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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Fantasy Inspirational Others

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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Fantasy Inspirational Others

संत अनुष्ठान कि अंतिम आहुति

संत अनुष्ठान कि अंतिम आहुति

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सन्त रमन्ना के प्रयास से खानाबदोश परिवार जिनकी संख्या मात्र सात थी को शासन द्वारा स्थायी निवास के लिए जमीन दे दी गयी लेकिन खानाबदोश परिवार अस्थाई तंबू डालकर ही उन जमीनों पर रहते थे ।

संत रमन्ना ने देखा कि दो वर्ष का समय बीत जाने के बाद भी खानाबदोश परिवार अपने स्थाई पहचान के घर के प्रति बहुत उत्साहित एव जागरूक नही नज़र आ रहे थे। 

सन्त रमन्ना ने इस कार्य के लिए खानाबदोश परिवार के उन बच्चों को चुना जिन्हें उन्होंने शिक्षित करने के  मुहिम शुरू कर रखा था उन बच्चों में गोकुल ,विलास, भोला, कृपाल ,मज़म्मिल ,मंसूर , किशन सम्मिलित थे ।

सन्त रमन्ना ने पास के बस्ती के आठ दस परिवारों से अनुरोध किया कि वो लोग अपने बच्चों को कुछ दिनों के लिए उनके सानिध्य में शिक्षित हो रहे खनाबदोस बच्चों के साथ खेलने के लिए भेजे बस्ती वालो के मन मे सन्त रमन्ना कि बहुत इज़्ज़त थी उनको सन्त के प्रस्ताव में एव सन्त कि नियत में  कोई खोट नज़र आयी अतः बिना किसी प्रश्न तर्क के बस्ती वालों ने अपने बच्चों को खानाबदोश परिवार के बच्चों के साथ भेजना शुरू कर दिया।

बस्ती के बच्चे एव खनाबदोस परिवारो

के बच्चे साथ साथ खेलते  मिलते जुलते साथ खेलते लड़ते झगडते कब एक दूसरे के करीब भावनाओं से जुड़ गए पता ही नही चला बस्ती के बच्चे खानाबदोश बच्चों को अपने साथ कभी कभार अपने घर ले जाते खानाबदोश परिवार के बच्चे अपने दोस्तों के घर को देखकर मन ही मन स्वंय पर शर्मिंदा होते सन्त रमन्ना यही तो चाहते थे कि खानाबदोश परिवारो कि नई पीढ़ी में स्थाई संस्कृति का विकास हो और उसके प्रति विश्वास एव जागरूकता बढ़े ।

बस्ती के अपने मित्रों के यहां आते जाते खानाबदोश बच्चों में अपने घर की ललक जागी उन्होंने अपने माता पिता के समक्ष घर बनाने के लिए हठ करना शुरू कर दिया कुछ दिन तक खानाबदोश परिवारों ने समझा की बच्चे है कुछ दिन बाद भूल जाएंगे लेकिन उनका यह अनुमान गलत सावित हुआ और उनके बच्चों ने इस प्रकार जिद्द करना शुरू कर दिया कि आए दिन झगड़ा फसाद शुरू हो गया पारिवारिक समस्याओं से उब कर खानाबदोश परिवारों के पुरुष मंझारी के नेतृव में और महिलाएं चनवा के नेतृत्व में सन्त रमन्ना के पास गए और बोले महाराज हमारे बच्चे अब आपके पास नही आ सकेंगे पता नही क्या क्या पढ़ सिख कर जाते है?

घर पर फसाद खड़ा करते है अब बच्चे अपना घर बनाने के लिए रोज घर मे  झगड़ा फसाद करते है सन्त रमन्ना ने कहा ठीक ही तो कह रहे है बच्चे तुम्हारे तुम लोग भी इंसान हो तुम लोंगो को भी इज़्ज़त से जीने का हक है क्या चाहते हो ?जैसे पीढ़ियों से खानाबदोश रहे हो वही सही है उसे नही छोड़ना चाहोगे? तुम्हे भगवान श्री कृष्ण कि कृपा से उनके जन्म भूमि में भूमि मिली है जहाँ से तुम्हे देश समाज मे नई पहचान मिलने वाली है तुम लोग अब भी खानाबदोश यहां से वहां अपमानित तिरस्कृत जीवन जीना चाहते हो क्या? तुम लोंगो का जीवन सिर्फ भोजन एव मेहनत तक ही सीमित रहे ?

