वड़वानल - 22

वड़वानल - 22

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मुर्गे ने पहली बाँग दी फिर भी सैनिक जेट्टी पर सज़ा भुगत ही रहे थे। आख़िर   तंग आकर  पीटर्सन   ने   पॉवेल   से   रुकने   को   कहा।

‘‘तुम लोगों की सहनशक्ति की मैं दाद देता हूँ; मगर याद रखो, मुकाबला मुझसे  है।  अपराधी  को  पकड़े  बिना  मैं  चैन  से  नहीं  बैठूँगा  और  एक  बार  मुझे वह मिल जाए तो... Well, ये  सब  मैं  अभी  नहीं  बताऊँगा।’’  पीटर्सन  ने  फिर से   धमकाया।

गैंग वे से जहाज़ में जाते हुए अनेक सैनिकों के पैरों में गोले आ गए थे। उन्हें मालूम था कि अगले आठ–दस दिन वे शौच के लिए नहीं बैठ पाएँगे। हर कोई  ऊपर  खड़े  पीटर्सन  को  मन  ही  मन  गालियाँ  दे  रहा  था।  अंग्रेज़ों  के  प्रति उनके   मन   में   गुस्सा   बढ़   गया   था।

 जनवरी का एक–एक दिन आगे सरक रहा था और हर दिन के साथ कोल की अस्वस्थता  बढ़  रही  थी।  ‘‘क्या  अपराधी  पकड़े  गए ?  यदि  पकड़े  गए  हों  तो  उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई ? और यदि न पकड़े गए हों तो उन्हें पकड़ने के लिए कौन–से उपाय किये गए ?’’ हर चार–छह दिनों में फ्लैग ऑफिसर बॉम्बे की ओर   से   पूछताछ   की   जाती   थी   और   कोल   ‘निल’   रिपोर्ट   भेजता।

मगर ‘आजाद हिन्दुस्तानी’ गुट खुश था। क्रान्ति की आग धीरे–धीरे अन्य जहाजों   पर   भी   फैल   रही   थी। ‘‘इतने  सारे  बिस्किट्स!  क्या  हम  सबको  पार्टी  देने  वाले  हो ?’’  मदन  के हाथ   में   बिस्किट्स   के   पैकेट   देखकर   दत्त   ने   पूछा।

‘‘हाँ,  पार्टी  देने  वाला  हूँ; मगर  तुम्हें नहीं।”

‘‘फिर   किसे ?’’

‘‘तलवार’   के   कुत्तों   को!   वे   बेचारे   कब   बिस्किट   खाएँगे ?’’

मदन के इस बेसिर–पैर के उत्तर से सभी बौखला गए। मदन आखिर क्या करने   वाला   है,   यह   वे   समझ   ही   नहीं   पाये।

मदन  ने  अपनी  योजना  समझाई।

सूर्यास्त  हो  गया।  हमेशा  की  तरह  सम्मानपूर्वक  रॉयल  नेवल  एनसाइन  नीचे उतारा   गया।   क्वार्टर   मास्टर   ने ‘Hands to Supper’ घोषणा   की   और   सारे   सैनिक खाना   खाने   गए।   बैरेक्स   खाली   हो   गई।

मेस   के   आसपास   मँडरा   रहे   आवारा   कुत्तों   को   बिस्किट्स   का   लालच   दिखाकर दत्त, मदन, खान, दास और गुरु उन्हें बैरेक के पास वाली करौंदे की जाली के पास ले जाते और उनके शरीर पर ‘चले जाओ!’, ‘वन्दे मातरम्’, ‘जय हिन्द!’ जैसे   छोटे–छोटे   नारे   लिखकर   उन्हें   छोड़   देते।

दूसरे दिन ये श्वान सेना आज़ादी के नारे अपने शरीरों पर लगाए पूरी बेस में घूम रही थी।

कोल  ने  उन  कुत्तों  को  देखा  और  उसका  माथा  ठनका।  उसने  उन  कुत्तों को मारने का हुक्म दिया। शाम को मेस के आसपास माथे पर लगे जख्मों को झेलते   वे   सारे   कुत्ते   शान्त   हो   गए।   दो   दिनों   तक   मदन   बेचैन   रहा।

 ‘‘पिछले     आठ–पन्द्रह     दिनों     में     काफी     कुछ     हुआ     है।     शेरसिंह     से     मिलकर     आना     चाहिए।

