रोशन
रोशन


कक्षा के ऐसे बच्चों के विषय में आखिर क्या कहेंगे, जो न तो पढ़ते हैं और न ही किसी दूसरे बच्चों को पढ़ने देते हैं। लेकिन होते तो वे भी कक्षा का ही एक हिस्सा हैं। उनकी भी कोई न कोई कहानी तो होती ही है और हाँ भावनात्मक रूप से वे भी किसी न किसी से अवश्य ही जुड़े होते हैं। ऐसे बच्चों को यदि सही दिशा और थोड़ा सा ध्यान मिले तो शायद वह भी जीवन में सफल हो सकें। ऐसी ही कहानी कक्षा नौ में पढ़ने वाले ‘रोशन’ की है। रोशन छोटे कद का थोड़ा सा मोटा लड़का। कक्षा में सभी उसे अनेक नामों से पुकारते थे। कोई मोटू, कोई लड्डू, कोई नाटू तो कोई राशन कहकर पुकारता था। रोशन किसी की बात का बुरा न मानता। शायद, इसीलिए सभी विद्यार्थी उसे बहुत प्यार करते थे। वह सब की मनोरंजन का साधन जो था। खुद तो पढ़ता नहीं था, साथ ही हँसी मज़ाक कर-कर के किसी को पढ़ने भी नहीं देता था। यह उम्र ऐसी ही होती है, जब बच्चों को अपने अच्छे बुरे का ज्ञान कम होता है। सभी बच्चों की पढ़ाई रोशन प्रभावित करता था। लेकिन सभी को उसकी बात से मज़ा भी आता था, इसीलिए वह सभी में लोकप्रिय था। शिक्षक रोशन को बिगड़ा हुआ केस समझ कर किसी तरह झेल रहे थे। शायद, उसके घरवालों की पहुँच बहुत ऊँची थी, इसी कारण उसे विद्यालय में प्रवेश मिला था एवं वह निकाला भी नहीं जा रहा था। विद्यालय के प्रत्येक कांड में रोशन का नाम अवश्य जुड़ा हुआ होता था। वह अपना तो दुश्मन था ही अन्य बच्चों को भी बिगाड़ रहा था। कहते हैं कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। इसी मुहावरे को चरितार्थ करती हुई उसकी कक्षा पूरे विद्यालय में प्रसिद्ध थी।
वर्ष के मध्य में किसी अस्वस्थ शिक्षक के स्थान पर छः माह के लिए शांतनु सर की विद्यालय में नियुक्ति हुई। शांतनु सर रोशन की ही कक्षा के कक्षाध्यापक नियुक्त किए गए। शांतनु सर का कक्षा का पहला दिन, शायद वे पूरी जिंदगी ना भूल पाएं। सभी छात्रों ने खुलकर उन्हें परेशान किया एवं उन्हें इस बात के लिए मजबूर करने की कोशिश की, कि वे विद्यालय छोड़कर चले जाएँ। शांतनु सर धीर गंभीर व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। उन्होंने इन बातों की कोई शिकायत न तो आगे पहुँचाई और न ही विद्यालय छोड़ा। वे प्रतिदिन एक नई मुस्कान के साथ कक्षा में उपस्थित होते एवं बच्चों को नई-नई बातें बताने का प्रयास करते थे। अपने इस व्यवहार से अंततोगत्वा वे बच्चों के प्रिय शिक्षक बन गए। अब बच्चे उनके न आने वाले दिन उन्हें बहुत याद करते जिस कारण बच्चों का दिन भी अच्छा नहीं गुजरता था। एक बार अस्वस्थता के कारण एक सप्ताह शांतनु सर विद्यालय न जा सके, जो बच्चों के लिए अत्यंत असहनीय था। रोशन ने शांतनु सर के घर का पता ढूँढा एवं पहुँच गया उनके घर, उनका हालचाल लेने। जब रोशन ने शांतनु सर के घर का दरवाज़ा खटखटाया, तो भीतर से आवाज़ आई-‘ दरवाज़ा खुला है अंदर आ जाइए।‘ रोशन ने घर के अंदर प्रवेश किया। शांतनु सर बिस्तर पर लेते हुए थे एवं उनके बाएँ पैर में पट्टी बंधी दिख रही थी। रोशन उनको इस हाल में देखते ही बोला-‘अरे सर ! आपको यह क्या हो गया?
