Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Inspirational

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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

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सफर का सच

सफर का सच

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ट्रेन मुम्बई शिवाजी टर्मिनल से खुली प्रथम श्रेणी का कुपा आमने सामने बैठे दो अजनबी मुसाफिर एक बेहद आधुनिक समाज की खूबसूरत भारत कि गौरव गरिमामयी नारी शक्ति कि प्रतीक रंजीता एवं सामने बैठे थे भारतीय सेना के अधिकारी दिव्यांश चटर्जी ट्रेन टिकट कलेक्टर ने आकर पहले मैडम रंजीता से पूछा मैडम आपको कोई परेशानी तो नही है? जो भी रेल द्वारा सुविधाएं दी जानी है वह उपलब्ध है मैडम रंजीता ने कहा जी मुझे बहुत खुशी है कि रेल ने बदलते समय के अनुसार अपनी जिम्मीदारियो को समझा है और उसी के अनुसार सुविधाओ को विकसित कर उपलब्ध कराया है ।

कोच कॉन्डक्टर ने वही सवाल दिव्यांश चटर्जी से किया दिव्यांश बोले महोदय आपकी सेवाओं से हम संतुष्ट है और विश्वास करते है रेल के किसी यात्री को रेल से यात्रा करने में भारतीय एव भारतीय रेल पर गर्व होगा ।

कोच कॉन्डक्टर जा चुके थे कूपे का दरवाजा जाते जाते उन्होंने पर्दा खींच कर स्वंय बन्द कर दिया और चले गए ।

ट्रेन अपनी रफ़्तार से चलती रही दिव्यांश चटर्जी कुछ देर तक मैगज़ीन पढ़ने के बाद पॉकेट से मोबाइल निकाला और मोबाइल में व्यस्त हो गए मैडम रंजीता अपने मोबाइल में कोच कॉन्डक्टर के जाने के बाद से ही व्यस्त थी रात के साढ़े दस बज रहे थे एका एक मैडम रंजीता ने जैसे स्वंय से कुछ कहने के अंदाज़ में बोली क्या सोसल मीडिया का जमाना आ गया है?कोई कुछ भी पोस्ट कर देता है ना कोई मर्यदा बच गयी है ना ही संस्कार लगता है समाज का नैतिक पतन इस कदर हो चुका है जहां से किसी भी छोटे छोटे से इंसान का बच पाना मुश्किल है फेसबुक, इंस्टाग्राम ,व्हाट्सएप आदि ऐसे सोसल मीडिया है लगता ही नही है कि सोसल मीडिया पर शासन प्रसाशन का कोई नियंत्रण है अनाप संताप भौंडा अश्लील जिसको जो मर्जी पोस्ट कर देता है साथ ही साथ तरह तरह के प्रलोभन आदि के कारण ठगी का धंधा भी सोसल मीडिया पर जोरो पर है।

दिव्यांश चटर्जी मैडम रंजीता की बातों को बड़े ध्यान से सुनते हुये बार बार कुछ कहने का मन होते हुए भी स्वंय को सिर्फ इसलिए रोके थे कि पता नही उनकी कौन सी बात मैडम को नागवार लगें अंत मे मैडम रंजीता ने स्वंय ही कहा साहब सोसल मीडिया कि अश्लीलता और अवैध मनगढ़ंत एव अनाप संनाप समूहों एव उनके क्रिया कलाप से आपको कैसा लगता है ?

वर्तमान में विकासशील से विकसित हो रहे समाज की संस्कृति एव संस्कार से?

दिव्यांश ने मैडम रंजीता की तरफ मुखातिब होकर पूछा मैडम आप मुझसे कुछ कह रही है ?

