“एक पल की ज़िन्दगी”
“एक पल की ज़िन्दगी”
शाम हमेसा संदली की ऐसे ही बातों से गुजरते। उस्से तकलीफ नहीं देते थे पर ये बातें सुनने की आदत जरूर हो गए थे।
आज ४ शाल हो गए ,,,इस दिन संदली हमेसा घर पे रहती है। आखिर ४ साल पहले ,ऐसा नहीं था।
नंदिनी घर पे आ गयी थी। नंदिनी संदली को सोते हुए देख उसको उठना मुनाशिब नहीं लगा। क्यों की नंदिनी जानती थी आज संदली कही नहीं जाएगी। वो सुबह आज देर से उठेगी। आखिर नंदिनी ही तो थी इस अनजान सेहर में और बेजान घर में जो उसकी ख्याल करती थी। संदली ,,,नंदिनी को कुछ बोलती नहीं थी पर नंदिनी उसको अपना बेटी की तरह मानती और उसकी ख्याल करती। नंदिनी को ऐसा करना अछा लगता था,,आखिर वो एक बेटी की माँ बने ये ख्वाइश जो वो पूरी कर लेती थी। नंदिनी अपना काम ख़तम की। घर में बिखरे सारा सामान अपनी जगह ले ली थी। और खाना का खुसबू घर में फेल गया था। नंदिनी संदली को उठाने आ ही रही थी की संदली की आंख खुली थी और वो बिस्तर में लेटी हुई कुछ सोच रही थी। नंदिनी की आवाज़ से ,,संदली की ध्यान टूटी। और खयालो से बाहार आयी। ये पहली बार ऐसा नहीं था। इसीलिए नंदिनी ने बिना पूछे ही अपनी बात कहने लगी ,, संदली ..बेटा मेने सारा काम कर लिया है। तुम देख लो ,,और कुछ चाहिए तो बोल दो। संदली रसोई की तरफ बढ़ गयी। देखि तो खीर बना हुआ था। संदली ने हर साल की तरह बोलना सुरु कर दी ,,,,आप फिर से खीर बना दिए। ये क्या है दी आप इतना सब कुछ क्यों करती है। नंदिनी ने बात को काट ते हुए बोलने लगी ,,हाँ तो क्या हुआ। थोड़ी मीठा सब में होना चाहिए। ज़िन्दगी में ना सही खाना में तो डाल ही सकते है। वैसे भी रोज़ कहा खीर बनता है। मेने इतने प्यार से बनाये तुमको खाना पड़ेगा।
संदली, नंदिनी की बात सुन के अपने खयालो में फिर से डूब गयी थी। वो कुछ सोची और फिर हस दी। बोली की ये खाने की खीर सच में ज़िन्दगी की मिठास होती तो में इसे रोज़ खाती। बेटा मेरे कहने का मतलब तुमको दुखी करना नहीं था ,,,दी तुम ये खीर अपने साथ लेके जाओ ,, निचे बचो को खिला देना।
नंदिनी चली गयी। नंदिनी ने और कुछ बोलना ठीक नहीं समझी। तो वो घर से आ गयी। जानती थी संदली की हालात ..इसीलिए चुप रही। आज कोई पहली बार नहीं था ,,ये ३ साल में कई बार ऐसे हो चूका था। नंदिनी , संदली को वक़्त के साथ समझने लगी। कहते है ... गहरा जख्म है जिस दिल में वो मुस्कान झूटी होती है राज़ है ।अगर धड़कन में तो ऑंखें सचाई बयां करती है, ,
कितने भी छुपाए आंसू ,
ना रुके कभी उस आँखों से (२ )
है फासले, कभी है दरमियान
चलती रहे बस खुद से खुद की जंग में......
