होली है भई होली है--
होली है भई होली है--
माघ मास शीत की शीतल लहरों से निकलकर मौसम का मिजाज अब रंगीन हो चला है। मौसम ने अजब रंग बदला कि फागुनी चुनरिया के रंग की रंगीनियों में घुली हवा मादक अंगड़ाइयाँ लेने लगी हैं। रंगीली होली में किसी गोरी के प्रेम में मद मस्त दीवाने मजनूँ सी मधुर मधुर शीतल मंद सुगंधित हवाओं की मद्धिम रफ्तार में नवयौवना शर्बती सजनिया का प्रेमी दिल हिचकोले खा रहा है। मौहल्ले के चौक पर रखे स्टीरियो से गूँजते गीत के बोल--
"मेरे पिया गए रंगून,
किया है वहाँ से टेलीफून!
तुम्हारी याद सताती है,
जिया में आग लगाती है।"
इन गीतों के बोल में खोया दिल बड़ी शिद्दत से उनको पिया जी की याद दिला रहा है। रंगीली होली का मनभावन त्योहार है। बेचारी मजबूर हैं। गुंजिया,मठरी,ढोकला, गुलाब जामुन, नमकीन,दही चाट पापड़ी से घर में पकवान की खुश्बू तैर रही है। किंतु उनका मन तो साजन की प्रतीक्षा कर रहा है। वे बाहर छज्जे पर खड़ी होली के हुरियारों का हुड़दंग देखने में तल्लीन हैं।
अब होली के हुड़दंग की मस्ती सबके दिलों पर छा रही है तो एक राज की बात आप भी सुन लीजिए कि .. इन्हीं मदनोत्सव लुब्ध हवाओं की संगत में रहकर हमारे मौहल्ले की हवा ने सनसनी मचा दी है। गुप्ता दम्पत्ति में मियां बीवी के बीच सवा मन वाली गर्माहट की आग लगा दी है।
ऐसे मदभरे त्योहार में जीजा साली,देवर भौजाई, सलहज ननदोई वाले रिश्तों में डूबता मन भाभी,साली के गोरे गोरे गालों पर गुलाबी रंग लगाने की चाहत में गुलाब गेंदा सा खिल रहा है। इधर गुप्ता जी का दिल हजार वाट के बल्ब जैसा जल बुझकर सुनहरे सपनों में खोया, कोमल मखमली बदन पर रंगों की पिचकारी छोड़ कर अँगडाई ले रहा है।
उधर, गुप्ता जी को मौसमे इंतजारी के ख्बाब रंगीन बनाते देखकर उनकी सजनी का दिल ईर्ष्या की आग में झुलसने लगा है। उधर से धीमे-धीमे जलने की बू आ रही है। वो भी मन ही मन में गुप्ताजी को धता बताने के लिए नये मंसूबे बनाने में कामयाबी हासिल करने को बेताब हैं।
गुप्ता जी के मन की तितलियों को उड़ने से पहले ही अपने मोहपाश का रूप जाल डालकर पकड़ने की तैयारी किये बैठी हैं। प्रीतम पड़ोसन के साथ गुलछर्रे उड़ाते रहें और मैं मूक दर्शक बनी देखती रहूँ।
ऊँ..हू..ऊँ..हूँ..
मेरे जीते जी तो ऐसा कभी संभव नहीं हो सकता..
सोच, सोचकर टेसू पलाश की सतरंगी रंगीन खुशियों की महकती खुश्बु से उनकी सजनी का दिल चूल्हे में कंडे का अंगारा बना जला जा रहा है।
"ये मुई होली ना हुई बैरन सौतन हो गई।"
भाँति भाँति के लोग लुगाई वाली कहावत चरितार्थ करते हुए अभी हम मौहल्ले में चारों ओर का नजारा देख ही रहे थे कि ..पीछे से गुप्ता जी की श्रीमती जी ने उन पर रंगों की बौछार करते हुए बाल्टी भर पानी डाल कर रंगीन पानी से सराबोर कर दिया ।
ठंडे पानी की बाल्टी गिरते ही उनकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। गुप्ता जी खिसियानी बिल्ली की तरह भीग कर हँसने लगे। उस वक्त उन्हें बुद्धु बनाकर, हिप हिप हुर्रे कहकर रंग डाला भई रंग डाला से मोर्चा जीतने वाली अदा में उनकी श्रीमती जी की खिलखिलाहट देखने लायक थी।
"होली है भई होली है !
