वंदना जैन

Drama

4  

वंदना जैन

Drama

स्मिता

स्मिता

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"बस भी करो। पूरी ज़िंदगी हो गई सिखाते सिखाते,यह करो, यह नहीं करो ल। अब और नहीं सुन सकता। अगर इस घर में रहना है तो शांति से रहो नहीं तो ...." कहते कहते अरुण चुप हो गया।

"नहीं तो ? नहीं तो क्या ? बोलो क्या करोगे ?" उसका गला गुस्से और दुःख के कारण रुंध गया।

"नहीं तो आपको यह घर छोड़ कर वृद्धाश्रम जाना पड़ेगा।" वो हैरत से उसे देख रही थी। उसके मुँह से आवाज़ नहीं निकल रही थी। बेटा जा चुका था। उसने अपनी साडी के पल्लू से आँखे पोंछी और कमरे में आ अपने बिस्तर पर बैठ गई। आँखे बन्द की तो अब तक का जिया पूरा जीवन चक्र घूम गया स्मृतिपटल पर। उसने आँखें खोली, जाने कैसे कहाँ से उनमें चमक आ गयी थी। वापस ड्राइंगरूम में आ उसने किसी को फ़ोन कर बुलाया। कुछ देर बाद डोरबेल बजी। बेटा बहू रात के 1 बजे कौन आया होगा यह सोच कमरे से बाहर आए तो देखा स्मिता सोफे पर बैठी है।

"इतनी रात में डोरबेल बज रही है और आप यहाँ होते हुए भी दरवाज़ा नही खोल पायीं।"

अरुण ने खीजते हुए कहा, वो उठी और जाकर दरवाज़ा खोल दिया। बाहर वकील और कुछ पुलिसवाले थे। इन लोगों को इतनी रात देख अरुण कुछ पूछता उसके पहले ही उसकी माँ ने सबको अंदर बुला लिया।

"आइये आप लोग।" वकील से कागज़ ले स्मिता अपने बेटे के पास गई और बोली।

"यह बिजनेस, यह घर और इसकी हर चीज मेरे स्व.पति ने मेरे नाम की थी, आज तक तुम मेरे बेटे होने के नाते इन सबका उपयोग कर रहे थे, लेकिन अभी कुछ देर पहले जो कुछ भी हुआ उसके बाद मैंने यह फैसला लिया है कि हम में से जिसको भी यहाँ से जाना पड़े उसके पहले थोड़ा हिसाब किताब कर लिया जाये।" अरुण स्मिता को अवाक् देख रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था उसकी माँ जो ममता की मूरत थी उसे अचानक क्या हो गया, इतनी कठोर क्यों दिख रही है वो। उसने स्मिता से पूछा।

"कैसा हिसाब! और मैं यह सब छोड़ के क्यों जाऊंगा ? इतने सालों तक घर, बिजनेस सारी जिम्मेदारियाँ सम्भाली हैं मैंने, आपकी सेवा का यह फल मिलेगा मुझे ?" अरुण की बात सुनके स्मिता मुस्कुरा कर बोली।

"मैंने भी पहले नौ महीने तुम्हारी देखभाल अपने गर्भ में की थी, उसके बाद 5 साल की उम्र तक अपने हाँथो से खाना खिलाया, जब तुम 16 के थे उस समय तक तुम्हारे कपडों से लेकर जूते, पढाई लिखाई सबका ध्यान रखा मैंने। 25 की उम्र हुई तब बहुत अरमानों से तुम्हारी पत्नी बना कर अंकिता को इस घर में लाई। फिर तुम्हारे बच्चे आये और उनकी परवरिश में भी मैंने बराबर की भूमिका निभाई ।

लेकिन अभी कुछ घण्टे पहले जो प्रतिफल तुमने मेरी सेवाओं का दिया है उसके बाद मेरा भी कर्तव्य बनता है कि मैं भी तुम्हें कुछ दूँ।"

