आलोक कौशिक

Tragedy

3.5  

आलोक कौशिक

Tragedy

सफलता

सफलता

2 mins
130


सन् दो हज़ार अठारह में प्रशासनिक सेवा हेतु बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा के अंतिम चरण का परिणाम आया था। मनीषा को सफलता प्राप्त हुई थी लेकिन मानव कुछ अंकों से असफल हो गया था। मनीषा और मानव अलग-अलग शहरों के रहने वाले थे किंतु दो वर्षों से दोनों पटना में रहते थे और एक ही कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ते थे। दोनों एक दूसरे से बेहद प्यार भी करते थे। मानव अत्यंत मेधावी छात्र था लेकिन फिर भी वह असफल हो गया था। मानव अपनी असफलता से निराश तो था, लेकिन उसे मनीषा के सफल होने की ख़ुशी भी थी। उसने अपनी असफलता को स्वयं पर हावी नहीं होने दिया और पुनः अगले वर्ष होने वाली परीक्षा की तैयारी में लग गया। कुछ माह उपरांत मनीषा को बिहार लोक सेवा आयोग से प्रशिक्षण हेतु बुलावा आया तो वह प्रशिक्षण प्राप्त करने प्रशिक्षण केंद्र चली गई। मानव को जब भी अकेलापन महसूस होता तो वह मनीषा से फोन पर बातें कर लिया करता था। लेकिन कुछ समय बाद मनीषा ने मानव का फोन रिसीव करना बंद कर दिया। इस बात से मानव को बहुत तक़लीफ़ हुई लेकिन उसने किसी से इस बात का ज़िक्र नहीं किया। 

नया वर्ष प्रारंभ हो चुका था। कुछ महीनों के बाद परीक्षाएं शुरू होने वाली थीं। मानव परीक्षा की तैयारी में लगा हुआ था। लेकिन जब भी मानव को मनीषा की याद आती तो वह यह सोचकर मानसिक रूप से परेशान हो जाता था कि जो लड़की उसके साथ सात फेरे लेने की बातें किया करती थी, वह सफलता मिलते ही सात हफ़्तों में बदल गई। 

आख़िरकार सन् दो हज़ार उन्नीस में बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाएं संपन्न हुईं और तदुपरांत परीक्षाफल घोषित किए गए। पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी मानव कुछ अंकों से असफल हो गया। इस बार मिली असफलता से मानव को मानसिक आघात पहुंचा और वह अवसाद ग्रस्त हो गया। मानव के पिता ने पटना में मानव का इलाज करवाया और फिर उसे लेकर अपने गांव आ गए। 

सन् दो हज़ार बीस में मनीषा की पहली नियुक्ति प्रखंड विकास पदाधिकारी के पद पर उसी प्रखंड में हुई, जिस प्रखंड में मानव का गांव था। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy