सुनिधि
सुनिधि


‘कैसे कहूँ माँ से कि आज मैं कॉलेज नहीं जाऊंगी।’
सुनिधि दरवाजे पर खड़ी सोच रही थी कि तभी माँ को लगा कि पीछे कोई खड़ा है, पीछे मुड़कर देखा तो कुछ अनमनी सी सुनिधि जमीन की तरफ इधर-उधर देख रही थी।
माँ- क्या बात है सुनिधि,क्यों इस तरह उदास खड़ी हो ?
अपने हाथ से तह लगाते हुए कपड़ों को बिस्तर पर रखते हुए माँ ने पूछा।
सुनिधि कोई भी जवाब बिना दिए धीरे-धीरे माँ के करीब आकर खड़ी हो गई। माँ ने पुनः उससे उसकी अन्यमनस्यता का कारण पूछा तो उसने कहा- कुछ नहीं माँ, बस आज मेरा कॉलेज जाने का मन नहीं कर रहा है। सुनिधि राम जी इंजीनियरिंग कॉलेज में बीटेक तृतीय वर्ष की छात्रा है। जब से उसने कॉलेज में एडमिशन लिया है,तब से आज तक एक भी दिन उसने अपनी कक्षा नहीं छोड़ी,यहाँ तक कि वह अपने शिक्षकों से अतिरिक्त कक्षा का आग्रह करके,उनसे अवकाश के दिनों में भी पढ़ने जाती। कॉलेज ना जाने का मन कोई बड़ी बात नहीं थी किंतु सुनिधि का कॉलेज ना जाने का मन हो यह बहुत बड़ी बात थी।माँ ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा-‘क्या हुआ बेटा किसी ने कुछ कहा,किसी से तेरा झगड़ा हुआ या कुछ और बात है?जो भी बात है तू मुझे स्पष्ट रूप से बता, मेरा दिल बैठा जा रहा है। कुछ नहीं, बस ऐसे ही, यह कहते हुए सुनिधि अपने कमरे में चली गई।माँ को समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या करें। बचपन से लेकर आज तक सुनिधि ने अपने जीवन की कोई भी बात अपनी माँ से नहीं छुपाई। कहने को तो वो उसकी माँ थी किंतु वास्तव में वह उसकी सच्ची मित्र थी, जिसे बोलचाल में पक्की सहेली कहते हैं।स्कूल में क्या हुआ, किसने क्या कहा, किस टीचर ने कैसे पढ़ाया, किसी ने उसे चिढ़ाया या उसने किसी को चिढ़ाया; जीवन की हर एक बात यहाँ तक कि कॉलेज में आने के बाद भी वह अपने हर एक टीचर का एक-एक लेक्चर माँ से साझा करती थी। कुछ बातें तो माँ को समझ में आती थी और कुछ सर के ऊपर से निकल जाती थी, पर हर बात में माँ अपनी पूरी प्रतिक्रिया देती थी। ऐसी दोस्ती के बीच ऐसी कौन सी बात आ गई जो सुनिधि उससे नहीं कह पा रही थी? यही सोच-सोच कर वह चिंतित हुई जा रही थी।यही सोचते हुए माँ धीरे-धीरे घर का सारा काम निपटाती जा रही थी, तभी सुनिधि के पिता सुरेश घर आते हैं। रमा (सुनिधि की माँ) उन्हें इस तरह अचानक दोपहर में आया देखकर चौंक पड़ती हैं।
रमा-आप!इस समय कैसे आ गए?
सुरेश- (थोड़ा मजाक के अंदाज में) क्यों भाई मेरा घर है, क्या मैं किसी भी समय आ नहीं सकता?
रमा- अरे,नहीं मेरा कहने का वह मतलब यह नहीं था, असल में आप कभी इस तरह नहीं आते, इसलिए थोड़ा चौंक गई।
सुरेश-(सुनिधि के कमरे की ओर देखते हुए) क्या आज सुनिधि कॉलेज नहीं गई?
रमा-नहीं,
सुरेश-क्यों ?
रमा-कह रही थी, मन नहीं है।
सुरेश-मन नहीं है ? यह कैसे भला ? सुनिधि और कॉलेज ना जाए ? तुमने पूछा नहीं ? रमा- बहुत पूछा, लेकिन उसने बताने से बिल्कुल मना कर दिया। कहती है बस ऐसे ही।
सुरेश हाथ मुँह धुल कर सीधा सुनिधि के कमरे में जाते हैं और उससे कॉलेज ना जाने का कारण जानना चाहते हैं। सुनिधि पिता को भी वही कारण बताती है जो माँ को बताया था। रमा और सुरेश भले ही उस समय सुनिधि की बात मान जाते हैं लेकिन उन्हें सुनिधि की चिंता सताए जा रही है।
धीरे-धीरे एक सप्ताह बीत जाता है। सुनिधि घर पर ही रहती है।अब पानी सिर से ऊपर जाता देखकर सुनिधि के माता-पिता उसके कॉलेज पहुंचते हैं और पता लगाने का प्रयास करते हैं कि आखिर कॉलेज में ऐसा क्या हुआ है?जब वे दोनों कॉलेज पहुंचते हैं तो उन्हें वहां सब कुछ सामान्य लगता है।सुनिधि के दोस्त भी उसके अंतर्मन की बातों से पूर्णतः अनजान थे एवं शिक्षक भी उसके कॉलेज ना आने पर चिंतातुर प्रतीत हो रहे थे।
अगले दिन शाम को रमा सुनिधि से कहती है-सुनिधि,चलो बाजार से कुछ सामान ले आएं ।
सुनिधि- माँ, तुम पा
पा के साथ चली जाओ, मेरा मन नहीं है।
माँ-( थोड़े तीक्ष्ण स्वर में) क्या लगा रखा है, मन नहीं है, मन नहीं है,आखिर ऐसा कब तक चलेगा? तुम कुछ बताती नहीं हम कुछ समझ नहीं पाते। जब तक तुम कुछ बताओगी नहीं तब तक समस्या का समाधान कैसे हो सकता है? अब जब तक तुम मुझे अपने मन की बात नहीं बता देती, मैं तुमसे बात नहीं करूंगी।
सुनिधि-माँ मुझे माफ कर दो।मुझे नहीं पता था कि मैंने आपको इतना परेशान किया। अब मैं कल से कॉलेज जाऊँगी।चलो बाजार चलते हैं,शॉपिंग करते हैं।
धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा। सुनिधि फिर से कॉलेज जाने लगी। लेकिन उसके चेहरे पर वह हँसी आज तक माँ को नहीं दिखी, जो पहले थी।इसी चिंता में रमा की तबीयत खराब रहने लगी।एक दिन रमा ने सुनिधि को अपने पास बुलाया और कहा- बेटी ! अब तुम बड़ी हो गई हो,घर का और अपना ख़याल रख सकती हो। सुनिधि- माँ, ऐसी बातें क्यों कर रही हो?
