स्त्री
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जनवरी का महीना, सर्द मौसम और शाम से ही रही लगातार हल्की- हल्की बारिश के कारण शहर की भीड़ काफी कम हो गई थी, मैं दोस्त की जन्मदिन पार्टी से घर लौट रहा था, रविदास गेट के पास कई सारे ऑटो वाले थे पर, मेरा रूम थोड़ा ही दूर था, मैं पैदल ही जाने वाला था। राही- बटोही नहीं के बराबर थे, तभी मेरी नजर एक ऑटो पर पड़ी, ब्लू शर्ट, डार्क ब्लू टाई, काला कोट पैंट, फॉर्मल ब्लैक शूज़, चेन वाली घड़ी और हाथ में छोटी सी क्लच ली हुई एक लड़की बीच वाली सीट पर दाईं और बैठी थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उसके अंदर कुछ द्वंद्व चल रहा है दायाँ पैर बाहर की तरफ निकली हुई थी, दूधिया गोरा चेहरा लाल पड़ गया था। मैंने एक झलक में ही भांप लिया, लड़की बहुत परेशान है। मैं वहीं खड़ा हो गया। ऑटो वाला एक दो बार गोदौलिया- गोदौलिया चिल्लाया तभी एक झुकी कमर, सफेद दाढ़ी और पीठ पर एक पोटली लिए बाबा बोले:" दुर्गाकुंड छोडेके, कैतना लेबअ "
ऑटोवाला:" 10 रुपए"
वृद्ध व्यक्ति :"5 में चलबअ त चलब"
ऑटोवाला:" तू मत जा हम एतना में न ले जायब"
फिर ऑटो वाला उस अकेली लड़की को लेकर निकालने वाला था, तभी वो लड़की मेरी ओर देखी , मुझे उसके आंखों में कुछ नजर आया, शायद वो आंखों के इशारे से कुछ बोलना चाह रही थी ।
मैं अपने बायें हाथ के कलाई को नाक के सामने लाया, रात के 12:25 हो रहे थे, पॉकेट में हाथ दिया, पर्स था साथ ही। मैं सोचा ये लड़की इतनी परेशान क्यों है ? और ये ऑटो वाला उस बूढ़े व्यक्ति को क्यों नहीं ले गया जबकि ये तो दुर्गाकुंड से होकर ही जाएगा, नहीं से बेहतर है और 5 रू तो मिल जाते, मध्यरात्रि ठंड और बारिश में इसे पैसेंजर कहाँ मिलेंगे?
मैंने सोचा चलो आज किसी राही के लिए एक सफर कर लिया जाए, मैं सीट की ओर बढ़ते हुए ऑटो वाले से बोला :"भैया, मैं भी चलूंगा।"
ड्राईवर:"कहां जाइएगा?"
मैं: "जहां आप जहाँ जा रहे हैं"
ड्राइवर हँसते हुए: "आईये ,बैठिए।"
ड्राईवर के बगल वाली सीट थोड़ी भिंगी थी, और वहाँ ठंडी हवा भी लगती। मैं बीच वाली सीट पर बाई ओर बैठ गया।
मैं कुछ मिनट चुपचाप बैठा कुछ एनालाइज कर रहा था, वो लड़की बहुत ज्यादा दाई ओर हो गई थी, बूंदा बांदी अभी भी जारी थी, मुझे लगा उस पर पानी भी पड़ रहा होगा, उसका हाथ पसीना से तर था, तथा हाथों को मलते हुए बाहर की ओर देख रही थी।
मैं हिम्मत कर उससे बोला: -"हेल्लो। आप इतनी परेशान क्यों हैं, इधर हो जाइए वरना भिंग जायेंगे।"
मेरी बात का असर हुआ वो बाई ओ
र सरक गई। कुछ मिनट तक ऑटो के चलने के आवाज़ के अलावा कोई वार्तालाप नहीं था।
फिर वो बोली: "आप कहाँ तक जाएंगे?"
मैं: "वहीं कुछ आगे तक, वैसे आप कहां जा रही हैं?"
लड़की: "गोदौलिया"
मैं: "मुझे भी वही उतरना है"
कुछ देर तक मैं बाहर झांकता रहा फिर पूछा: "आप शहर में नई हैं?"
लड़की: "हां, पहली बार आयी हूँ, बनारस"
इस बीच मैं देखा कि वो रिलेक्स थी और गोदौलिया आने तक हमलोग फ्रैंक, बातचीत से पता चला कि वो दिल्ली में रहकर MBA करती है और पहली बार वाराणसी किसी सेमिनार अटेंड करने आयी है, जहाँ किसी कारणवश उसे देर हो गई। मौसी का घर गोदौलिया में है, घर पर वो अकेली हैं और काफी परेशान भी , जिस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इतने ही देर में चार बार कॉल आ चुका था।
हमलोग गोदौलिया चर्च के पास पहुँच चुके थे, वो उतरी, मैं भी उतर गया।
ड्राइवर को पैसे देते हुए वो मुझसे बोली :"आपने तो बताया ही नहीं कहाँ जाना है?"
मैं हँसते हुए बोला: "मैं वहीं जाऊंगा जहाँ से आया हूं"
मेरी बात सुनकर वो आँख बड़ी करते हुए मुस्कुराई और बोली: "थैंक्स भाई , मेरे लिए तुम यहाँ तक आए, पता नहीं, तुम नहीं आते तो क्या होता, नया शहर, नए लोग और अकेली मैं, बहुत घबराई थी "
मैं पूछा: "अच्छा, आगे तक चलूँ"
लड़की:"नहीं, नहीं घर पास ही है, और वहां मौसी भी खड़ी है,"
फिर हमलोग एक - दूसरे को बाय बोले और दूसरा ऑटो लिया घर आने के लिए, और रास्ते भर मेरे पास सोचने के लिए कई सवाल थे - वो ऑटो वाला उस बुजुर्ग को ऑटो पर क्यों नहीं चढ़ाया?, हो सकता है, उसकी फितरत होगी अपने कहे भाड़े से कम पर गुंजाइश नहीं करने की, और लड़की को जो डर सता रही थी कहीं वो अनहोनी सच में हो तो नहीं जाती ? क्यों परेशान थी वो ? आज भी २१ वीं सदी में हमारे यहाँ लड़कियाँ सुरक्षित क्यों नहीं है ? उस लड़की के आंखों के माध्यम से मैं क्या मूक शब्द पढ़ लिया सफर करने का मन बना लिया ? क्या किसी लड़की की इज्जत उसका भाई ही दे सकता है ? ऐसा कहना कहीं इस यथार्थ को तो नहीं दिखाता एक लड़की को आदमी तो बहुत मिलते हैं पर इंसानियत नहीं मिलती है और कहीं मिल भी जाए तो वैसी नियत वाला उसका भाई ही होता है।
घर आकर सुबह माँ से कॉल कर सारा हाल सुनाया, और पूछा कि ''मम्मी वो इतनी डरी क्यों थी?...
माँ सीधे शब्दों में बोली- " बेटा, क्योंकि वो एक 'स्त्री' थी... हर पल हम ऐसे ही घुटते हैं ,कभी खुद के लिए कभी औरों के लिए......."