हरीलाल की हरियाली शादी

हरीलाल की हरियाली शादी

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मेरा नाम हरीलाल हैं और मैं एक छोटी सी नाटक कंपनी मे मेक-अप मेन का काम करता हूँ। आज तक मैंने कई कलाकारों के चेहरे रंगबिरंगे कर चुका हूँ। बस मेरा नाम ही हरीलाल हैं पर जीवन... एकदम बेरंग हैं।
आज तक कई हिरोईनो को दुल्हन का मेक-अप किया हैं पर मेरे लिए कोई दुल्हन का मेक-अप करके नहींं आई।
हाँँ... एकदम ठीक पकड़े हैं... जीवन के 36 साल पूरे कर लिए हैं पर शादी के सात फेरे अभी तक पुरे नहींं किए।
कार्यकाल के दौरान सभी रंग से वाकिफ़ हुआ हूँ पर शादी की लाल साड़ी, लाल बिंदी, लाल कुमकुम और लाल चूड़ियां सजाए दुल्हन का दीदार अभी तक नहींं हुआ।
शादी के चक्कर मे कितने देवी देवताओ को भोग चढ़ाए। कितने पूजापाठ करवा के ग्रहों को शांत करवाया। मन्नत रखी और उपवास किए। लोग वकील के यहाँँ चक्कर लगाते हैं मैंने पंडितो के घर जा जा के जूते घिस डाले। छोटे बड़े सभी महाराज, पंडितो को जन्म कुंडली दिखाई। यहाँँ तक के कंप्यूटर वाली डिजिटल कुंडली भी निकलवाई। हस्त रेखा दिखा दिखाकर मुझे भी थोड़ी बहुत हस्त रेखा विद्या जान गया हूँ। नजदीक वाले, दूर वाले सभी रिश्तेदारों को रिश्तें की बात चलवाई और कई सारी मॅट्रिमोनी वेबसाईट के पर रजिस्टर भी किया पर सभी के वहाँँ से मायूसी और असफलता ही हाथ आई। कहीं पर भी शादी की बात आगे बढ़ी ही नहींं।
काले को गोरी और गंजे को घटादार बालों वाली कन्या मिल सकती हो तो मैं क्या इतना बुरा हूँ इतना बदनसीब हूँ? पर कहते हैं ना! भगवान के घर देर हैं अंधेर नहींं। देर से सही पर भगवान ने मेरे लिए अँधेरे में रौशनी की किरण दिखाई ही दी। मेरे दोस्त रामू ने एक बड़े पहुंचे हुए बाबा का पता दिया। बाबा का नाम था 'मामला फिट करानेवाले बाबा'। मेरे दोस्त को भी मेरे जैसी मिलती जुलती शादी की समस्या थी तो उस बाबा की बताए निर्देशों का पालन किया तो उसका मामला फिट हो गया मतलब के मेरे दोस्त की शादी हो गई और आज उसका जीवन शादी समृद्ध हैं। मैने भी उस बाबा के पास जाने का फ़ैसला किया पर बाबा का समस्या को समाधान करने का तरीका सब से अलग था। डॉक्टर दवाई दे कर और पंडित मंत्रो जाप करके हमारी समस्या का
समाधान करते हैं यहाँँ बाबा अजीबो ग़रीब इलाज करते हैं। हमेंं हमारी समस्या का रूप धारण करके जाना पड़ेगा तभी वो समस्या का समाघान करते थे। नहींं समझे? पहले मैं नहींं समझा था चलो विस्तार से समझाता हूँ।
अगर किसी को डॉक्टर बनने में रुकावट आ रही हो तो उसे डॉक्टर के कपड़े पहन के जाना होगा और वकील के लिए काला कोट पहन के बाबा के दरबार में जाना होगा। मुझे तो मेरी दुल्हन चाहिए थी तो मुझे दुल्हन बनके बाबा के दरबार जाना था। मै तो शादी के लिए उल्लु बनने को तैयार था तो दुल्हन बनने में कौन सी शर्म?
