Swati Shukla

Inspirational

4.0  

Swati Shukla

Inspirational

समस्या सबकी तो जिम्मेदारी सबकी

समस्या सबकी तो जिम्मेदारी सबकी

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" रितेश मैं आपसे कह रही हूँ ना कि आपको ऐसे मैं अपना दिल मजबूत करना पड़ेगा। प्लीज जाकर उन लोगों से घर खाली करने को बोलिये क्योंकि यह एक दिन की समस्या नहीं है। अभी तो लाकडाउन शुरू हुआ है पता नहीं कब तक रहेगा और ऐसे में वो लोग बेरोजगार हो गये हैं तो यह तो पक्का है कि वो हमारा किराया नही दे पायेंगे " रजनी ने अपने पति से कहा।

" मैं कैसे कहूँ उनसे जाकर यह, बेचारे कहाँ जायेंगे, कुछ दिन इन्तजार कर लो, हो सकता है कि यह समस्या जल्दी से खत्म हो जाये और उन लोगों को उनके काम पर रख लिया जाये " रितेश ने कहा।

" आपको पता है कि जो आप बोल रहे हो वो कितना मुश्किल है, हमारा खुद का बिजिनेस घाटे में चल रहा है और ऐसे में उनके किराये का सहारा था और यह तो पक्का है कि अब वो किराया नहीं दे पायेंगे तो अगर हम उनसे घर खाली करवाकर किसी और को दे देंगे तो कम से कम हमारी इन्कम तो बन्द नहीं होगी। अगर आपसे नहीं बोला जायेगा तो मैं खुद कह दूँगी " रजनी ने कहा।

" तुम कह सकती हो तो कह देना, मैं न कह पाउगा " रितेश ने कहा और वहीं बैठ गया लेकिन रजनी ठान चुकी थी कि आज वो अपना घर खाली करवा लेगी। जब रजनी और रितेश यह बातें कर रहे थे तो तो एक बच्चा चुपचाप उनकी बातें सुन रहा था जो शायद वहाँ कुछ मांगने आया था पर दरवाजे से वापस लौट गया और अपने घर पहुँच गया।

" क्या हुआ मामा को बोला तुमने दूध के लिए, बोला था ना कि सिर्फ एक कप दे दें, गुडिया को पानी मिलाकर दे दूँगी " नम्रता अपनी डेढ साल की बेटी को गोद में लिए अपने बेटे को जल्दी आया देखकर कहा।

" चुप क्यों है, बोल न क्या हुआ? दूध नहीं था क्या उनके पास ? " नम्रता ने अपने चुपचाप खड़े बेटे आशू से कहा।

" मम्मी अब हम कहाँ रहेंगे ? मामी का घर जितना अच्छा घर कहाँ मिलेगा हमें ? गुड़िया को और मुझे तो यहाँ बहुत अच्छा लगता है " आशू ने कहा तो नम्रता उसे चौंककर देखने लगी।

" तुमसे ये किसने कहा कि हम यहाँ से जा रहे हैं " नम्रता ने पूछा।

" वो मामी मामा को बोल रही थी कि हम लोगों को यहाँ से भेजना उनकी मजबूरी है और पता नहीं क्या क्या कह रहीं थी " आशू ने कहा तो नम्रता भरी आँखो से अपने पति सिद्धार्थ को देखने लगी।

"आखिर वही हुआ जिसका डर था, मैं तुमसे कह रहा था कि वो लोग ऐसा ही करेंगे, आखिर मुँह से भाई बोल देने से कोई भाई नहीं बन जाता है। वो लोग भी बिजिनेस करते हैं और उनके लिए पैसा ही सब कुछ है। चलो इससे पहले वो हमें कहें बाहर जाने को हम खुद ही अपना सामान बाँध लेते हैं " सिद्धार्थ ने कहा तो नम्रता रोने लगी।

" मैंने रितेश जी को मुँह से भाई नहीं कहा था बल्कि माना भी था, अपने हाथों से राखी बांधी थी और उन्होंने भी वचन दिया था फिर कोई कैसे अपना वचन तोड़ सकता है। आज हमारे बुरा वक्त है कि आपकी नौकरी चली गयी, नयी नौकरी मिल भी जाती तो यह महामारी आ गयी जिससे घर से बाहर नहीं निकल सकते। हम ऐसे में कहाँ जायेंगे छोटे छोटे बच्चों को लेकर,फिर सारी, ट्रेन और बस भी नहीं चल रहे हैं कि अपने गाँव ही जा पाते " नम्रता ने कहा।

