सपनों की उड़ान

सपनों की उड़ान

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दोस्तों ये कहानी है एक लड़की की जिसका नाम कविता था, जो एक छोटे से गांव में अपने छोटे से परिवार के साथ बहुत खुशी से ज़िन्दगी गुज़ार रही थी, कविता अपने माँ बाबा और छोटे भाई के साथ रहेती थी,

कविता बहुत ही साफ़ दिल की लड़की थी, वो हमेशा सबकी मदद करने में लगी रहती रोज़ घर का सारा काम करती और स्कूल भी जाती रोज़ स्कूल से आकर वो अपने बाबा के साथ खेत में काम करने लगती रात होने लगती की कविता घर जाकर माँ के साथ खाना बनाने में मदद भी करने लगती कविता एक छोटे जिले के छोटे से गांव की रहनेवाली थी और गांव में कोई अच्छा स्कूल भी न था जहा वो ज़्यादा पढ़ सके कविता बढ़ी होनहार प्रतीत हुआ करती थी, वो हमेशा कक्षा में अव्वल आया करती थी, कविता के सपने काफी बढे हुआ करते थे, कविता बचपन से सोचा करती की वो बढ़ी होकर गांव के सभी बच्चो के लिए एक अस्पताल खुलवाए और उनका मुफ्त में इलाज करे मगर गरीबी की रेखा उसके भाग्य में शायद पहले से लिखी हुई थी, कविता के बाबा जानते थे की उनकी बिटिया एक रोज़ उनका नाम ज़रूर गर्व से ऊँचा करेगी और वो अपनी बिटिया रानी का हौसला बढ़ाते उसकी मदद करते उसके माता पिता अब कविता के लिए कुछ पैसे बचाकर रखने लगे जिससे वो कविता को आगे की पढ़ाई करने शहर भेजना चाहते थे, अब कविता अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी, उसे अब आगे बढ़ने के लिए शहर जाना था कही न कही शहर का नाम सुनकर कविता को भय लगता और वो रो पढ़ती क्युकी पिछली वर्ष भी पास ही के गांव में रहने वाले किशोर नामक लड़के का शहर जाके कुछ पता न चला मगर कविता हार मानने वालो में से नहीं थी, उसने हिम्मत रखकर कदम आगे बढ़ाये और चल दी माँ और बाबा चिन्ता में रहने लगे कविता को शहर जाकर हर चीज़ की समझ आने लगी वो अब काफी कुछ सिख चुकी थी !

शहर में कविता को काफी समस्याओ का सामना करना पढ़ा उसे कुछ ऐसे लोग भी मिले जिनकी नज़र अच्छी न थी और कविता जैसी सूंदर लड़की को देखकर हर कोई उसे पसंद कर लेता था किन्तु कविता भी अब समझदार हो गयी उसे दुनियादारी की परख जो होने लगी थी वो हर मुसीबत का दटकर सामना करती सिर्फ अपने सपनो को पूरा करने की ख्वाइश में वो दिन रत कोशिशें किया करती।

कविता को शहर आने के बाद काफी मुसीबतों से गुज़रना पढ़ा छोटे से घर से होने के वजह से लोग उसे गिराकर देखते और फिर भी वो सब चुपचाप सहा करती थी, कविता के पास काफी बार लिखने के लिए पेन तक नहीं होता था तब वो अपने हाथों से मिट्टी के खिलौने बनाकर बेचा करती जिससे उसे कुछ पैसे मिल जाते और वह उन पैसो से अपना सामान खरीद के लाती, कविता के बाबा का काम बहुत ही कम चलने लगा था जिससे अब वो कविता को पैसे नहीं भेज पा रहे थे ऐसे में कविता उनके हालत समझते हुए खुद ही सब करने लग गयी वो किसी को परेशांन नहीं करती न किसी को अपनी तकलीफ बताती वो कभी कभी पैसे न होने पर पुराने कपडे खरीदकर पहना करती दिन इसी तरह बीतते चले गए और आखिरकार वो दिन आया जिसका कविता को बेसब्री से इंतज़ार था।

इस वर्ष कविता डाक्टरी की परीक्षा में सबसे अव्वल आयी थी और सब हैरान थे और सभी को उसकी सफलता उसकी लगन उसकी महेनत पर विश्वास हो गया उसने अपने माँ बाबा के साथ साथ गांव का नाम भी रोशन कर दिया था ये सब कविता की महेनत का ही परिणाम था अब कविता घर आ चुकी थी पुरे गांव में कविता की सफलता पर जश्न मनाया गया अब कविता पुरे गांव की बिटिया थी कुछ साल बाद कविता ने उसी गांव में अस्पताल खोलकर मुफ्त में इलाज करना शुरू कर दिया जिससे अब गांव का एक भी बच्चा बीमारी से कोसो दूर था कविता ने अपने हौसलों में उड़ान भरी और अपनी कड़ी मेहनत से सपनों को पूरा भी किया तभी तो कहते हैं कोशिश करने वालो की हार नहीं होती !


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