somya mohanty

Drama

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somya mohanty

Drama

तलाश

तलाश

18 mins
271


तलाश

- एक कदम हर सफर का -

 

ज़िन्दा एहसास में, वो लाश बन कर जिए

बिन " तलाश " गुजारे कई सफर को

बस कहीं ख़्वाब कहीं सुकून की आशा जलाए

जैसे लिखने की इजाज़त मिली हैं सिर्फ दर्द को .....(२ )


आज सूरज से पहले नींद खुल गयी। माँ आप भी उठ जाइए, कुछ बात करनी है। ‘सामरा’ उसकी माँ को उठायी। फिर चाय की दो कप के दौरान बातचीत शुरु हुई। उन दिनों रोज़ सुबह माँ से ऐसे बात करना सामरा की आदत हो गयी थी। आखिर वही तो थी जो सामरा की अपनी थी। पर सामरा की दुनिया आसान नहीं थी। ये तो doctors के instructions थे जिस पे वो अमल कर रही थी। और शायद ये उसकी मंज़िल भी थी। बातचीत ख़तम हुआ तो सामरा office के लिए निकल गयी । एक office में अच्छी नौकरी लगने के वजह से सामरा सारा घर को संभालती। पर कोई मुश्किल हालत में भी उसने हिम्मत नहीं हारी। कुछ ऐसे रोज़ काटते ज़िन्दगी में सामरा हर वक़्त मसरूफ रहती...पर जब खुद की ज़िन्दगी की बात कही जाए तब... सच्चाई कुछ यूँ थी :- - -


सामरा को, कभी कोई बात परेशान करती तो दिल से निकल के सीधे पन्नों पर उतर जाती। पन्ने...ये उसकी diary के थे। या फिर यूँ कहे की ये पन्ने ही उसकी आत्मा और वो diary उसकी ज़िन्दगी थी। जिससे, कहीं आज़ाद होने की इजाज़त तक नहीं। सामरा अपने जज़्बात को कैद किया था इस diary में। रोज़ ज़िन्दगी ऐसे गुजरती जैसे हर एक दिन वो ख़्वाहिश करे ...काश ये आखिर दिन हो माँ और मेरा। ज़िन्दगी जीना जितना आसान नहीं होता..उसे ख़तम करने की सोच उतनी आसान होती हैं। पर कुदरत के फैसले के आगे किस का चला है। “बस सोच हैं जो बिन किनारे , बहने की हिम्मत रखता है।" सामरा की भी सोच ऐसी थी।


कहते हैं ज़िन्दगी मौसम की तरह होती है। जैसे कुछ पल मन को भाए और जैसे बाकी दर्द के किताब में जफ्त हो जाए। पर दिल को तो अपने मंज़ूर की ख़्वाहिश हर बार नसीब हो ,ऐसे कभी नहीं हुआ। इसीलिए सामरा वक़्त की स्याही से अपनी किस्मत को लिखने की इजाज़त जरूर दी थी, पर खुद कहीं खो गयी थी।

आज सामरा अपने आप में कहीं खो गयी है । वो एक जिन्दा , आज़ाद दिल ,ख़्वाहिश से भरे दिल को मार दी थी। और एक जिन्दा लाश जैसे बन गयी।


सपना नैनो से दूर कहीं

              ना राब्ता की कोई उम्मीद हैं

   फलसफे ज़िन्दगी की                         

जैसे बस एक ही स्याही से अब लिखा

            जो अनचाह बेबस से मशहूर..नाम से वो दर्द है ... (२ )


हकीक़त में वजह बस माँ थी और सपनों से वो डरती थी। उस दिन सामरा शाम को आयी तो माँ की तबियत थोड़ी ख़राब थी। घर का मुलाजिम doctor को बुला दिया था। Doctor checkup कर चुके थे, सामरा को फिर माँ की ठीक होने का उम्मीद दिए और चले गए। सामरा को उस दिन रात को नींद नहीं आयी और सारी रात माँ के बारे में सोचती रही। सुबह सामरा जल्दी निकल गयी। और माँ के लिए एक assistant ले आयी। Assistant या फिर यूँ कहे माँ की तबियत का ध्यान रखने वाली। ‘जिया’ नाम की वो लड़की जब पहेली बार सामरा के घर आयी तो वो जरुरत से ज्यादा हैरान और परेशान थी। सामरा की घर का माहौल कुछ अलग था। 

“आखिर दर्द के जाले इतने गहरे हो गए थे, की हवा भी हर रंगीन आहट से मुख्तलिफ था . . .

