उस मुलाकात से उस मुलाकात तक

उस मुलाकात से उस मुलाकात तक

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एक लड़की आती है और कागज़ के टुकड़े मेरे मुँह पर मार के चली जाती है। बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं कक्षा का छात्र था, मैं ट्यूशन से आ रहा होता हूँ, सामने एक लड़की गलती से मेरे मुंह पर कागज़ के टुकड़े मार देती है। उस दिन उस लड़की को मैंने पहली बार देखा था और उसके इस हरकत से लगा कैसी पागल लड़की है वो। खैर ज़िन्दगी एक दसवी के छात्र की तरह बीत रही थी, कभी मौज मस्ती तो कभी पढ़ाई का डर। मैं उस वक्त दसवीं कक्षा का छात्र था।

मैं रांची के एक स्कूल में पढ़ रहा होता हूँ। उसी स्कूल के आठवीं कक्षा में एक लड़की पढ़ रही होती है, नाम था स्वस्ति। थी तो वह सातवीं की बच्ची, लाइन भी बच्चे मारा करते थे। मेरा भाई एक दोस्त था अमित वह उस स्वस्ति को अपनी दोस्त बनाने के लिए बेकरार था, जब पता चला वह लड़की मेरे स्कूल में पढ़ती है, अमित ने मुझे उस लड़की से बात करने को कही, मैं भी मान गया। जैसे तैसे मैंने स्वस्ति के फोन नंबर का पता लगाया। मेरा एक दोस्त था मोहित जो स्वस्ति का भी दोस्त था, मोहित ने मेरी उस लड़की से फोन पर बात करवाई। फिर क्या था उस लड़की ने एक शाम मुझे मिलने के लिए बुलाया। मैं गया मिलने के लिए, तो याद आया की यह तो वही लड़की है जिसने मेरे मुँह पर कागज़ के टुकड़े मारे थे।

उस दिन उसकी बड़ी बड़ी आँखें दिखाई देती है जिसमें ढेर सारा काजल लगा होता है, उस दिन ज्यादा बात नहीं हो पायी क्योंकि जब बात कर रहा था तभी उस रास्ते से हमारे स्कूल की शिक्षक आ रही होती है, यही देख हम वहाँ से निकल जाते हैं। उस मुलाकात के बाद मेरे और स्वस्ति में बात होने लगती है। बातों-बातों में मेरी उससे दोस्ती हो जाती है और वह अपने पुराने बॉय फ्रेंड निखिल के बारे में बताती है जो की उससे फिलहाल बात नहीं करता था। इधर कुछ दिनों से अमित भैया ने भी मुझसे स्वस्ति के बारे में पूछना छोड़ दिया था। स्वस्ति का घर नाम शिवि था। मैं उसे कभी स्वस्ति तो कभी शिवि बुलाने लगा। सप्ताह में दो या तीन दिन उससे बात होने लगी, कभी रास्ते में मिले तो हाय हैलो भी हो जाया करता था। यूँ ही सिलसिला चलता गया, दो से तीन दिनों वाली बात रोज़ होने लगी, दोस्ती अच्छी होते चली गयी।

25 दिसम्बर, 2010 को हमारे स्कूल में एनुअल फंक्शन का आयोजन होता है, हम दोनों ही स्कूल पहुंचते हैं, एक दूसरे को क्रिस्मस की हाथ मिला कर शुभकामनाएं देते हैं। वह हाथ मिलना, उससे मेरा पहला छुवन था। कहीं न कहीं मेरे मन में था की वो मेरी गर्लफ्रेंड बन जाये पर बोलने से डरता और शर्माता भी था। खैर नया साल आया, पर हमारी बात कुछ आगे नहीं बढ़ पा रही थी। शाम का वक्त था और मैं अपने घर जो कि एक फ्लैट था, में खाना खा रहा था कोई दरवाज़ा खटखटाता है, मैं दरवाज़ा खोलता हूँ, एक शख्स दिखाई देती है जिसे देख मैं डर जाता हूँ। वो कोई और नहीं स्वस्ति थी, डरे-डरे उससे पूछता हूँ बिना बताये कैसे आना हुआ, अंदर बैठा मेरा भाई उसे अंदर बुलाता है। डर इस बात का लग रहा था की मेरी मम्मी क्या सोचेगी, मम्मी उस वक्त अंदर वाले कमरे में सो रही थी, मैं झटपट मम्मी वाला कमरा बंद कर देता हूँ। फिर जहाँ स्वस्ति बैठी थी उसके बगल में बैठ जाता हूँ, वो मुझे तंग करने लगती है, मेरे गालों को नोचने लगती है ये कहते हुए की मैं कितना प्यारा हूँ। उसकी इन्हीं सब हरकतों मुझे डर लग रहा था की कहीं मम्मी यह सब देख न ले। स्वस्ति अपने दोस्त शिखा के साथ आई थी, दोनों अपना ट्यूशन छोड़ कर आई थी। मुझे किसी तरह दोनों लड़कियों को भगना था, इसलिए मैंने अपने कुत्ते पपाश को खोल दिया और पपाश को देख ये दोनों लड़कियां घर से भागने लगी, इसी बीच स्वस्ति का पैर फिसल जाता है और वह गिर जाती है। यह दृश्य देख कर मुझे बहुत बुरा लगता है और मैं उससे रुकने के लिए कहता हूँ पर वह रुकती नहीं है।

