वड़वानल - 21

वड़वानल - 21

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रात  का  एक  बज  गया।  हिन्दुस्तानी  सैनिकों  की  बैरक  में  खामोशी  थी,  फिर भी  मदन,  गुरु,  दत्त,  सलीम,  दास  और  खान  जाग  ही  रहे  थे। बॉलरूम से वाद्य–वृन्द की आवाजें साफ सुनाई दे रही थीं। मदन और गुरु ने बॉलरूम तथा ऑफिसर्स मेस में ड्यूटी कर रहे सैनिकों जैसा - नंबर सिक्स ए - चढ़ाया और वे दोनों बाहर निकले।  इसके  दस  मिनट  बाद  सलीम  तथा  दत्त  और  अन्त  में  दास  और  खान की  जोड़ी  बाहर  आई।  उन्होंने  करौंदे  की  जाली  से  पोस्टर्स  का  गट्ठा  और  लेई की पुड़िया ले लिये।

‘‘चलो,   आज किस्मत हम पर मेहरबान है। देख,   चारों ओर कितना सन्नाटा है।’’   ऑफिसर्स   मेस   के   निकट   आकर   सलीम   ने   दत्त   से   कहा।

‘‘सब   शराब   पी   रहे   होंगे,   घोड़ों   जैसे।   मुफ्त   में   मिल   रही   है   ना!’’

‘‘और  साथ  में  हैं  गोरी–गोरी  मैडम,  मतवाले  हो  रहे  होंगे,  बेहोश  हो  गए होंगे।’’

‘‘देख  इस  सबके  बावजूद  हमें  सावधान  रहना  होगा।  तू  नजर  रख  और मैं   दनादन   पोस्टर्स   चिपकाता   हूँ।   पहले   ऑफिसर्स   मेस   पर   लगाएँगे।’’   दत्त   ने   सलीम को  होशियार  करते  हुए  अपनी  योजना  बताई।  दत्त  लपककर  मेहँदी  की  बागड के पीछे गया। आठ–दस पोस्टर्स पर लेई पोती और अँधेरे हिस्से में जल्दी–जल्दी उन्हें  चिपका  दिया।

‘‘बस, यहाँ इतने ही काफ़ी हैं। अब ऑफिसर्स क्वार्टर्स की ओर चलते हैं। पहले एक–दो चक्कर लगाकर थोड़ा अन्दाजा लगाते हैं, फिर काम शुरू करेंगे।’’ दत्त ने   कहा।

‘‘कोई आ रहा है,’’ सलीम ने ऑफिसर्स क्वार्टर्स के पास चक्कर लगाते हुए दत्त को सावधान किया।

दोनों  एक  पेड़  के  पीछे  छिप  गए।  स.  लेफ्टिनेंट  जोन्स  एक  कमसिन  हसीना को बगल में दबाए लड़खड़ाते हुए चल रहा था। उसका ध्यान सिर्फ उस हसीना के  गोरे  मुख  की  ओर  था  और  वह  उसे  अधिकाधिक  अपने  निकट  खींचने  की कोशिश    कर    रहा    था।दत्त    और    सलीम    ने    राहत    की    साँस    ली    और    अगले    पन्द्रह–बीस मिनटों   में   जल्दी–जल्दी   अपना   काम   निपटा   दिया।

जब वे बैरेक में वापस लौटे तो उनके चेहरों पर ऐसी प्रसन्नता थी मानो औरंगजेब   की   छावनी   से   तम्बू   के   गुम्बद   काट   कर   ले   आए   हों।

