तुम...सिर्फ तुम
तुम...सिर्फ तुम
रविवार का दिन अर्थात फुरसत का दिन। देर से उठी, आराम से नहाई और नहा कर कई दिन बाद निकली गुनगुनी धूप का आनंद लेने बालकनी में चली आई। मैं अपने साथ पढ़ने के लिए रश्मि तारिकाजी का नया कहानी संग्रह,'कॉफी कैफे' भी ले गई थी। अभी बैठी ही थी कि देखा सामनेवाली आंटी भी अपने पति की व्हील चेयर को धीरे धीरे धकेलती हुई चली आ रही हैं। मैंने हौले से सर हिला कर उनका अभिवादन किया, उन्होंने भी प्यार से मुस्कुरा कर जवाब दे दिया। आश्चर्य होता है इस महिला को देख कर इतनी विषम परिस्थिति में भी इनके व्यवहार में कितना अपनापन है। इसके बाद आंटी की जीवन यात्रा एक फिल्म की तरह कुछ यूं मेरी आंखों के समक्ष चली कि साथ लाई किताब तो सामने धरी ही रह गई।
बचपन से जानती हूं मैं इन्हें। वर्षों से हमारे परिवार आमने सामने रहते हैं। काफी अमीर घर की बेटी हैं ये और जब ब्याह हुआ तो बहू भी अमीर परिवार की ही बनी। पर किस्मत ने इन्हें संघर्ष के अतिरिक्त और कुछ नहीं दिया। कुछ ही समय हुआ था इनकी शादी हुए कि एक रोज़ व्यापार के सिलसिले में पास के ही शहर गए इनके पति की बाइक एक ट्रक से टकरा गई और वे एक भयंकर दुर्घटना के शिकार हो गए। जान तो किसी प्रकार बचा ली डॉक्टर्स ने पर वे लकवाग्रस्त हो कर अपनी चलने फिरने की क्षमता हमेशा के लिए खो बैठे। कई दिन बाद अंकल हॉस्पिटल से वापस आए तब तक आंटी की दुनिया बदल गई थी। अब उन्हें सारी उम्र व्हील चेयर पर बैठे व्यक्ति के साथ निभाना था। उनके घर वालों ने उनके समक्ष तलाक और दूसरी शादी का विकल्प भी रखा जिसे उन्होंने यह कह कर ठुकरा दिया कि, 'यदि मेरी किस्मत में गृहस्थी का सुख लिखा होगा तो एक दिन यही ठीक हो जाएंगे, इनके अतिरिक्त किसी और के नाम का सिंदूर मैं अपनी मांग में नहीं लगाऊंगी।' हार कर उनके घरवाले वापस अपने घर चले गए और आंटी अपने सास ससुर के सहारे अपने घर को संभालने में जुट गई।
पर उनका यह सहारा भी अधिक दिन उनका साथ नहीं दे सका। माता पिता अपने बेटे को ऐसी हालत में ज्यादा दिन तक नहीं देख पाए और पहले माँँ और फिर पिता बेटे बहू को दुनिया की जद्दोजहद में अकेला छोड़ रुखसत हो गए। व्यापार भी सही देखरेख के अभाव में ठप्प हो गया। अब आंटी के पास कमाई का एकमात्र ज़रिया अपना घर था। जरूरत लायक एक कमरा और रसोई आदि अपने पास रख कर उन्होंने अपना घर कराए पर चढ़ा दिया और घर पर ही छोटे बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाने लगीं क्योंकि अंकल को घर पर अकेले छोड़ कर उनके लिए नौकरी करना संभव नहीं था। संतान सुख से वंचित आंटी ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों पर ममता उडेल कर रख देती थीं शायद इसीलिए उनके पास ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों की भीड़ लगी रहती थी।
मैंने हमेशा उन्हें अंकल की सेवा करते देखा, वे अंकल को अपने हाथों से नहलातीं-खाना खिलातीं। अंकल तो खुद से टॉयलेट भी नहीं जा पाते, यह भी आंटी को ही संभालना पड़ता है। फिर भी उनके माथे पर शिकन नहीं आती। आंटी की दुनिया बस अंकल तक ही सीमित है। अभी वेलेंटाइन वीक चल रहा है। लड़के लड़कियां रोज़ डे चॉकलेट डे और भी ना जाने कितने डे एकसाथ मनाएंगे। पर मैं सोचती हूँ इनमें से कितनी जोड़ियां होंगी जो आंटी की तरह हर दुख सुख में अपने साथी का साथ निभाने का माद्दा रखती होंगी। आंटी ने कभी वेलेंटाइन नहीं मनाया, उन्हें ज़रूरत ही नहीं पड़ी। क्योंकि पिछले तीस साल से पति सेवा में लगी आंटी हर पल सही मायने में वेलेंटाइन को ही जी रही हैं। सच कहूं तो मुझे लगता है उन्होंने प्रेम और समर्पण की वो मिसाल पेश की कि खुद एक मिसाल हो गईं तभी तो उनकी पूरी दिनचर्या से एक ही प्रतिध्वनि सुनाई देती है तुम...सिर्फ तुम...सिर्फ और सिर्फ तुम...!