संतुष्टि

संतुष्टि

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"हमारे नेता सिर्फ़ अपनी जेबें भरने का काम कर रहें हैं भाई साहब ! देशभक्ति से किसी का कोई सरोकार नहीं", राव साहब की जोशीली आवाज़ बाहर तक सुनाई दे दे रही थी।

मोहल्ला समिति की बैठक चल रही थी। मुद्दा मोहल्ले के विकास का था।पर बैठक में हो रही बातों में दूर-दूर तक उसका नमोनिशान नहीं दिख रहा था। बस राजनीति की चर्चा ज़ोरों पर थी।

"कोई पार्टी किसी काम की नहीं जी। देखते नहीं क्या रोज हम। रिबन काटने से ही फ़ुर्सत नहीं नेताओं को, काम क्या ख़ाक करेंगे !"

"अजी रोना तो इसी बात का है। भाषण देकर, सज-धज कर कार्यक्रमों की शिरकत करने में ही संतोष मिलता है इन्हें।

अरे भाई ! चाय आ गई, पकौड़े भी। आनंद लीजिए। हमें तो इसी में आनंद मिलता है", कहते हुए पाल जी ने खीसें निपोरी।

"तुम सुनाओ भाई श्याम जी ! कहाँ रहते हो ? कभी हमारी चौपाल में भी बैठ लिया करो। झुग्गी-झोंपड़ी वालों में ही लगे रहोगे क्या ?

आज आप लोगों की चौपाल में ही तो हूँ। पर यहाँ नेताओं को कुसते हुए ही देख रहा हूँ। काम से तो यहाँ भी किसी का सरोकार नहीं दिख रहा। मोहल्ले का विकास फिर कैसे होगा ज़रा बताइए तो जब हमें केवल चाय-पकौड़ों में ही संतुष्टि दिखेगी। मेरी संतुष्टि की परिभाषा तो अलग है पाल जी,जो मुझे ग़रीब बच्चों को पढ़ा कर मिलती है।चाय पी लेने के बाद सोच कर देखिएगा, कहते हुए श्याम जी पढ़ाने के लिए चल दिए।


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