उसके जाने के बाद मेरे भैया के मुख से मम्मी को भी पता लग जाता है की स्वस्ति घर आई थी। उसके जाने के बाद एक तरफ उसके आने का गुस्सा तो होता है तो दूसरी तरफ उसके जाने का अफसोस। उस दिन फोन पर मेरी उससे ज्यादा बात नहीं हो पाती है और अगले नौ दस दिन तक मेरी उससे बात नहीं हो पाती है, बात न होने के कारण एक अजीब सा अहसास होने लगता है, उसकी कमी महसूस होने लगती है, ऐसा लग रहा था जैसे वो कहीं दूर चली गयी हो, एक अजीब सी बेचैनी होने लगी थी, क्या पता शायद वही प्यार था।

फरवरी का माह आया, उससे दुबारा बात होने लगी थी। बात करते करते लगा शायद वो भी मुझे प्यार करने लगी है। सोच में था कि कैसे उसे बताऊँ की मैं उससे प्यार करने लगा हूँ। इसी बीच मेरा जन्मदिन आता है। मेरे जन्मदिन पर वो मुझे एक मूर्ति देती है जिसमें एक प्रेमी जोड़ा होता है। इस उपहार से मैं समझ गया था कि वह भी कुछ चाहती है। अगले दिन शाम में फोन पर उससे बात करता हूँ और अपना ज्यादा समय नष्ट न करते हुए मैंने उसे कह दिया कि मैं उससे प्यार करता हूँ, क्योंकि सामने से उसे ऐसी बात बोलने की मुझमें हिम्मत नहीं थी। और उधर से उसका जवाब भी हाँ आता है। उस दिन मैं बहुत खुश था, शायद वो भी थी।

कुछ दिन बाद

साथ में कही जाने की बात हुई। बस क्या था जाने के लिए दोनो तैयार हो गए। मैं उसेअपनी स्कूटी में लेने गया, उसने अपनी ट्यूशन छोड़ दि और फिर हम लोग एक बेकार सी जगह टैगोर हिल चले गए, हालांकि वह जगह अच्छी थी पर वहाँ की भीड़ सही नही थी। हम दोनों ही उस जगह से वाकिफ़ नहीं थे, टैगोर

हिल के अंदर गया तो देखा हर तरफ जोड़े ही जोड़े, हम एक एकांत सी जगह देख कर बैठ गए।

वो हमारा पहला डेट था। इधर उधर की ढेर सारी बातें हुई, फिर मैंने हिम्मत कर के एक सवाल किया " क्या मैं तुम्हें चुम सकता हूँ ?" उसने मुस्कुराते हुए हाँ कहा। उस दिन पहली बार मैंने किसी लड़की के गालों पे चुमा था। बस उस पल को महसूस किया जा सकता है, लिखा नहीं जा सकता। उस दिन लगा ज़िन्दगी कुछ ऐसी भी हो सकती है। हम वापस घर आ गए। उसके कुछ दिनों के बाद, बातों मुलाकातों का सिलसिला चलता

गया, हम करीब आते गए।

उस वक्त एक फिल्म आई थी "हॉन्टेड", हम उसी को देख कर अपनी स्कूटी में वापस आ रहे थे, बारिश का मौसम था, हम रास्ते में भीग गए। रास्ता बिल्कुल सन्नाटा था, मैंने अपनी स्कूटी रोकी और हम एक दूसरे को चूमने लगे, हम भीग रहे थे पर हम रुके नहीं, बस चूमते रहे, शायद वो बारिश हमारे प्यार में मीठे रस की तरह

घुल चुकी थी, आलम ऐसा था वहाँ से जाने को दिल न करे, लेकिन दिलों पर पथर रख हम वहाँ से चले गए। हम काफी लेट हो चुके थे,उस दिन स्वस्ति के घर पर सिर्फ उसके दादा जी थे, इसलिए उसको डांट नही पड़ी।