गर्मी सर्दी बरसात चाहे जो भी बने हालात तुम भागते रहोगे आखिर कब तक ?तुम्हे पता नही तुम्हारी संतानों ने कहा जन्म लिया तुम्हारे पुरखे कहा दफन है या जलाए गए तुम तो वो इंसान हो जो चाहे तो अपने पसीने से संसार को जगमगा दे हम कहाँ कहते है कि तुम पुश्तैनी धंधे व्यवसाय को छोड़ दो हम यह भी नही कह रहे कि हमने तुम्हें रहने के लिए  शासन से जमीन दिला कर कोई एहसान किया है हम तो  सिर्फ यही चाहते है कि तुम सभी भगवान श्री कृष्ण कि पावन धरा में नए सामाजिक पहचान सम्मान के साथ नव जीवन का शुभारम्भ करो यही तुम्हारे सामने खड़ी तुम्हारी पीढ़ी तुम्हारे बच्चे चाहते है ।

मंझारी चनवा और खनाबदोस परिवारो को सन्त रमन्ना कि बात समझ मे आ गयी  सभी परिवारों ने अपने घर के निर्माण का संकल्प लिया और सन्त को एव वर्ष कि अवधि में पूरा करने का वचन दिया ।

खनाबदोस परिवार वापस लौटकर अपने घर बनाने के लिए बड़ी तत्परता से जुट गया एक वर्ष में सभी परिवारों ने अपने मेहनत से मिट्टी के घर बना लिए और फुस कि छत डाल लिया जब खानाबदोश परिवार अपने द्वारा बनाये अपने अपने घरों में गया तो सभी परिवारों के प्रत्येक सदस्य को  अपने इंसान होने का एहसास जीवन मे पहली बार हुआ कनात  बरसाती आदि सामान जिससे वे एक जगह से दूसरी जगह तंबू बनाने में प्रयोग करते थे सबके घरों में अतीत के अवशेष के रूप में घर के एक कमरे में रख दिये गए ।

अब सात परिवारों की एक बस्ती बन गयी जिसका नाम रखा संत रमन्ना ने परिभ्रमक लोक।

परिभ्रमक लोक के आस पास रिहायसी कालोनियां थी जो अपनी छोटी मोटी जरूरतों के लिए  धीरे धीरे छोटे मोटे घरेलू उपयोग के औजारों कार्यो एव शहद ,जड़ी बूटी आदि के लिए एव अन्य जरूरतों के अनुसार परिभ्रमक लोक जाते धीरे धीरे परिभ्रमक लोक के परिवारों को पर्याप्त आमदनी का कार्य घर पर ही मिलने लगा साथ ही साथ उन्होंने दुधारू पशुओं को पालना शुरू कर दिया जिससे कि दूध का व्यवसाय भी उनकी आय का एक साधन बन गया परिभ्रमक लोक के परिवारों का जीवन ही बदल गया ।

कभी कभार परिभ्रमक लोक के सदस्य शहद या जड़ी बूटियों के खोज में आस पास के वन प्रदेशो में जाते इसी प्रकार परिभ्रमक लोक के परिवारों का समय अपनी गति से बीत रहा था ।

गोकुल ,विलास ,भोला,कृपाल ,

मज़म्मिल मंसूर ,किशन प्राइमरी शिक्षा पूर्ण कर चुके थे सन्त रमन्ना ने उनके मिडिल शिक्षा कि भी व्यवस्था कर दी थी सभी ने मिडिल तक की शिक्षा पूर्ण कि गोकुल को छोड़ विलास ,भोला, कृपाल ,मज़म्मिल, मंसूर ,किशन के माता पिता ने अपने बच्चों को आगे पढ़ने से अधिक व्यवसाय हेतु सन्त रमन्ना से अनुरोध किया जिसे सन्त रमन्ना ने स्वीकार कर लिया उन्हें पता था कि उनके संरक्षण के बच्चे जो भी कार्य व्यवसाय करेंगे सर्वोत्तम करते हुए समाज राष्ट्र का मजबूत हिस्सा ही बनेंगे ।

