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Sandiponi Tasha

Tragedy Others

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Sandiponi Tasha

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सूरजों की शाम

सूरजों की शाम

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एन आई डी, जोरहाट बन कर करीब करीब एक साल होने को है। बहुत से नये दुकानें खुल चुके हैं और बहुत पुरानी दुकान बंद भी हो चुके हैं। पर टोकलाई नाले के किनारे अब भी एक दुकान वैसे ही चल रहा है जैसा की वह इतने सालों से चल रहा था। राम भाई का वह चाय की टपरी। तब भी जैसे चल रहा था अब भी वैसा ही है। 

लकड़ी से बना हुआ एक अस्थायी घर पर बसा हुआ है वह दुकान। सामने उस बड़े पेड़ के नीचे लगा हुआ एक लंबा बेंच। उस बेंच पर बैठे हुए कुछ बूढ़े और कुछ जवान जाना पहचाना चेहरा। जिन्हे हर दिन वहीं देखा जा सकता है एक फिक्स्ड टाइम पर। या तो चाय चुस्की लेते हुए या फिर गपशप करते हुए। चाहे आप उनको जानते हो या फिर ना जानते हो पर आप उनकी बातों के बीच बिना किसी हिचकिचाहट के भाग ले सकते हैं। ना ही वह लोग बुरा मानते है और ना ही वह इस बात का गौर करते हैं कि आप अजनबी है।

   

आज उस ग्रुप पर एक नये सदस्य अन्तर्भुक्त हुए हैं। पुराना सा सूट पहने हुए एक दादा जी। राम भाई के टपरी के पास ही बना हुआ है एक छोटा सा बंगलो। यहां टपरी पर बैठे हुए सारे बूढ़े वहीं रहते है। अलग अलग समय पर आए हुए सारे अभी एक परिवार बन चुके है। हर किसी के अपने घर पर ना रहने के अलग अलग वजह थे। यह वाले दादाजी भी रहने के लिए नए नए आए है। कुछ जगह का आऊ भाऊ नहीं है इसीलिए यहां राम भाई के चाय के टपरी पर बैठ गए। शायद उनको पता ना हो पर आकर वह सही जगह आ चुके थे।

 

मैं भी उसी बेंच पर बैठा हुआ था। पर आज गपशप का हिस्सा नहीं हूं बस चुपचाप बैठा हूं बेंच के एक सिरे पर। दाएँ हाथ में चाय की प्याली और बाएँ हाथ में केक का एक पीस लेकर। मन कुछ सही सा नहीं था। कारण पता नहीं था बस ऐसे ही मूड खराब था। सारे दादाओं ने मिलकर दो तीन बार बुलाया फिर वह अपने बातों में वापस बिज़ी हो गए।


टोकलाई नाला सामने से बह रहा था। क्योंकि सर्दी का मौसम जारी है तो उस चौड़े नाले के बीच के हिस्से को छोड़ बाकी जगहों पर घास उगे हुए थे। जैसे कि एक हरे भरे मैदान के बीच से एक नदी गुज़र रहा हो। काले पानी का वह नाला चाहे जितना ही गंदा क्यों ना हो पर आस - पड़ोस के लोग वहां मिलने वाले मछली के स्वाद से बेहद संतुष्ट थे। और उसको प्रूव करते हुए कुछ मछली पकड़ने का औजार अभी भी वहां पड़ा हुआ था।


कुछ मूर्तियां भी थी। मिट्टी की बनी हुई। कुछ नए और कुछ पुराने। ज्यादातर नई मूर्तियां सरस्वती माता की थी चुकीं कुछ ही दिन पहले वसंत पंचमी पूरे जिले में धूमधाम के साथ मनाया गया था। कुछ मूर्तियां ढह रहे थे और कुछ ढह गए थे। नई सुन्दर मूर्तियों के सामने वह पुरानी मूर्तियां बहुत ही खराब लग रहे थे। उन पुरानी मूर्तियों के सिर का हिस्सा ग़ायब था जिसे शायद बारिश के पानी ने धीरे धीरे पिघला दिया होगा। कुछ मूर्तियों का पिघलना अभी बस शुरू ही हुआ था और कुछ अब पूरी तरह से पिघल चुके थे। और सामने खड़ा उनकी सूखे घास से बना हुआ ढांचा इस बात का सबूत दे रहा था।

   

वक़्त ने पूजे जानेवाले भगवान को भी लाकर इस हालत में खड़ा कर दिया था। कुछ दिन बड़ा सम्मान, श्रद्धा जता कर आशीर्वाद मांग रहे भक्तों ने ही उन्हें कबाड़ की तरह बाहर छोड़ दिया था। क्यूंकि अब उनसे कोई आशीर्वाद मिलनी नहीं थी तो उन्हें अब भुला दिया गया था। संसार का यह निष्ठुर नियम अब भगवान के साथ भी प्रयोग होने लगा है। पर फिर भी उनके होठों पर वह हँसी अब भी बरकरार थी।


मेरी चाय की प्याली अब खाली हो चुकी थी। खाली प्याली को हाथ पे लिए मैं पीछे मुड़ा। पीछे अब भी वह सारे दादाए गप्पे लड़ा रहे थे। सब के चेहरे से खुशी झलक तो रहे थे उन मूर्तियों की तरह। पर कुछ अनकहे दुःख भरी कहानियां अब भी उस हँसी के पीछे छुपी हुई थी। उन्हें भी उन मूर्तियों कि तरह ही यहां लाकर छोड़ दिया गया था। बस उनके सिर ऊपर कहने के लिए एक छत था जो उन मूर्तियों को नहीं मिला था। बाकी का किस्सा एक जैसा ही था।


हँसी बरकरार थी होठों पर उन मूर्तियों के तरह ही। पर शरीर पर वक़्त के साथ हुए युद्ध के दौरान हुए आघातों का निशान साफ दिख रहा था। रौनक खो चुका था बस उस घास के ढांचे की तरह जीर्ण शरीर बचा हुआ था। शाम भी होने को था । सूरज अब डूबने लगा था चारों ओर अपने रौशनी को फिर से बिखेरते हुए। नारंगी रंग का आसमान दिन की आनंद और रात के खौफ को अपने अंदर संवारने लगा था।


सोचते हुए मेरे आंखे नम हो चुके थे। मैं सूरज को डूबते हुए देख भी उस वक्त का मज़ा नहीं ले पा रहा था। उधर ऐसे ही कई सूरज गपशप में व्यस्त थे जो अपने हँसी की रौशनी चारों और बिखेरने की कोशिश कर रहे थे। एक बार उन्होंने फिर मुझे उस गपशप में हिस्सा लेने बुलाया।


मैं उठा और शाश्वत इस सूरज को एकबार देख उन सूरजों के और बढ़ गया जो शायद कभी भी हमेशा के लिए डूब सकते थे। उन सूरजों के रौशनी को साथ समेटने के लिए में उस तरफ बढ़ गया। मैं नहीं चाहता था वह सूरज उन मूर्तियों में बदल जाए। आँखो से दो बूंद आँसू बह आए थे। आसमान गाढ़ा नारंगी हो चुका था। मैने उन सूरजों के बीच पहुंचने से पहले अपने आँसू को फटाफट पोंछ लिया। और उस शाम के मजे लेने उनके साथ ही बैठ गया।



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