" ट्रेन बन्द हैं तो क्या हुआ पैदल जायेंगे, दो चार दिन में पहुच ही जायेंगे, अपने गाँव में दाल रोटी तो मिल जायेगी, वैसे भी इस समय हजारो मजदूर जो बेरोजगार हो गये हैं जा रहे हैं, उन्ही के साथ निकल जायेंगे। वो हमारे मकान मालिक हैं, उनका घर है और उन्हे पता है कि हमारी स्थिति सही नहीं है तो वो अपना नुकसान क्यों करेंगे " सिद्धार्थ ने कहा।

" लेकिन आपको नहीं लगता कि इस समय ऐसे निकलना सही नहीं है, सरकार ने भी कहा है कि अपने घर पर ही रहें, मैं भाभी से विनती करूँगी, उनके पैरों पर गिर जाऊँगी कि हमें कुछ समय कि मोहलत दें " नम्रता ने कहा।

" तुम सही कह रही हो लेकिन वो क्यों हमारी बात सुनेंगी। देखो जिंदगी ऊपरवाले के हाथों में है, उसने जिसके हिस्से में जितनी सांसे लिखी होंगी वो उतना ही जियेगा। मैंने रितेश भाई की आखों में मजबूरी देखी है इसलिए तुमसे कह रहा हूं कि तुम बात को समझो और खुद ही अपना सामान पैक कर लो और चलने की तैयारी करो। हमारे पास वैसे भी ज्यादा पैसे नहीं हैं दो महीने के बाद गुजारा भी चलाना मुश्किल हो जायेगा और फिर ऐसे में किराया भी नहीं दे पायेंगे तो आज नहीं तो कल यह घर खाली करना पडेगा " सिद्धार्थ ने कहा तो नम्रता रूआसीं हो गयी क्योंकि उस घर से उसकी बहुत यादें जुड़ी थी और वो रितेश और रजनी को हमेंशा अपना भाई भाभी ही मानती थी। हमेशा हर सुख दुःख उनके साथ बांटा था लेकिन आज मुश्किल को घड़ी में उन लोगों ने भी साथ छोड़ दिया।

नम्रता चुपचाप बैठी थी उसकी गुड़िया जो रो रही थी वो अब अपनी माँ का चेहरा पढ़ रही थी और उसके गले लग रही थी मानो अपनी माँ का दर्द समझ रही थी। नम्रता ने गुड़िया को गले से चिपका लिया और वो नम्रता का पीछे की तरफ पल्लू में लगी लैस से खेलने लगी कि तभी उसने आवाज दी, " मा  मी मा मी मा मी " कहते हुए ताली बजाने लगी। तो नम्रता ने कहा, " चुप हो जाओ गुडिया, अब मामी तुमसे मिलने नहीं आयेंगी, रजनी भाभी रोज गुडिया को मामी बोलना सिखाती थीं और आज जब वो मामी बुला रही है तो मामी सुनने ही नहीं आयेंगी" नम्रता ने कहा और रोने लगी।

गुड़िया ने एकदम से और जोर से ताली बजाना शुरू कर दिया और हंसने लगी फिर बोलने लगी, " मा मी मा मी मा मी "।

"चुप कर जाओ गुडिया, मेरा सिर दर्द हो रहा है " नम्रता ने कहा।

" क्यों चुप करे वो, आखिर देर से ही सही तुमने दिखा दिया कि तुम मे ननद हो और मैं भाभी, देखा मेरी गुडिया कैसे मामी मामी कर रही है और ये उसे चुप करने को बोल रही हैं " कहते हुए रजनी ने गुड़िया को गोद में उठा लिया प्यार करने लगी तो सिद्धार्थ और नम्रता चौंक कर देखने लगे और सोचने लगे कि पता नहीं रजनी ने क्या सुन लिया होगा।

" अरे भाभी आप कब आयीं ? " सिद्धार्थ ने अटकते हुए कहा।

" जब आप दोनों मेरी बुराई कर रहे थे तभी आयी भैया " रजनी ने गुड़िया को नीचे उतारते हुए कहा।