संदली भी कुछ ऐसी थी। बहत सारे दिल में राज़ लिए खुद से दूर रहने वाली। संदली पहले अपने फ़ोन में कुछ करने लगी। वैसे देखा जाए तो आज के ज़िन्दगी में सबसे बड़ा दुसमन फ़ोन ही रहता हैं। अपनों से दूर करने की एक आसान तरीका। पर यूँ खाली बैठे time pass में सब से बड़ा साथी। बस संदली फ़ोन में कुछ देख ही रही थी की अचानक से एक तस्वीर संदली को कई सवाल में डाल दी। ये तस्वीर थी उसकी घर की सदस्य की। ये तस्वीर थी उस प्यार की जो कभी मम्मी पापा उसे किया करते थे। तस्वीर ५ साल पुराना एक family function की थी। उसको याद हैं कैसे उस दिन मन ही मन वो दुसरो से अलग हो गयी थी। दरासल family function के कारन घर पे कई लोग जमा हुए थे। और बातों ही बातों में संदली की सादि का बात एक एहम मुद्दा बन गया। सब कोई अपने अपने पहचान की कुछ लड़को की बढ़ाई करना सुरु कर दी। उस साल संदली को २५ साल पुरे हुए थे। पर संदली सादी नहीं करना चाहती थी। वो बोलती थी नौकरी करेंगे तो सादी करेंगे नहीं तो नहीं करेंगे। पर उस दिन के बाद सब ने लड़का देखना सुरु कर दिया। कई नाकमियाबी के कारन, संदली हर बार कुछ नौकरी से selection होने में बच जाती। ऐसे नहीं की संदली अछि student नहीं है। पर अब बहत हो गया था। संदली को पता था, की मम्मी उसकी बात थोड़ी सुन भी ले पर पापा कभी नहीं सुनेंगे। ऐसे कुछ दिन बीते ,,और संदली परेशानी में अपनी मन की बात अपने मन में रखली। तब से संदली ने private job ढूंडने की कोशिस में लग गयी। वो और कुछ दिन भी नहीं wait करना चाहती थी। वो घर छोड़ने की फैसला जो कर ली थी।
उसकी फैसला वक़्त के मुताबिक सही था। पर वो जभी हस्ती खेलती परिवार देखती। उसके आँखों में ऑंसू आ जाते। और वो यही आँसू छुपाने की कई नाटक कर लेती। ऐसे २ महीने बीते और नयी साल की आगमन के लिए घर पे फिर मेहमान इकठे हो गए थे। और सादी की बाद फिर से चलने लगी। संदली की फैसला उसको सब से अलग तो करेगी पर वो खुद अपनी ज़िन्दगी जी पाएगी। ऐसे सोच के एक दिन रात में सब के सामने वो अपना फैसला सुनाई। एक पल के लिए तो सब सोचे संदली मजाक कर रही थी या फिर बहत गुस्से में बोल रही थी। पर संदली इस बार कोई मजाक करने की हाल में नहीं थी। वो बोली माँ पापा मुझे सादी नहीं करनी। में अपनी ज़िन्दगी में पहले नौकरी कर के जीना चाहती हु। मुझ से ये सादी नहीं हो पाएगी। पापा मुझे माफ़ कर दीजिये। आप चाहते थे की में सरकारी नौकरी करू ,,,में आपका वो सपना पूरा नही कर पायी।
इसीलिए में आपको और इतनी तकलीफ में नहीं देखना चाहती। में खुद नौकरी कर के खुद को संभाल लुंगी। आप उसकी फ़िक्र ना करे। पापा बोले बेटा और कितना दिन।
अब तो तुम्हारी उम्र भी हो गयी है। और वैसे भी मेरे पास और हिमत नहीं है तुम्हे वक़्त देने की। इसीलिए सादी तो होकर रहेगी। ऐसे ही बेहेस उस दिन संदली को हर तरफ से घेर लीए। और संदली घर छोड़ के आ गयी। उस दिन उसको कोई नहीं रोका। पापा बोले करने दो अपने मन की आखिर। ये बात अभी संदली के कान में गूंजती थी। उस दिन के बाद संदली एक private college job join कर ली थी। और अकेली कुछ दोस्त के साथ रहने लगी। पर वक़्त के साथ संदली की नौकरी में तरक्की हुई तो ,,, उसने एक घर ले लिया और कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा। आज वही दिन है जिस दिन उसने घर छोड़ी थी। संदली अपने सपने पुरे कर लिए थे। और अछि पगार मिलने की कारन उसको कभी पैसो की कमी नहीं लगी। और वक़्त के साथ साथ उसने खुद को संभालने लगी थी। कभी कभी मम्मी पापा की याद उसको कमजोर ,,एक छोटे बचे की तरह कर देते। पर फिर वो अपने आप को संभालती और उसकी आंसू को हाथ में लिए कभी न बरसने की वादा करती। पर वो वादा अब तक टूटते आ रहे है। ऐसे तो नौकरी के दिन सही है पर छुट्टी के दिन उसने आंशुओ के ही घेरे रहती। आज भी ये बातें याद करते हुए उसके आँखों से आंसू आ गए थे। अकेले संदली खूब रोती और फिर चुप हो जाती। बेसक आज वो एक अपनेपन की प्यार तलाशे अपनों ही रहती है पर नंदिनी उसी कमी को पूरा करने में लग जाती है। और उसको ये अछा लगता। इसीलिए उनको दी कह के पुकारती और बड़ी दी के तरह मानती भी। घर को कैसे सजा के रखना है ,,,कैसे खुस रहना है ऐसे बहत कुछ सिख ली थी। पर घर की कम्मी हमेसा उसकी दिल में रही।