''What is happening in the base?'' कोल सुबह–सुबह ले– कमाण्डर स्नो पर बरस रहा था। अपने साथ लाए हुए पोस्टर्स स्नो के मुँह पर मारते हुए वह बोला, ‘‘पढ़कर देखो, क्या लिखा है इनमें। ‘हिन्दुस्तानी सैनिको!, एक हो जाओ और जुल्मी हुकूमत के ख़िलाफ - अंग्रेज़ों के ख़िलाफ खड़े हो जाओ। तुम कुछ भी नही खोओगे। खोओगे  तो  सिर्फ  गुलामी!’  अपने  आप  को  जैसे  कार्ल  मार्क्स  समझ रहे     हैं!     ये     दूसरा पोस्टर देखो,     ''Kill the dogs, Kill the British!" और ये तीसरा, ‘‘गुलामी के खिलाफ लड़ना गद्दारी नहीं;  बल्कि गुलामी थोपनेवालों का साथ देना है मातृभूमि  के  प्रति  गद्दारी”। वे  औरों  को  भी  फुसला  रहे  हैं,  बग़ावत  के  लिए  उकसा रहे हैं। और हम क्या कर रहे हैं ? हाथ पर हाथ रखे खामोशी से सब कुछ देख रहे हैं...’’ कोल गुस्से से लाल हो रहा था। अपने क्रोध को प्रकट करने के लिए उसके   पास   शब्द   नहीं   थे।

‘‘मैंने सारे पोस्टर्स को हटाने का हुक्म दिया है।’’ स्नो ने जवाब दिया।

‘‘बहुत  अच्छे!  यानी  जिन  हिन्दुस्तानी  सैनिकों  ने  पोस्टर्स  देखे  नहीं  होंगे  उन्हें भी अब ये पोस्टर्स पढ़ने का मौका मिल जाएगा और फिर पूरी नेवी में इस पर चर्चा होगी। तुम सब लोग मिलकर मुझे गोते में डालने वाले हो।’’ कोल के मन का   डर   शब्दों   में   प्रकट   हो   ही   गया।

‘‘मेरा विचार है, कि यूँ ही हताश होने से कुछ नहीं होने वाला। जो कुछ भी हो रहा है उसके लिए वर्तमान परिस्थिति जिम्मेदार है। यदि यह सब रोकना है तो  हमें  सामूहिक  प्रयत्न  करना  होगा।  नौसेना  का  क्रान्तिकारी  गुट  न  केवल कार्यरत   है; बल्कि   अपनी   ताकत   बढ़ाने   की   भी   वह   कोशिश   कर   रहा   है।’’

‘‘तुम्हारी बात सही है। बाहर, देश में, जो चल रहा है; क्रान्तिकारियों ने निडरता से ब्रिटिश अधिकारियों पर गोलियाँ चलाई हैं, नौसेना के ये क्रान्तिकारी शायद...’’ सिर्फ विचार मात्र से कोल के बदन पर काँटे आ गए। ‘‘नहीं, नहीं, रोकना  ही  होगा।’’  वह  अपने  आप  से  बुदबुदाया,  ‘‘ठीक  है,  स्नो  तुम  आज  दोपहर बारह   बजे,… इंडियन ऑफिसर्स सहित - सभी   अफसरों   को   इकट्ठा   करो।   मैं   उनसे बात   करूँगा।’’

''Yeah, Yeah, Sir!'' स्नो ने सैल्यूट मारा और हुक्म की तामील करने के लिए  निकल  पड़ा।

कोल कुर्सी से उठकर बेचैनी से अपने चेम्बर में चक्कर लगाने लगा। मगर उसकी  अस्वस्थता  कम  नहीं  हो  रही  थी।  तंग  आकर  वह  कुर्सी  पर  बैठ  गया। उसने   पाइप   सुलगाया   और   दो–चार   गहरे–गहरे   कश   लिये।

‘‘पिछले डेढ़ महीने में ‘तलवार’ पर जो कुछ भी हुआ, शर्मनाक है।’’ वह बेचैन  हो  गया,  ‘‘पन्द्रह  दिन  पहले  ही  तो  रिअर एडमिरल रॉटरे  ने  सावधानी  बरतने को कहा था... फिर भी... दोषियों को पकड़ ही नहीं पाया, मगर... अब तबादला तो निश्चित ही होगा––– तबादला तो एक न एक दिन होने वाला ही था, मगर बट्टा   लगकर   तबादला।’’   वह   और   ज्यादा   उद्विग्न   हो   गया।

दोपहर  को  ठीक  बारह  बजे  कोल  ऑफिसर्स  मेस  में  आया।  सभी  अधिकारियों ने   उठकर   उसका   अभिवादन   किया।

''Sit down,'' कोल  ने  कहा  और  सीधे  विषय  पर  आया।

‘‘कल मेस में जो कुछ भी हुआ उसकी हम सब को शर्म आनी चाहिए।ठीक एक महीने पहले भी ऐसा ही हुआ था। मगर हमने क्या किया ? कुछ भी नहीं। कहाँ है रेग्यूलेटिंग ऑफिसर ?’’