रमा- वह इसलिए कि अब मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती,तो मैं तुम्हारा और तुम्हारे पापा का ज्यादा ध्यान नहीं रख पाती।शायद, इसीलिए तुम मुझसे दूर हो गई हो। सुनिधि-(रोते हुए) नहीं माँ, मैं तुमसे कभी दूर नहीं हो सकती( गले लगाती है )।
रमा- इसीलिए तो आज एक महीना हो गया, लेकिन तुमने मुझे वह बात नहीं बताई जिस कारण तुम कॉलेज नहीं जाती थी और अभी भी तुम खुश नहीं हो।
सुनिधि-(आँखों में आँसू भर कर) माँ,मैं कैसे बताऊँ, मेरे कंप्यूटर के शिखर सर हैं, उनकी बेटी भी मेरे साथ पढ़ती है। हम दोनों अच्छी सहेलियां हैं। मैं शिखर सर को केवल सर ही नहीं, अपना अंकल भी समझती थी क्योंकि वह मेरी सहेली के पिता हैं। मैं उन पर सभी शिक्षकों में सबसे ज्यादा भरोसा करती थी।लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसे मैं पूरे जीवन नहीं भूल पाऊँगी।
माँ-(घबराते हुए) क्या हुआ सुनिधि?
सुनिधि- शिखर सर ने मुझे एक प्रोग्राम डिजाइन करने के लिए दिया था,जिसमें थोड़ा समय लग गया।सभी बच्चे चले गए, कंप्यूटर लैब में केवल मैं और शिखर सर थे। मुझे डर नहीं लगा क्योंकि शिखर सर थे। लेकिन थोड़ी ही देर बाद सर ने उठकर लैब का दरवाजा बंद कर दिया। मैंने पूछा-‘क्या हुआ सर, क्यों दरवाजा बंद कर दिया?’ तो कहने लगे-‘डरो मत मैं हूँ ना’। मैंने कहा लेकिन दरवाजा बंद करने की क्या जरूरत है ?’ तो कहने लगे-‘मैं तुम्हें जो प्रोग्रामिंग सिखाने जा रहा हूँ, वह दरवाजा खोल कर नहीं सिखा सकता’
और यह कहकर मेरा हाथ पकड़ लिया। मैं तेजी से पीछे की ओर भागी। वहीं एक फूलदान रखा था, उसे उठाकर उनके सिर पर तेजी से मारा और वह तुरंत बेहोश हो गए। फिर मैं वहाँ से भाग गई। मैं इतना डर गई थी कि मैं किसी से कुछ नहीं कह पाई। साथ ही मुझे अपनी सहेली पर भी दया आ रही थी। यदि उसे यह बात पता चलेगी तो उस पर क्या बीतेगी?यही सोचकर मैं चुप रही।एक सप्ताह बाद जब मैं कॉलेज पहुंची तो वहां सब कुछ सामान्य था। किसी को कुछ भी पता नहीं था। शिखर सर तब से अब तक छुट्टी पर हैं। उनकी बेटी कहती है कि पिताजी पर किसी ने हमला कर दिया है, तब से वह सदमे में हैं
यह सब कह कर सुनिधि चुप हो जाती है।माँ सुनिधि की बातें सुनकर निस्तब्ध भाव से बैठी अपलक शून्य की ओर निहार रही है,कि जैसे उन्हें भी कुछ स्मरण हो आया। शायद अनेक प्रश्न उनके मन में उठने लगते हैं,क्या आज भी हमारी स्थिति इतनी दयनीय है कि हम सही को सही और गलत को गलत नहीं कह सकते?क्या आज भी हम उतने ही मजबूर और लाचार हैं जितने पिछले कई दशक पहले थे? क्या आज भी किसी महिला द्वारा किसी पुरुष पर उँगली उठाने पर हजारों उँगलियां उस महिला की ओर उठ जाती हैं?क्या आज भी इस बदनामी के डर से लड़कियाँ आपबीती किसी से भी साझा करने में हिचकिचाती हैं?ये प्रश्न आज भी समाज के लिए उतने ही संवेदनशील हैं, जितना कि पहले थे।यह हम सभी का दायित्व है कि हम इन प्रश्नों के सकारात्मक हल निकालें व समाज को एक नई दिशा दें।