उत्सव
उत्सव
नवरात्रि का आरम्भ हो गया है । नन्हीं के यहाँ नवरात्रि उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जा रहा है। आठ बर्षीया नन्हीं के मासूम, बालमन में माता रानी के सांझी उत्सव को लेकर बहुत उमंगे हैं।
उसके घर पहले नवरात्रि के दिन सांझी मैया अपने परिवार सहित सज, धज के साथ विराजमान हो गयी है । सांझी माँ के परिवार में, मैया के मींजू भैया और फूहड़ बाई की सुन्दर मिट्टी से बनी मूरत चित्ताकर्षक, सलोनी मूर्तियाँ सजीव हो विराजमान हो गयी है ।
अब नन्हीं पूरे मनोयोग से सुबह, शाम माता रानी की पाठपूजा, सेवा, आरती उतारने जैसे कार्यों को दादी माँ और बुआ के साथ बहुत खुशी ~ खुशी करती है । दादी माँ जब सांझी मैया के भजन गाती तो नन्हीं भी ताली बजाकर ~बजाकर दादी माँ के साथ गाने का प्रयास करती । अपने नन्हें हाथों से माता रानी को भोग समर्पित करती । और जब दादी माँ अपने हाथ जोड़कर माता रानी से प्रार्थना करती तब नन्हीं भी अपने दोनों नन्हें हाथों को जोड़कर कुछ बुदबुदाने की कोशिश करती । नन्हीं के इन सब मासूम भोले कामों को देखकर दादी माँ मन ही मन निहाल हो जाती ।
नौ दिन माता रानी की सेवा करने के बाद दशहरे वाले दिन माँ को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है , और माता रानी की मूरत को किसी नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है ।
नन्हीं के घर में माँ सांझी की मूरत को विसर्जन के लिए ले जाने की तैयारी चल रही है । किंतु नन्हीं का नाजुक दिल यह सब देख नहीं पाता है । और उसने रो ~रोकर अपनी आँखें लाल कर ली ।
भोली नन्हीं का ऐसा हाल देखकर दादी माँ ने एक बड़ा गमला मंगाया । पानी के साथ मूर्ति को गमले में डाल कर, कुछ समय बाद उसमें एक महकती खुश्बु वाला पौधा लगाकर नन्हीं से कहा क
" नन्हीं, अब तुम रोओ नहीं । देखो, तुम्हारी सांझी मैया अब तुम्हारे पास ही रहेंगी । तुम रोज इस पौधे में पानी दिया करना । अब यह सुन्दर फूल बनकर हमारे साथ ही रहेगी और हमारे घर को महकायेगी ।"
नन्हीं की रोती आँखों में खुशी खिल उठी । वह भागकर दादी माँ के सीने से जा लगी ।
उत्सव मनाने की शुरुआत हो चुकी थी । नन्हीं के निर्मल, निश्चछल मन में विसर्जन को नये सृजन में बदलने की पहल हो चुकी थी ।