गोकुल ने आगे पढ़ने हेतु सन्त से अनुरोध किया सन्त रमन्ना ने गोकुल को संस्कृत कि शिक्षा देनी शुरू किया गोकुल प्रथमा, मध्यमा, शास्त्री, आचार्य कि शिक्षा प्राप्त किया साथ ही साथ भोला ,विलास,कृपाल, मज़म्मिल,मंसूर,किशन के व्यवसाय धीरे धीरे बढ़ते गए और उनकी माली हालत भी सुदृढ़ होती गयी अब सभी के पास अपने पक्के मकान  थे सभी इज्जतदार शहरी बन चुके थे पूरा मथुरा उनके परिवारों के इतिहास को भूल चुका था ।


इधर गोकुल ने भी संस्कृत के कई विषयों में आचार्य तक शिक्षा ग्रहण किया एव  धार्मिक एव कर्मकांड का पांडित्य कार्य कि विद्या का अध्ययन किया वह मथुरा के मंदिरों में धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन करता जिसमे बहुत भीड़ आती जिससे गोकुल को अच्छी खासी प्रतिष्ठा के साथ साथ धन एव ख्याति प्राप्ति हो चुकी थी  कर्मकांड आदि से भी अच्छी आय हो रही थी ।

पिता मंझारी बृद्ध हो चुके थे माँ चनवा कि मृत्यु हो चुकी थी सन्त रमन्ना तिलकधारी भी  जीवन के अंतिम पड़ाव में पहुंच चुके थे ।

एका एक एक दिन गोकुल बरसाने राधारानी मंदिर जाने के लिए तैयार हो रहा था तभी पिता मंझारी ने कहा बेटा लगता है अब अंतिम समय आ गया है मैं सन्त रमन्ना के समक्ष ही मरना चाहता हूँ जैसे उन्होंने अपने तप त्याग से हमारे खानाबदोश घुमंतू  समाज भले ही संख्या में सात ही है से मुक्ति दिला कर खानाबदोश समाज मे  उनके इंसान होने का एहसास कराया हो सकता है उनके समक्ष प्राण निकले तो  सरग मिल जाए इसीलिए मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे सन्त के यहाँ पहुंचा दो दो चार दिन वहीं रहेंगे लौट आएंगे ।

गोकुल ने पिता मंझारी से कहा मुझे सन्त के यहां आपको ले चलने में कोई परेशानी नही है लेकिन मरने की बात मत करो मंझारी बोला बेटा यही दुनियां कि रीत है कल कोई और था तब हम नही थे तुम्हारे दादा जो कहाँ पैदा हुए और कहा मरे पता नही अब हमारा समय पूरा होने को है #हमरे करम कुछ जरूर ठीक होंगे जेके कारण हम भगवान श्री कृष्ण के चरण रज से महकत कण कण में मरब एमा हमरे पुरुखन के भी आशीर्वाद शामिल ह भले ही ऊ घुमंतू रहे अनपढ़ रहे लेकिन रहन साफ सुथरा मन के

#सन्त हमेशा कहत रहत हैं कि आईसन लोगन के भगवान सरगे भेजतेन जरूर हमरे पुरुखन के नेकी आज हमरे कुछ कामे आए #

गोकुल चुप चाप पिता कि बातों को ध्यान से सुन रहा था तभी उसकी पत्नी रूमा अपने डेढ़ साल के बेटे को गोद मे लिए आई और बोली आज ई चुप नही हो रहा है बहुत कोशिश कर चुकी पोते को देखते मंझारी बोला# आज ई केहुसे न मानी आज ई हमरे गोदी में ही चुपाई लाव रूपा मलय के हमरे गोदी द# रूमा ने अपने बच्चे को मंझारी कि गोद मे दे दिया मलय मंझारी कि गोद मे पहुंचते ही चुप हो गया मंझारी ने अपनी दूसरी पीढ़ी के होनहार मलय को लिपट चिपट कर बहुत प्यार किया गोकुल दादा और पोते के आपसी प्रेम को देख हतप्रद था क्योकि अक्सर मलय दादा कि गोद मे जाने से कदराता था  यदि किसी कारण बस मंझारी पोते को गोद मे ले भी लेते तो कुछ ही देर में रोने चिल्लाते लगता लेकिन गोकुल को दादा पोते के नेह स्नेह को देख कर बहुत आश्चर्य हो रहा था ।