संदली इस दिन को भूलना चाहती थी ,,,इस दिन को कोई खुशियां की दिन पे याद रखना चाहती इसीलिए इस दिन को वो अपने घर पे call करती। और सब कुछ ठीक हो जाने का दुआ करती। हर साल की तरह आज भी संदली घर पे फ़ोन करने वाली थी। वो हमेसा शाम को call करती,,, पापा की एक आवाज़ सुन ने के लिए। संदली बेसब्री से शाम का इंतज़ार कर रही थी। दोपहर हो गया था ,,, संदली थोड़ा कुछ खाना खाके आराम करना चाही। पर अचानक से संदली की फ़ोन की घंटी बजने लगी। संदली देखि तो किसी अनजान नंबर से call था। वो call receive करने को बस जा ही रही थी। की call disconnect हो गया। फिर door bell की घंटी बजने लगी। दरवाजे पे समीरा थी। वो बहत घबराई हुई थी। पूछने पर पता चला की असित का accident हो गया है। समीरा और असित दोनों भाई बेहेन थे जो अनाथ थे। और संदली के साथ काम कर रहे थे। संदली असित को कही ना कही पसंद करती थी। पर आज तक ये बात कोई नहीं जानते थे। संदली ,समीरा के साथ hospital चली गयी। परिवार के प्यार में उसको इस घर पे आज बंद होने के लिए मजभूर किया था पर सायद असित के लिए संदली के प्यार ने ये बंधन खोल दिया था।
Hospital में काफी देर तक operation चलता रहा। शाम हो गयी थी और असित अब खतरे से बहार था। अचानक संदली को एहसास हुआ की वो आज के दिन घर से निकलती नहीं है,,,,पर फिर भी आ गयी। उसको एहसास हुआ की वो असित से कितना प्यार करती है। असित होश में आ गया था। संदली मिलने के लिए अंदर गयी तो देखि असित ने उसको एक नज़र देखता रहा । संदली असित से उसका हाल पूछा तो। असित ने टोक दिए। असित बोला आज वही दिन हैं ना जब तुम घर से भी बहार नहीं निकलती।
तुम मुझसे प्यार करते हो संदली। और कितना दिन तुम यूँ सबकी बातें सुन के खुद को तकलीफ देते रहोगे। प्यार छिन जाने का ये मतलब नहीं की तुम किसी से प्यार नहीं कर सकती। तुम्हे पूरा हक़ हैं प्यार करने का। Please ,मान जाओ।
उस दिन असित ने अपने लफ़्ज़ों में कैद कर दिया और में वहाँ से चली आयी। फिर दूसरे दिन शाम में वही बातें मुझे फिर से सुन ने को मिली थी। में असित से सादी करना चाहती थी। पर मुझे घरवालों की वो प्यार अधूरा और रोक के रखा था। असित ने हस्पताल से आके सीधे मेरे पास आ गया। असित ने मुझे फिर से सादि के लिए कहा था। इस बार में मना तो नहीं की पर मैंने अपने दिल की बात बताई थी ,असित को। असित के घर से ,संदील के घर पे रिश्ता गया। असित काफी उम्मीद और हिम्मत लेके उसकी घर गया था। दोपहर तक असित के घर वाले पहुंचे थे। पर असित के नज़र में कुछ ऐसा आया। जिस से उसका भी उम्मीद टूट रहा था। संदील के पापा की रबैया ऐसा रहा जैसे उनकी बेटी उनके लिए मर चुकी थी। संदील के मम्मी की एक महीने पहले इन्तेकाल हो गया था। उसके पापा बोलते गए जो अपने माँ को मार दी।
वो क्या किस घर को संभालेग। असित और उसके घर वाले वहाँ से आ गए। और संदील को असित ने सब कुछ बताया। माँ की खबर सुन के संदील टूट गयी। वो बेदर्दी से रोने लगी। संदील ने असित के मम्मी पापा का राय पूछी तो असित चुप हो गया। असित बोलै ,तुम्हारे पापा बोलते है तुम जिस घर जाओगी वहाँ कुछ अच्छा नहीं होगा। पर संदली प्यार तो हम एक दूसरे से करते हैं। मुझे किसी का फ़िक्र नहीं हैं। तुम मेरे घर नहीं आ सकती। में तो तुम्हारे घर आ सकता हु ना। संदली रो रही थी और असित ने उसको अपने बाँहों में ले लिया। करीब १ महीने के अंदर असित ने संदील से सादी कर लिया था। और दोनों एक साथ संदील के घर रहते थे। संदील के सादी पर सब से ज्यादा खुसी जानकी आंटी को हुई थी। बेरंग के दुनिया के हर इंसान जैसे रंग का अहमियत समझता है ,उस्से चाहता हैं। कुछ इस तरह के अनुभब लिए जानकी आंटी बोले थे , ,हर इंसान के ज़िन्दगी रंगो का हक़दार होता है बेटी। और हम कौन होते है ये फैसला करने वाला। सब ऊपर वाले का निराला लिला हैं। तुम इस रंग को कायम रखना। सादी के बाद ये पहली शाम थी जहाँ जानकी आंटी ने बोले थे।
हैं रंग अनेक इस ज़िन्दगी में
सिर्फ तुम आज़माने की कोशिश करना
बेसुमार दर्द भी मिलेंगे राह हैं
आंसू से नहीं अपने मुस्कान से तू इसकी नक्से पर चलना
कही ठोकर भी लगेंगे ,
कही फूल की बारिश होगा
स्वागत तू बरक़रार रखना बस ,
हल देखना कैसे यूँ निकलेगा (२ )
सब लोग जानकी आंटी के बातों पे जोर जोर से है पड़े। और मैं बस इन खुशियों की पल को जी रही थी।