अरुण को लगा कि उसने बड़ी भूल कर दी है कुछ देर पहले।

अंकिता की तरफ देखा तो वो भी उसे हैरान परेशान सी घूर रही थी । वो कभी स्मिता को देखती कभी अरुण को । उसे यकीन नहीं आ रहा था स्मिता जो कुछ देर पहले तक उसके सामने एक बूढी, कमजोर, हर बात में टोकने वाली उनकी ज़िंदगी में एक बोझ जैसी थी अचानक उसमे इतनी शक्ति इतनी कठोरता कैसे आ गई। वो स्मिता के पैरो की तरफ बढ़ी तो उसने अंकिता को बीच में ही रोक दिया।

"नही अंकिता, माफ़ी नही। कुछ गल्तियों के लिए माफ़ी नहीं होती। बल्कि इसके लिए तो मुझे तुम्हारा धन्यवाद देना चाहिए कि इसकी वजह से मेरा स्वाभिमान जाग उठा, और मुझे आज़ादी की कीमत भी समझ आई यह समझ आया कि अपना घर अपना संसार कितना प्रिय होता है, लेकिन माफ़ी चाहूंगी बेटा यह घर संसार मैनें और मेरे पति ने बनाया था जिसमे कुछ देर पहले तक तुम लोग भी भागीदार थे लेकिन अब जब तुम्हारे पति को मेरा साथ रहना अशांति से भरा लगने लगा है तो बेहतर है तुम अपना नया संसार बसा लो।"

अंकिता की आँखों में आंसू आ गए उसने गर्दन नीची कर ली।

अरुण ने स्मिता के हाथो को अपने हाथ में ले लगभग रोते हुए कहा।

"हमें माफ़ कर दो माँ बहुत बड़ी गलती कर दी हमने, अब कभी ऐसा नही होगा । कुछ तो सोचो हम कहाँ जायेंगे और आपका ध्यान कौन रखेगा, प्लीज ऐसा मत कहो।"

स्मिता ने अरुण का गाल थपथपाया और कहा।

"हाँ बेटा सही कह रहे हो कहाँ जाओगे तुम, मेरा ध्यान कौन रखेगा बाद में, लेकिन तुम चिंता मत करो माँ हूँ तुम्हारी तो इतना ध्यान तो रखना जानती हूँ।

राम निवास कॉलोनी में जो दो फ्लैट्स हैं उनमे से एक तुम्हारे लिए खाली हो जायेगा जिसका किराया वर्तमान समय में जो है उसे हर महीने जो अकाउंट नम्बर दिया जायेगा उसमे जमा करा दिया करना। बिजनेस की बात रही तो जिस पोस्ट की तनख्वाह मिलती है वो तुम्हारे परिवार के लिए काफी है। कंपनी का हर लॉस प्रॉफिट इस ट्रस्ट में जमा होगा जिसके कागज़ात वकील साहब बना रहे हैं। हाँ अगर इस बीच कम्पनी के लिए काम करते हुए तुम्हे अच्छा महसूस न हो तो एक महीने पहले एप्लिकेशन देकर नौकरी छोड़ सकते हो। और रही मेरी बात तो मैं अपना ध्यान रखना जानती हूँ उसकी चिंता तुम मत करना जहाँ रहो जैसे रहो खुश रहना।"

अरुण के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई वो सोफे पे गिरते गिरते बचा। स्मिता वकील के पास बैठी काग़ज़ों पर दस्तखत कर रही थी।

अंकिता अरुण का कंधा पकड़े उसके पास खड़ी आंसू पोंछ रही थी।

उसके दोनों बच्चे अपनी दादी के पास बैठे वो कागज़ पढ़ रहे थे जो स्मिता ने बनवाये थे।

दस्तखत कर स्मिता ने बच्चों से कहा।

"ज़िन्दगी में अगर श्रवण न बन पाओ कोई बात नही लेकिन अरुण कभी मत बनना।"

दोनों बच्चे हंस पड़े और दादी के गले लग गए 16 साल के थे दोनों समझते थे कि घर में क्या चल रहा था।

"मिलने आओगे न मुझसे ?"

स्मिता ने दोनों से पूछा तो दोनों ने साथ में हाँ कहा और अपनी दादी की गोद में सिर रख दिया।


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