झटके के साथ उठते हुये मंझारी बोला #बेटा गोकुल मलय के एकरे महतारी के दे द नाही त हम मोह में पड़ीके सन्त कि पास जाई न पाब#

गोकुल को कुछ समझ मे नही आ रहा था कि वास्तव में आज हो क्या रहा है? क्योकि उसे कुछ अजीब सा अनुभव हो रहा था उसे भी राधा रानी मंदिर बरसाने जाने में बिलंब हो रहा था।

गोकुल मलय को रूमा कि गोद मे देता हुआ बोला रूमा मलय को सम्भालो हम बाबूजी को गुरु श्री सन्त रमन्ना के यहां छोड़ कर राधारानी मंदिर जाएंगे लौटने में बिलंब होगा साथ मे बाबूजी को लेते आएंगे बेटे बहु कि वार्ता को बीच मे काटते हुए मंझारी बोले बहु अब हम का लौटब काहे लौटब तोहन पचन अब समझदार होई गइल है हमार काम भइल खतम गोकुल कुछ झन्नाते हुए बोला आज बाबूजी आप सुबह से ही जाने का का बोल रहे है रात के कुछ उटपटांग सपना त नाही देख लिए है ।

मंझारी ने बड़े संयम के साथ उत्तर दिया नही बेटा ईहे जुग के रिवाज है एमा हम नवा का बोलत हई गोकुल ने कोई जिरह बहस पिता से करना उचित नही समझा और बोला चले बाबूजी हमे भी विलंब हो रहा है।

पिता पुत्र साथ चल पड़े धर्म शास्त्रों कि मान्यता है कि पिता पुत्र को कभी एक साथ घर से नही निकलना चाहिए बारी बारी निकलना चाहिए यह सत्य गोकुल जानता था लेकिन वह प्रयोग और परिणाम के आधार पर ही धार्मिक मान्यताओं को स्वीकृति देता था ।

गोकुल पिता को लेकर गुरु सन्त रमन्ना के आश्रम पहुंचा और बोला महाराज आज बाबूजी बहुत जिद्द कर रहे थे आपसे मिलने के लिए सन्त रमन्ना बोले इनकी जिद्द ऐसे ही नही है यह तो भविष्य का प्रारब्ध है गोकुल बोला महाराज आज सुबह से बाबूजी अजीबो गरीब बात कर रहे है मैंने सोचा आपके पास आने के बाद कुछ इनके विचारों में परिवर्तन होगा लेकिन  बाबूजी और आप दोनों ही एक विचार भाव से बोल रहे है रहस्य क्या है ?सन्त रमन्ना बोले रहस्य कुछ भी नही है गोकुल यही जग कि परम्परा रीत है जो कल था आज नही है जो आज है वह कल नही होगा प्रकृति परिवर्तन का वरण स्वागत करती है तो परमेश्वर आत्म अंश प्राणि परिवर्तन एव विकास का आकांक्षी क्योकि प्रकृति दिखती निष्प्राण है लेकिन है संवेदनशील प्राणवान उसकी जिज्ञासा सिर्फ स्वंय के संरक्षण एव संवर्धन में निहित रहती है जिसका मूल सूत्र श्रोत परिवर्तन है प्राणि कि आकांक्षाओं का अंत नही होता अनंत होती है और भोग कामना के बसीभूत भी अतः प्राणि को नियत के अधीन रहना उसकी विवशता है जबकि प्रकृति स्वंय अपने परिवर्तन का परिवेश एव मार्ग निर्धारित करती है क्योकि चेतन होते हुए भी प्रकृति वासना भोग से रहित शुद्व सात्विक है उसे दूषित भी प्राणि ही अपने निहित स्वार्थवस करता है गोकुल को बात समझ नही आ रही थी जबकि वह स्वंय भी सन्त रमन्ना के ही संरक्षण में ही दीक्षित शिक्षित हुआ था गोकुल ने संत गुरु रमन्ना से अनुमति लेकर राधा रानी मंदिर बरसाने के लिए चल पड़ा ।