अब मैं ग्यारहवीं में पहुँच चुका था। हमारे स्कूल में हर साल बच्चों को घुमाने के लिए बाहर ले जाया जाता था, और इस बार राजस्थान की बारी थी। स्वस्ति और मैंने दोनों ही इस यात्रा में जाने का मन बना लिया था, बस

जाने की देरी थी। उस स्कूल ट्रीप में लगभग 35-40 बच्चे थे, उन बच्चों हम दोनों भी थे। हम सब राजस्थान के

लिए निकल पड़े। हमारी सीट स्लीपर श्रेणी की थी, हमारी ट्रेन पहले राँची से दिल्ली फिर दिल्ली से जोधपुर की थी। हम दिल्ली से जोधपुर वाली ट्रेन में थे, राजस्थान घुस चुके थे, राजस्थान के रेतीली हवाओं के साथ रात में ठंड भी बढ़ गयी। मेरे पास बस एक चादर था, वह चादर काफी नहीं थी उस रात के ठंड को रोकने के लिए। स्वस्ति अलग सीट पर थी, मैंने उसको फोन किया और पूछा उसके पास दो कम्बल होने की बात पूछी। उसके बाद वो मेरी सीट पर आकर मुझे कम्बल दे गयी। जिसके कारण मैं चैन की नींद सो पाया। सुबह उठा तो पता लगा उसके पास एक ही कम्बल था, जिसे उसने मुझे दे दिया था और उसने पूरी रात एक पतले साल में बिता दिया। मुझे बहुत दुख हुआ, की मेरे लिए वो लड़की रात भर ठंड में सोई। मेरा प्यार और भी बढ़ गया, लगा उसके गले लग जाऊँ पर ऐसा मुमकिन नही था।

हम पहले जोधपुर, फिर वहाँ से बस में जैसलमेर गए। जोधपुर की तरह जैसलमेर भी काफी सुंदर शहर था, वहाँ नीले घर दिखते थे तो यहाँ पीले घर दिखाई देते थे। हम सब ऊंट की सवारी के लिए रेगिस्तान के तरफ गए। हमारे सर ने कहा एक ऊंट पर दो लोग बैठेंगे। स्वस्ति और मैं दोनों ही अलग अलग ऊंट पर बैठे थे।

मन तो एक ही ऊंट पर बैठने को था पर ऐसा सम्भव नहीं था। ऊंट की सवारी कर हम सब वापस जाने को बस मैं बैठ गए। बस में मैं पीछे वाली सीट पर स्वस्ति के साथ बैठा था। स्वस्ति ने फिर एक बात कही, उसने कहा 'गुस्सा तो नहीं होगे '। मैंने कहा नहीं ' जल्दी बताओ।'

उसने बताया कि जिस ऊंट पर वो बैठी थी उस ऊंट का आदमी बड़ा बेकार आदमी था, उस आदमी ने उसके और मेघा, जो ऊंट पर उसके साथ बैठी थी, के साथ गलत व्यवहार कर रहा था, वो उनको गलत तरीके से छू रहा था। ये सब सुनते ही मेरा खून खौल उठा, मुझे स्वस्ति पर काफी गुस्सा आया, कि उसने मुझे पहले क्यों बताया, जब बस इतनी दूर निकल गयी तब बता रही है। मुझे बहुत गुस्सा आया क्योंकि बस उस स्थान से काफी दूर निकल चुकी थी, और अंधेरा भी काफी हो गया था, सर को बता कर भी कुछ फायदा नहीं होता। वह पूरी

रात मेरे लिए मनुसीयत की रात हो गयी थी, क्योंकि ये सब कुछ मेरे साथ रहते ही हो गया। स्वस्ति ने मुझे काफी समझाया कि भूल जाव, मेरे गुस्सा होने से क्या होगा, यहाँ लड़कियों के साथ ऐसा ही होता है।

ये घटना मेरे लिए बिल्कुल नई थी, मेरे जान पहचान में भी ऐसी घटनाओं का सुना कभी हुआ नहीं था। मैं सोचता था कि अगर यह घटना मेरे अपने शहर में हुई होती तो उस इंसान को मैं जिंदा नहीं छोड़ता, पर यह अपने शहर से मिलों दूर था। खैर 7-8 दिन तक घूमना फिरना लगा रहा, फिर हम वापस घर आ गए।

राजस्थान से हम वापस आते हैं, स्कूल आना जाना होता है, कभी कभी उसके कारण तो एक घंटे पहले ही स्कूल चला जाता था, क्या करता उसकी ऐसी ख्वाइश होती थी। हमारे रिश्ते का लगभग एक साल होने को आता है, उसी आस पास मेरा जन्मदिन भी आता है। मेरे दोस्त मुझे जन्म की बधाई देने मेरे घर आते हैं और कहीं चलने को कहते हैं। मैं उनके साथ, पास के एक अमूल शॉप पर चला जाता हूँ, देखता हूँ स्वस्ति वहां केक लिए खड़ी है, सच में यह बहत अच्छा सरप्राइज़ था, वाह ! बहुत खुशी होती है। यह सब स्वस्ति का प्लान था,मेरे दोस्तों ने उसकी अच्छी मदद की थी। यह मेरी ज़िन्दगी का सबसे पहला सरप्राइज़ था, उस दिन पता चला सरप्राइज़ क्या होता है। बहुत खुशी होती है।

