"तुम्हारे जैसी बहु सबको मिले"
"तुम्हारे जैसी बहु सबको मिले"
रागिनी का आज ससुराल में पहला दिन था। राम (रागिनी का पति) किशोर (राम का पिता) का दूसरे नंबर का बेटा था। बड़ा बेटा नयन मुंबई में अपनी पत्नी जानकी के साथ रहता था। छोटे भाई की शादी में दोनों पति पत्नि गाँव आये हुए थे। आज का खाना रागिनी को बनाना था। इसलिए रागिनी तैयार होकर किचन में जा रही थी।
जाते जाते उसका ध्यान सास-ससुर की बातों की तरफ गया, ससुर सास को समझा रहे थे
किशोर :"देखो दुर्गा, रागिनी घर में नयी नयी आई है, उसे घर के तौर-तरीके रीति रिवाज कुछ नहीं पता, तुम जरा सब्र से काम लेना। उससे कोई गलती हो जाए तो ज्यादा गुस्सा मत करना, कहीं ऐसा ना हो वो भी जानकी की तरह अपने पति को लेकर अलग हो जाए।"
सास जो अब तक सुन रही थी बोली।
दुर्गा : "आप तो चुप ही रहो। जानकी मेरे कारण नयन को लेकर अलग नहीं हुई, ससुराल से उसको आजादी चाहिए थी। बड़ों के पास रहने में उसका दम घुट रहा था इसलिए चली गई थी वो।"
किशोर : "नहीं वो तुम्हारे व्यवहार से परेशान होकर गई थी, पर तुम से बहस कौन करे! तुम को समझाना मतलब सूरज को आईना दिखाने जैसा है।"
दुर्गा : "हां पता है, पता है। अगर मेरा व्यवहार खराब होता तो पूरे गांव वाले मेरी सलाह लेने नहीं आते।"
ससुर कुछ नहीं बोले।
रागिनी वहां से किचन में जाकर खाना बनाने लगी।
सब लोग रागिनी के खाने की तारीफ कर रहे थे।
दुर्गा :"बहू बाकी सब तूने ठीक बनाया पर दाल में छौक ठिक से नहीं लगाया तूने।"
सब लोग दुर्गा की तरफ देखने लगे पर कोई कुछ नहीं बोला।
रागिनी : "हां माँ जी आपने सही कहा आगे से ध्यान रखूंगी।
खाना खाकर सब अपने कमरे में चले गये।
रागिनी ने राम से बड़े भैया और भाभी के बारे में पूछा कि वे लोग गांव में सब के साथ क्यों नहीं रहते ?
राम : "बड़े भैया और भाभी पहले हमारे साथ ही रहते थे पर काफी टाइम से उनका कोई बच्चा नहीं हुआ तो गांव वालों से ज्यादा माँ के तानों से वो परेशान हो गए थे। हर छोटी से छोटी चीज के लिए मां बहुत परेशान करती थी। एक बार भाभी को मेडिकल एमरजेेंसी थी और माँ देसी इलाज किए जा रही थी। देसी इलाज का कोई फायदा नहीं हो रहा था तो नयन ने शहर जाकर इलाज करवाने के लिए कहा तो माँ रोज की तरह पैसे का रोना लेकर बैठ गई। नयन भैया ने भाभी का शहर के अस्पताल में इलाज करवाया। बस, मां को बुरा लग गया और वो भैया पर बरस पड़ी। बात इतनी बढ़ गई कि भैया भाभी ने अलग होने का मन बना लिया,पर यह सब तुम क्यों पूछ रही हो?तो रागिनी ने राम को अपना प्लान समझाया।
राम : प्लान तो अच्छा है पर !
रागिनी : आप चिंता मत करो बस आप मेरा साथ दो तो मैं कोशिश करूं।
रागिनी की बात सुनकर राम मान गया,इतने में किशोर ने राम को आवाज लगा कर बुलाया, राम उठकर चला गया था।
किशोर : राम तुम भी बहू को लेकर नयन के साथ मुंबई चले जाओ।
राम : क्यों ?