गोकुल के जाने के बाद ही सन्त रमन्ना  मंझारी को पूरे दिन धर्म आदि का ज्ञान देते  रहे मंझारी प्रश्न पूछते और गुरु रमन्ना उतर देकर मंझारी कि जिज्ञासा शांत करने का प्रयास करते इधर गोकुल राधा रानी के मंदिर पहुंचकर अपने निर्धारित आयोजन में व्यस्त हो गया कब संध्या ने दस्तक दे दी पता ही नही चला।

शाम आठ बजे अपनी व्यस्तता से खाली होकर गोकुल  सीधे गुरु रमन्ना के आश्रम पहुंचा गुरु के आशीर्वाद के बाद बोला महाराज आदेश हो तो बाबू जी को घर लेकर जाँऊ गुरु रमन्ना ने कहा पूछ लो अपने पिता से क्या वह जाएंगे ?गुरु कि बात सुनकर गोकुल हतप्रद रह गया और गुरु से प्रश्न किया महाराज आप ऐसा क्यो कह रहे है? गुरु रमन्ना ने गोकुल कि जिज्ञासा शांत करते हुए कहा प्रिय शिष्य तुम्हारे पिता अब हमारे साथ भ्रमण पर निकलने वाले है गोकुल ने पुनः प्रश्न किया महाराज क्या आप बाबूजी को लेकर तीर्थाटन पर जाने वाले है ?

सन्त रमन्ना ने एका एक कहा गोकुल कल तुम्हारा कोई अनुष्ठान नही है कल तुम विल्कुल फुर्सत में रहोगे गोकुल को आश्चर्य पर आश्चर्य हो रहा था कि महाराज को तो हमने कल के विषय मे बताया ही नही फिर इन्हें किसने बताया कि कल मैं फुर्सत में हूँ और मेरे पास कोई कार्य नही है वह सोच विचार में डूबा ही था तभी उसकी एकाग्रता को तोड़ते हुए सन्त रमन्ना बोले गोकुल तुम तो यही सोच रहे हो न कि तुम्हारे कल के विषय मे मुझे कैसे पता ?तो तुम इन सब विषयो को त्यागते हुए निश्चिन्त होकर घर जाओ सुबह सूर्य निकलने के बाद आना तिलकधारी को मैं सब समझा कर जाऊंगा तुम तिलकधारी से जो भी जानना हो पूछ लेना क्योकि तुम्हारे बाबूजी मेरे साथ ही जाने वाले है गोकुल को जीवन मे पहली बार गुरु रमन्ना कि बात बहुत अटपटी लगी लेकिन वह कुछ नही बोला उठा और गुरु रमन्ना और अपने बाबूजी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया और घर की तरफ चल पड़ा उसके मन मे बहुत प्रश्न उठ रहे थे जिनका उत्तर वह जानने खोजने कि कोशिश कर रहा था  लेकिन  कोई हल नही मिल रहा था वह और भी उलझता जा रहा था।

घर पंहुचने पर पत्नी रूमा ने प्रश्न किया बाबूजी कहां है ?

गोकुल ने पत्नी को बड़े धैर्य के साथ बाबूजी के न आने की बात बताई यह भी बताया कि कोई खास बात नही है बाबूजी एक दो दिन बाद आ जाएंगे सन्त सम्पर्क में सत्संग उनको अच्छा लग रहा है गोकुल और रूमा देर रात तक बाते करते जाने कब सो गए। 

