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Om Prakash Gupta

Inspirational

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Om Prakash Gupta

Inspirational

स्वर्गादपि गरीयसी

स्वर्गादपि गरीयसी

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स्वर्ग क्या है ? इस प्रश्न के उत्तर को किसी उत्तर की सीमा में बाँधना हम अपने को असम्भव समझते हैं I हमें लगता है कि हम भी एक बच्चे की तरह  हैं I हमें जितना ज्ञान होता है उसी में सारा संसार और ईश्वर को भी उसी सीमा में समझ लेते हैं I जहाँ तक हमारी समझ है, उसके अनुसार स्वर्ग का अर्थ गरीबी या अमीरी से नहीं होता I यह एक वैचारिक अवस्था है, जिसके अनुसार सबको अपने स्वर्ग और नर्क दिखते हैं और कुछ सदैव आँखें बंद किये सोचते रहते हैं कि किस बात का स्वर्ग और का नर्क ? जो है, सो अभी है I हमारे विचार से कभी कभी कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जहाँ तर्क नहीं चलता I हम जो नरक और स्वर्ग समझते हैं वह साक्षात कुछ नहीं होता, वरन हमारे कर्म और जीवन को व्यतीत करने का तरीका तदनुसार प्रतिक्रिया स्वरूप मनोभाव अतिरेक ही हमारा नरक व स्वर्ग का अनुभव कराते है I समाज में ऐसे कुछ व्यक्ति हैं जो नरक में रहते हुए अपने को स्वर्ग में रहना महसूस करते हैं और कुछ स्वर्ग में रहते हुए स्वयं को नरक में रहना समझते हैं I 

      प्राय: यह बुजुर्गों से सुनते हैं कि हमें तो पैदल चलने में स्वर्ग का आनन्द आता है प्रात: ठंडी ठंडी हवा का वदन पर स्पर्श, चिड़ियों की चहचहाहट, पैरो को चूमती रास्ते की शीतल मिट्टी की पगडंडियां, खेतों के पास से गुजरने पर मौसमी फसलों से गुजरकर आने वाली महक, उड़ती और बैठती हुई रंग बिरंगी तितलियों की कलायें हमारी आत्मा को आनन्दातिरेक से भर देती है, तुम्हें भले ही कार के लम्बे ड्राइव, उसमें फैल रही  इत्र की सेंट और चलते ए0 सी0 की ठंडी हवा, समुद्र के किनारे उठती गिरती लहरों से अपने को आत्मा विभोर अनुभव होता हो I सच कहें, तो हम सबके जीवन निर्वाह पद्धति ही 

नरक और स्वर्ग है जो व्यक्ति विशेष की सोच और भावुकता पर आधारित है इसकी तुलना किसी प्रकार और किसी भी अवस्था में एक दूसरे से नहीं की जा सकती I  

      मैं व्यक्तिगत तौर पर ममतामयी माँ के अंक को स्वर्ग समझता हूँ, इसके अतिरिक्त जब मेरा साथ किसी सत्पुरुष (सत्संगति) से हो जाती है Iएक अबोध बच्चे के लिए माँ का पूरा वजूद स्वर्ग से बढ़कर है, गर्भावस्था में बालक अपनी के रक्त से शैशव अवस्था  में मां के स्तन से भोजन करता है I इस प्राणी जगत में सबसे उदार हृदय माँ का होता है जो अपना वात्सल्य निस्वार्थ रूप से अपनी संतान पर उडेलती है Iमाँ अनंत शक्तियों की धारण करती है Iउसके पास रहकर सेवा करने पर उसके शुभाशीषों से जो आनंद मिलता है, वह अवर्णनीय है I माँ वह पगडंडी है जिसकी आदर्शिता पर चलकर बालक अबोधता से बुधत्व की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरता को पा जाता है Iतभी तो उसके होंठों और हृदय में "मां" परमात्मा का नाम होता है I हमारा मानना है कि व्यक्ति की जीवन यात्रा में यौवन ढल जाता है, प्रेम में म्लानता आती है, मित्रता में पतझड़ आ जाता है, परन्तु माँ की गुप्त आकांक्षा इन सबके पश्चात भी जीवंत रहती है, तभी तो उसके स्पर्श मात्र से व्यक्ति के मानस में एक नई उर्जा का संचार होता हैI 'माँ' शब्द आत्मीयता का बोध कराता है यही कारण है कि हम अपनी जन्मभूमि को भी मातृभूमि का दर्जा देते  हैं I ये व्यक्ति के जीवन की वह अनमोल निधि है जिसके समक्ष समस्त ब्रम्हाण्ड के सुख नगण्य हैं I हमने यह अनुभव किया है कि उसकी ममतामयी गोद में वह सुकून है जो आज तक न किसी मन्दिर, मस्जिद ,गुरुद्वारा या चर्च में नहीं मिल सका बल्कि इसमें सारी व्यथाओं को दूर करने की क्षमता रखती है, अत: उससे अधिक विशाल हृदय इस संसार में असंम्भव है I

       माँ वह शीतल आवरण है जिसकी सुखद अनुभूति हमारे दुख की तपिश को ढँक देती हैI उसका अस्तित्व में होना ही हमारे जीवन के हर संघर्ष को जीतने का संजीवन देता है I इसकी गहराई , विशालता को सीमा में बाँधना सम्भव नहीं है I वह एक ऐसी अनोखी शिल्पकार है जो  अपने रक्त देकर अपनी संतान को आकार देती है, इसी प्रकार मातृभूमि भी अपनी सीना फाड़ कर अनाज के दाने निकालती है जिससे वह अपनी जातक को ताउम्र भरण पोषण करती है I माँ और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से बढ़कर है क्योंकि दु:ख पीड़ा से व्यग्र मनुष्य जब अपनी माँ की गोद में माथा टेकता है तो उसकी सारी पीड़ायें समाप्त हो जाती है,  हम चाहे जितना देश विदेश और तीर्थ यात्रायें कर लिया जाय पर अभी तक सुकून न किसी मंदिर , न मस्जिद, न गुरुद्वारे, न चर्च में मिला जो माँ की गोद में मिलता है, इसका कारण यह है कितनी भी गलती हो जाये ,माँ के लिये उसकी संतान सही होती है, दुनिया, व्यक्ति की गलती को कभी माफ नहीं करती है, एक माँ ही होती है जो आजीवन अपने संतान की गलतियों को माफ करती जाती है I तभी तो वह अपनी माँ की गोद में आँख मूँदे स्वर्ग के सपने देखता है I उसके लिये उम्र भले ही बुढापे तक ले जाए , पर असली सुकून तो उसको माँ की गोद में ही मिलता है I वास्तव में माँ ,घर की सारी वस्तुओं और भावनाओं को सम्भालती हैं ,एक माँ पिता की सच्ची खुशी उसके संतान की खुशी में होती है Iकिसी ने सच कहा है कि इस संसार में बिना लालच के कोई प्रेम करता है तो वे माँ पिता ही होते है I कहावत है -

        " जब हम स्वर्ग की बात करते हैं,

          तो मैंने माँ में खूबसूरत जग देखा है, 

          माँ ने जब  मेरा सिर सहलाया,

          फिर उसे खुदा से बढ़कर देखा है II

     इस जीवन की रास्ते में चलते चलते अपने से कोसों दूर चला गया हूँ, मन करता है कि माँ कहीं मिले तो उसकी उँगलियाँ पकड़ फिर से वो नादान बन जीवन जी लूँ I हमारी समझ से  माँ शब्द में सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड और संरचना  की उत्पत्ति का रहस्य समाया है I



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