जिया माँ की तबियत का पूरा ख़याल करती। माँ की तबियत अच्छी तो नहीं हुई थी। पर वो ठीक थी। उस दिन सामरा को office जाने में थोड़ा late हो गया । Late होने के वजह से सामरा जल्दी जल्दी में जा रही थी। पर अनजाने में ,उसकी गाड़ी का accident हो गया। सामरा को तो चोट नहीं आयी थी पर सामने वाली गाड़ी में बैठे जनाब के पैर में थोड़ी चोट आई थी। सामरा उनको ले के hospital आ गयी। Doctor ने देखा तो police भी आ गयी। Fine लगा, फिर थोड़ी देर बाद सामरा उस लड़के को यूँ ही छोड़ के office के लिए निकल ही रही थी, पीछे से doctor ने बुला लिया। आप please इनके घर पे तो inform कर दे। सामरा information लेने के लिए उस लड़के के पास गयी। बोली, आप मुझे अपना घर का number बताए। मैं घर वालो को बता दूँगी। उस लड़के ने मना कर दिया। कहा की, हम तो जिन्दा हैं, परेशान होने की कोई बात नहीं।


वैसे मैं, सुधीर और आप ? सामरा। आप खुशकिस्मत है आप को तो जरा सा भी चोट नहीं आयी। सुधीर का अंदाज़, मज़ाक करने का था। पर सामरा कुछ बोली नहीं। फिर कुछ देर बाद बोली, आप ठीक है तो में office के लिए निकलना चाहूँगी। शाम को मैं आऊंगी तब तक आपकी गाड़ी भी ठीक हो जाएगी। सामरा इजाज़त लेके आ गयी।

आज Office में दिन कुछ खास नहीं गुजरा। उसके दिमाग में बार बार accident का बात उलझ रही थी। और फिर सुधीर का वो बात। शाम हो गयी थी सामरा hospital के लिए निकल गयी। गाड़ी ठीक हो गयी।


और सुधीर को doctor कल सुबह की जाने का इजाज़त दे दिए। सामरा सुधीर से रात की खाने का पूछी, और कुछ देर बाद चली गयी। सामरा घर पहुंची माँ का हाल पूछी और कमरे में चली गयी।

जिया थोड़ी देर बाद सामरा की दरवाज़े पर आयी, तो देखी सामरा सो गयी थी। जिया कुछ बोलना चाहती थी। पर वो सामरा को देख के सोची, सुबह बात करना मुनासिब होगा।

सुबह हो गयी थी। जिया सामरा से बोली, दी मेरी शादी तय हो गयी है। मुझे कुछ दिन की छुट्टी चाहिए, कल मेरा भाई आप से बात करने के लिए आया था। पर आप तो नहीं थी। आप कल late हो गए थे ना। बस इतना कहने के बाद , सामरा बोली कितना दिन की छुट्टी चाहिए ? उसके बाद तुम को आना पड़ेगा। जिया ने हामी भरी और दोबारा आने का वादा भी की। जिया इजाज़त लेके चली गयी।


सामरा थोड़ी परेशान हो गयी थी। जिया के बिना माँ को संभालना थोड़ी मुश्किल शायद हो सकती है। यही सोच ही रही थी की, door bell की आवाज़ आई। जिया जा चुकी थी। सामरा ने जाके दरवाज़ा खोला तो सामने सुधीर था। सुधीर के हाथ में एक file थी। जो सामरा की थी। सुधीर ने सामरा को hiii कहा, तो सामरा ने जवाब में उस file के बारे में पूछी। हाँ, जी ये आपकी है। आप उस दिन hospital में छोड़ के आ गयी थी। मुझे लगा urgent होगा तो में देने आ गया। और हाँ आप का address मैने hospital से लिया। और कुछ, सामरा एक नज़र सुधीर को देखती रही और उसकी बातें सुनती गयी। फिर सुधीर ने कहा, अनजान बीमार इंसान को तो कोई भी घर बुला लेते है आप तो फिर भी मुझे जानते हैं, घर के अंदर नहीं बुलाएंगी। o sorry please अंदर आ जाए।