‘तलवार’  पर  नया–नया  आया  सब  लेफ्टिनेंट  लॉरेन्स  उठकर  खड़ा  हो  गया                                                                                                             

 ‘‘क्या कर रहे हैं तुम्हारे लोग ? कल्प्रिट्स को क्यों नहीं पकड़ सके ? कल ऑफिसर   ऑफ   दि   डे   कौन   था ?’’

स. ले.   रावत   उठकर   खड़ा   हो   गया।

‘‘तुम्हें किसने कमीशन दिया ? मेरा खयाल है, इसके लिए तूने जूते चाटे होंगे।’’

रावत   गर्दन   झुकाए   खड़ा   था।

‘‘कल   रात   को   क्या   ड्यूटी   पर   सो   रहे   थे!   कितने   राउण्ड्स   लगाए ?’’

‘‘सर,   मैंने...’’   रावत   ने   स्पष्टीकरण   देने   का   प्रयत्न   किया।

''No arguments. Sit down!'' कोल गरजा और अपमानित रावत चुपचाप नीचे   बैठ   गया।

''Now, listen to me carefully. कल बेस में जो कुछ भी हुआ उसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। तुममें से ही कोई गद्दारों से मिला हुआ था। मगर तुम्हें वह मिला नहीं। उसी की गलती के कारण वह पकड़ा गया। बेस में नारे लिखने  का  यह  दूसरा  मौका  था।  दोनों  बार  नारे  रात  में  ही  लिखे  गए।  अगर हम  कुछ  और  जागरूक  रहते,  रात  को  बेस  पर  राउण्ड  लगाए  होते  तो  हम  इन क्रान्तिकारियों  को  जरूर  पकड़  सकते  थे।  ये  सब  हमारे  आलसीपन  का  नतीजा है। इस दिशा में मैंने कुछ निर्णय लिये हैं और उनका कठोरता से पालन किया जाएगा।  समूची  बेस  को  छह  भागों  में  विभाजित  किया  जाएगा  और  तुम  बारह लोगों  में  वे  बाँटे  जाएँगे।  इन  विभागों  में  होने  वाली  घटनाओं  के  लिए  वे  अधिकारी ही जिम्मेदार होंगे। अधिकारियों को अपने विभाग में रात में, चार–चार घण्टे के अन्तर   से   तीन   राउण्ड   लेने   ही   पड़ेंगे।   और   अन्तिम   और   महत्त्वपूर्ण   बात; जब तक  ये  क्रान्तिकारी  पकड़  नहीं  लिये  जाते,  बेस  पर  पार्टियों  का  आयोजन  नहीं होगा। Be on your toes. By hook or crook I want the Culprits.'' कोल   ने   मीटिंग   खत्म   की।

1 जनवरी की घटना के कारण ‘तलवार’ पर सारे वातावरण में उथल–पुथल मच गई। स्वतन्त्रता, स्वतन्त्रता आन्दोलन इत्यादि से दूर रहने वाले सैनिकों के मन में क्रान्तिकारी सैनिकों के प्रति आदर दुगुना हो गया था। कोल अथवा अन्य गोरे अधिकारी  क्रान्तिकारियों  का  कुछ  भी  बिगाड़  नहीं  सकते  इसका  उन्हें  पूरा  विश्वास हो    गया    था।    इस    बात    का    यकीन    हो    गया था कि क्रान्तिकारी सैनिकों की गतिविधियाँ, उनके कार्यक्रम सूत्रबद्ध एवं सुनियोजित होते हैं। स्वतन्त्रता से प्रेम करने वाले; हमें भी कुछ करना चाहिए ऐसा महसूस करने वाले; मगर डर के मारे कुछ भी न बोलने वाले   हिन्दुस्तानी   सैनिक   अब   अंग्रेज़ों   के   खिलाफ; हिन्दुस्तानी सैनिकों   के   साथ   किए   जा   रहे   बर्ताव   के   विरुद्ध   बोलने   लगे   थे।

