समरसता
समरसता
चाय के दुकान पर बैठा मैं अपने सेल्स क्लोजिंग की चिंता कर रहा था, तभी ऋषि कहीं से प्रकट हुआ। ऋषि मेरे साथ ही कॉलेज में था और कॉलेज से पास होते ही उसकी नौकरी मल्टी नेशनल कंम्पनी में दिल्ली में लग गयी थी।
बड़े दिनों बाद लगभग 5 साल बाद मिला तो बड़े गर्मजोशी में गले मिले। "ऋषि ,सकीना कैसी है" मैंने सवाल दागा। चौकने की बारी अब मेरी थी। पता नहीं यार, जब से उसका निकाह तय हुआ उसके पिता ने उसका फ़ोन छीन लिया था। मैंने मिलने और अपनी बात रखने की बहुत कोशिशें की मगर सब बेकार। एक बार तो घर मे गया था, धक्के मार के बाहर निकाल दिया मुझे। लगभग 4 साल हो गए बात नहीं हुई। धीरे धीरे मैं अपने बचपन के झरोखों से उन दिनों को याद करने लगा जब ऋषि,मैं और सकीना साथ मे खेलते थे। उस वक़्त हम दसवीं में पढ़ते थे। सकीना चूंकि पढ़ने में होशियार थी तो ऋषि उससे कॉपी मांग के सारे होमवर्क कॉपी कर लिया करता था,और ऋषि से मैं। समय ने करवट ली, सकीना इंटर के बाद बीए करने एक अलग कॉलेज में एडमिशन ले लिया, वहीं मैं और ऋषि साइंस ले कर दूसरे कॉलेज में चले गए। चूंकि एक ही मोहल्ले में रहते थे तो रोज़ हम तीनों एक साथ बैठते और मज़े करते थे। मगर ऋषि और सकीना का रिश्ता दोस्ती से आगे बढ़ चुका था और मुझे इसका इल्म तब हुआ जब एक बार ऋषि के किताब में सकीना का प्रेम पत्र देखा।
कहते हैं इश्क़ और मुश्क छिपाए नहीं छिपती। कुछ यही यहां भी हुआ, ऋषि के घर वाले जहां ऋषि को धमका के सकीना से दूर रहने की हिदायत दी वहीं दूसरी तरफ सकीना के घर मे तो अज़ाब छाया हुआ था। दोनों के घर वाले जहां ईद की सेवइयों और दीवाली के पकवानों से एक दूसरे का मुँह मीठा करवाते नहीं थकते थे वहीं आज एक दूसरे का नाम सुन के खून करने को आमादा थे। सकीना के अब्बू मुश्ताक़ मियां तो सकीना का निकाह उसके खालू के लड़के से तय कर दिया वहीं ऋषि के घर वाले उसे मौसी के यहां दिल्ली भेज दिया। कुछ दिनों बाद सकीना का निकाह हुआ और सुनने में आया की वो लखनऊ चली गयी है।
ख्यालों से झकझोरते हुए ऋषि ने पूछा ,"क्या शादी के बाद सकीना कभी घर आई थी?" मैंने ना में सर हिलाया। कुछ पल ठरहने के बाद मैंने ऋषि से पूछा,"कब तक है शहर में भाई?"
ऋषि ने बताया कि अब वो यहीं रहेगा,ट्रांसफर जो हो गया है।
"चलो भाई, इसी बहाने आज रात हम अपनी यादों को ताजा करेंगे"-मैंने ग्लास की तरफ इशारे से समझाया। वो हल्की सी हंसी हंस दिया। कुछ दिनों बाद सुबह 7 बजे अचानक से ऋषि का फ़ोन आया, बोला जल्दी नीचे आ, कुछ ज़रूरी काम है। मैं जल्दबाज़ी में उठा और भागे भागे उसके पास पहुँचा, एक अलग मुस्कान लिए वो एक ही सांस में कह दिया,"सकीना कल रात वापस आ गयी है, उसकी कामवाली ने बताया और ये भी बताया कि उसका तलाक़ भी हो गया है।" मुझे झटका तो लगा पर बचपन की दोस्ती थी, तो थोड़ा सा लगाव भी था। मगर हालात को काबू करने के लिए मैंने उसे समझाया ,"थोड़ा सा रुक,मैं अभी थोड़ा सा काम है, शाम को आता हूँ आँफिस से फिर बात करते हैं। "
जल्द ही शाम हुई और हम इकट्ठे हुए। चूंकि सकीना के घर अभी भी मैं आ जा सकता था तो मुझे ऋषि ने हाल चाल जानने भेजा। घर मे जाते ही सकीना से मिला। मुरझाई हुई गुमसुम सी चारपाई पर बैठी थी। साथ मे उसकी अम्मी आलू छीलती हुई उसे कोस रही थी। "तुझे मियां को खुश रखना नहीं आता, तभी तो तुझे तलाक़ दे दिया है।"सकीना जो कि बूत बने हुए चुप चाप सुन रही थी और आंखों की किसी कोने में थोड़े से मोती छिपाए हुए। फिर सकीना से मैंने पूछा कि मुद्दा क्या है? उसने बताया कि उसके मर्ज़ी के बगैर उसकी शादी की गई, वहां दूसरी तरफ उसके शौहर का चक्कर कहीं और चलता था। रोज़ शराब पीते और उसे मारते थे।