सुधीर का reaction जिया की तरह था, जब वो पहली बार घर आने का हुआ था। फिर भी सुधीर ने casual behave किया। सामरा ने चाय और koffee के लिए पूछा तो, सुधीर ने कहा, जो आप अच्छा बना लेती हैं। सामरा ने black koffee बना दी। फिर अचानक कुछ आवाज़ आयी, ये आवाज़ माँ की कमरे से थी। सामरा अंदर चली गयी। और माँ को सँभालने लगी। पीछे सुधीर भी आ गया था। सुधीर माँ को देख के नमस्ते किया पर माँ ने कुछ जवाब नहीं दिया। पर माँ जवाब में मुस्कुराई जरूर थी। माँ की बिन अल्फ़ाज़ के वो सूरत जैसे कुछ यूँ बयान कर रही हो..


                          कैद है कई एहसास शायद

                             आज बेवजह अनजान हवा से रूबरू हुआ हैं

                         मौका मिला हैं कुछ अल्फ़ाज़ को                            

जो कफ़न से उठ कर आज आज़ाद हुआ हैं . . .


कोई अकेले बंद चीज़ को तो एक आहट भी उम्मीद लगती है। पर सामरा की माँ तो, वो इंसान थी जो एक बुरे वक़्त से गुजर के सब कुछ खो दी थी। माँ जरूर एक खामोश कश्ती में सवार थी पर सामरा उस कश्ती को चला रही थी, इस बात का शायद उसको खबर भी नहीं थी ।

                       

सुधीर ने सामरा से, माँ के बारे में पूछने की कोशिश किया पर सामरा कुछ बताई नहीं। कुछ देर बाद सुधीर चला गया।

अकेले बेबस इंसान का जवाब, उसकी हालत होते है। सुधीर को पूरी बात तो पता नहीं था ,पर वो अंदाज़ा लगा लिया था। सामरा की ना बताने की वजह से सुधीर भी कुछ बोला नहीं। या फिर यूँ कहे की वो भी नज़र अंदाज़ करने की कोशिश कर रहा था। उस दिन बात करने के बाद, सुधीर ने सामरा से दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया पर सामरा ने इनकार में बोली थी :- - दिल को, रिश्तों की आदत नहीं और

              हसरत की तलब, ये ज़िन्दगी ने एक जनाजा पे छोड़ के आयी है। मुझे माफ़ करना।


ये बात सुधीर को वक़्त बेवक़्त परेशान करते। पर कुछ दिन बाद सुधीर को office के सिलसिले में शहर से बाहर जाना पड़ा। सुधीर तकरीबन एक महीने घर से बाहर रहा। उन दिनों सुधीर अपने काम में व्यस्त था।

एक दिन उसके घर से खबर आई, उसकी माँ की तबियत ठीक नहीं है। और अब वो hospital में हैं। सुधीर ने तुरन्त जाने का इन्तज़ाम किया। सुधीर करीब ५ घंटे बाद घर पहुंचा । फिर वो hospital चला गया । वहां माँ की तबियत पता किया और एक जगह अकेले बैठा रहा।


कुछ १ घंटे बैठने के बाद उसको कोई बुलाने का आवाज़ आया, सुधीर सुधीर। ये सामरा थी।

तुम यहाँ, क्या हुआ, are you ok ? सुधीर ने कुछ २ minute बाद जवाब दिया : - वो मेरी माँ की तबियत ठीक नहीं हैं, दो दिन से hospital में admit हैं। मैं जरा काम के सिलसिले में बहार गया था, अभी आया हूँ।

सामरा ने सुधीर के साथ थोडा वक़्त रुकने का फैसला किया, और सुधीर के पास बैठ गयी। सुधीर ने सामरा को अपनी माँ के बारे में पूछा तो, सामरा ने कहा :- मैं भी माँ की तबियत के सिलसिले में doctors से बात करने आयी थी। वैसे वो बेहतर तो नहीं, पर ठीक है। सामरा, सुधीर के पास कुछ ३ घंटे बैठने के बाद वहां से आ गयी। उस दिन सामरा काफी upset रही। दरासल उसको अपने पापा की याद आ गयी थी।