किशोर : "बेटा मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी मां और रागिनी के बीच में कुछ ऐसा हो कि रागिनी और तुम को बुरा लगे और तुम नयन जैसे बुरा मान कर यहां से जाओ।"
राम : "पापा मैं मां के व्यवहार के साथ बड़ा हुआ हूं, मैं मां को अच्छी तरह से जानता हूं वो दिल की बुरी नहीं हैं।"
राम को बीच में रोककर
किशोर : "तुम पले बड़े हो यहां, पर रागिनी नहीं।"
राम : "पापा रागिनी बहुत समझदार लड़की है वो सब संभाल लेगी आप देख लेना।"
किशोर : "बेटा मैं भी यही चाहता हूं पर तुम्हारी मां को भी मैं जानता हूं, वो मेरी पत्नी है। मेरी बात मानो।"
पर राम नहीं माना और उसने अपने पापा को धीरे से कुछ कहा बाप बेटे की बातचीत रागिनी ने सुन ली थी, उसे राम के भरोसे पर खुशी थी। शाम को राम के पापा ने रागिनी को चाय बनाने के लिए कहा-
दुर्गा : "रुको मैं बना कर देती हूं।"
किशोर : "रहने दो तुम्हारे पैर में पहले ही बहुत दर्द है, रागिनी बना देगी चाय।"
पर राम की मां नहीं मानी और चाय बनाने के लिए जाने लगी
किशोर : "सुनो रहने दो बन गयी तुमसे चाय।
तुम्हारे हाथ से चाय पिछले 40 साल से पी रहा हूं। उसमें दूध का पता नहीं होता पानी उबालकर दे देती हो बस।
दुर्गा : "तो क्या दूध की चाय बना कर दूँ? भाव पता है दूध का ?"
किशोर : "तो तुम्हें कौन सा दूध बाजार से खरीदना पड़ता है ?"
दुर्गा : "दूध घर में ही इस्तमाल करेंगे तो बेचुंगी क्या और चारा पता है कितना खाती है गाय ?"
राम के पापा ने सर पकड़ लिया।
रागिनी : मां रात में खाने में क्या बनाना है? बता दें तो मैं तैयारी कर दूं ।
दुर्गा : रात के खाने में तो खिचड़ी ही ठीक है।
"खिचड़ी" सब लोग चिल्लाए तो दुर्गा बोली "हां।"
किशोर : "खिचड़ी खा खाकर ऊब गए हैं भाग्यवान।"
दुर्गा :"खिचड़ी ही बनेगी जिसको खाना है खाए।
किशोर : "मुझे नहीं खाना।"
दुर्गा : "कुछ तो शर्म करो बहु सुन रही है क्या सोचेगी ?"
किशोर : "मैं भी यही बोल रहा हूं कुछ तो शर्म करो, इतनी भी क्या बचत बचत बचत। तंग आ गया हूं मैं तुम्हारी इस आदत से।
किशोर बाहर चला गया
दुर्गा : "बहू तुम तुम्हारे ससुर की बात पर ध्यान मत दो,उनकी तो आदत है ऐसा करने की तुम रात को खिचड़ी ही बनाना। उसमें घी का तड़का लगाने की जरूरत नहीं है। क्या है रात को पेट में हल्का खाना ही ठीक रहता है। घी तकलीफ दे सकता है समझ रही हो ना तुम ?"
रागिनी : "जी सादी खिचड़ी ही बनाऊंगी।"
दुर्गा : "अच्छी बात है।"
एक दिन राम बोला माँ थोड़ी मिठाई दो ना खाने को? कुछ मीठा खाने का मन कर रहा है।
रागिनी: मैं ला देती हूं, बोलकर किचन में जाने लगी तो इतने में किशोर अंदर जाते हुए-
किशोर : "बहु, बेटा मिठाई तुम्हे किचन में नहीं मिलेगी, तुम्हारी सास की तिजोरी में मिलेगी। वहां पर नाश्ता सड़ जाएगा पर खाने नहीं मिलता।"
कुछ दिन बाद शालू (दुर्गा की बहन) मौसी आई। उसको देखते ही दुर्गा बोली-
दुर्गा : "कैसी है तू ? बड़े दिनों बाद आई है। बोल क्या पियेगी तू ? अरे बहु चाय तो बना मौसी के लिए।
अच्छा रुक, शालू तेरी चाय का टाइम तो 6:00 बजे का है न ? अब तो 7:00 बज रहे हैं चाय तो तुम पीकर ही आई होगी। अच्छा नाश्ता कर ले" ये बोलकर रागिनी को चाबी देते हुए बोली "बेटा तेरी मौसी के लिए नमकीन और बिस्कीट ले आ, कुछ मीठा खाने का मन हो तो मिठाई भी है पर रहने दे मिठाई से डायबिटीज हो जाती है, नमकीन ही ले आ तू।सुनकर रागिनी ने चाबी ली, नमकीन निकालने लगी