19, फरवरी 2011 का दिन था, मैं शाम में सो रहा था, उठा तो करीब शाम के 5.30 बज रहे थे, मैंने स्वस्ति को फोन लगाया, उधर से कोई लड़का फोन उठाता है कहता है निखिल तिवारी कह रहा है, यही वही निखिल था जो स्वस्ति का पुराना दोस्त था। इस लड़के की आवाज़ सुन कर मैं बिलकुल सन हो गया। कुछ समझ नहीं आया, चुप चाप अपने छत पर चला गया।

तभी मेरे दोस्त मोहित का फोन आता है, और वह कहता है कुछ जरूरी बात करनी है इसलिए मेरे घर आ रहा है। मुझे आभास हो गया था की बात जरूर स्वस्ति के संदर्भ में होगी। वो आता है, साथ में उसका एक दोस्त भी आता है और दोनों कहने लगते हैं कि स्वस्ति और निखिल को गाड़ी में घूमते हुए देखा और दोनों एक दूसरे को गाड़ी के अंदर चुम रहे थे। इन दोनों की बातें सुन कर मेरा दिल टूट सा गया, और काफी घबरा गाय था। इसके बाद मैं लगातार स्वस्ति को कॉल कर रहा था पर वो उठा नहीं रही थी। कुछ देर बाद किसी तरह उससे मेरी बात हुई, और वो मुझसे माफी मांगने लगी। मैंने भी रिश्ता तोड़ने की बात कह दी पर वह समझाती रही की उससे गलती हो गयी, वह लड़का उससे मिलने के लिए बहुत कह रहा था, इसिलए मिलने चली गयी, फलाना डिमकाना बातें।

मैं बहुत गुस्से में था और वो चूमने वाली बात से बहुत दुखी भी था, भरोसा टूट जो गया था। सोच रहा था कि कैसी बदचलन लड़की है, मेरे साथ रहते हुए किसी और के साथ। सच्चाई यह थी की मैं उसके बिना रह ही नहीं पाता फिर भी रिश्ता तोड़ने पर अड़ा था। लेकिन वह इसके बिलकुल खिलाफ थी, उसको तो साथ रहना था। काफी लड़ाई झगड़े के बाद मैंने कहा जब तक वो घुटनों पर बैठ कर माफी नहीं मांगती, मैं माफ़ नहीं करूँगा। मैंने तो बस ऐसे ही कह दिया था, रिश्ता तोड़ना था तो ऐसा कुछ कठिन कार्य करने को कहा जो वह कभी कर ही न पाए, भला घुटनों पर बैठ कर कौन माफी मांगता है, लेकिन वह ऐसा करने के लिए मान गयी पर मुझे विश्वास नहीं हुआ।

अगले दिन जब स्कूल की छुट्टी हुई, स्कूल के मेन गेट के पास स्वस्ति मेरे सामने आई और भरी भीड़ में घुटनों पर बैठ के मुझसे माफी मांगने लगी। यह देख कर मेरा दिल पिघल गया, लगा उसको जाकर सीने से लगा लूं, लेकिन इतने लोग थे वहाँ की कुछ कर न पाया। उसके ऐसा करने के बाद मुझे बहुत बुरा लगने लगा,की मैंने उससे क्या करवा दिया, ये कैसी पागल लड़की है की, मेरे लिए ऐसा कैसे कर सकती है और एक मैं हूँ जो ऐसी लड़की से रिश्ता तोड़ने जा रहा था।

उस दिन मैंने उसे माफ़ तो कर दिया पर मैं बहुत शक्की हो गया। उस निखिल वाली घटना के बाद मेरा स्वभाव बिल्कुल बदल गया। रिश्ता तो आगे चलता रहा लेकिन मेरे जुबान खराब हो गए थे, मेरे शब्द बदल गए थे, हर छोटी छोटी बातों पर उससे सवाल जवाब करने लगा, मेरे पसंद के विपरीत अगर वो कोई काम करती तो

मैं गालियाँ देने लगता, मैं अंदर से ऐसा नहीं था पर बाहरी गंदगी चढ़ चुकी थी, और मैं गलतियाँ पे गलतियाँ करता चला गया। लेकिन वह बेचारी मेरे शब्दों को सहते चली गयी, मेरा साथ न छोड़ा। मैं यह नहीं कहता