बढ़ती उम्र और शादी ना होना दोनो का कॉम्बिनेशन समाज को रास नहींं आता। लोग क्या क्या अंदाजा लगा लेते हैं कि कोई बीमारी होगी, लड़़का अच्छा नहींं होगा, दूसरी औरत के साथ लफड़ा होगा! यहाँँ तक तो ठीक है मगर किसी से ये भी सुनने मिलता हैं की सायद मर्द ही नहींं होगा और ना जाने क्या-क्या सुनने मिलता हैं। सचमुच बढ़ती उम्र का अंदाज़ा उसे नहींं पता चलता जिसकी उम्र बढ़ रही हो उसे तो सरप्राईज़ मिलता हैं जब हमें कोई अंकल, चाचा करके बुलाए। कोई मवाली 'सुन बे' करके बुलाए तो चला भी लेता मगर चाचा? अंकल?
बिलकुल नहींं! हरगिज नहींं। इज्जत का फालूदा तो तब होता हैं जब हमारी उम्र से बड़े लोग भी अंकल बोले!
तब तो मेरी हाँलत ऐसी हो जाती थी की एक जोरदार तमाचा उसके गाल पे जड़ दू और शर्ट का कॉलर पकड़ के बोलूँ 'अबे अंधे चश्मा लगा! अंकल होगा तू तेरा सारा खानदान' पर अपना गुस्सा मन मे दबाकर चुप हो जाता हूँ पर अब चुप नहींं रहना। बालों की सफेदी बाहर झांके उससे पहले या फिर चाचा से दादाजी तक बात बढ़े तब तक मुझे शादी का पड़ाव पार करना ही होगा। इसलिए मैंने निकला पड़ा 'मिशन शादी' को सफल करने! 'मामला फिट करानेवाले बाबा' से मिलने। बाबाजी का पता था। बदरीपुर,
बहाँदूर चौक, और बहाँदूर चौक से 5 किलो मीटर पे एक छोटा सा बादलपुर गाँव और फिर आधा किलो मीटर कच्ची सड़क के बाद बाबाजी का पंडाल! वहाँँ पे विराजमान हैं हमारे 'मामला फिट करानेवाले बाबा'
मैं बदरीपुर स्टेशन से बहाँदूर चौक के लिए ऑटो देख रहा था।
'अंकल बहाँदूर चौक जाना हैं' - ऑटो वाले ने कहाँ
'यहाँ भी अंकल? मैं जहाँँ जाता मेरा अंकल का टैग मुझसे पहले पहुँच जाता था।
'नहींं जाना हैं' - मैने अक्कड़ से जवाब दिया।
'अंकल 20 रुपया दे देना बस' - ऑटो वाला फिर बोला।
'अरे नहींं जाना बोलाना!' - मैंने आवाज तेज करके बोला।
'अरे अंकल इतना गुस्सा क्यूँ करते हो! ये तो उम्र का लिहाँज कर रहा हूँ वरना?' - ऑटो वाला ऑटो स्टार्ट करके आग में घी डालके चला गया।
तभी दूसरा ऑटो वाला आया तो मैंने मुँह फेर लिया।
'सर कहाँ जाना हैं' - दूसरे ऑटो वाले बड़े अदब से पूछा।
मैं बिना बोले ही ऑटो में बैठ गया।
'बहाँदूर चौक जाओगे?' - मैंने गले से खरारा करते हुए पूछा।
'हाँ साब 30 रुपया होगा'।
'हाँ ठीक हैं'
मैंने 10 रुपया ज्यादा वाला भाड़ा मंजूर कर लिया था आखिर कार उसने मुझे 'सर' और 'साब' कहाँ था।
चलो इतना बुरा भी नहींं बदरीपुर का वेलकम।
फिर बादलपुर पहूँचने में ज्यादा दिक्कत नहींं हुई। बाबा का दरबार आधा किलोमीटर दूर था या फिर मेरे सपने आधा किलोमीटर दूर थे।
मन सपनो की बांधे और हाथ में सूटकेस को थामे बढ़ने लगा अपनी मंजिल की ओर।
बाबा के दरबार में जाने से पहले मुझे दुल्हन बनना था मतलब के दुल्हन का मेक-अप करना था। मुझे
मेक-अप करने की तकलीफ नहींं थी। क्योंकि आज तक कलाकारों को मेक-अप ही तो करता आया था। दिक्कत मेक-अप करने की या मेक-अप के सामान की नहींं थी वो सारा सामान तो अपनी बेग में लेकर चला था मेक-अप
मेन जो ठेहरा! दिक्कत तो मेक-अप करने की जगह की थी।
अंजान गाँव! ना कोई जान पहचान! भला कौन मेक-अप करने के लिए घर में घुसने देगा?
बाज की तरह नज़र घुमाने के बाद आशा की किरण जैसी 'सुलभ शौचालय' पर पड़ी।
वहाँँ बैठे प्रसाधन की चौकी कर रहे लड़के को छूट्टे पैसे देकर सीधा स्नानालय में चला गया।
लड़के ने मुझे ध्यान से नहींं देखा शायद वो किसी भोजपुरी आईटम सोंग सुनने में मशगूल था। इससे पहले बहुत सी हिरोईनो को दुल्हन का मेक-अप का करा चुका था इसलिए मुझे ज्यादा देर नहींं लगी। अब मैं हरीलाल से हसीना हो गई थी। जब मै बाहर आया तो वो लड़का कान से हेडफोन निकालकर मेरी तरफ ऐसे आंखे फाड़ कर देखने लगा के उसके सामने से कोई खूबसूरत लड़की गुज़र रही हो। मुझे पहली बार मेरे काम के ऊपर गर्व हुआ। मैंने अपने आप को शाबाशी देनी चाही! पर मैं शाबाशी लेने नहींं पर शादी के लिए आया था सो निकल पड़ा बाबा जी के दरबार की तरफ।
मै समझ रहा था की सिर्फ गिने-चुने लोग होंगे। कौन इतनी दूर आएगा अपने पैर तुड़वाने? पर यहाँँ मेरा गणित उल्टा पड़ा यहाँँ तो लोगो की जमावट थी। मैने और भी कुछ सोचा था की मेरे जैसा एक ही नमूना होगा! पर यहाँँ तो नमूने की दुकान भरी पड़ी हैं।
कोई डॉक्टर के भेष में था तो कोई वकील।
किसी ने पुलिस की वर्दी पहनी थी तो कोई नेता बना था तो कोई अभिनेता। कोई डांसर था, कोई सिंगर था तो कोई क्रिकेटर। कोई तो साधू बाबा बनके भी आए थे।
थोड़ी देर लाईन में लगने के बाद दूर से बाबाजी के दर्शन हुए। बाबाजी अपनी हॉट सीट पर बैठे कृपा बरसा रहे थे। बाबा, फ़क़ीर का नाम सुनते ही हमेंं दिमाग में वही छवि बना लेते हैं जैसे आज तक देखते आए हैं लम्बे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी और मूछ, गले मे झुलती रुद्राक्ष मालाये और भगवा वेश! यहाँँ पर मैं फिर गलत था, बाबाजी तो बड़े स्टाइलिस्ट निकले। दाढ़ी और मूछ तो थी मगर फ्रेंच कट, बाल थोड़े बड़े थे मगर इतने भी नहींं के चोटी बांधी जाए! आँखों पे चश्मा और बड़ा सा सफेद रंग का कुर्ता पहने हुए थे और सब को 'जा बच्चा तेरा मामला फिट हो जाएगा' ऐसा आशीर्वाद दे रहे थे। लोग दान पेटी में पैसे डाल कर आगे बढ़ जाते थे।
अब मेरी बारी थी। मैंने बाबाजी को हस्तरेखा दिखाने के लिए हाथ और जन्म कुंडली रख दी। बाबाजी ने मेरे घरे है हाथ में चवन्नी डाली और जन्म कुंडली तो ऐसे फाड़ के फेंक दी जैसे कोई घटिया फिल्म देखकर टिकिट फाड़ के फैंक देता हैं।
'अब बोल बच्चा क्या समस्या हैं?' - बाबा ने पूछा
मै खुश हो गया था क्योंकि घरवाले और रिश्तेदारों के अलावा किसी ने और मुझे 'बच्चा' कहाँ था 'बाबा शादी की समस्या हैं' - मैंने चेहरे पे परेशानी दिखाते कहाँ
'हम सबका मामला फिट करते हैं तेरा मामला फिट कर देंगे। पर मैं जो कहूँ वो करना पड़ेगा! बोलो मंजूर हैं!'
'हाँं बाबाजी आप जो बोलेंगे वो करूँगा' - मैने हाथ जोड़ कर कहाँ ठीक हैं पर मेरी समस्या सुलझाने की स्टाइल सबसे अलग है इसलिए प्यारे भक्तो को जिसको जो चाहिए वो उसी
के रूप में आते हैं जैसे तुम दुल्हन के रूप में! सही हैं ना?
मैने सिर हिला दिया.
'तो समस्या का समाधान करने के लिए तुम्हारी शादी करानी पड़ेगी'
'पर शादी ही तो नहींं हो रही' - मैने बात को काट कर बोला
'चुप! जब मैं बोलता हूँ तो कोई नहींं बोलता जाओ हम नहींं करते तुम्हारी समस्या का समाधान' - बाबा ने रोद्र रुप धारण करते कहाँ
'नहींं नहींं बाबा मुझे माफ कर दो! पागल था जो बीच में बोल पड़ा! आप बोले वही होगा' मैने बाबा के पैर पकड़ लिए
'अब आया ना कतार में? पैर छोड़ो! ठीक हैं हम कहाँ थे?'
'आप मेरे शादी कराने की बात कर रहे थे'
'हाँ तुम्हारी शादी करानी पड़ेगी दुल्हन तो बन गए पर मंगलसूत्र और सिंदूर कहाँ हैं?'
मैने धीरे से हाथ खड़ा किया
'अब क्या है?' – बाबा ने पूछा।
'माफ कीजिये बाबा पर मुझे कुछ समझ नहींं आ रहा है'– मैने बोला।
‘अरे तुम दुल्हन बन कर आए हो दूल्हा भी तो लाना पड़ेगा ना? तुम्हारी मांग मे सिंदूर और गले में मंगलसूत्र कौन पहनाएगा?’ – बाबा ने जवाब दिया
‘दूल्हा? दूल्हा तो मै ही हूँ फिर?’
‘चुप.... तुम सवाल बहुत करते हो! बस तुम इतना समझ लो तुम्हेंं दुल्हन चाहिये तो हमारे दूल्हे से शादी करनी पड़ेगी। तभी तुम्हारे माथे से कुंवारा रहना के लेबल उतरेगा और तुम्हें सर्वगुण संपन्न कन्या मिलेगी वरना नहींं’ समझे?
‘लेकिन बाबाजी मैं खुद दूल्हा हूँ और आपका दूल्हा कौन है?’
‘यार तुमको सीधे-सीधा बताऊंगा तो मानोगे नहींं पर लगता हैं सीधे ही खुलासा करना पड़ेगा। देखो तुम्हारी शादी हम शेरू से करवा देंगे
'शेरू से? बाबाजी ये शेरू कौन है?'
'सब पता चल जाएगा अभी। शेरू के साथ शादी हो जाने के बाद तुम्हारे माथे से कुंवारे रहने का योग उतर के शेरू के ऊपर आ जाएगा और फिर तुम्हारी शादी में कोई रुकावट नहींं आएगी। अब तब तुम सोच रहे होंगे की ये कैसा तरीका है?
मैंने हाँं में सर हिला दिया।
'तो इसका जवाब है... ये हमारा तरीका है- ओल राईट रिजर्व बाय 'मामला फिट करने वाले बाबा' जैसे पानी भरे गुब्बारे को छोटी सी पिन मारो तो कैसे धड़ाक से पानी बाहर आ जाता हैं वैसे ही हम तुम्हारी ये शादी करवा के शादी के बहाव को खोल देंगे! तुम फ़िक्र मत करो मैंने ऐसी बहुत सारी समस्या का हल किया हैं। आज तक कोई कम्पलेन्ट आई नहींं हैं। इस शादी के बाद तुम्हारी सब पनौती शेरू के ऊपर ट्रांसफर हो जाएगी और तुम्हें शादी में कोई विघ्न नहींं आएगा... समझे? – बाबा ने विस्तार से कहा।
‘शेरू तो आदमी का नाम लगता है! आदमी के साथ शादी? नहींं बाबा मुझे जाने दो! इससे तो कुंवारा रहना अच्छा है। ये क्या तरीका हुआ? आज तक किसी की बली दे कर समस्या का समाधान करते हुए सुना था पर खुद की बली दे कर समाधान? पहली बार सुना।
मुझे नहींं करनी किसी आदमी के शादी! मैं चलता हूँ जय रामजी की’ – मैंने वहाँँ से जाने की तैयारी करने के लिए उठा।
‘घोर अपमान एक तपस्वी बाबा का घोर अपमान! आज तक मेरे दरबार में आकर सभी ने मेरा कहना माना हैं बस तू ही हैं जो मेरा अपमान करके जा रहे हो। कल्लू, कालिया, लल्लू लालिया सब इधर आओ। - बाबा ने आँखे लाल करते हुए कहाँ
‘क्या हुआ बाबा?’ - कल्लू बोला।
‘इस आदमी ने (मेरी तरफ इशारा किया) मेरा अपमान किया हैं। कहता हैं शेरू के साथ शादी नहींं करूँगा’ – बाबा
ने अपने चेलो को कहाँ।
‘क्या बाबाजी अपमान? बाबाजी आप बोले तो उलटे पैर पीपल के पैड पर लटका दे? – लल्लु ने कहाँ
‘अभी नहींं! शादी के लिए सीधे नहींं माना तो ये भी लटकाने वाले प्रोग्राम भी करेंगे। पहले इस आदमी के ऊपर ध्यान रखना ताकी शादी के दौरान भाग ना जाए’
बाबा के चेलो ने मुझे ऐसे घेर लिया जैसे क्रिकेट में खिलाड़ी लास्ट ओवर की लास्ट बोल पे एक रन रोकने के लिए
बैट्समैन को घेर लेते हैं!
'ठहर भाई! बाबा मुझे बक्श दो! गलती हो गई यहाँँ आकर वो तो मेरे दोस्त रामू के कहने पर आया था यहाँँ से निकल के पहले उस रामू के बच्चे की खबर लूँगा। बाबा मुझे जाने दो चाहे तो ये सारे पैसे भी ले लो।
मैंने यहाँँ-वहाँँ से पैसे निकाले। पर्स में जितने पैसे थे उतने सारे रख दिए बाबा के चरणो में। शर्ट के ऊपर की जेब से और पैरों के मोज़े वाले भी धर दिए।
'बाबा सब ले लो पर मुझे जाने दो बस? - मैंने रुहासा चेहरा बनाते कहा।
'बनियान में रखा माल कब ढीला करोगे? - बाबा बनियान की तरफ तिरछी नज़र करके बोला।
'बाबा ये तो घर जाने के भाड़े के लिए है।
'सब को जाना ही है तुम घर की मोह माया छोड़के पैसे रख दो नहींं तो मुझे पेड़ पे उल्टा लटकाना पड़ेगा।
पेड़ पे उल्टा लटका ने की बात सुनके हि मैंने वो पैसे भी बाबा को दे दिये।
'बाबा सारे पैसे तो ले लिए अब तो जाने दो?'
'नहींं तुम समस्या का समाधान के बिना नहींं जा सकते! मेरे दरबार से कोई खाली हाथ नहींं लौटा।'
'बाबा मैं तो खाली ही हो गया हूँ (जेब को टटोलते हुए कहाँ) मुझे जाने दो प्लीज़'
'अरे यार! बातों में वक़्त ज़ाया मत करो मुझे और की भी समस्या का समाधान करना हैं'। दो लोग वरमाला और शेरु को बुलाओ और दो लोग इस आदमी को कस के पकड़ो और शेरू को ध्यान से लाना गलती से धक्का नहींं लग जाए नहींं तो ये आसमान से पे उठा लेगा।
'वह लोग मेरे पें ऐसे झपट पड़े जैसे शेर का झुंड एक कमज़ोर हिरण के ऊपर झपटता है! मुझे पकड़़ लिया और हाथ पैर बांध दिये।
मैं मन में सोचने लगा की शेरु तो आदमी का नाम होता है तो बाबा मेरी शादी एक आदमी से करना चाहता है? मैं तीसरी बार गलत हुआ शेरू आदमी नहींं एक कुत्ता निकला। शेरू कोई गली का मामुली कुत्ता नहीं था वो तो अलसशन कुत्ता था बेहद लम्बा और तगड़ा। शेरू को आता देखकर तो मेरे हाथ पैर ढीले हो गए।
शेरू और हार इतनी जल्दी आ गए मानो दोनो मेरे लिए ही रेडी होके बैठे थे।
'कल्लु और कालिया तुम इसको पकड़ो और लल्लु और लालिया तुम शेरू के पैरो से वरमाला पकड़ कर इसको पहनाओ' - बाबा ने उसके सिपाही को ऑर्डर दिया।
'नहींं नहींं ऐसा गज़ब मत करो' - मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
पर कल्लु कालिया इतने तगड़े थे की मुझे टस से मस नहींं होने दिया आखिरकार शेरू ने मेरे गले में वरमाला पहना ही दी। वहाँँ उपस्थित लोगगण ने तालियां बजाई और शेरू हाँंफता-हाँंफता अपनी जीभ को बहार निकालता रहा जैसे उसका रोज़ का काम हो!
