समझदार बूढ़ा गधा
समझदार बूढ़ा गधा


एक महीपुर नामक कस्बे में एक धोबी रहता था। उसका नाम महंत था। उसके पास एक बूढ़ा गधा था। दिन-ब-दिन वह वृद्ध गधा वृद्ध से वृद्धतर होता गया, उसके लिए प्रतिदिन धोबी घाट तक कपड़ों के भारी पोटली कंधे पर लादकर ले जाना मुश्किल होता गया। एक दिन महंत अपने गधे के साथ कुछ कपड़ों के साथ धोबी घाट जा रहा था। रास्ते में एक बहुत पुराना कुआँ था। उस कुएं में गधा गिर गया। धोबी महंत ने सोचा कि यह गधा बूढ़ा हो गया है और काम का भी नहीं है, इसे क्यों न इसी कुएं में दफना दिया जाए इसी विचार से इसका अंतिम रूप देने के लिए उसने अपने पड़ोसियों का आह्वान किया। धोबी के बुलाने पर आस-पडोस के कुछ लोग उसकी मदद करने के लिए आ पहुँचे।
उसने लोगों को बताया कि मेरा यह गधा बूढ़ा हो गया है और यह मरने के कगार पर है इसलिए इसे बचाने के बजाय इस कुएं में ही दफना देते हैं।
सभी की सहमति से गधे को दफनाने का काम शुरु हो गया। शुरू में कुएं में पड़े गधे को लगा कि ये सभी लोग मुझे बचाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन कुछ ही समय में उस गधे को
मालूम हो गया कि ये सभी लोग मिलकर मुझे मिट्टी डालकर इस कुएं में ही दबाकर मारना चाहते हैं। वह कुछ ही समय में अपने आपको संभाला और हर हाल में खुद को बचाने का प्रयास करता रहा। क्यों नहीं, गधे के स्थान पर, जो कोई भी होगा वह निश्चित रूप से अपनी जान बचाने का ही प्रयास करेगा।
जैसे-जैसे गधे के ऊपर मिट्टी पड़ती जा रही थी वैसे-वैसे वह सक्रिय होता जा रहा था और अपने ऊपर गिरने वाली मिट्टियों को झाड़ते हुए जा रहा था। अपनी जान बचाने के होड़ में गधे के प्रत्येक अंग बहुत अधिक सक्रिय हो गए थे। वह धीरे-धीरे मिट्टियों को अपने नीचे दबाते जा रहा था ऐसे करते-करते कुछ ही घंटों में वह कुएं से बाहर आ गया।धोबी महंत गधे के अथक परिश्रम से चकित रह गया। नए उमंग भरे बूढ़े गधे की समझदारी और बुद्धिमानी को देखकर उसे अपने साथ ले जाने का फैसला किया। मनुष्य के जीवन में भी ऐसे कई मुश्किल क्षण आते हैं ऐसे समय में समझदारी और अथक परिश्रम की आवश्यकता है। समाज में कोई कितना भी खून- पसीना बहाकर काम करे जब वे बूढ़े हो जाते हैं उन्हें कोई याद नहीं करता।