पोस्टर्स लेने गया था तब भी वे कराची गए हुए थे। इसलिए मुलाकात नहीं हो सकी।’’  मदन  ने  गुरु  और  खान  से  कहा।

वे  शेरसिंह  के  पास  गए।  सौभाग्य  से  शेरसिंह  मुम्बई  में  ही  थे।  दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह से घटित घटनाएँ मदन ने उन्हें विस्तार से बतलाईं। शेरसिंह शान्ति   से   सुन   रहे   थे।

‘‘सैनिकों  को  उकसाने  का  काम  इसी  तरह  जारी  रहना  चाहिए; यह  सच है,    मगर फिर भी    उचित    मौका    पाते    ही    ठूँस–ठूँसकर भरी इस    बारूद    को    बत्ती    लगाकर विस्फोट भी करवाना होगा। इस विस्फोट से पूरी नौसेना में आग भड़क उठनी चाहिए।  यदि  अन्य  जहाज़   और  बेस  इस  विद्रोह  में  शामिल  नहीं  हुए  और  वह सीमित  होकर  रह  गया  तो  उसका  उचित  परिणाम  नहीं  होगा।  आप  लोगों  को मालूम  ही  है।  पहले  भी  नौसेना  में  इस  तरह  के  छह–सात  विद्रोह  हुए  परन्तु  अंग्रेज़ी हुकूमत  पर  उसका  ज़रा  भी  परिणाम  नहीं  हुआ।  अब  विद्रोह  करते  समय  दो  बातों का ध्यान रखना होगा : अधिक से अधिक बेसेस और जहाज़ इसमें शामिल हो पाएँगे,   यह   सुनिश्चित   करना   होगा; और अधिकाधिक सैनिक इस विद्रोह में शामिल हों   यह   सुनिश्चित   करना   होगा।’’   शेरसिंह   अपनी   राय   दे   रहे   थे।

‘‘यदि हमारे विद्रोह में भूदल एवं हवाईदल के सैनिक भी शामिल हो गए तो वह ज़्यादा   प्रभावशाली   होगा।   मगर   इन   सैनिकों   से   सम्पर्क   किस   प्रकार   स्थापित किया जाए ये समस्या है।’’   मदन   ने   अपनी   कठिनाई   सामने   रखी।

‘‘ठीक है, आपकी समस्या हम समझ रहे हैं और इसीलिए हमारे कार्यक्रम अन्य  दलों  के  सैनिकों  से  सम्पर्क  बनाए  हुए  हैं।  भूदल  के  सैनिकों  से  अपेक्षित सहयोग    प्राप्त    नहीं    हो    रहा    है,    परन्तु    हवाईदल    के    सैनिक    विद्रोह    करने    की    मन:स्थिति में  हैं।  मुम्बई  और  दिल्ली  के  हवाईदलों  की  बेस  पर  इस  प्रकार  का  वातावरण बन गया है। मेरा ख़याल है कि हवाई दल की एक भी बेस पर यदि विद्रोह हो जाए  तो  वह  आग  पूरे  हवाईदल  में  फैल  जाएगी।  उनका  विद्रोह  खाने–पीने  की चीजों और उनके साथ किए जा रहे व्यवहार के मुद्दों पर होगा।’’ शेरसिंह ने परिस्थिति   स्पष्ट   की।

‘‘पर्याप्त भोजन नहीं मिलता, अथवा खाना अच्छा नहीं होता; अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता ये सारे प्रश्न महत्त्वहीन नहीं प्रतीत होते। क्या इस विद्रोह को स्वार्थ   के   लिए   किया   गया   विद्रोह   नहीं   समझा   जाएगा ?’’   दत्त   ने   पूछा।

‘‘तुम्हारा सन्देह उचित है।’’    पलभर सोचकर शेरसिंह उनकी शंका का समाधान करने लगे, ‘‘यदि अधिकाधिक सैनिकों को बग़ावत में शामिल करना हो तो ऐसी समस्या को लेना चाहिए जो उनकी अपनी हो। 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में कारतूसों की समस्या इसीलिए उठाई गई थी। आज ज़रूरत है बगावत करने की और अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध हाथों में हथियार उठाने की। यदि ऐसा होगा,  तभी  अंग्रेज़  यह  देश  छोड़कर  जाएँगे; ऐसा लोगों का ख़याल है। कांग्रेस का समाजवादियों का गुट और कम्युनिस्ट तुम्हें समर्थन देंगे। नौसेना के कराची बेस के सैनिक मुझसे मिले थे। वहाँ तो बड़े पैमाने पर असन्तोष व्याप्त है, और इस  असन्तोष  का  कारण  भी  थोड़ा  भिन्न  है।  घटिया  किस्म  का  भोजन  तथा  उनके साथ किया जाने वाला अपमानास्पद व्यवहार, ये कारण तो हैं; मगर महत्त्वपूर्ण कारण  है इंडोनेशिया,  बर्मा आदि  देशों  के स्वतन्त्रता आन्दोलनों को दबाने के लिए भेजी गई फौजें। उनकी माँग है कि इन फौजों को तुरन्त वापस बुलाया जाए। खास बात यह है कि सिर्फ हिन्दू सैनिक ही बगावत की बात नहीं कर रहे, बल्कि मुसलमान   भी   उनका   साथ   दे   रहे   हैं।   उनका   कहना   है – पहले आज़ादी।’’

‘‘हमें   भी   यहाँ   मुस्लिम   तथा   सिख   सैनिकों   का   समर्थन   मिल   रहा   है।   विभिन्न जहाज़ों पर किये जा रहे विरोधी आन्दोलनों में सभी धर्मों के सैनिक हैं;’’ खान ने   कहा।

‘‘यह तो अच्छा ही है। इससे शायद विभाजन के प्रश्न का समाधान मिल जाएगा। मगर सैनिकों में जागृति फैलाते हुए तुम लोग सभी जहाजों और बेसेस के  सैनिकों  का  संगठन  बनाओ।  यह  बात  मत  भूलना  कि  जो  अंग्रेज़ों  का  शत्रु – वह हमारा   मित्र   है।’’

‘‘जय   हिन्द!’’   मदन,   दत्त   और   खान   ने शेरसिंह   से   बिदा   ली।

 कोल  का  फौरन  ‘तलवार’  से  तबादला  कर  दिया  गया।  उसे  तुरन्त  दिल्ली  के  नेवल

हेडक्वार्टर्स में रिपोर्ट करना था। हालाँकि उसके तबादले का कोई कारण बताया नहीं   गया   था,   मगर   फिर   भी   वह   सबको   ज्ञात   था।

उसी  दिन  दोपहर  को  नये  नियुक्त  किए  गए  कमाण्डर  किंग ने  ‘तलवार’ की बागडोर सँभाल ली। कमाण्डर किंग हर तरह से कोल से भिन्न था। मन की थाह  न  देने  वाली  गहरी नीली आँखें,  हिन्दुस्तान  की  हवा  में  रहने  से  भूरा  पड़ गया रंग; मगर तीखे नाक–नक्श, लम्बा चेहरा। पहली ही नजर में प्रभावित करने वाले व्यक्तित्व का किंग। हालाँकि चालीस के आसपास था मगर वह बीस वर्ष के  नौजवान  की  तरह  उत्साह  से  बेस  में  घूमता।  दया,  प्रेम  आदि  भावनाएँ  उसे छू तक नहीं गई थीं। अपने फायदे के लिए वह जरूरत पड़ने पर गधे को भी बाप   कहता   था।

हालाँकि किंग ने हिन्दुस्तान की मिट्टी में जन्म लिया था, मगर उसे अपने ब्रिटिश   खून   पर   बड़ा   गर्व   था।   इंग्लैंड   में   जन्मे   लोगों   जैसा   ही   मैं   भी ब्रिटिश   साम्राज्य के प्रति वफादार हूँ यह प्रदर्शित करने का मौका वह कभी भी नहीं छोड़ता था।

‘मेरा जन्म इन काले लोगों पर राज करने के लिए ही हुआ है।’ यह हेकड़ी उसके मुख पर    और    बर्ताव    से    साफ    झलकती    थी।    उसने    ‘तलवार’    की    बागडोर    इस    निश्चय के साथ सँभाली, ताकि बेस के हिन्दुस्तानी, विशेषकर क्रान्तिकारी, सैनिकों को अपने जूते की   नोक   तले   दबाये   रखे।

''Divisions attention!''

किंग  की  आज्ञानुसार  एकत्रित  किए  गए  सैनिकों  को  लेफ्टिनेंट  कमाण्डर स्नो   ने   ऑर्डर दिया और   इस   बारे   में   किंग   को   रिपोर्ट   दी।

''Ship's Company is fallin for your address, Sir.''