" नहीं भाभी वो तो बस थोड़ा परेशान थे इसलिए कुछ गलत कह दिया होगा, माफ कर दीजियेगा " सिद्धार्थ ने नज़रे झुका कर कहा।

" गलत नहीं कहा भैया बल्कि बिल्कुल सही कहा, मैं स्वार्थ में अंधी होकर आपको घर से जाने के लिए कहने आयी थी यह भूलकर कि आपका और हमारा सिर्फ मकान मालिक और किरायेदार का रिश्ता नहीं है बल्कि नम्रता ने मुझे भाभी और रितेश को भाई माना है। आपने हमेशा हमारा साथ दिया और आज आपका समय खराब चल रहा है तो मैं सिर्फ अपने पैसों के विषय में सोचने लगी।अब समझ आया कि मेरे बार बार बोलने के बाद भी रितेश क्यों कुछ कह पाते थे क्योंकि वो मेरी तरह स्वार्थ में अंधे नही हो पा रहे थे। आपने हमेशा हम पर भरोसा किया और रितेश की हर तरीके से मदद की बिज़नेस जमाने में, मैं भूल गयी थी कि महामारी आज आयी है तो कल जायेगी भी, लेकिन अगर एक बार विश्वास गया तो नहीं लौट पायेगा। आप लोग यहाँ से कहीं नहीं जायेंगे क्योंकि अब इस समस्या की घड़ी में हम एक होकर लडेंगे। आखिर समस्या सबकी है तो जिम्मेदारी भी सबकी है। हम देश को इस महामारी से ज्यादा बचा तो नही सकते लेकिन उन लोगों की मदद कर सकते हैं जिनके पास इस संकट की घड़ी में खाने नहीं है और वो ऐसे में शहर छोड़कर जाने को मजबूर हो रहे हैं और अपनी जान को भी खतरे में डाल रहे हैं। मैं मेरी सारी सहेलियों को यह समझाउगी कि इस संकट की घड़ी में वो अपने किरायेदारों को मजबूर न करें घर खाली करने को और मैंने जो किया या सोचा उसके लिए मुझे माफ कर दो " रजनी ने हाथ जोड़कर कहा तो नम्रता ने उसके हाथ पकड़ लिये।

" नहीं भाभी, इस संकट की घड़ी में आपने हम लोगों के लिये इतना सोचा, वही बहुत है। हम आपका एहसान जिंदगी भर मानेंगे " नम्रता ने कहा तो रजनी ने उसे गले लगा लिया।

" मुझे पता था कि तुम अगर एक बार यहाँ आ गयी तो अपना फैसला बदल लोगी और वही हुआ। तुम कितनी भी कठोर होने का दिखावा कर लो लेकिन किसी के दुख को देखकर तुरंत पिघल जाती हो और बड़ी आयी थी घर खाली कराने वाली" रितेश ने कहा तो नम्रता और रजनी हंसने लगे।

" मामा मतलब अब हम यहाँ से कहीं नहीं जायेंगे " आशू ने पूछा।

" नहीं बेटा अब आप यहाँ से कहीं नहीं जायेंगे क्योंकि अभी तो हमारे बहुत सारे खेल बाकी हैं " रितेश ने आशू से कहा तो वो ताली बजाकर उछलने लगा और जिस जगह अभी दुख के बादल डोल रहे थे वहाँ अब खुशियों का आसमान था जिसमें सब यही दुआ कर रहे थे कि जिस तरह से भगवान ने यह दुख दूर किया उसी तरह से विश्व पर आयी इस महामारी को भी दूर करें जिससे फिर से सभी मुस्कुराते हुए अपने घरों से बाहर निकल कर खुशियाँ मना सकें।

दोस्तों यह समय हमारे देश के साथ पूरे विश्व के लिये बहुत संकट भरा है और हमारी सरकार ने इसके लिए जो कदम उठाया है वो ही हमें इस संकट से बाहर निकाल सकता है। हमें इसका पालन करने के साथ साथ यह भी ध्यान रखना होगा कि और लोग भी इसका पालन कर सकें तो ऐसे में उन्हें घर से निकलने के लिए मजबूर मत करिए और हो सके तो उनकी मदद करिये क्योंकि समस्या सबकी है तो जिम्मेदारी भी सबकी है।


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