बुरा न मानो होली है।"
कहते-कहते उन्होंने गुंजिया की प्लेट उठाकर एक गुंजिया गुप्ता जी मुँह के हवाले कर दी।
अब गुप्ता जी कहाँ पीछे रहने वाले थे। उन्होंने भी अपनी खिसियाहट छोड़कर खुशी खुशी गाते हुए श्रीमति जी के गोरे मुखड़े पर लाल रंग मल दिया। दोनों पति-पत्नी ने एक दूसरे को रंग लगाकर खुशी- खुशी होलिकोत्सव मनाने की परंपरा का निर्वाहन कर दिया । गुप्ता और उनकी श्रीमती जी ने रंगों से सराबोर होली का खूब आनंद उठाया। होली के गीत की मस्ती में झूमते गुप्ता जी छत पर पहुँचे तो देखा कि- पड़ोसी पिक्कन मियां कमर मटका,मटका कर ठुमके लगाए जा रहे थे।
"रंग बरसे भीगे चुनर वाली
रंग बरसे !
बेला चमेली का सेज बिछाया,
सोये गोरी का यार बलम तरसे
रंग बरसे!"
मियाँ पिक्कन को इस गीत के साथ थिरकते देख कर आखिर उन्होंने पूछ ही लिया..
"अमां यार पिक्कन!
ये मटक मटक कर नाच रहें हो या भाभी को रिझाने के लिए नौटंकी कर रहे हो?"
सुनते ही मियाँ पिक्कन का मुँह दो फुटा खुला और खुलकर रह गया।
कान के पास मुँह लाकर फुसफुसाते हुए बोले कि--
"अमाँ यार,धीरे बोलो।"
"भाभी से पिटवाने का इरादा है क्या?
"होली के रंग बिरंगे दिन ये कैसी मनहूस बात कर रहे हो यार?
"तुम्हारी भाभी गई तेल लेने।"
"गजभर लंबी ज़ुबान है उसकी। एक बार कुछ कहने बाहर निकली तो आसानी से अन्दर नहीं जायेगी।"
भाँग की पिनक में मुँह टेढ़ा कर मुस्कुराते हुए आगे बोले--
जरा देखो,वो सामने गोरे रंग गुलाबी गालों वाली ,सामने खड़ी शर्बती भाभी कितनी खूबसूरत लग रही है न
कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली?
शर्बती भाभी की ओर देख कर मुस्कुराते हुए एक गुलाब जामुन मुँह के अन्दर डाला और उसकी घुलती मिठास का आनंद उठाने लगे। फिर भाँग की पिनक में पिक्कन मियां ने ठंडाई का लोटा उठा लिया।
गुप्ता जी के ना ना ना करने पर भी ठंडाई का एक गिलास उनके हाथों में सौंप दिया। और खुद भी ठंडाई का एक और गिलास होंठों से लगा कर हो.. हो.. हो.. कर हँसते हुए नाचने लगे।
"आज ना छोड़ेंगे बस हमजोली,
खेलेंगे हम होली, खेलेंगे हम होली।"
अब गुप्ता जी ने भी भाँग की ठंडाई का आनंद चख लिया था। इसलिए उसका असर तो होना ही था। अतः अपने उम्र दराज होने की शर्म छोड़ छाड़ कर उधर से पिक्कन मियां और इधर से गुप्ता जी होली के मस्ती भरे गीतों पर हुरियारों के साथ मटक मटक कर हुड़दंग मचाने लगे।
होली के दिन दिल खिल जाते हैं
रंगों में रंग मिल जाते हैं।
होली है होली ओ गोरी नखरे वाली
होली की मस्ती है संग रंगों की टोली।
