समय बदलते देर नहीं लगती
समय बदलते देर नहीं लगती
दीक्षा को किशोरावस्था से ही दमा अर्थात अस्थमा संबंधी शिकायत रहती थी। उस समय साल में उसको यह समस्या दो से तीन बार ही हुआ करती थी। जैसे-जैसे आयु बढ़ने लगी उसे यह समस्या जल्दी जल्दी होने लगी। सांस में तकलीफ होने के कारण दीक्षा के पापा मम्मी उसे डॉक्टर के पास लेकर जाते थे जहां डॉक्टर ने तब उनको बताया कि दीक्षा को धूल, मिट्टी तेज गंध,तनाव एवं मौसम बदलने से होने वाली एलर्जी है और कुछ दवाइयां लिख दी और कहा कि जब भी सांस में तकलीफ हो तो यह एक गोली खा लिया करो जिसे समस्या कुछ ही देर में नियंत्रित हो जाएगी।
समय बीतता गया। दीक्षा की शादी हो गई और दीक्षा के ससुराल में जब कभी उसे अस्थमा संबंधी समस्या होती तो वह डॉक्टर द्वारा लिखी गई एक गोली खा लेती और कुछ ही देर में उसको आराम आ जाता। स्थिति अनियंत्रित नहीं होती थी, इसलिए ससुराल में किसी को दीक्षा की इस समस्या का पता ही नहीं चला। यहां तक कि दीक्षा के पति शैलेश को भी दीक्षा की इस समस्या का अंदाजा नहीं हुआ।
धीरे-धीरे उस पर घर की जिम्मेदारियों का बोझ भी बढ़ने लगा। दीक्षा ने प्रोबेशनरी ऑफिसर का पेपर पास कर लिया और अपनी बेटी को जन्म देने के बाद उसकी नौकरी लग गई। व्यस्तता के चलते घर और बैंक में सामंजस्य बैठाने में दीक्षा को काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। अब उसको अस्थमा की समस्या कम कम अंतराल पर होने लगती थी, जो समस्या उसे पहले साल में दो या तीन बार होती थी, अब इस आयु में वह बढ़कर 5 से 7 बार हो गई।
परंतु,कई बार जब रात को उसको यह समस्या होती थी तो जब तक सांस सामान्य नहीं हो जाती थी तब वह कई कई घंटे बैठकर रात गुजार देती थी। इस वजह से शैलेश को उसकी इस समस्या का पता लगा। दीक्षा ने कहा कि कुछ सालों से वह इस समस्या से जूझ रही है और डॉक्टर ने जो दवाई लिखी है समस्या होने पर वह वह दवाई लेती है तो उसको आराम आ जाता है।
दीक्षा बैंक और घर को बखूबी संभालती थी, लेकिन आयु बीतने के साथ स्वास्थ्य पर अस्थमा का प्रभाव इतना अधिक पड़ने लगा कि अब जब भी उसको समस्या होती तो उसके शरीर में जकड़न हो जाती, उसके कंधे अकड़ जाते और उसको सांस नहीं आती थी।
दीक्षा को अपनी सास से बहुत डर लगता था कि कैसे उनको इस समस्या को बताएं। परंतु शैलेश ने उसकी समस्या अपनी मां को बताई तो एक दो दिन तो भारती (सास) ने उसकी स्थिति को समझा परंतु जब यह समस्या बार-बार होने लगी तो उन्होंने यह कहकर दीक्षा को ताना मारा कि यह काम से बचने के लिए अस्थमा अस्थमा करती रहती है, इसे कोई प्रॉब्लम नहीं है, असल में यह कामचोर है। ऐसे व्यंगय भरे ताने सुन दीक्षा अंदर ही अंदर रोती थी क्योंकि शैलेश भी उसकी बातों पर ज्यादा यकीन नहीं करता था और अपनी मां की हां में हां करता था।
एक दिन शैलेश के जीजा जी का फोन आया कि तुम्हारी बहन की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है उसे बहुत तेज बुखार आ रहा है। वह फटाफट अपनी बहन के घर पहुंचा और डॉक्टर के पास ले गया डॉक्टर ने कोरोना टेस्ट के लिए कहा। कोरोना की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद डॉक्टर ने बताया कि इनके लंग्स बहुत अधिक खराब हो गए हैं, इन्हें अस्पताल में एडमिट करना पड़ेगा। अस्पताल में एडमिट करने के बाद शैलेश की बहन शिल्पा को
सांस आने में बहुत अधिक दिक्कत होने लगी, उनका ऑक्सीजन लेवल गिरकर 70 तक पहुंच गया। यहां शैलेश की मां दिन-रात अपनी बेटी की जान बचाने के लिए भगवान की आराधना करती, विभिन्न देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए दिन-रात हनुमान चालीसा पाठ करती और कहती थी किसी भी तरह भगवान मेरी बेटी को बचा लीजिए, उसे सांस लेने में दिक्कत होती है वो न जाने कैसे जी पा रही होगी। डॉक्टर ने जवाब तक दे दिया था कि इसका बच पाना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि संक्रमण की वजह से उनका ऑक्सीजन लेवल हर रोज गिर रहा है। परंतु शैलेश और उसके जीजा जी की समय रहते शिल्पा को हस्पताल में एडमिट कराने और उसकी नियमित देखभाल करने की वजह से एक महीने बाद शिल्पा पूरी तरह स्वस्थ होकर अपने घर वापस आ गई।
ननद के ठीक होकर घर आ जाने से दीक्षा बहुत खुश थी परंतु मन ही मन सोच रही थी कि जब खुद पर गुजरती है तभी इंसान को पता चलता है कि दर्द क्या होता है किसी दूसरे के दर्द को महसूस कर पाना अत्यंत कठिन है वो कहते हैं ना कि कभी किसी को दर्द नहीं देना चाहिए, क्योंकि समय बहुत बलवान है और यह कभी भी एक समान नहीं रहता।