शांतनु सर - रोशन ! तुम आ गए? कुछ खास नहीं हुआ, बस थोड़ा पैर फिसल गया था।(रोशन का उदास मुँह देखकर) मुझे पता था तुम जरूर आओगे।‘
रोशन -आपने कैसे जाना?
शांतनु सर- जानते हो रोशन! जब हम किसी को सच्चे दिल से याद करते हैं, तो उसके दिल तक हमारी आहट अवश्य पहुँचती है।
रोशन-तो क्या आप मुझे याद कर रहे थे?
शांतनु सर- तहेदिल से।
रोशन-(आँखों में आँसू भरकर) धन्यवाद सर ! मेरे बारे में सोचने के लिए। इस दुनिया में शायद आप ही हैं, जिसने मुझे थोड़ा सा अपनेपन का एहसास दिलाया। नहीं तो मैं बिल्कुल अकेला था।
शांतनु सर- क्यों? तुम्हारे मित्र भी तो तुम्हें प्यार करते हैं ।
रोशन- नहीं सर! सब मतलब के साथी हैं। जब तक मैं उन्हें मज़ा दिलाता रहता हूँ तब तक तो प्यार झलकता है, जैसे ही मैं कुछ पढ़ाई के लिए मदद मांगता हूँ तो सब कन्नी काट लेते हैं। उन सबको लगता है कि यह तो फिसड्डी लड़का है। इसकी मदद करने में हमारा क्या फायदा? सब मतलब के साथी हैं।
शांतनु सर-तो तुम खुद से मेहनत करके पढ़ाई क्यों नहीं करते?
रोशन – चाहता तो बहुत हूँ, लेकिन जब भी मैं पढ़ने बैठता हूँ, मुझे अपनी माँ की याद आने लगती है।
शांतनु सर-कहाँ हैं तुम्हारी माँ?
रोशन -जब मैं आठ साल का था, तभी मेरी माँ मुझसे दूर चली गई। लोगों ने बताया कि वह भगवान के घर मेरे लिए ख़ुशियाँ मांगने गई है। कई महीनों तक मैंने अपलक अपनी माँ का इंतजार किया। फिर एक दिन सबने बताया कि मेरी माँ आने वाली है। मैं खुशी से झूम उठा। पिताजी दूल्हा बनकर गए और माँ को दुल्हन बनाकर ले आए। मेरी सब्र का बांध अब टूट चुका था। मैंने झट से दुल्हन का घूँघट उठाकर अपनी माँ को देखना चाहा, लेकिन वहाँ मेरी माँ नहीं थी। दुल्हन के वेश में कोई और औरत पिताजी की पत्नी बन कर आई थी। वह पिता जी की पत्नी तो बन सकीं, लेकिन मेरी माँ कभी न बन सकीं। मेरे घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है। मेरे पिताजी पुलिस विभाग में उच्च पदाधिकारी हैं। कमी है तो सिर्फ माँ की। मैं माँ के बिना बिल्कुल अधूरा हूँ। मैं जब भी अकेले में बैठता हूँ, तो मुझे माँ की बहुत याद आती है। मैं बेचैन हो उठता हूँ। इसीलिए मैं अपने समय को अन्य तरीके से व्यतीत करने का प्रयास करता हूँ, ताकि मैं अकेला न रह सकूँ।
शांतनु सर उसकी बातें सुनकर सोच में डूब गए। उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था मानो उनके अतीत को किसी ने कुरेद दिया हो। उनके तल्लीनता को तोड़ते हुए रोशन ने कहा- सर! मुझे माफ़ कर दीजिए। मैंने आपके सामने अपनी व्यथा कही, लेकिन मैं शायद कहने के लिए मजबूर हो गया। आपसे पहले कभी मुझे किसी से इतना लगाव महसूस नहीं हुआ।