की मेरा प्यार कम हो गया था, बस मेरे तरीके बदल गए थे। लड़ाई होता तो प्यार भी होता पर मेरे शब्दों से संस्कार चले गए थे। इसी तरह प्यार और लड़ाई के बीच 2012 बीत गया।

नया साल आया, हमारे रिश्ते को दो साल हो चुके थे और मेरे बारहवीं की परीक्षा भी आ चुकी थी। परीक्षा

खत्म होने के बाद मैं और मेरे दोस्त बैंगलोर गए, हम वहाँ इंजिनीरिंग कॉलेज में दाखिले के लिए परीक्षा देने गए थे। परीक्षा कुछ खास हुई नहीं पर मौज़ मस्ती अच्छी हुई। बैंगलोर जाने के बाद स्वस्ति से मेरी बात कम होने

लगी, घूमने फिरने में व्यस्त था इसिलए फोन पर कम आ रहा था। बैंगलोर से आने के बाद मैं अपने परिवार के साथ कलकत्ता चला गया, वहाँ मेरी बुआ रहती थी। मेरा चचेरा भाई शैलेश भी साथ गया था। मैं पहले भी कलकत्ता गया था पर बचपन में, इसलिए घूमना था। शैलेश और मैं कलकता भ्रमण करने निकल गए। हर रोज़ कोई नई जगह जाते, बस घूमना था क्योंकि हम लोगों के पास और कोई काम तो था नहीं। कलकत्ता में एक जगह है सोनागाछी जहां वैस्या वृति होती है, काफी सुना था उसके बारे में सो हम वहाँ घूमने चले गए। हमारा इरादा बस घूमने का था। हम मेट्रो पकड़ कर सोवाबज़र स्टेशन गए। वहाँ से कुछ दूरी पर सोनागाछी का मेन गेट था। हम अंदर गए, ऐसा लगा हम अलग देश में आ गए हैं।

वह जगह काफी बड़ा था, हर तरफ महिलाएँ ही महिलाएँ थी। कोई हमें इशारा करती तो कोई हमारे हाथ पकड़ लेती। इसी बीच हम लोगों के पास एक औरत आई, लगभग 35-40 की, कहने लगी आप लोग यहाँ नए आये हो और अपने साथ एक घर में चलने को कहने लगी। पहले तो हमने मना कर दिया पर उसके ज़िद करने के बाद हम उसके घर चले गए, मतलब उसके कोठे में। हमने सोचा चलो एक बार कोठा देख ही आए, देखने

में कैसा हर्ज़। हम उसके कोठे में गए, वहाँ एक औरत और एक आदमी पहले से बैठे थे। जो औरत हमें लेकर गयी, इन दोनों लोगों हमारी बात करवाने लगी। इनका रूम काफी छोटा था, हम लोगों को बैठने के लिए कहा गया, पर हमने कहा की बैठेंगे नहीं, हमें तो बस आपका कोठा देखना था, अब हम चलते हैं। ये लोग बोले अरे बैठ जा, डरो नहीं, दारू पियोगे, पानी पियोगे, पर हमने मना कर दिया। अचानक, वो जो आदमी उन लोगों के साथ था वह बाहर चला गया औए बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया।

हम समझ गए की कुछ गड़बड़ होने वाला है, हम लोग उन दो औरतों से बहस करने लगे की हमें जाने दीजिये हम बस देखने आये थे, हमें कुछ करना नहीं था। वो हमसे पैसे मांगने लगी, तो मैंने 100 रुपये निकाल के दे दिए तो वे लोग हँसने लगी बोलती है कितने प्यारे हो तुम लोग, कहते हुई मेरे गाल खींचने लगी। उनकी मांग 800 रुपये की थी, थोड़ा बहस होने के बाद हमने 800 रुपय दिया। रुपय लेने के बाद कहती है की वह लोग हराम का कुछ नहीं खाती। एक औरत जो हमें लेकर आई थी, और दसरी जो वहाँ पहले से थी उसकी आयु भी करीब 35-40 की थी। हम दोनों भाइयों ने साफ मना कर दिया हम कुछ नहीं करेंगे, पर वे धमकी देने लगी की अगर नहीं कुछ करोगे तो नंगा वापस जाओगे। हम ने काफी गिड़गिड़ाया की हम अच्छे घर से है, हम बस घूमने आये थे, हमें ये सब नहीं करना है पर उन लोगों का यही कहना था की वे हराम का नहीं खाती। इतना सब

कुछ होने के बाद सब्र का बांध टूटा और जो नहीं करना चाहिए था हमने कर दिया।

मेरा भाई पर्दे के उस तरफ और मैं इस तरफ। वह कमरा एक पर्दे से दो भाग में बँटा था। शायद