नमकीन में चीटियां लगी थी तो रागिनी ने बिस्किट देखा तो उसमें भी फफूद लग चुकी थी, तो रागिनी ने आकर सासु मां को बताया तो वो बोली-
दुर्गा : "अरे कर्म जली जब नमकीन खराब हो गया बिस्किट में फफूंद लग गया तो क्या तेरे हाथ भी जल गए हैं? कुछ गरम गरम ही बना लेती।"
रागिनी : "मौसी जी आप बस 5 मिनट रुकिए मैं अभी आपके लिए गरमा गरम पकोड़े बना कर लाती हूँ।"
शालू मौसी ने कहा है कि वो भी हाथ मुँह धोकर आती हैं|
वापस आ रही थी तो किशोर ने उनके कान में कुछ कहा शालू मासी ने ठीक है कहा और दुर्गा के पास जाकर बैठ गई।
दुर्गा : "हां तो शालू और सुना कैसी कट रही है तेरी आजकल? तू तो बड़ी नसीब वाली है कोई खर्चा नहीं होता। तेरा बेटा बहू भी अलग है और बस मियां बीवी आराम ही आराम।"
शालू मौसी : "नहीं रे मैंने तो गलती कर दी तेरी बात मान कर। खर्चा बचाने के चक्कर में मैंने बेटे बहू को खो दिया। ये भी मुझे छोड़कर चले गये। घर काटने को दौड़ता है, ना तो कोई बात करने वाला ना ही कोई तकलीफ में दवा दारू करने वाला। अब पैसों का मैं क्या करूं? तेरी बहू को तेरी सेवा करते देख कर मेरा तो मन भर आया। दुर्गा मैं तो आज ही अपने बेटे बहु पति को वापस बुला कर माफी मांग लूंगी और आराम से रहूंगी मैं मेरे परिवार के साथ।
उसकी बात सुनकर दुर्गा को डर लगने लगा वो सोचने लगी कि कहीं वो भी तो यही गलती नहीं कर रही। कुछ दिन पहले राम के पापा ने मुझे सुबह समझाया था पर मैं नहीं समझी और कुछ दिन पहले राम के पापा चाय नाश्ते की बात पर बिगड़ गए थे और उस दिन उन्होंने खिचड़ी के कारण खाना खाने से मना किया था। नयन तो अपनी पत्नी को लेकर पहले ही घर छोड़कर जा चुका है अब अगर राम भी... नहीं सोचते ही दुर्गा घबरा गई उसने सोचा कि रागिनी एक समझदार बहू है। वो मेरी बात का आज बुरा नहीं मान रही पर क्या पता कल को मान गई तो ? इतने में रागिनी गरमा गरम पकौड़े लेकर आ गई।
रागिनी : ये "लिजीये माैसी जी गरमा गरम पकौड़े।"
शालू मौसी : अपनी सास को भी दे।
रागिनी : "मां आप भी पकौड़े और चाय चख करके बताइए कैसे बने हैं ?"
दुर्गा : "अरे बेटा अपनी मौसी को खिला और पूछ कैसे बने पकोड़े।"
रागिनी : नहीं मां पहले आप चख करके बताइए कि मुझे पकोड़े बनाने आते हैं या नहीं।
सुनकर दुर्गा बहुत खुश थी उसने पकौड़े उठाया सबसे पहले शालू को और फिर रागिनी को खिलाने लगी। फिर उसने रागिनी को गले लगाकर अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी। इतने में सब लोग वहां आ गये। सब को एक साथ देखकर दुर्गा ने पूछा आप सब ! तो राम के पापा ने दुर्गा को बताया कि ये प्लानिंग रागिनी ने ही की थी तुमको एहसास दिलाने के लिए और एक खुश खबरी है तुम्हारे लिए।
दुर्गा ने पूछा वो क्या ?
"रागिनी ने नयन और उसकी पत्नी को भी मना लिया है, अब वो भी यहीं रहेंगे हमारे साथ।"
दुर्गा की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। उसने रागिनी को गले लगाकर कहा भगवान रागिनी जैसी बहू सब को दे। फिर बोली नहीं सिर्फ मुझे को दे। सुनकर सब हंस पड़े।