 मैडम रंजीता ने कुछ मजाकिया अंदाज में कहा कि "नही तो आपको लगता है कि मैं रेल कूपे की दीवारों और दौड़ती ट्रेन कि पटरियों से बात कर रही हूँ जनाब मैं आप ही से वर्तमान सोसल मिडिया के संदर्भ में बात कर रही हूँ आप देखने से शिक्षित एव संभ्रांत व्यक्तित्व लग रहे है अतः आपके विचार सम्माज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।"

दिव्यांश चटर्जी बोले "मैडम आप भी शिक्षित एव संभ्रांत समाज कि गौरव शाली नारी शक्ति है एक तो भारत मे अब भी सामान्यतः प्रथम श्रेणी के वातानुकूलित रेल कोच में सामान्य व्यक्ति के बस की बात नही है किराया बहुत महंगा है सामान्य व्यक्ति वही यात्रा करता है जिसे या तो सरकारी सुविधा प्राप्त है या जो पैसे वाला है किसी कारण से हवाई यात्रा सुलभ नही हो पाती है।

वही लोग इस श्रेणी में सफर करते है रही बात सोसल मीडिया के स्तरहीन होने कि तो हमे अपने समाज के ही समूह में रहना चाहिए सारे जहां का दर्द जिगर में लेकर चलने से क्या फायदा?

सोसल मीडिया के क्रिया कलाप सोच सांमजिक स्तर और पसंदीदा क्षेत्र के अनुसार ही चलते है जैसे साहित्य प्रेमी साहित्य समूह को पसंद करेगा वहां उसके आवश्यकता एव जरूरत के अनुसार जानकारिया एव सुझाव तथा महत्वपूर्ण विषय वस्तुएं मिलेंगी ,जो विज्ञान में रुचि रखता है उसके लिए अलग समुदाय समाज है जो ज्योतिष में रुचि रखता है उसका समुदाय समाज अलग है आप नारी समाज के लिए समुदाय समाज अलग है हां कुछ नौजवान वर्ग है जो सोसल मीडिया को लेकर दिग्भ्रमित है अवश्य है जिसके कारण पूरे सोसल मीडिया को जो समाज राष्ट्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण है को वेवजह बदनाम होना पड़ता है।

वैसे भी किसी भी चीज के दो महत्वपूर्ण पहलू होते है एक सकारात्मक दूसरा नकारात्मक निर्भर इस बात पर बहुत कुछ करता है कि हमारी सोच का दायरा क्या है? 

मैडम हमे सोसल मीडिया में कोई त्रुटि नजर इसलिये नही आती है क्योंकि संतुलित व्यवहारिक आचरण ही सकारात्मक एव सार्थकता के निर्माण का आधार है दिव्यंश चटर्जी की बाते बड़े गौर से मैडम रंजीता सुन अवश्य रही थी किंतु उन्हें अच्छा बिल्कुल नही लग रहा था कारण दिव्यांश चटर्जी कोई समर्थन मैडम रंजीता की बात का नही कर रहे थे।"

जब मैडम रंजीता दिव्यांश चटर्जी की बातों से ऊब गयी तब उन्होंने बात बदलते हुए कहा "छोड़िए साहब यह सब जैसे तैसे चलता ही रहेगा आप यह बताइए कहा के रहने वाले है? 

मुम्बई कैसे और कहां जा रहे है ?" मैडम रंजीता से एक साथ इतने प्रश्न सुनकर दिव्यांश चैटर्जी बोले मैडम "हम अपने अपने मकसद की यात्रा पर निकले है आप अपनी मंजिल का स्टेशन आते ही उतर जाएंगी और मैं अपनी मंजिल।"

मैडम रंजीता को लगा जैसे उनका अपमान ही दिव्यांश चटर्जी ने कर दिया हो वह मन ही मन खीजते हुये बोली बात तो आपकी सही है लेकिन फिर भी मानवता का तकाजा है कि दो इंसान एक साथ कुछ देर कुछ घण्टे ही सही गर साथ हो तो उन्हें एक दूसरे के विषय मे जानने का हक है क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। 

दिव्यांश चटर्जी को स्प्ष्ट हो गया कि सामने बैठी महिला से पिंड छुड़ाना आसान नही है अतः जो पूछ रही है उंसे बता देना ही सही होगा दिव्यांश चटर्जी बोले