उस वक़्त सामरा hostel में थी। और पापा की खबर सुन के वो घर आयी थी। पापा दुनिया छोड़ कर जा चुके थे। और सामरा ने पहुँचने में देर कर दी थी। माँ की हालत देखने लायक नहीं थी वो पागल हो रही थी और मैं दर्द के गहराई में डूब रही थी। उस दिन से माँ की ऐसी हालत हो गयी। और मैं , मैं खुद को खो दी। सामरा ”उन पंछियो में से थी जिसको उड़ना तो आता हैं , पर उड़ने से डरती थी”।


सुधीर के माँ ज़िन्दगी की आखिरी पड़ाव पर थी। Doctors ने जवाब दे दिया। वक़्त काफी भारी गुजरा, सुधीर धीरे धीरे वक़्त के साथ सँभलने लगा था पर पापा जैसे ठीक होना ही नहीं चाहते थे।


सुधीर के माँ की इन्तेकाल का कुछ २५ दिन बाद , सामरा market में सुधीर को इत्तेफ़ाक़ से मिली थी। सुधीर का हालत कुछ ठीक नहीं था। वो माँ के बारे में बताया और अपना दर्द ज़ाहिर किया। सामरा हौसला देने की कोशिश की, बोली तुम घर आना। माँ से मिल लेना, वो तुम्हें देख के खुश होगी। ये पहली बार था की, सामरा ने सुधीर को अपने तरफ से घर बुलाया था। शायद ये सामरा नहीं, उसके दर्द ने बुलाया था सुधीर को। आखिर अपनों को खोने की दर्द वो भी जानती थी। सुधीर ने ठीक ५ दिन बाद सामरा के घर आया। माँ से मिल कर वो थोड़ा खुश जरूर हुआ था। आखिर माँ तो माँ है, भगवान भी कमाल है सब माँओं को एक जैसे दिल देके धरती पे भेजा है। इसीलिए तो वो बिन कहे वो दर्द समझ जाती। पर सामरा की माँ ऐसी नहीं थी। वो थोड़ा बात जरूर करती है। पर दूसरों के दिल की हालत अब वो समझना बन्द कर दी हैं। जैसे उस भगवान से शिकायत कर रही हो : -"आप मेरे दिल का इलाज, मेरे धड़कन का इलाज जब तक नहीं करेंगे। ये किसी का भी बात नहीं सुनेगी।


सुधीर उस दिन चला गया। पर अपने एहसास को वो छोड़ गया था। जैसे कह रही हो, मुझे माँ और कुछ दिन नसीब होते तो शायद मेरा ज़िन्दगी के ख़्वाहिश पूरे हो जाते। वो एहसास सामरा समझ गयी थी या फिर यूँ कहे की वो एहसास सामरा को तकलीफ देती थी। किसी का दर्द को पता कर के, बस वही दर्द के साथ जीना आसान नहीं होता। सामरा के साथ भी वही हुआ। इसीलिए वो सुधीर को फिर से बुला ली। दर्द में अकेले जीने से बेहतर, उसको साथ जीने में है। सामरा ने सुधीर को बुला तो दी थी पर वो आया नहीं। उसको अपने घर और office भी संभालना था। उसी में वो मसरूफ रहा।


एक दिन सामरा ने बेचैन हुए आवाज़ में सुधीर को call किया। बोली, माँ तुम्हें याद कर रही है। वो hospital में हैं। please तुम आ जाओ। सुधीर को लगा जैसे वो अपनी माँ को और एक बार खो देगा। वो सब कुछ छोड़ के फ़ौरन निकल गया। कुछ देर बाद सुधीर माँ से मिला। सुधीर को देख के माँ कुछ बोलने लगी या फिर यूँ कहे वो चिल्ला रही थी, वो चीख रही थी। मुझे यहाँ से ले चलो। जैसे “कोई मुजरिम अपने सजा पूरी होने पर भी सजा काट रहा है” , उनकी आवाज़ में वैसी दर्द थी। सुधीर माँ के पास बैठा। कुछ बात किया और कुछ देर बाद बहार आ गया। बाहर वो चुप चाप बैठा रहा। सामरा से कोई बात नहीं किया।

कुछ दिन बाद माँ ठीक होके घर आ गय । एक दिन सुधीर, सामरा को call कर के बुला लिया। उसके आवाज़ में परेशानी थी। इसीलिए सामरा बिना वजह पूछे ही, हां कर दी। उस दिन सुधीर एक सवाल बन कर आया था, सामरा के लिए। जैसे पूछ रहे हो मुझे वो हर हालात को महसूस करना है, जो माँ पे गुजरी है। मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए पर तुम्हारी माँ को देख के मुझे परेशानी होता हैं। उस दिन hospital में वो जैसे बोली, मुझे तब से चैन नहीं है। मुझे हर रात वो बात परेशान करता है। शायद तुम्हारी माँ को देख के मुझे लगता है, मैं अपनी माँ को और एक बार खो दूंगा।


इसमें तुम्हारी या फिर कसूर माँ की भी नहीं हैं। कसूर तो उस रब का है । Please help me . सामरा ना चाहते हुए भी, सब बात सुधीर को बताना पड़ा। सामरा ने माँ का दर्द तो ज़ाहिर कर दिया पर अन्त में बोली माँ की ठीक होने की सही दवा मुझे आज तक पता नहीं चली। अब तो तुम भी एक हिस्सा बन गए हो। अगर दवा मिल जाए तो बताना। और सुनो, वैसे मेरा मानना है की "दर्द से अनजान हो कर जीना बेहतर होता हैं “,अगर उसकी इलाज नहीं है तो। वरना ऐसे, ये पूरे दिल को खाने की हिम्मत रखती हैं। इतना कह के सामरा वहां से चली गयी। पर कई उलझन के साथ सुधीर को छोड़ गयी। सुधीर खुद से ही सवाल जवाब में उलझा रहा। आखिर में उसको एक हल मिल ही गया। Hospital में वो आवाज़ और सारा वाकया को सोच के सुधीर ने सोचा शायद माँ को खुली जगह की एहसास चाहिए। दूसरे दिन सुधीर, सामरा की घर पहुँच गया। जिया से कह के वो माँ को बाहर लेके चला गया, जिया भी साथ गयी। पर अंजाम कुछ खास नहीं मिला। हालात, ना ठीक हुई ,ना तो कुछ बुरा हुआ। सुधीर थोड़ा मायूस हुआ था ,उस दिन। इसीलिए वो सामरा से भी कुछ बात नहीं किया।


एक दिन इत्तेफ़ाक़ से सुधीर अपने किसी दोस्त के साथ सामरा के घर आया था, जब सुधीर माँ से मिलने गया तो उसका दोस्त “नमन” भी साथ हो लिया। पर एक चीज़ देख के सुधीर हैरान हो गया, ये बात तो सामरा को भी पता नहीं था। असल में, माँ जिसे भी मिलती है उनके आँखों में गौर से एक नज़र देखती रहती। जैसे हर अनजान चेहरे में कुछ “तलाश” कर रही हो।


सुधीर माँ को समझने लगा था। पर उतना नहीं जितना उनको चाहिए था। बस सामरा से थोड़ा ज्यादा। सुधीर घर से office के लिए निकल रहा था। पापा से मिलने गया तो पापा की हालत कुछ ठीक नहीं था। माँ के जाने के बाद पापा कुछ खामोश हो गए थे जैसे किसी को गुज़ारिश कर रहे हो...


           ले जा मुझे भी उस और

                            जहाँ इंतज़ार कर रही मेरे पिया हैं                    

           में सूखा यहाँ निशब्द हो रहा

                            मुझे जान से ज्यादा अपनी मौत में सुकून हैं …… (२ )


प्यार भी क्या कमाल बनाया कुदरत ने एहसास ऐसी है जो एक डोर में बंधे मोती जैसे। अगर एक भी मोती कम पड़ जाए तो उसको सजाना, मुश्किल हो जाए।

ज़िन्दगी में हम कुछ खोने के बाद उसको याद करते हैं, उसको हर शख्स में ढूंढते रहते हैं। या फिर वही ग़म में डूबते रहते हैं ।

पर क्या यही, सही इन्साफ़ है? ?

क्या खुद की ज़िन्दगी के तरफ, ये सही मंज़िल है ? ? ? ?

 

सुधीर उस दिन office से जल्दी आ गया था और सामरा के घर चला गया। सामरा घर पे नहीं थी। जिया दरवाज़ा खोली थी। और सुधीर को अन्दर आने का कहा। काफी देर माँ के पास बैठने के बाद माँ नींद से जग गयी थी। पर इस बार सुधीर को देख के माँ खुश नहीं हुए। इस बार सुधीर हैरान था। माँ की ओठों पे जो बची हुई थोड़ी मुस्कान थी। वो कहीं चली गयी थी। कुछ देर बाद सामरा आ गयी। दोनों ने साथ चाय पिए ,और कुछ देर बैठ के बात भी की। इतने में door bell बजने की आवाज़ आयी।

सामरा खोलने गयी तो, सामने “चिराग” था। चिराग सामरा की office में काम करता है। चिराग के हाथ में फूल और शादी का कार्ड था। चिराग बहुत जल्दी में था, देखो अब तो में घर तक आ गया और ये फूल देखो खास तुम्हारे लिए। इस बार मान जाओ। सब आ रहे हैं, तुम भी मान जाओ । Please , मुझे अच्छा लगेगा। तुम आ रही हो ना, please yaar . सामरा के पास कोई choice नहीं थी। उसको हाँ करनी पड़ी। चिराग ने इजाज़त लिया और तुरन्त चला गया।


सुधीर ने पूछा कौन था, सामरा कुछ कहने से पहले वहाँ माँ आ गयी थी। पर माँ उस फूल को देख के ऐसे react किया, वो हैरान करने वाली थी। फूल, ,white roses थे और माँ के लफ्ज़ :- फूल...खुसबू...सफ़ेद रंग .. कुछ ऐसी थी। माँ ऐसे बोलते बोलते बेहोश हो गयी थी। जिया माँ को अंदर ले गयी।


Doctor आ गए थे। माँ को देख कर खुश हुए। बोले ये पहले से काफी बेहतर हैं। सामरा doctor को पूरी बात बताई । Doctor बोले इन्सान की कई ऐसी यादें रहती है, ”जो जीते जी मरने को मजबूर कर दे” और कई ऐसे “जो मरते मरते भी जीना सिखाए” जीने की उम्मीद दिलाए। आपकी माँ की दूसरा case हैं। शायद आपकी माँ की कोई याद हो उन फूलों के साथ। और ये फूल ही उसकी शुरुआत हो। आप “तलाश” करे वजह क्या है। अगर आप कामयाब हुई तो, आपकी माँ फिर से जीने लगेंगी । फिर से उनकी मुस्कान वापस आ सकती है । आप कोशिश करे। ALL THE BEST ...


Doctor चले गए, सामरा ने सुधीर से बात की। सुधीर के दिमाग में एक सुझाव आया था। फिर सामरा से बोला, क्यों ना हम लोग वही फूल से घर को decorate करे। शायद माँ को अच्छा लगेगा। सामरा ने गुस्सा हो के बोली..एक बार माँ बेहोश हो चुकी हैं, और तुम कह रहे हो .. पूरा घर नहीं ,इसमें कुछ फायदा नहीं हैं। अगर हम वजह तलाश करे तो बेहतर होगा। सुधीर ने कहा वजह अगर जान ना इतना आसान रहता तो तुम पहले जान चुकी होती। ये तुम्हारे बस में नहीं है, तुमसे नहीं होगा।

 

देखो ,अगर ज़िन्दगी उम्मीदों का नाम हैं, तो मेरे बात सुन लो। इन्सान किसी की यादों में जा नहीं सकता पर उस याद से जुड़ी एहसास को तो महसूस कर सकता हैं। इसीलिए तुम भी महसूस करो..अपनी माँ को समझने की कोशिश करो,”तलाश” करो। 


सुधीर मुश्किल में था..एक तरफ सामरा की माँ उम्मीद जोड़ ने के लिए मजबूर कर रही थी और एक तरफ अपने पापा ,ग़म से दोस्ती कर लिए थे। सुधीर एक दिन office में जाके सारी meeting cancel कर दिया। और चुप चाप बैठा रहा। अब सुधीर भी हर वजह को“तलाश” रहा था।

 

आज यही एक वक़्त हैं जो सब एक “तलाश में हैं पर...अंजाम किसी को पता नहीं।

आप सोच रहे होंगे मुझे ये कहानी कैसे पता . . .