‘तलवार’ में हुई ‘नेवी डे’ और ‘1 जनवरी’ की घटनाओं का पता ‘नर्मदा’ के सैनिकों को लगा और अनेक सैनिकों को ऐसा लगा कि उन्हें भी कुछ करना चाहिए।

रात  के  ग्यारह  बज  चुके  थे।  ‘नर्मदा’  फ्लैग  डेक  पर  सिगनलमैन  प्यारा  सिंह, एबल   सीमन   अस्लम   खान,   टेलिग्राफिस्ट   राव   फुसफुसाकर   बातें   कर   रहे   थे।

‘‘कुछ भी कहो, ‘तलवार’ के सैनिकों को मानना पड़ेगा!’’ प्यारा ने कहा।

‘‘नहीं तो हम! नपुंसक हो गए हैं। गट्स ही नहीं हैं हममें।’’   अस्लम बोला।

‘‘अंग्रेज़ों के हमारे प्रति बर्ताव से हम चिढ़ जाते हैं। विरोध करने का मन होता  है।  मेस  में  राउण्ड  पर  आने  वाले  गोरे  अधिकारी  के  थोबड़े  पर  खाने  की थाली फेंककर उससे कहने का जी करता है कि इससे अच्छा खाना तो तू अपने कुत्ते   को   देता   है।’’   राव   के   स्वर   में   चिढ़   थी।

‘‘मुझे भी ऐसा ही लगता है कि हमें भी इस सरकार के विरुद्ध बगावत करनी  चाहिए,  मगर  हिम्मत  नहीं  होती।  अकेले  हैं - यही  बात  मन  में  आती है और   पैर   पीछे   हट   जाते   हैं।’’   प्यारा   ने   कहा।

‘‘एक बार तो किसी को ऐसी हिम्मत करनी ही पड़ेगी। सभी सैनिकों के मन में असन्तोष खदखदा ही रहा है। जैसे ही यह महसूस हो कि वह बाहर आ रहा है, तभी सारे असन्तुष्ट एकजुट होंगे!’’ अब तक नींद का बहाना बनाए पड़ा कुट्टी बोला। कुट्टी कोचीन के निकट के एक गाँव का रहने वाला था। इण्टर तक पढ़ा था कॉलेज में एक कम्युनिस्ट नेता के सम्पर्क में आया। कार्ल मार्क्स के   विचार   पढ़कर   उसे   इस बात का ज्ञान हो गया कि जिस प्रकार पूँजीवादी श्रमिकों का शोषण करते हैं; उसी प्रकार पूँजीवादी राष्ट्र भी उपनिवेशों का शोषण करते हैं।  यदि  उपनिवेशों  में  रहने  वाले  लोग  मजदूरों  के  ही  समान  बग़ावत  करने  के लिए एकजुट  हो  गए  तभी  इन  देशों  की  गुलामी  से  मुक्ति  होकर  उनका  शोषण रुक जाएगा। सामर्थ्य की दृष्टि से देखा जाए तो इंग्लैंड हिन्दुस्तान से श्रेष्ठ है, इसके अलावा उनकी यहाँ पर जो हुकूमत है, वह सेना और पुलिस के आधार पर ही टिकी है। यदि अंग्रेज़ों को इस देश से निकालना है तो सशस्त्र आन्दोलन ही करना होगा। अहिंसा का, सत्याग्रह का मार्ग कमजोर है। उसके इन विचारों का  पता  जब  वरिष्ठ  नेताओं  को  चला  तो  उन्होंने  उसे  सेना  में  भर्ती  होने  की  सलाह दी। अभी भी वह कम्युनिस्ट नेताओं के सम्पर्क में था और इस कोशिश में था कि   ‘तलवार’   में   जो   हुआ   वैसा   ही   ‘नर्मदा’   में   भी   हो   जाए।