"मैडम मै कोलकाता का रहने वाला हूँ और मुम्बई भाई की लड़की कि शादी में आया था पत्नी और बच्चे मुंम्बई में ही भाई के घर उनके परिवार के साथ रुके हुए है मैं महाकाल और ओंकारेश्वर दर्शन के बाद दिल्ली जाऊंगा और पुनः वहां से मुम्बई और मुंबई से परिवार के साथ कोलकाता लौट जाउँगा।"

मैडम रंजीता बोली वेरी गुड दिव्यांश चटर्जी चुप हो गए कुछ देर तक कूपे का वारावरण पिन ड्राप साइलेंट रहा लेकिन बहुत देर तक नही रह सका मैडम रंजीता दिव्यांश से बोली "आपने मुझसे नही पूछा कि मैं कहाँ की हूँ कहा जा रही हूँ दिव्यांश चटर्जी बोले मैं आवश्यक नही समझता ना ही मुझे आपकी यात्रा या आपके विषय मे जानने में कोई रुचि है। 

दिव्यांश चटर्जी की बातों ने मैडम रंजीता को बहुत आहत किया वह ऐसे घायल हुई जैसे किसी ने खूबसूरत नागिन के नारी स्वरूप का सर ही कुचल दिया हो वह आहत मन से सन्तुलित एव स्वंय को संयमित करती बोली नही महोदय मेरा मतलब कत्तई कुछ और नही था दिव्यांश चटर्जी बोले मैडम अब आप अपनी बक बक बन्द करें रात बहुत हो चुकी है मुझे नीद आ रही है यदि आप ऐसे ही बक बक करती रही तो कोच कॉन्डक्टर को बुलाकर मैं शिकायत करूँगा की आप बहुत डिस्टर्ब कर रही है ।

अब क्या था जैसे घायल नागिन पूरे रौ में आ गयी हो मैडम रंजीता बोली ठिक है अब आप कोच कॉन्डक्टर को ही बुलाए देखते है वह क्या कर सकता है ?

अनाप सनाब बोलने लगी पता नही अपने आप को क्या समझते है ?औकात का पता नही और पहचान छुपाने के लिए अनाप संनाप हरकत करते रहते है थर्ड क्लास मिडिल क्लास लेबर क्लास लोग पता नही कहा से चले आते है भुख्खड़ वातानुकूलित प्रथम श्रेणी रेल डिब्बे में निश्चित ही यह आदमी भूखे नंगे समाज का सरकारी मुलाजिम है और सुविधा के अंतर्गत रेल के प्रथम श्रेणी कोच में यात्रा कर रहा है। 

दिव्यांश चटर्जी रंजीता की बात सुनते बहुत देर तक टालने की कोशिश करते रहे जब पानी सर से ऊपर निकलने लगा तब उन्होंने कोच कॉन्डक्टर को बुलाया कोच कॉन्डक्टर के आते ही रंजीता ने चिल्लाना शुरू कर दिया और बोलने लगी कॉन्डक्टर साहब यह आदमी जबसे कूपे में बैठा है तब से अनाप संनाप हरकत करता आ रहा है मै तो समझती हूँ कि रेल के उच्च श्रेणी में शिक्षित सभ्य उच्च वर्ग के लोग ही सफर करते है यह आदमी बहुत गिरा और औरतों के प्रति घृणित नजरिया रखने वाला इंसान है ।

अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकवाईये इसे पुलिस के हवाले करते है और दूसरी ट्रेन से जाएंगे और ताबातोड़ उसने आठ दस जगह मोबाइल से बात किया तब तक मनमाड ट्रेन रुकी कोच कॉन्डक्टर दिव्यांश एव रंजीता को लेकर आर पी एफ थाने गए वही तक उनकी ड्यूटी थी और वह चले गए आर पी एफ के इंस्पेक्टर नागेश कुलकर्णी ने जी आर पी थाने के इंस्पेक्टर सौरभ साठे को बुला लिया मैडम रंजीता आपे से बहार दिव्यांश चटर्जी पर आरोप पर आरोप मढती जा रही थी दिव्यांश चटर्जी शांत सुनते जा रहे थे आर पी एफ इंस्पेक्टर नागेश कुलकर्णी एव जी आर पी इंस्पेक्टर सौरभ साठे एक साथ बोल उठे महोदय एक संभ्रांत महिला का आरोप है कि आपने सफर के दौरान अभद्र आचरण एव व्यवहार किया जो कानूनन गम्भीर अपराध की श्रेणी में आता है यदि आपको कुछ भी कहना है तो अभी बोलिये नही तो मैडम रंजीता की तहरीर पर आपको हम लांगो को हवालात में बंद करना होगा ।

दिव्यांश चटर्जी बड़े विनम्र शांत मुद्रा में बोले इंस्पेक्टर सौरभ साठे जी एव एव इन्स्पेक्टर नागेश कुलकर्णी जी आप लोग दोनों पैरों के घुटने से ऊपर पैंट उठाकर देखे साथ ही साथ मेरे दाहिने हाथ के शर्ट को कोहनी तक उठा कर देखने की कृपा करें इंस्पेक्टर नागेश कुलकर्णी ने दिव्यांश चटर्जी के दोनों पैर के पेंट को घुटने से ऊपर तक ज्यो ही उठाया दिव्यांश के दोनों आर्टिकल फिसियल पैर नागेश के हाथों में आ गए ठिक उसी प्रकार जब सौरभ साठे ने दिव्यांश चटर्जी के दाहिने हाथ को कोहनी से ऊपर शर्ट उठायी तभी समूचा आर्टिफिशियल हाथ निकल कर बाहर निकल आया।

इंस्पेक्टर सौरभ एव इंस्पेक्टर नागेश हतप्रद दिव्यांश को देखते रह गए तब दिव्यंश चटर्जी ने बोलना शुरू किया मैं लेफ्टिनेंट जनरल दिव्यांश चटर्जी हूँ कारकिल युद्ध मे दुश्मनों से लड़ते हुए मैं बहुत बुरी तरह से जख्मी हो गया बचने की कोई उम्मीद नही रही पूरे शरीर मे जहर फैलने लगा तब डॉक्टरों ने मेरे दोनों पैर एव दाहिना हाथ एव गुप्तांग काट कर निकाल दिए ।

मैं पैदा हुआ एक पूर्ण पुरुष लेकिन कारकिल युद्ध के बाद में कृत्रिम ट्रांसजेंडर हूं अब आप दोनों स्वंय निर्णय करे कि मुझे हवासलात में बंद करना है जिसने देश के लिए देश की रक्षा के लिए, देश के स्वाभिमान के लिए जीवन का लगभग बलिदान ही दे दिया आज सिर्फ सांस लेता जीता जागता पुतला है या जिसने सम्प्पन्नता धन के अभिमान में एक देश भक्त का अपमान किया उसके बलिदान का परिहास उड़ाया और हां आप सेना मुख्यालय से बात करें मेरा बैज नम्वर है 62646589 इंस्पेक्टर नागेश कुलकर्णी ने सेना मुख्यालय फोन मिलाया उस समय सुबह के 3 बज रहे थे ।

सेना मुख्यालय ने तुरंत थल सेनाध्यक्ष से हॉट लाइन पर नागेश कुलकर्णी को कनेक्ट कराया।    

सेनाध्यक्ष ने नागेश को बताया कि दिव्यांश भारतीय सेना का अभिमान जांबाज शान है वह गणतंत्र दिवस पर सम्माननित होने से पूर्व महाकाल एव ओंकारेश्वर दर्शन करना चाहते थे उनके साथ अति महत्वपूर्ण व्यक्ति की तरह आचरण किया जा ट्रेन तो उनकी छूट चुकी है आप लोक स्वंय उन्हें महाकाल एव ओंकारेश्वर दर्शन के लिए ए सी लक्जरी कार की व्यवस्था करे एव उन्हें पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराए तथा महाकाल एव ओंकारेश्वर का दर्शन कराते हुए उन्हें गणतंत्र दिवस से पूर्व दिल्ली पहुँचाना सुनिश्चित करें ।