‘‘ऑफिसर्स     और     सेलर्स,’’     किंग     ने     खनखनाती     आवाज़     में     बोलना शुरू किया।

‘‘आज मैंने ‘तलवार’ की बागडोर सम्भाल ली है। पिछले दो महीनों में ‘तलवार’ पर   जो   कुछ   भी   हुआ   उसकी   जानकारी   मुझे   है।   तुम्हारे   जैसे   ईमानदार   और   साम्राज्य के प्रति वफादार सैनिक यह सब करेंगे, इस पर मैं विश्वास नहीं करता। मगर यह   हुआ   है - यह   भी   सत्य   है।

‘‘इससे पहले जो कुछ भी हुआ, उसे भूल जाने के लिए; उसे तुम्हारी एक गलती मानकर उदार हृदय से माफ करने के लिए मैं तैयार हूँ। मगर यदि दुबारा ऐसा   हुआ   तो   मैं   क्षमा   नहीं   करूँगा।

‘‘याद रखो, नारे लगाना,    नारे लिखना या ऐसा कोई भी काम जिससे अनुशासन गड़बड़ा जाए, साम्राज्य के विरुद्ध बगावत समझा जाएगा, ऐसे काम के लिए कठोर सश्रम कारावास और फाँसी की सजा का प्रावधान है। वही तुम्हें सुनाई जाए  इसका  बन्दोबस्त  मैं  करूँगा।  इसके  लिए  वक्त  आने  पर  मैं  कानून

को भी ताक पर रख दूँगा। ‘तलवार’ का मैं कैप्टेन हूँ और यहाँ सिर्फ मेरा ही राज   चलेगा।

‘‘तुममें से अधिकांश वफादार सैनिक हैं, उनसे मैं गुजारिश करता हूँ कि यदि तुम्हें ऐसे घर के भेदी नजर आएँ तो उनके बारे में मुझे बताएँ। इसके लिए मैं  तुमसे  कभी  भी,  कहीं  भी  मिलने  के  लिए  तैयार  हूँ।  तुम्हारा  नाम  गुप्त  रखा जाएगा। यदि तुम्हारे द्वारा दी गई जानकारी सत्य सिद्ध हुई और हमें उसे लाभ हुआ तो तुम्हें  उचित  इनाम  दिया  जाएगा।  तुम  जिनका  अन्न  खाते  हो,  उनसे  यदि ईमानदार   न   रहे   तो   नरक   में   जाओगे!’’

किंग   की   आवाज   में   धमकी  थी।

''Dismiss the ship's Company'' उसने  स्नो  को  आज्ञा  दी।  सारे  सैनिकों के परेड ग्राउण्ड से जाने के बाद किंग अफसरों से बातें करने लगा, ‘‘पिछले दो महीनों  में  ‘तलवार’  पर  जो  कुछ  भी  हुआ  उसके  लिए  तुम  सब  जिम्मेदार  हो। इन घटनाओं पर तुम्हें शर्म आनी चाहिए। तुम्हें सरकार तनख़्वाह किसलिए देती है ?  मैं  यह  बर्दाश्त  नहीं  करूँगा।  मेंरे  कार्यकाल  में  यदि  ऐसा  कुछ  आते  तो  मैं सहन नहीं करूँगा। याद रखो, इसका परिणाम तुम्हारी सेवा पर होगा। आज से ऑफिसर ऑफ दि डे, ड्यूटी पेट्टी ऑफिसर, ड्यूटी चीफ पेट्टी ऑफिसर, ड्यूटी आर.पी.ओ. चैबीसों घण्टे यहाँ उपस्थित रहेंगे और इनमें से हरेक रात में कम से कम दो राउण्ड, पूरी बेस के, लगाएगा।’’ वह पलभर को रुका और स्नो की ओर देखते हुए उससे कहने लगा, ‘‘ले– कमाण्डर स्नो, बेस के अँधेरे हिस्से में, परेड ग्राउण्ड पर, ऑफिसर्स मेस के पास चारों ओर प्रकाश फेंकने वाली लाइट्स कल  दोपहर  तक  लग  जानी  चाहिए।  सनसेट  से  लेकर सनराइज़ तक दुगुने सैनिकों का पहरा लगाओ। ज़रूरत हो तो Convert three watch system into two watch system. आप सभी सैनिकों पर कड़ी नजर रखें, किसी पर थोड़ा–सा भी शक हो, तो मुझसे     कहें।     मैं     उसका     फ़ौरन     तबादला     कर     दूँगा।’’     किंग     ने अधिकारियों

को  चेतावनी  दी, ''Negligence on duty will not be tolerated.''


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