टेस्टिंग बाई विभू
टेस्टिंग बाई विभू
वह नंगी थी। अल्मोड़ा के रघुनाथ मंदिर के पास उकड़ूं बैठी हुई। उसकी उम्र लगभग सोलह साल की होगी। सिर से पैर तक काली-काली। दूर से ऐसी लग रही थी जैसे किसी ने मंदिर के आगे काले रंग का कपड़ा फैंक दिया हो। वह नंगी थी ! नहीं। वह नंगी जैसी लग रही थी, क्योंकि जितना काला उसका शरीर था उतने ही काले उसके कपड़े भी थे। ऊपर के हिस्से में एक हाफ टी-शर्ट, जो सालों से धुली न होने के कारण काली पड़ गई थी और निचले हिस्से में घुटने तक का एक फ्राक, जो मैला-कुचैला तो था ही, साथ ही जगह-जगह से फटा हुआ भी था।
मेरी नजर अब उसके पैरों से ऊपर की ओर बढ़ रही थी। उकड़ू बैठने के कारण उसका पिछला हिस्सा भी नजर आ रहा था। उसका अंडरवियर भी फटा हुआ था, जिसमें से उसका दाहिना कूल्हा बिल से बाहर झांकते चूहे-सा दिखाई दे रहा था। ज्यों ही मेरी नजर उसकी नजर से मिली, त्यों ही मेरी नजर झुक गई। मैंने वह देखा जो मुझे देखना नहीं चाहिए था। वह नंगी नहीं थी, लेकिन फिर भी वह नंगी थी। क्या था उसके पास ? कुछ भी नहीं। पेट भरने के लिए दो वक्त का भोजन नहीं था उसके पास। शरीर ढकने के लिए दो जोड़ी कपड़े नहीं थे उसके पास। क्या था उसके पास ? कुछ नहीं।