एक रोज़ तो उस दूसरी औरत को घर ले आये और उसके सामने उसके ही बिस्तर पर और इतना कहते ही उसके आंखों के कोने के मोती लुढ़कते हुए उसके ओढ़नी के ऊपर बरसने लगे। एक पल तो ऐसा लगा कि सकूर मियां को खूब सुनाऊं पर भावनाओं पर काबू रखते हुए ढांढस बंधाया और सकीना को बड़े भाई की तरह समझाया तब जा के थोड़ी शांत हुई। जब ऋषि को मैंने ये बात बताई तो उसका भी कुछ ऐसा ही हाल था।
अगली दोपहर मैं आँफिस में था तभी ऋषि के घर वालों का फ़ोन आया कि की वो अस्पताल में है, मैं भागे भागे गया तो देखा कि ऋषि के हाथ पैरों और सर पर चोट के गहरे निशान हैं और पट्टियां बांधी जा रही हैं। उसकी माँ ने बताया कि लाख मना करने के बाद भी ये आज सुबह सकीना से मिलने गया था, सकीना के पिता और खालू ने मिल के ऐसा हाल कर दिया। वहीं ऋषि के आंखों में कोई पश्चाताप नहीं था जैसे वो कह रहा हो कि उसे फक्र है ऐसा करने पर। गुस्सा दबाए मैं शकूर मियां से बात करने गया। सीढ़ियों पर बैठे पान चबाते हुए मुझे देखा और नज़रें फेर लीं। मैंने आगे बढ़ते हुए उनसे कहा,"मिल गयी तसल्ली,खुशी मिल गयी परिवार को आपके। सकीना के दिल का ज़ख्म भरने की जगह किसी और को ज़ख्म दे रहे हो आप। आपकी इकलौती बेटी की खुशी से इतनी चिढ़ क्यों है आपको?" सकूर मियां ने गौर से मेरा चेहरा देखा और नज़रें झुका के बोले,"हमारे मजहब मे इन सब की इजाज़त नहीं होती है। "मैंने बात काटते हुए बोला,"बीवी को तलाक देना,शराब पीना ,किसी और औरत को घर ले आना, ये आपके मजहब में सिखाते हैं क्या जो आपके दामाद ने किया" शकूर मियां खामोश थे,और मैं भी चुप चाप हॉस्पिटल ऋषि के पास आ गया।
वो होली का दिन था जब ऋषि की अस्पताल से छुट्टी हुई, एम्बुलेंस मोहल्ले के गेट पर आया और मैं हाथों में गुलाल लिए ऋषि के उतरने का इंतज़ार कर रहा था। ऋषि उतरा तो मगर उसकी निगाह सकीना के घर की तरफ थी, वो मेरे हाथों से गुलाल का पैकेट ले कर सकीना के घर की तरफ बढ़ने लगा। एक अज़ाब से दृढ़ विश्वास उसके पूरे शरीर मे था। शकूर मियां घर के बरामदे में ही बैठे थे,और धीरे धीरे अपने ओर बढ़ते ऋषि को देख के वो भी स्वतः खड़े होने लगे। ऋषि उनके करीब जा के उनसे लिपट गया और हल्के आवाज़ से उनसे कहा,"होली मुबारक हो चाचा। "
शायद इस शब्द प्रहार के लिए सकूर मियां तैयार नहीं थे। खामोश खड़े थे, उनके कंठ के तरकश में से शब्दों के बाण गायब थे। ऋषि ने सुर्ख लाल गुलाल उनके चेहरे पर लगाया और कहा,"चाचा,बचपन मे हर होली में आपको गुलाल लगाता था,आज कैसे छोड़ दूँ। "
शकूर मियां हतप्रभ थे,उनकी पलकें भारी भी थीं और शरीर बोझिल हो गया,और भर्राई आवाज़ में उन्होंने आवाज़ लगाई,"स..स .स..सकी..सकी सकीना,सुनो यहां। "सकीना जैसे बाहर आई, इस नज़ारे को देख के वो पत्थर की मूर्ति की तरह खड़ी हो गयी। मैंने किसी अनहोनी की आशंका से शकूर मियां की तरफ बढ़ कर उनको सम्हाला। तभी ऋषि अपने सुर्ख गुलाल को सकीना की तरफ बढ़ाते हुए उसके गालों पर गुलाल लगाया। सकीना ,शकूर मियां की आंसुओं से भरी आंखों से इज़ाज़त पा कर ऋषि को गुलाल लगाई और तभी ऋषि का परिवार वहां आ गया...सबके चेहरे पर संतोष की मुस्कुराहट थी। फिर तो सबने धीरे धीरे सबको गुलाल लगाया,और शाम तक शकूर मियां के घर सभी बैठे रहे। वैसे मुझे तो भूल ही गए सभी।
खैर,अंत भला तो सब भला,1 महीने बाद ऋषि की शादी सकीना से बड़े धूमधाम से हुई। और आज उनका 1 बेटा भी है...