मुझे ज़िन्दगी ने गढ़ा हैं और मैं शायद सबके पास हूँ भी,और शायद नहीं भी। मैं “तलाश” हूँ। मुझे सामरा ने अपने diary के पहली पन्ने पर लिखा हैं। मैं उस “तलाश” का पन्ने हूँ ,जिसे सामरा की जज़्बातो ने बयान किया हैं। पर आज कल वो मुझे तनहा छोड़ दिया है। एक वो वक़्त था जब सामरा रात को मेरे साथ थी। पर आज कल वो मसरूफ रहने लगी हैं। “ पर मेरी शिकायत, हर उस सामरा से हैं जो मुझे बस कुछ पन्ने में कैद करतीं हैं,  मुझे क्या बस कुछ पन्नों में कैद करना इंसाफ हैं? ? क्या मुझे आज़ाद होने की इज़ाज़त नहीं ? ?


असल में उस दिन के बाद सुधीर जो “तलाश” कर रहा था। अचानक किसी की यादों ने उसे जवाब दिया था। सुधीर को, माँ की कही हुई एक बात याद आ गयी थी। माँ ने कहा था, बेटा "दर्द और उम्मीद एक दूसरे की हमसफ़र होते हैं " मेरी ज़िन्दगी अब दर्द देने लगी हैं। पर तू मेरा उम्मीद हैं जिसे देख के, ये दिन रात कट जाती है।

 

यही बात यादों में तैर रही थी और सुधीर को एक तरफ अपनी पापा दिखाई दिए,”जो दर्द से जुड़े थे” और एक तरफ सामरा की माँ,”जो उम्मीद से जुड़ी थी।" सुधीर तुरंत घर की तरफ निकल गया। पापा को हाथ में एक white roses का गुलदस्ता देके ,जैसे तैसे सामरा की घर जाने के लिए मना लिया।

 कुछ देर में सामरा खामोश थी पर, सुधीर का तरकीब सच में रंग लाया था। माँ को शायद वो एहसास मिल गया था। जिसे वो ढूंढ रही थी। सुधीर के पापा माँ के दोस्त बन गए थे। जिसे देख कर सामरा को एहसास हुआ , "दर्द को समझने की हिम्मत शायद सबके पास होगी . . .पर उससे साथ सँभालने की हिम्मत सब के पास नहीं होती। शायद ये एक ही कश्ती में सवार दिल ही समझ सकता हैं। 


कुछ दिन ऐसे गुजरे और माँ बेहतर हो रही थी। उस फूलों के साथ जुड़ी याद सामरा को पता नहीं थी पर जो यादें अब बन रही थी वो उसे सुकून दे रही थी। माँ जीने लगी थी और साथ में सामरा को भी जीने की चाहत दे रही थी।

 आज सामरा मुझे सब कुछ बताने आई हैं , जब से मुझे वो छोड़ के गयी थी। यक़ीनन आज सामरा बेहद खुश थी।


एक महीने बाद सामरा की शादी थी , सुधीर के साथ और वो ख़ुशियों की राहों पर चलने लगी थी बस मुस्कुराहट को साथी बना के। और मेरा सफर को वो आज ख़तम करने आयी थी।

इसीलिए मुझसे वो आखिरी बार मिलने आयी हैं।

" पर क्यों सामरा जैसी हर वो शख्स मुझे बस दर्द का साथी बनाते है,ख़ुशियों का हिस्सा नहीं ". .


 क्यों मेरे किस्मत सिर्फ काजल भरे उन आंसुओ की स्याही से लिखा जाता है, कभी मुस्कुराते होठों की वो लाल lipstick में नहीं ? ?

 सब इनसान मुझे यहाँ दर्द में वज़ह बना कर जरूर नाम देते है...पर ख़ुशियों में आरज़ू बन कर क्यों नहीं ...


 मैं एक "तलाश" हूँ

एक हिस्सा नहीं सिर्फ दर्द का

में एक जवाब हूँ कई अल्फ़ाज़ का

हाँ...मुझे साथ जीने दे ...मुझे साथ जीने दे .....

                                        

                                           

ज़िन्दगी के हर सुकून में

आज़माइश हर कदम का

मुझे सफर का मंजिल बनाना सिख ले तू

हाँ...मुझे साथ जीने दे ...मुझे साथ जीने दे .....


नहीं में एक आँसू की हिफाज़त करूँगा

वजह भी बन जाऊंगा हर मुस्कराहट का

गले लगा के, एक बार दिल में तू रख

मुझे जीना हैं तेरे साथ, हाँ मुझे साथ जीने दे ,मुझे साथ जीने दे ....






 








 




 













 






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