संगति का प्रभाव ।

संगति का प्रभाव ।

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एक बालक बहुत ही उदंड था। वह हमेशा अपने दोस्तों के साथ कुछ ना कुछ शरारतें करता ही रहता था। उसकी इन शरारतों का उलाहना कोई ना कोई उसके माता-पिता से देने आते। माता-पिता उसकी इन हरकतों से बहुत परेशान थे। वह विद्यालय में भी पढ़ाई में मन लगाकर नहीं पढ़ता था। बिना कुछ बताए ही विद्यालय से ग़ायब हो जाता था। मास्टर साहब घर पर शिकायत करने आते। माता-पिता को बहुत शर्म लगती थी। वह यह सोचते थे कि यह कैसे अपनी हरकतों से बाज आएगा। कैसे इसकी शिकायतें सुनने को नहीं मिलेगी।

एक दिन माता आपस में इसी प्रकरण पर बात कर रहे थे, उस समय घर पर उस लड़के के मौसा जी भी घर पर आए हुए थे। मौसा जी ने जब यह सब बातें सुनी तो वह भी कुछ परेशान हो गए और कहा तुम चिंता मत करो पास ही एक कपड़े की दुकान है, उस दुकान के मालिक एक बहुत ही सज्जन पुरुष है, उनके पास जो भी जाता है वह सुधर जाता है। इन सब बातों को वह लड़का भी चुपचाप सुन रहा था। उसके माता-पिता भी नहीं इस बात को जान सके कि वह चुपके हमारी बातें सुन रहा है। अगली सुबह लड़के ने सोचा कि आज जाकर उस दुकान के मालिक को मज़ा सिखाऊंगा। वह लड़का अपने माता पिता को बिना बताएं उस दुकान पर पहुंच गया। और उस समय दुकान का मालिक कपड़ों को घरी कर दुकान में लगा रहा था। उसने सबसे पहले दुकानदार से पूछा बाबा, यह साड़ी कितने रुपए की है। दुकानदार ने कहा बेटा यह ₹100 की है। लड़के ने देखते ही साड़ी के दो आधे टुकड़े कर दिए, फिर पूछा बाबा ,अब यह कितने की है? उन्होंने बिना कुछ सोचे कहा बेटा अब यह ₹50 की हो गई, लड़के ने फिर से उन दोनों टुकड़ों के चार टुकड़े कर दिए, फिर पूछा बाबा अब यह कितने की है? दुकानदार ने बड़े नम्र स्वभाव से कहा, बेटा अब यह साड़ी का कोई मूल्य नहीं रहा क्योंकि अब ना यह तुम्हारे काम की रही ना मेरी।

इतनी बात सुनते ही वह लड़का शर्म से उनके चरण पकड़ कर माफ़ी मांगने लगा और कहा, बाबा मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई। दुकानदार ने हँसकर कहा बेटा जाओ अब अपने माता-पिता से जाकर माफ़ी मांगो और आगे से कभी उन्हें उलहाने सुनने का मौका मत देना।

वही लड़का जब घर पर पहुंचा और अपने माता-पिता से माफ़ी मांगी और कहा पापा मेरी उस कपड़े वाली दुकान के बाबा ने आँखें खोल दी। अब मैं कभी भी शरारतें नहीं करूँगा और मन से अपनी पढ़ाई करूँगा। माता पिता को बड़ा ही आश्चर्य हुआ और साथ में बहुत ही खुशी भी हुई। उन्होंने दुकान में जाकर उस दुकानदार को धन्यवाद दिया। और दुकानदार ने कहा संगत ही बिगाड़ती है और संगत ही सुधारती है। वास्तव में वह दुकानदार एक अच्छे संत भी थे अतः उनकी संगत से ही वह बालक सुधर गया।

अतः तुलसीदास जी ने भी कहा है कि आधी घड़ी के किसी संत की संगत में रहकर अच्छे-अच्छे सुधर जाते हैं।


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