ध्यान में आई और उसने सोचा, ‘‘साले को पकड़ के धुनक दूँ।’ मन ही  मन  उस  पर  गालियों  की  बौछार  करते  हुए  वह  जाँच  के  लिए।  आगे  बढ़ा।

''Show me your hands.''

गुरु ने हाथ आगे बढ़ाए। मन ही मन खान को धन्यवाद दिया। ‘‘खान ने हाथ साफ धोने के लिए, नाखून काटने के लिए यदि नहीं कहा होता तो आज शायद...  दत्त शायद बगैर हाथ धोए वैसे ही   इधर–उधर... रंग के कारण तो दत्त...’’

वह   बेचैन   हो   गया।

पूर्व  में  क्षितिज  पर  एक  नया  दिन  और  एक  नया  आह्वान  प्रस्तुत  करत हुए सूरज धीरे–धीरे   ऊपर   आ   रहा   था।   ‘कहीं   आज   का   दिन   नौसेना   में   मेरे   अस्तित्व को  नष्ट  करने  वाला  तो  नहीं  है ?  अगर  वैसा  हुआ  तो  हमारी  बगावत  की  तैयारी...जो  सामने  आएगा,  उसका  हिम्मत  से  मुकाबला  करना  ही  होगा।’  गुरु  मन  ही मन आने वाले दिन के बारे में सोच रहा था, ‘मुफ्त में तो किसी को भी कुछ भी   नहीं   मिलता।   कीमत   त ो   चुकानी   ही   पड़ती   है।’


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama