वास्तव ज्ञान
वास्तव ज्ञान


रामप्रसाद जी गांव के बड़े जमींदार थे और उनके वक़्त के अगेंजी भाषा के विद्वान भी, पर उनकी पत्नी शारदा एकदम अनपढ़ थी लेकिन गांव में कोई भी धार्मिक प्रसंग होते तो उसके सुझाव बहुत मायने रखते थे। जिसका गर्व रामप्रसाद जी को भी था। वह भले पढ़ी न थी लेकिन उन्हें रामायण और महाभारत के अनेक प्रसंग तथा श्लोक कंठस्थ थे। रामप्रसाद जी और शारदा देवी के दो पुत्र थे। बड़े बेटे का नाम संदीप और छोटे का नाम माधव था। रामप्रसाद जी को बड़ी आशा थी के दोनों बेटे उनकी तरह विद्वान बने और पढ़लिख कर उनका नाम रोशन करे लेकिन माधव ५वी कक्षा भी पार न कर सका और उसने अभ्यास छोड़ दिया पर संदीप ने अपने पिता की आशा सफल की वह विदेश के एक बड़े विश्वविद्यालय में से अर्थशास्त्र की डिग्री ले कर आया था और पास के नगर में बैंक में अफसर बन चुका था लेकिन रहता गांव में था। और माधव इधर उधर भटके नहीं इसलिए रामप्रसाद जी ने उसे कुछ ज़मीन खेती करने को दी थी।
रामप्रसाद जी संदीप को देख कर खूब संतुष्ट महसूस करते थे लेकिन जब भी वह माधव को देखते वह क्रोध से लाल हो जाते थे। शायद उसके पीछे माधव की आदतें जवाबदार थी जैसे कि वह सुबह को बड़ी देर के बाद उठता कभी कभी बिना स्नान करे घर से निकल जाता और कभी कभी तो उसके के शर्ट पे पूरे बटन भी नहीं होते थे।
रामप्रसाद जी के घर के सामने उनके दोस्त शांतिलाल हलवाई की दुकान थी रामप्रसाद जी उसके वहां रोज़ सुबह कुछ देर बैठते और देश- विदेश के समाचारों की चर्चा करते लेकिन आज उसकी दुकान बंद थी। रामप्रसाद जी ने सोचा शायद कुछ काम से बाहर गया होगा। लेकिन दूसरे दिन भी दुकान बंद देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ। रामप्रसाद जी घर चले गए और घर जाकर माधव से पूछा आज कल शांतिलाल की दुकान क्यों बंद है ? माधव मुस्कान के साथ बोला "आपका दोस्त है आपको पता होना चाहिए।" रामप्रसाद जी को गुस्सा आया पर वह कुछ न बोले तभी संदीप ने अपने मीठे स्वर में कहा "शांतिलाल आज उसके पिता को लेकर नगर के अस्पताल में इलाज करवाने गया है।"
सात दिन बाद जब शांतिलाल ने अपनी दुकान खोली तब रामप्रसाद जी ने उसके पिता का हाल पूछा। शांतिलाल ने कहा आपकी मदद से अब मेरे पिता बिलकुल स्वस्थ है। रामप्रसाद जी ने आश्चर्य से कहा भला मैं ने तुमारी क्या मदद की ? शांतिलाल ने उतर दिया आप मदद करे या आपके बेटे बात तो एक ही है। रामप्रसाद जी गर्व से छाती फुलाकर बोले "हा,मेरा संदीप बेहद भला और ज्ञानी है। शांतिलाल धीरे से बोला, "हा, संदीप भैया के पास मै गया था और मै ने उन्हें जाकर कहा की मेरे पिता के इलाज के लिए कुछ पैसे चाहिए थे थोड़े दिनों बाद आपको लौटा दूंगा तब वह थोड़ा गुस्सा होकर मुझसे बोले आपको बुरे वक़्त के लिए थोड़े पैसे जमा करने चाहिए थे अगर आपने अपनी आमदनी के हिसाब से खर्च किया होता तो यह भीख न मांगनी पड़ती।" और जब वहा से निराशा होकर गांव वापस आया तब माधव भैया से मुलाकात हो गई वह मुझे देख कर बोले शांतिलाल तुझे ही ढूंढ़ रहा था और इतना कहकर उन्होंने मेरे हाथ में १२००० हजार रूपए थमा दिए और कहा जब तेरे पास पैसे हो तब देना इतना कहकर वह चले गए।
इतना सुनते ही रामप्रसाद जी की छाती जो फुली हुई थी वह बैठ गए और आंख से माधव के लिए स्नेह की धारा बहने लगी।
नोंध ( दुनिया की किसी भी विश्वविद्यालय में पढ़े हो पर आपमें दया, करुणा, प्रेम आदि भाव न हो तो आपके ज्ञान का कोई महत्व नहीं)