वह हमारा बलात्कार था, मर्ज़ी के खिलाफ अगर यह सब हो तो उसे बलात्कार ही कहते हैं, वह ज़िन्दगी का सबसे खराब दिन था। यह सब होने के बाद दरवाज़ा खुला और हम वहाँ से सीधे बुआ के घर गए। हम दोनों बहुत आहत हुए और मैं सबसे ज्यादा हुआ था। क्योंकि मेरी एक स्वस्ति थी, उसको जवाब देना था क्योंकि मैं कभी उससे कोई बात छुपाता नहीं था। बस डर था की स्वस्ति छोड़ न दे। लेकिन उसको नहीं बताता तो अपने ही नज़रों में गिर जाता, अपने आप में दगाबाज़ हो जाता, जो की मेरे सिद्धान्तों के खिलाफ था। उसको यह

बताने के लिए कॉल मिलाया, बस मैंने इतना कहा की मेरे से कुछ गलतियाँ हो गई, पूरी बात राँची आकर बताऊंगा। उसको शक हो गया था की मैने कुछ वाहियात काम किया होगा। उस दिन के बाद हमारी बात कम हो गयी, मैंने सोचा वह गुस्सा है तो राँची जाकर उसको सब समझा दूंगा। उसके बाद मैं हज़ारीबाग़ चला

गया, हमारी बात बिलकुल बंद हो गयी थी, एकाद बार बात भी हुइ तो उसने कहा उसकी मम्मी ने ज्यादा फोन इस्तेमाल करने से मना किया है। मुझे लगने लगा की मैं उससे दूर हो रहा हूँ पर विश्वास था एक बार उससे मिलूंगा तो सब ठीक हो जायेगा।

मैं राँची जाता हूँ, मेरे एक दोस्त के हवाले पता चलता है कि स्वस्ति का चक्कर किसी और लड़के के साथ चल रहा होता है, पर मुझे विश्वास नहीं होता है। इसकी पुष्टी करने के लिए मैं स्वस्ति से पूछता हूँ पर वो मना कर देती है। लेकिन बात यही नहीं रुकी एक और लड़के ने बताया की स्वस्ति बाइक पर एक लड़के के साथ घूम रही थी। फिर मुझे लगा की कुछ गड़बड़ है इसलिए मैंने स्वस्ति को मिलने को बुलाया वह भी अपने छत पर। वह अपार्टमेंट के छत पर आई, सारी बातों से उसने इनकार किया उसके बाद फिर हम लोग वही पर एक दूसरे के गले लगे और एक दूसरे को चूमने लगे। प्यारी-प्यारी बातें हुई, वादों को याद दिलाया गया। वह चली

गयी, मुझे लगा सब कुछ ठीक हो चुका है। अगले दिन वह घर पर अकेली होती है, जिस कारण वह मुझे अपने घर पर बुलाती है पर मैं नहीं जाता हूँ। दोपहर का समय हो रहा होता है, हम फोन पर बात कर रहे होते हैं, उसके दरवाज़े पर कोई आता है, स्वस्ति दरवाज़े के पास जाती है और दरवाज़े में बने छेद से बाहर देखती है की कौन आया है, दरवाज़े पर वही लड़का था जिससे स्वस्ति के साथ चक्कर चलने की बात पता लगी थी। स्वस्ति ने कहा दरवाज़े पर वही लड़का है और मैंने दरवाज़ा न खोलने की सलाह दी। स्वस्ति जिस अपार्टमेंट में रहती थी मेरा दोस्त भी वही रहता था। मैंने अपने उस दोस्त को फोन किया और उस लड़के को जो स्वस्ति के दरवाज़े पर खड़ा था, उसे भगाने को कहा। मैं बहुत गुस्से में था, इसलिये उस लड़के से मिलने की इच्छा थी। मैं उसी शाम उस लड़के से मिलने गया, उससे बात हुई तो पता लगा स्वस्ति ने ही उसे अपने घर बुलाया था, पर मुझे विश्वास नहीं हुआ। उसने और भी काफी बेकर बातें कही लेकिन मुझे उसकी एक भी बातों का विशवास नहीं हुआ। तो उसने कहा, साबित कर दूंगा तो मैंने उससे साबित करने को कहा। उसी शाम उस लड़के ने मुझे कॉल