‘‘ठीक है, तुम्हारी हिम्मत नहीं हो रही है न ? मैं करता हूँ हिम्मत। मगर इसके   आगे   आप   लोगों   का   साथ   चाहिए।   मंजूर   है ?’’   कुट्टी   ने   पूछा।

तीनों ने पलभर को विचार किया और भावविभोर होकर हाथ आगे बढ़ा दिये।

‘‘ठीक है। मैं अब चलता हूँ। मगर एक बात याद रखना। चाहे जान चली जाए, मगर अंग्रेज़ों की शरण में नहीं जाएँगे। और दोस्तों के साथ गद्दारी नहीं करेंगे।’’   कुट्टी ने जाते–जाते चेतावनी   दी।

‘‘ये लो,’’ वापस लौटकर कुट्टी ने प्यारा सिंह के हाथ में एक पैम्फलेट रखा।   ‘‘राव,   तू   गोंद   ला।’’   कुट्टी   ने   राव   से   कहा।

‘‘मैं ये पोस्टर अपर डेक पर चिपकाऊँगा। और मैंने यह साहस किया तो आप   लोग   मेरा   साथ   देने   वाले   हैं।

और   कुट्टी   पोस्टर   चिपकाने   के   लिए   चला   गया।

रात  का  एक  बजा  था।  सारे  सैनिक  निद्राधीन  हो  चुके  थे।  जहाज़   के  बुझाए गए  बल्ब  फिर  से  जलाए  गए  और  ‘नर्मदा’  के  क्वार्टर  मास्टर  ने  घोषणा  की, "All Indian Sailors to muster on Jetty.''

सो  रहे  सैनिकों  को  उठाया  गया।  उनकी  गिनती  की  गई।  गैरहाज़िर  सैनिकों की   तलाश   की   गई।

‘नर्मदा’   का   एक्स.ओ लेफ्टिनेंट पीटर्सन जेट्टी पर आया.

‘‘रात को बारह बजे, अपर डेक का राउण्ड लेते समय मुझे एक खतरनाक पोस्टर चिपकाया हुआ दिखाई दिया। यह काम हिन्दुस्तानी सैनिकों का ही होना चाहिए।  मुझे  उनके  नाम  चाहिए।  यदि  तुममें  से  किसी  को  मालूम  हो  तो  बताओ। यह  कारनामा  करने  वाला  अगर  अपने  बाप  की  औलाद  है  तो  आगे  आए। मैं बड़े दिल से उसे माफ़ कर दूँगा। मगर यदि कोई भी आगे नहीं आया तो I tell you, I will take out your juice. R.P.O, take charge; and don't spare the bastards गुस्साया हुआ पीटर्सन हिन्दुस्तानी सैनिकों को धमका रहा था।

R.P.O.(रेग्यूलेटिंग पेट्टी ऑफिसर) पॉवेल ने ऑर्डर एक्नॉलेज की ओर दनादन   हुकुम   छोड़े:   ''Squad, right turn.''

''Double march.''

''About turn.''

हर पन्द्रह–बीस मिनट बाद वह पूछ रहा था, ''Who is that bastard? Come on, come forward.''

मगर कोई भी आगे नहीं आता और अगली सजा शुरू हो जाती। डबल मार्च के बाद फ्रॉग जम्प और फ्रॉग जम्प के बाद क्राउलिंग। सैनिकों की कुहनियाँ और  घुटने  लहूलुहान  हो  गए,  मगर  पीटर्सन  या  पॉवेल  को  उन  पर  दया  नहीं  आई। दौड़ते–दौड़ते  दो–एक  सैनिक  बेहोश  हो  गए,  मगर  छुट्टी  नहीं  मिली।उल्टे  कामचोर सैनिकों   की   पिछाड़ी   पर   पॉवेल   नि:संकोच   लातें   बरसा   रहा   था।

कुट्टी   ने   प्यारा   सिंह,   राव   और   अस्लम   की   ओर   देखा।   वे   तीनों   शान्त थे।


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