शांतनु सर- नहीं-नहीं रोशन! मैं तो बस इस बात से खुश हूँ कि तुमने मुझे इस लायक समझा कि अपनी परेशानी साझा कर सके। आज मैं भी तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ। मैं जब छोटा था तभी एक दुर्घटना में मेरे माता- पिता की मृत्यु हो गई थी। मेरा पालन मेरे ताऊ जी और ताई जी ने किया। ताऊ जी का कुछ स्नेह मेरे ऊपर था, किंतु ताई जी को मैं हमेशा बोझ लगता था। वह मुझे पढ़ाने के पक्ष में नहीं थी। मुझे दो वक्त की रोटी देना भी उन्हें खलता था। लेकिन ताऊ जी की वजह से मेरा स्कूल नहीं छूटा। मैंने जब से होश संभाला, ताई जी की गालियों और अपने स्कूल के अलावा मुझे कुछ भी याद नहीं रहता था। मैंने अपने माता-पिता की कमी को अपनी कमजोरी न मानकर अपनी ताकत बनाया। मैंने सोचा कि यदि मैं कुछ बनकर दिखाऊँगा तो कहीं न कहीं उनकी आत्मा भी तृप्त होगी। कक्षा बारह के बाद शॉपिंग मॉल में नौकरी के साथ-साथ पढ़ाई जारी रखी। अब ताई जी को पैसे देने लगा, तो उनकी शिकायत भी दूर हो गई। मैंने उच्च शिक्षा प्राप्त की साथ ही पी.एच.डी की पढ़ाई भी कर रहा हूँ । तुम्हारे विद्यालय में शिक्षक के तौर पर मेरी पहली नियुक्ति है। वह भी केवल छः माह के लिए। मैं चाहता तो यह समय सामान्य तरीके से निकाल सकता था। तुम लोगों से अधिक लगाव लगाने का कोई औचित्य नहीं था। लेकिन मेरा मानना है कि हमें प्रत्येक कार्य पूरी लगन व ईमानदारी के साथ करना चाहिए। उसी का नतीजा है कि तुम मेरे सामने इस रूप में खड़े हो। सभी ने तुम्हारा एक पक्ष देखा है लेकिन मैं तुम्हारा दूसरा पक्ष भी देख रहा हूँ, जिसे तुम्हारे सामने लाना जरूरी है। तुम्हें अपनी माँ की स्मृति को अपनी कमजोरी नहीं बल्कि अपनी ताकत बनाना चाहिए। तुम्हें इतनी मेहनत करनी चाहिए कि तुम जिस किसी भी क्षेत्र में जाओ सफल हो। तभी तुम्हारी माँ की आत्मा को शांति मिलेगी और तुम्हारा मन भी संतुष्ट होगा।
शांतनु सर के ये शब्द रोशन के लिए ब्रह्मवाक्य बन गए। उसने अपनी माँ को याद करते हुए परीक्षा की तैयारी की एवं अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुआ। बारहवीं की परीक्षा के साथ ही उसने आई.आई.टी. की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की एवं आज सात वर्ष बाद वह एक अच्छी कंपनी में कार्यरत है और अपनी पत्नी व बच्चों सहित खुशहाल जीवन जी रहा है। उसके हृदय में उसकी माँ की स्मृति का दीपक सदैव जलता रहता है एवं वह अपने प्रेरणास्रोत शांतनु सर को भी अपने हृदय के अंतस्तल में उच्च स्थान प्रदान किए हुए है, जिसकी वजह से आज वह इस मुक़ाम पर पहुँच सका।