तस्वीर बहुत कुछ कहती हैं

तस्वीर बहुत कुछ कहती हैं

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खामोशी से हर रात बस गुज़र रही थी।

मैं अपने कमरे में सोने का बस एक ढोंग ही तो कर रही थी क्यूंकि नींद तो अक्सर अब दो-चार दिनों में एक बार मुश्किल से आ जाती है।

अगली सुबह मैं वही अपनी आधी-अधूरी नींद से जागी और रोजमर्रा के कामों में लग गयी। मेरा ध्यान मेरी मेज़ पर पड़ी तस्वीर पर गया ही नहीं। शायद मैंने जानबूझ कर उसे देखा नहीं।

कुछ १ घंटे बाद मेरे दरवाज़े किसी की हलचल महसूस हुई मुझे। शायद डाकिया था, मां का ख़त लेकर आया हो।

जैसे ही मैं दरवाज़े की ओर बढ़ी 'धड्ड़' से वो तस्वीर नीचे गिर गयी। मेरे लिए ये तस्वीर मेरी जान से भी अज़ीज़ है मुझे। उस पर पड़ गयी दरार मुझे अपने जिस्म पे महसूस हो रही थी।

 मैं ये क्या कर रही थी, आज मैं अपने पति से मिलना भूल गयी थी।

उनसे बिना मिले मैं कहीं जाती न थी और आज मैं अपने मां के घर जा रही थी, बिना उनसे मिले, बिना उन्हें बताए।

पिछले साल ९ मई २०१८ को एक एक्सीडेंट ने मुझसे उन्हें छीन लिया था। मैंने बेहद कोशिशें की थी कि वो ठीक हो जाए मगर वक्त को कुछ और ही मंज़ूर था। 

उनके जाने के बाद मेरा घर वीरान ही है। मुझसे मिलने भी कोई नहीं आता। 

उनके जाने के दो महीने बाद से ही सब मेरी दूसरी शादी करवाने में लगे हुए थे। मगर मैं उनके सिवा किसी और की कैसे हो सकती थी। कॉलेज के वक्त उन्हें वक्त उन्हें वादा जो किया था 'आइ एम यूअर्स फारेवर' वाला। उस वादे को मैं नहीं छोड़ सकती थी। 

इसलिए मैं अपना घर छोड़ यहीं अपने और नीतिश के घर रहने लगी। सबने एतराज़ भी किया मगर मैं कहां मानने वाली थी, छोड़ आई सबकुछ। तबसे इस घर से कभी बाहर न निकली, घर पर ही रहकर एक वेबसाइट पर काम करने लगी ताकि अपना खर्चा चला सकूं। 

मैं नीतिश को हमेशा ज़िंदा रखना चाहती थी और उनकी ये तस्वीर गवाह थी कि वो भी मेरे साथ जीना चाहते थे मगर उनकी उम्र ने उनका साथ ही नहीं दिया, लेकिन उनकी रूह मेरे साथ रही इस तस्वीर में। 

१२ अप्रेल २०१९, मेरी मां का एक साल बाद मुझे फोन आया, मेरी आवाज़ से वो जानती थी कि मैं खुश हूं मगर उनके समाज ने अंधा कर दिया था वो फिर से मुझसे मेरी शादी की बातें करने लगी। इस बार उनके आंसू मुझसे देखें नहीं गऐ और मैं घर जाने को राज़ी हो गई। 

उस दिन नीतिश का ख्याल न जाने क्यूं मुझे आया ही नहीं और मैं बस लग गयी अपना सामान बांधने में। दरवाज़े पर कोई नहीं था। वो बस मुझे रोकने की एक कोशिश थी। तस्वीर जिसमें मैं मानती थी कि नीतीश रहते हैं वो ज़िंदा है, वो गिरी ताकि मेरा ध्यान अपनी और ले सके। 

मुझे फिर से यकीन आया कि नीतीश ज़िंदा है। जिसे मैं एक साल से ज़िंदा रखने की कोशिश कर रही थी उसे मैं एक पल में मारकर नहीं जा सकती थी। इस बार मैंने नहीं उन्होंने मुझे अपने वादे से मुकरने से रोका था।

मैनै मां को फोन कर के मना कर दिया और फिर मैं इसी घर में उनके साथ रहने लगी क्यूंकि वो कहते थे प्यार इंसान के जिस्म से नहीं उस इंसान से होता है। मैंने अपने इस खास इंसान को उसके बदन से परे ज़िंदा रखा, ज़िंदगी भर।


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