अचानक ब्रम्ह मुहूर्त कि बेला में तिलकधारी ने गोकुल के घर का दरवाजा खटखटाया गोकुल रूमा आंखे मलते हुए उठे सामने तिलकधारी महाराज को देख कर दंग रह गए पूछा महाराज इतनी सुबह सुबह तिलकधारी महाराज ने बताया कि सन्त रमन्ना यानी गुरु जी और आपके बाबूजी चाहते है कि आप सपरिवार इसी समय चले और साथ मे  विलास,कृपाल ,भोला, मज़म्मिल ,मंसूर ,किशन सबको कहे कि सब लोग अपने अपने परिवार का प्रत्येक सदस्य साथ लेकर चले गोकुल बोला महाराज आप स्वंय हमारे साथ अन्य लोंगो को बुलाने चले तिलकधारी महाराज स्वंय गोकुल के साथ विलास,कृपाल ,किशन मंसूर ,मुजम्मिल और भोला के घर गए और सबको नीद से जगा कर परिवार के सभी सदस्यों के साथ सन्त रमन्ना के बुलावे का निवेदन किया सन्त को सातों परिवार ईश्वर कि तरह पूजते थे किसी को सन्त रमन्ना के बुलावे पर इतनी सुबह जाने से इंकार नही था लेकिन सबके मन मे एक शंका ने घर कर लिया था कि आखिर क्या बात हो सकती है? की महाराज ने एक साथ सभी परिवारों के सभी सदस्यों को एक साथ  बुलाया है ।

सातों परिवार के सभी सदस्य एक साथ चल पड़े और कुछ ही देर में सभी लोग सन्त रमन्ना और मंझारी के सामने खड़े थे लेकिन हतप्रद क्योकि सन्त रमन्ना और मंझारी दोनों अंतिम सांस ले रहे थे सातों परिवारों के सभी सदस्यों की आंखों से अश्रुधारा फुट पड़ी लेकिन किसी के बस में कुछ नही रह गया था तिलकधारी महाराज फुट फुट कर गुरु रमन्ना के चरणों मे बार बार यही कह रहे थे कि महाराज हम जब गए तब आप और मंझारी दोनों ठीक थे कोई बात थी ही नही कुछ ही प्रहर में क्या हो गया ?गुरु रमन्ना बोले प्रिय तिलकधारी चिंता मत करो अब हमारे और मंझारी के जाने का समय आ चुका है सन्त के मुखमंडल पर अजीब आभा का प्रस्फुटन हो रहा था ठीक वैसे ही जैसे कोई जलता चिराग बुझने से पहले फफकता है सन्त ने गोकुल के साथ आए सभी को एक साथ खड़ा देखकर मुस्कुराते हुए बोले आत्मा पंछी है वह कभी किसी काया कि माया तो कभी किसी काया कि माया लेकिन काया घुमंतू नही है वह स्थिर है हाँ चेतना शून्य और चैतन्य का ही अंतर काया जानती है तुम सभी से अनुरोध है कि घुमंतू खानाबदोश होना अभिशॉप है इस अभिशॉप को समाज राष्ट्र से समाप्त करने की जिम्मेवारी गोकुल, भोला,विलास, कृपाल,मंसूर,मुजम्मिल कि एव उनके पीढ़ियों कि है मेरे द्वारा तुमलोंगो को घुमंतू खानाबदोश जीवन से मुक्ति के लिए वर्षो पहले शुरू किया गया अनुष्ठान तब तक नही रुकना चाहिए  जब तक एक भी खानाबदोश परिवार पृथ्वी पर दिखे मैंने तुम सात परिवारों से शुभारम्भ किया है तुम इसे शिखर कि सफलता तक पहुँचाओगे शपथ लेना होगा तुम सबको ।

गुरु कि आज्ञा से सभी ने घुमंतू खानाबदोश के कलंक को समाज राष्ट्र से समूल समाप्त करने का संकल्प लिया मंझारी भी गुरु के चरणों मे उनकी बातों को जैसे बड़े ध्यान से सुन रहा हो ज्यो ही गुरु के साथ सबने शपथ ली अचानक सन्त रमन्ना के और मंझारी के मुख से एक साथ एक स्वर में निकला जय श्री कृष्णा  जै जिनेन्द्र और दोनों के प्राण पखेरू एक साथ उड़ गए वहां गोकुल के साथ खड़े सभी स्तब्ध रह गए आंखों से सबकी अश्रुधारा तो पहले से ही फुट रही थी वातावरण में अजीब सी खामोशी जैसे वहाँ उपस्थित हर व्यक्ति ने अपनी मूल्यवान वस्तु खो दी हो ।


कहानीकार- 

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।


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