Om Prakash Gupta

Inspirational

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Om Prakash Gupta

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स्वर्ग से ऊंचा,पिता का पद

स्वर्ग से ऊंचा,पिता का पद

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      पौराणिक कथा के अनुसार ,विमाता सुरुचि से तिरस्कृत हुए बालक ध्रुव ने अपनी माता से पूछा कि ऐसा कौन सा पद है जो राजा की गोद से भी महत्वपूर्ण है ? माँ ने उत्तर दिया वह राजा की गोद ( पिता की गोद)पद तो आकाश से ऊँचा पिता का स्थान होता है पर परमपिता का स्थान पिता की गोद से भी अधिक ऊँचा और परमानन्द दायक है I यह गोचर और अगोचर सार्वभौमिक नियमों का निर्माता है I यह एक ऐसी अनिर्वचनीय पगडंडी है जिसके बिना सृष्टि के अस्तित्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती Iआविष्कार किये गये विज्ञान के कुछ नियमों से यह बात मालूम होती है कि ब्रम्हाण्ड के गति और गुरुत्वाकर्षण नियमों से खगोलीय पिण्ड,ग्रह और निहारिकायें आदि चलायमान है, यदि इन नियमों में थोडी सी ढील दे दी जाय तो पूरे सृष्टि का सिस्टम ही अस्त ब्यस्त हो जायगा I

     अधिक दूर जाने की क्या आवश्कता ? हम अपने शरीर की संरचना को ही दृष्टिगत करें तो पता चलता है कि परमपिता ने इसे ऐसे सृष्टि के नियमों में बाँध दिया है जिसके बाहर इसके जीवित रहने की कल्पना ही नहीं की जा सकती , जैसे हृदय गति ,नसों में बहने वाले खून के गाढेपन और उसके प्रवाह,शरीर के तापमान, शुगर, नेत्रों में दृष्टि और कान के सुनने की सीमा इत्यादि I

     अब यह अनुमान सहज में लगाया जा सकता है कि जो पिता अडृश्य होकर इतना महत्वपूर्ण अहं भूमिका निभाता है तो हमारे परिवार में मुखिया के रूप में जो पिता की भूमिका अदा करता है, वह अपने बच्चों और परिवार के लिए अस्तित्व की रक्षा के लिए क्या कुछ नहीं करता होगा ? उसमें निश्चय ही धरा सा धैर्य और उसका कद आसमान से ऊंचा हैI चाहे सारे संसार में खोजने लें या मंदिर मस्जिद में ढूँढ लें पर इस पृथ्वी पर मां पिता के समान कोई जीवित देवता नहीं मिलेगा I वह पूरे घर का साहस, सम्मान, शक्ति और पहचान होता है मतलब यह है कि पिता के लिए उसकी संतान ही उसकी शान और सारा संसार होता है,वह उसके लिए सबसे दूर हो सकता है वह अपनी जरूरतें टालकर घर की जरूरतें समय से पूरी करता है,और अपनी संतान को कंधे पर बैठाकर पूरा सँसार दिखाने का प्रयास करता है क्योंकि वह बच्चों का सारा दुख खुद पर ले लेता है और अपनी ,पूरी कमाई घर पर लुटा देता है, बच्चे जो चाहते हैं वो लाकर देता है,उसकी संतान में उसके प्राण होते हैं वह जीवन भर अपनी संतान और परिवार को दूसरों से आगे रहने की कोशिश करता है कहने का अर्थ यह है कि पिता अपने सपने बच्चों में देखता है और इसे पूरा करने के लिए चिलचिलाती धूप में काम करता है ,ताकि उसके परिवार का स्वाभिमान किसी से कम न हो,परन्तु वह परिवार को मजबूत आधार देने के उद्देश्य से सदैव पीछे रहता है I वह थका होता हुआ भी अपने को थका दिखाता नहीं , वह अंदर ही अंदर रो लेता है पर बाहर रोते दिखता नहीं I उसका हृदय कितना विशाल है तभी तो उसका पद आंसमा से ऊँचा है I

      यह अत्यन्त सोचनीय विषय है कि आज की युवा पीढी के लिए वह एक गुस्सा करने वाला,सूर्य की अग्नि सा और अपने छुपे हुए आँसुओं में एक निष्ठुर पिता हो गया I कोई कुछ भी समझे, पर हकीकत यह है कि एक पिता सौ से अधिक शिक्षकों के बराबर होता है उसकी डाँट में ही सन्तान की उन्नति होती है,पिता की वजूद में संतान की पहचान होती है,जीवन में सफल - असफल होने पर ही पिता के डाँट का महत्व पता चलता है I बाद में अहसास होता है कि वे अपने जीवन की यात्रा में यूं चलते जा रहे हैं पर पिता की उँगली जब से छूटा तो पूरा जीवन बिखरा सा नजर आता है और समय बीत जाने पर सोचते हैं कि पापा हर बार सही बोलते थे I    

 

 


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