किया और फोन लाइन पर स्वस्ति भी थी, स्वस्ति को पता नहीं था की मैं भी फोन लाइन पर हूँ। वो लड़का और स्वस्ति बात कर रहे थे, उनकी बातें सुन कर जोर का धक्का लगा, इसलिये लगा क्योंकि स्वस्ति मेरी बुराई कर रही थी। मैंने फोन काट दिया। मैं बहुत ठगा हुआ महसूस कर रहा था, एक तरफ वो मुझे घर पर बुलाती है दूसरी तरह मेरी बुराई करती है और उस लड़के से अच्छे से बात भी करती है, जो थोड़ी देर पहले उसके घर के बाहर खड़ा अपराधी था। मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा था आखिर ये लड़की चाहती क्या है। थोड़े देर बाद स्वस्ति से बात हुई, और मैंने रिश्ता तोड़ दिया। लेकिन वह रिश्ता तोड़ना नहीं चाहती थी, और वह माफी मांगने लगी। कुछ घण्टो बहस के बाद मैंने उसे माफ़ कर दिया, और कहा की आगे से ऐसी गलती मत करना। उससे अलग न होना तो मेरी मजबूरी थी, उसके बिना रह जो नहीं पाता। रिश्ता टूटा तो नहीं था पर बात पहले से कम होने लगी थी। जो लड़की दिन भर कॉल किया करती थी, उसने एक मेसेज भी करना बंद हो गया, विश्वास था की सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा। उसके घर वाले मुझे जानते थे और उसकी माँ से कभी कभी मेरी फोन पर भी बात हो जाया करती थी।

शाम का वक्त था स्वस्ति की माँ ने मुझे कॉल किया और कहा स्वस्ति कहीं चली गयी है, उसका फोन भी नहीं लग रहा है और उन्होंने मुझे देखने और उसके बारे में पता करने को कहा, जहाँ तक मुझसे हुआ मैंने हर जगह देखा। जहां वो जाया करती थी, उसके दोस्तों से पूछा पर उसका पता नहीं चल पा रहा था, उसकी

माँ काफी चिंतित थी क्योंकि उसके पिता जी भी राँची में नहीं थे। मैं इधर उधर ढूंढ ही रहा था तभी उसकी माँ का फोन आया ये बताने के लिए की स्वस्ति घर आ गयी है, और बताया की उसके स्कूटी से गिर गयी थी इसिलये उसके आने में लेट हो गया। मैं गुस्से में था और चिंतित भी, सोच लिया था की स्वस्ति को डाँटना है। उसकी माँ जी उसको अस्पताल ले जा रही थी, तभी मैंने स्वस्ति को कॉल किया और पूछा की ये सब कैसे हुआ, कैसे गिर गयी थी साथ साथ सवालों की बरसात कर दी, उसने बड़ी चौंकाने वाली उसने फिर कहा की आठ-दस लोगों ने मिलकर किया, इसके साथ उसने एक सवाल भी कर दिया,क्या अब तुम मुझे स्वीकार करोगे ?

कल तक बलात्कार की घटनाओं को टीवी पर देख रहा था आज मेरी स्वस्ति के साथ ऐसा हो गया। बलात्कार बुरी चीज़ है पता था पर उस दिन पता चला जिनकी बहू-बेटियों के साथ होता है उन परिवार वालों पर क्या गुज़रती है, इस घिनोनी हरकत का दर्द क्या होता है उस दिन अहसास हुआ की बलात्कार का दर्द क्या होता है। मैंने उसे एक बात कही, स्वीकार न करने या न करने की बात नहीं है, तुम्हें अपना मान चुका हूँ तो ऐसा कोई सवाल ही पैदा नहीं होता, गलती तुम्हारी नहीं, उन बलात्कारियों की है। उस दिन उससे मिलने जा

न सका, उसकी माँ जी ने आने से मना कर दिया,कुछ नहीं कर सका तो कमरे में बंद हो गया और बस सोचता रहा, रात भर आँसू गिरते रहे, उन बलात्कारियों को मारने की भावना उत्पन्न हुई पर ऐसे लोग थे जिनका कोई अता पता नहीं था। मैंने पुलिस में मामला दर्ज़ करवाने की बात उसकी माँ जी से कही पर उन्होंने मना

कर दिया। क्या करती वह भी, वह एक माँ है और समाज को ठीक तरह समझती है, डर था उस माँ को,समाज

में लोग क्या कहेंगे,उनकी दो बेटियों से शादी कौन करेगा, कौन अपनाएगा उनको। मैंने उन से कहा

भी मैं करूँगा शादी, पर एक बारहवीं के बच्चे की बात को कौन मानता है। उन्होंने पुलिस में मामला दर्ज़ नहीं करवाया। उसके अगले दिन मैं स्वस्ति से मिलने गया तब वह अस्पताल आई हुई थी। फिर उसका परिवार कुछ दिनों के लिए उसके नानी के घर चला गया। उस दिन के बाद स्वस्ति ने मुझसे बात करना छोड़ दिया, हर

