उम्मीदों का दामन

उम्मीदों का दामन

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ज्योति का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। ज्योति पिता के पास गांव में एक जमीन का टुकड़ा था, जिसमें दोनों पति-पत्नी अनाज और सब्जियां उगाते और फसल होने पर शहर में बेच आते। ज्योति बचपन से ही पढ़ाई के साथ चित्रकला में भी बहुत होशियार थी। जो कुछ भी देखती उसे सफेद कागज पर हूबहू बना देती।


दिवाली का त्योहार था तो ज्योति अपने भाई-बहनों के साथ पटाखे जला रही थी। अचानक पटाखों की कुछ चिंगारी ज्योति की आंख में चले गई, ज्योति दर्द से चीख उठी‌। उसे तुरंत ही शहर के बड़े हॉस्पिटल में ले जाया गया। हॉस्पिटल गांव से बहुत दूर था तो देरी के कारण डॉक्टर ने बताया कि ज्योति की आंखों की रोशनी चले गई है, अब वो कभी देख नहीं पाएगी। ये सुनकर ज्योति तो जैसे सदमें में चले गई और उसके पिता पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।


तभी किसी ने उन्हें बताया कि नेत्रहीन बच्चों के लिए सरकार ने एक आवासीय विद्यालय खोला है और ज्योति के पिताजी ज्योति का एडमिशन वहां करा आए। वहां ज्योति की तरह ही अनेकों बच्चे थें कुछ समय बाद ही ज्योति उन बच्चों के साथ अपना दुख भूलने लगी और उसने अपने मन की आंखों से चित्र बनाना फिर से शुरू कर दिया। कुछ ही महीनों में उसकी मेंहनत रंग लाई।


आज राज्यस्तरीय चित्रकला प्रतियोगिता में उसका मुकाबला अपने हमउम्र सामान्य बच्चों से था, जहां उसने कोरे कागज पर अपने मन के रगों की आकृति बनाई और उसे प्रथम पुरस्कार मिला। जब उससे पूछा गया कि आपने आंखें ना होने के बावजूद भी इतना सुन्दर चित्र कैसे बनाया तो वो बोली-


"अगर जीतना है तो उम्मीद का दामन कभी मत छोड़ो। चित्रकला मेरी आत्मा में बसी है मैने केवल अपने मन की कल्पनाओं को इस सादे कागज पर उकेर दिया और ये खूबसूरत चित्र बन गया”


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