सूरज भैरवी नानी की सीख
सूरज भैरवी नानी की सीख


सूरज रात में बड़ी सी पिगि बाल ले, मीठी नींद की आगोश में सपने देख नाटक करता था। भैरवी दीदी को नानी सीख दे रही थी, पर मैं उतना छोटा भी नहीं था। नानी की सीख समझ ना पाऊँ। दादी जब काली भैरवी कहती थी। उसे बड़ा ग़ुस्सा आता था। क्योंकि सूरज गोरा था दीदी ग़ुस्से में कहती - हाँ मैं काली भैरवी हूँ, नानी उसे पुचकारते कहती -प्रकृति के प्रकोप से तुम ही हरण करोगी, देखो जन मानस में धीरे धीरे बदलाव आने लगा है। व्यक्ति आत्मनिर्भर बन, खान पान बदल शाकाहारी हों गये है। मितव्यता से मन के अंदर मैल साफ़ कर, याने बुजुर्गों की सेवा सफ़ाई से रहना, जीना सीख गये है। स्वस्थ जीवन जीना हैं। तो प्राकृतिक संसाधनों जड़ी बूटी का उपयोग करो। भले ही लाक डाउन के दौरान लोगों की पहुँच कम हो गई। आत्मीयता से लोग जुड़ने लगे हैं। रिश्तों में प्यार स्नेह बढ़ गया। समय की कमी नहीं हैं। हाथों को जोड़ अभिवादन नमस्ते करने की गरिमा खोते जा रहे थे। विदेशी भी हमारी संस्कृति सभ्यता अपनाने लगे।
स्वदेशी अपनाने लगे। सोमरस दवाई के रूप इस्तेमाल करने लगे ! मनोरंजन शादी ब्याह से लेकर सुख दुःख में कितनी आर्थिक तंगी से इंसान गुजरता था। अपने आप स्थिति भाँप कर उचित निर्णय लेने लगे, और तो और नारी का सम्मान घर बाहर किस तरह मैनेज कर आज की परिस्थितियों का सामना करती हैं। ये बातें पुरूषों को घर रह कर समझ आई। नारी का हाथ बंटाने लगे हैं ! भेद भाव अंतर मिटा चुके हैं। पर्यावरण में ताजगी का एहसास किसान, श्रमिक अपने घर लौट सुकून का अनुभव क़र अपनी माटी से जुड़े रहना चाहतें हैं। मितव्यता की सीख से आगे बढ़ाना चाहते हैं । तभी दादी सूरज के पास आ कहती हैं , मैं तुम्हारा नाटक समझ चुकी हूँ, जितनी धर्यता से भैरवी सुन रही है नानी की बातों को तुम भी समझ रहे हो।