इंस्पेक्टर नागेश कुलकर्णी यस सर के अलावा कुछ भी बोल सकने कि स्थिति में नही थे पुनः सेना अध्यक्ष ने निर्दर्शित किया कि जिस बदतमीज महिला के कारण माँ भारती के बीर सपूत भारतीय सेना के लिए प्रेरणा पुरुषार्थ दिव्यांश जी को परेशानी उठाते हुए बेइज्जत होना पड़ा उसके विरुद्ध शक्त से शक्त कार्यवाही सुनिश्चित की जाय ।

उधर से ज्यो ही सेनाध्यक्ष ने फोन डिस्कनेक्ट किया नागेश कुलकर्णी बोले "मैडम रंजीता आपको एक नेक बहादुर भारतीय सेना के अधिकारी के साथ अभद्र आचरण के आरोप में हिरासत में लिया जाता है इतना सुनते ही पहले से सहमी रंजीता फुट फुट कर रोने लगी जैसे उन पर बिपत्ति का पहाड़ ही टूट पड़ा हो लेकिन इंस्पेक्टर नागेश कुलकर्णी एव सौरभ साठे कर्तव्य निर्वहन को बाध्य थे बोले मैडम आपके लिए स्वंय कुछ भी चटर्जी साहब ही कर सकते है हम कुछ भी नही कर सकते है और स्वंय रंजीता के व्यथित विलाप को देखते हुए दिव्यांश से रंजीता को क्षमा दान देने के लिए अनुरोध करने लगे ।

दिव्यांश चटर्जी ने भावुक होते हुए कहा भारत की हर नारी देश की सीमाओं पर खड़े लड़ते सिपाही की माँ या बहन ही हो सकती है जिस भावनाओं के वसीभूत हँसते हँसते वह जान देता है हर वर्ष देश के सभी कोनो से करोड़ो जानी अनजानी बहने प्रतीक स्वरूप राखियां देश के जवानों के लिए भेजती है मुझे रंजीता में मेरी नटखट बहन एव भारत माँ की नटखट बेटी ही दिखती है मैं बड़े होने के नाते मेरा कर्तव्य दायित्व दोनों है कि इन्हें और दुख ना पहुंचे मैं इन्हें माफ करता हूँ एक शर्त पर की गणतंत्र दिवस पर जब भी मुझे सम्माननित किया जाय महामहिम द्वारा रंजीता वहाँ मौजूद रहेंगी ।

इंस्पेक्टर नागेश कुलकर्णी ने कहा सर इसके लिए तो आपको इन्हें महाकाल ओंकारेश्वर का दर्शन कराते हुए दिल्ली ले जाना हो गया और सम्मान समारोह के बाद साथ मुंबई ।

दिव्यांश ने रंजिता को साथ लिया और ओंकारेश्वर औऱ महाकाल दर्शन करने के बाद सम्मान समारोह में जहां रंजिता ने दिव्यांश के सम्मान प्राप्त करते समय भवातिरेक हो गयी उसकी नज़रों में अश्रु जल धारा बहने लगी दोनों हाथों से ताली बजाती और आंखों से अश्रुओं की धार जो खुशी एव प्राश्चित के समन्वय थे ।

पुनः दिव्यंश चटर्जी हवाई जहाज से रंजिता के साथ मुंम्बई एयर पोर्ट उतरे जहां रंजिता के पति शिवेश बहुत बड़े व्यवसायी सिद्धार्थ बेटी सुरेखा बेटा सम्यक थे तो दिव्यांश की पत्नी परनीता बेटा उज्ज्वल, उद्भव थे दोनों परिवारों ने एक दूसरे का स्नेह सम्मान आदर के स्वागत किया मुम्बई एयर पोर्ट इस अद्भुत मिलन का साक्षी बना।।



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