दिन दर्ज़नो कॉल अथवा मेसज करने के बावजूद वह मुझे जवाब नहीं देती थी। बिल्कुल टूट गया था,मेरी

ज़िन्दगी बदल सी गयी थी, न ठीक से खाता न पिता। उसकी आदत हो चुकी थी, इसलिए बिना उससे बात किये चैन नहीं मिलता था,जिस कारण कितने रात मैं सो नहीं पाया था, उसकी आवाज़ सुनने के लिए पागल रहता था, पर सुन नहीं पाता था। बस इंतज़ार करता था की वो वापस कब आएगी, कब बात करेगी मुझसे। न दोस्तों से मिलता न कहीं घर से बाहर जाता, मानो लगता था ज़िन्दगी खत्म सी हो चुकी है।

एक दिन सब्र का बांध टूटा और मैं दारू पी कर उसके घर उससे मिलने चला गया। दरवाजा खटखटाया, उसकी माँ निकली और कहने लगी "क्या हाल बना कर आए हो", मैंने कहा स्वस्ति से मिलना है, उन्होंने आग्रह करते हुए जाने को कहा पर मैं मिलने की ज़िद करने लगा, उनके दुबारा आग्रह करने पर,नमस्ते करते

हुए मैं वहाँ से चला गया। इन दिनों मैंने शराब का सेवन काफी अधिक कर दिया था।

इन्हीं सब के बीच मैंने एक दिन हाथ काटने का सोचा, और काट भी लिया और जो खून निकला उससे मैंने स्वस्ति का नाम और साथ में ' आई लव यू ' अंग्रेज़ी शब्दों में एक कगज़ पर लिख दिया। मैंने हाथ तो काट लिया, पर खून बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था, मम्मी को शक न हो इसिलिए ये काम मैं उनके सोने के बाद कर रहा था। उस वक्त घर पर सिर्फ मेरी मम्मी मौजूद थी। मैंने कुछ कपड़ों के सहारे खून को काबू में कर लिया, खून काफी बह चुका था। एक मेरी दोस्त थी जो स्वस्ति की भी दोस्त थी, मैंने वह पत्र उसको दे दिया और

स्वस्ति को देने को कहा। जब स्वस्ति को पत्र मिला तो उसने एक बड़ी प्यारी सी बात मेरी दोस्त से कही, उसने कहा, "उसने कोई रक्त दान केंद्र खोल नहीं रखा है" और कागज़ वापस कर दिया। इस बात का उतना बुरा नहीं लगा क्योंकि इतने सारे दुःखो की आदत जो हो गयी थी। हमारी बात बिल्कुल बंद हो चुकी थी और मैंने भी कॉल मेसेज करना छोड़ दिया था। कुछ महीने बीतने के बाद उसका व्हट्सऐप पर मेसज आता है और वह कहती है, भूल गए क्या। खैर मैंने थोड़ी बहुत बात की, हाल चाल पूछा, ऐसा लगा किसी अनजाने से बात कर रहा हूँ। तम्मना तो बात करने की पर थम गया।

उसके बाद बस कभी कभार बात हो जाया करती थी, इसी तरह अलग हुए एक साल बीत गए। यह एक साल ज़िन्दगी का सबसे लंबा साल था। किसी चीज़ में भी मन नहीं लगता था, मैंने इंजिनयरिंग में दाखिले के लिए कोचिंग ले रखी थी पर पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं होता था, बस उसको याद करता था, पढ़ाई

लिखाई कुछ हो नहीं पाती थी। एक दिन कही से उड़ते उड़ते खबर मिली की स्वस्ति को कोई मिल गया है। एक दिन उसके बॉयफ्रेंड से बात हुई और वह मुझसे मिलने को कहने लगा, पहले तो मना कर दिया पर स्वस्ति के

आग्रह करने पर मैं मान गया। वो लोग मुझे गाड़ी में लेने के लिए आये। उसका बॉयफ्रेंड गाड़ी चला रहा था और वो उसके बगल वाले सीट पर बैठी थी, और मैं पीछे वाले सीट पर। वे लोग मेरे जले पर नमक छिड़कने आये थे या मुझसे मिलने पता नहीं लेकिन उस दिन गाड़ी के पीछे बैठ दिल जल रहा था, वे लोग एक दूसरे को चिप्स खिला रहे थे, हाथ पकड़ रहे थे और ये सब देख मैं बस जल रहा था।

वह मेरी उससे आखिरी मुलाकात थी, उसके बाद न तो उससे मुलाकात हुई और न मैंने उसके बाद उसको कभी देखा। पहली मुलाकात से आखिरी मुलाकात तक का सफर बस इतना सा था।

उसका बलत्कार हो गया। एक बार के लिए इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ था।


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