स्माइल
स्माइल
सुबह का वक्त था, सूरज की तेज रोशनी के साथ मंदिर में घंटियों की आवाज़ भी तेज़ हो रही थी। लोग भगवान के दर्शन के लिए मंदिर के बाहर अपने जूते-चप्पले उतारकर जा रहे थे, ये इस कदर बिखरे पड़े थे, जैसे कुंभ के मेले में दो जुड़वाँ भाई बिछड़ गये हो !
सामने की सड़क से दो बच्चे हँसते-खेलते आ रहे थे।
आयुष मंदिर से बाहर आकर अपने जूते ढूंढ कर पहनने लगा। जूजे पहनते वक्त आयुष की नज़र वहाँ से आ रहे दो बच्चों पर पड़ी। आयुष ने गौर से देखा तो पता चला कि वे गरीब बच्चे तेज धूप में बिना चप्पल पहने अपनी मस्ती में स्कूल जा रहे थे। भावुक होकर आयुष की नज़र मंदिर के बाहर पड़े जूजे-चप्पल के उपर पड़ी और भगवान की तरफ देखा और ये ज्ञात हुआ की जूते-चप्पल की अहमियत किसे है ?
फिर मंदिर की घंटी की आवाज़ सुनाई दी।
दोनों बच्चे आयुष के सामने से गुजरे तो दोनों ने आयुष को स्माइल दी। आयुष ने फिर से मंदिर के बाहर पड़े जूते-चप्पल की तरफ देखा और आँखों में हल्की सी नमी दिखाकर दोनों बच्चों को स्माइल देकर पास आने का इशारा किया।
दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा और आयुष की तरफ बढ़े। आयुष दोनों बच्चों को फुटवेयर शॉप ले गया।
'किशोर अंकल' आयुष ने दुकानदार को पुकारा।
'आयुष बेटा आओ ' - किशोर अंकल ने कहा।
'अंकल ज़रा इन लड़कों के साइज की जूते-सैंडल दिखाएँगे प्लीज़।'
किशोर अंकल ने दोनों लड़कों तरफ देखा और फिर आयुष की तरफ मुस्कान बिखेरी।
दूसरी तरफ तेज गर्मी में उन दोनों लड़कों की माँ, हाथ में थैला और माथे पर सामान लादे अपने घर की तरफ जा रही थी। उनकी माँ ने भी पैरों में चप्पल पहनी नहीं थी। माँ ने माथे का सामान आंगन में रखा, हाथ में पकड़े थैले को खोलने लगी। थैले में रखी चीज को देखकर आँखों में ग़जब की चमक दिखाई।
फुटवेयर शॉप के अंदर जूते की नई-नई विविधता को देखकर बच्चे चहक रहे थे।
‘बच्चों, ये जूते तुम्हारे लिए है अब उसे पहनकर ही स्कूल जाना ओके ?’ आयुष ने जूते के बॉक्स को बच्चों के हाथों में थमाते कहा।
दोनों बच्चे गरदन हिलाकर हां में जवाब दिया।
दोनों लड़कों ने जूते के बॉक्स को स्कूल के बस्ता में रख दिया।
'किशोर अंकल ये जूते का बिल बच्चों को दे रहा हूँ शायद उसे दूसरे कलर्स में जूते चाहिए हो तो प्लीज़ बदल देना ओके ?'
'जी ज़रूर' - किशोर अंकल ने स्वीकृति देकर कहा।
'चलो बच्चों मैं चलता हूँ '- आयुष कहकर जाने लगा।
'थेंक यू ... ' - दोनों लड़के ने आयुष का हाथ पकड़ कर कहा।
आयुष ने बच्चों के बालों को सहलाते हुए प्रसन्न भाव से देखा।
लड़कों की माँ ने बेचैन होकर घर से बाहर इस तरह देखा जैसे वो किसी का इंतजार कर रही हो।
सामने से उनके दोनों बच्चे आते दिखे।
माँ, बच्चों को देखकर खुश हुई और वो थैला उठा लाई जो वो लाई थी। बच्चे माँ के सामने आए।
माँ मुस्कुराते हुए थैले मे से दो जोड़ी जूते निकाली और अपने बच्चों को दी।
दोनो बच्चों ने दुविधा की स्थिति से जूते को देखा। माँ ने उलझन से दिखा और सोचा की बच्चे जूते देखकर खुश क्यूँ नहीं हो रहे ?
फिर अचानक से दोनों बच्चे खुशी से जूते लेकर अपनी माँ के गले लग गए। माँ ने भी सुकून की साँस ली।
'उसे पहन के दिखाओ ज़रा' - माँ ने उत्साहित होकर कहा।
'माँ एक मिनिट ... ' - बड़े लड़के ने कहा।
माँ ने असमंजस से देखा। बच्चों ने स्कूल बेग में से लेडीज़ स्लीपर निकली। माँ भी अचंभित होकर स्लीपर को देखती रही और दोनों बच्चों को कस के गले लगा लिया। दोनों लड़के फुटवेर शॉप की घटी घटना को याद करते हैं।
"बच्चो अब तो तुम खुश होना ? - किशोर अंकल ने पूछा।
बच्चे होने की बजाय एक चप्पल को ताकते रहे।
बच्चो क्या हुआ ? - किशोर अंकल ने हैरानी से पूछा।
क्या आप इस हमारे जूते के बदले वो चप्पल दे सकते हैं ? बड़े लड़के ने कहा।
हां दे सकता हूं मगर ये तो लेडिस चप्पल है तुम इसे ले कर क्या करोगे ? - किशोर अंकल ने हैरत से पूछा।
हमारी माँ के पास भी चप्पल नहीं इसलिए हम इस जूते के बदले में हमारी माँ के लिए चप्पल लेना चाहते हैं।
बच्चो की मनोभाव देखकर किशोर अंकल अचंभित हो गया।
'ठीक है बाकी बचे पैसे आयुष भेज दूंगा' - किशोर अंकल ने स्माइल देकर कहा।
माँ ने घर से मंदिर को देखा। मंदिर की घंटी की आवाज़ सुनाई दी।
अगले दिन
मंदिर के बाहर लोग अपने जूते-चप्पल निकल के मंदिर में जा रहे थे। आयुष मंदिर में से बाहर आया और अपने जूते को पहनने लगा। आयुष ने देखा की बच्चे चप्पल पहने अपनी मस्ती में स्कूल जा रहे हैं। आयुष बच्चे को देखकर स्माइल देता है और वो बच्चे ने भी प्यारी सी स्माइल दी।