'चलो अब दूल्हा दुल्हन की मांग भरेगा। फिर मंगलसूत्र पहना के शादी संपन्न हो जाएगी।
'हे भगवान गली के कुत्ते को देखकर रास्ता बदल देने वाला आदमी की शादी एक कुत्ते से हो रही है? एक कुता मेरी
मांग भरेगा? भगवान बस यही दिन दिखाना था? हाय राम! फिर मंगलसुत्र और फिर सुहागरात? अरे नहींं...
मैं अपने आप को छुड़वाने की कोशिश कर रहा था पर कल्लु और कालिया आज के ज़माने का हाईब्रिड खाना कर ऐसे पहलवान हो गए थे मुझ से हिला भी नहींं जा रहा था।
'बाबाजी माफ किजिए पर दूल्हे की वरमाला पहनानी बाकी है!' - लल्लु ने कहाँ।
'स्मार्ट फोन...सोरी सोरी स्मार्ट बोय ..अच्छा याद दिलाया। दूल्हे के सिर्फ हाथ खोले जाए मगर ध्यान से दूल्हा मछली की तरह छटपटा रहा हैं।
मेरे हाथ खोले तो मुझे ऐसे लगा के दम घुटते आदमी को ऑक्सीजन दे दिया हो पर मै अभी भी पैरों से लाचार था। मै समझ गया था की भगवान ने यही मुझे अपने आप को बचाने का मौका दिया है ये मौका जो हाथ से निकल गया ना तो ये लोग कुत्ते के साथ शादी भी करवा देंगे और सुहागरात भी! मेरे हाथों में वरमाला थमा दी और शेरू को मेरे नज़दीक लाया गया।
बाबा ने पहले ही बता दिया था की शेरू धक्के से चिढ़ जाता हैं।
मैं जैसे ही शेरू के नज़दीक गया और शेरू को माला पहनाने के बजाय एक जोर से घक्का मारा। धक्के से शेरू थोड़ी दूर जाके गिरा।
शेरू जैसे ही गिरा तो गुस्से से भौंकने लगा और मेरी तरफ देखा।
'शेरू को धक्का क्यों मारा? अब शेरू शेर बन जाएगा! अब क्या होगा'- कल्लु ने कहाँ।
शेरु सचमुच शेर बन गया था। शेरू दौड़ता हुआ आया और जोर से मेरी तरफ शेर के माफिक छलाँग लगाई। मै छलाँग से बचने के लिए नीचे झुक गया और शेरु सीधे मेरे पीछे खड़े कालिया पर झपट पड़ा। मैंने सारी हिम्मत इकठ्ठी करके अपने आप को छुड़ाने लगा आखिरकार मैंने आप को छुड़ाने में कामयाब हुआ। मैने दाएं देखा ना बाएं और सीधा वहाँ से भाग निकला जैसे मेरे पीछे शिकारी कुत्ता छोड़ दिया हो। भागता रहा बस जब तक के बाहर निकलने का द्वार नहींं आ गया। मैंने वहाँ थोड़ी देर चेन की सांस ली और पीछे देखा तो शेरु बाबाजी की रियासत उजाड़ रहा था। शायद मुझ पर तरस आ गया था तभी तो मुझे पकड़ने बजाए कल्लु-कालिया और लल्लु-लालिया
की दौड़ा दौड़ा के ऐसी हालत कर दी कि सारी चर्बी उतार दी थी। शेरू नाम के तूफ़ान से बाबा भी कहाँ बच पाए। शेरू ने बाबाजी का लंबा वाला कुर्ता छेद वाला कुर्ता बना गया था। शेरू ने मामला फिट करने वाले बाबा का मामला फिट कर दिया था। शेरु ने बाबाजी का साम्राज्य तहस-नहस करके खुद ही बाबाजी की होट सीट पे बिराजमान हो गया था मानो शेरु शहंशाह हो! चहरे पे हँसी लेकर और भगवान का धन्यवाद करके मैं वहाँँ से भाग आया।
वहाँँ से भागने के बाद मैंने पहला काम दुल्हन से दूल्हा... आम आदमी बनना था।
मैं अपना हुलिया बदल रहा था तब मेरी नज़र सामने पड़ी वहाँँ एक दूल्हे का पहनावा पहने एक लड़के को देखा। वो सायद मेरी तरह अपने आपको दूरुस्त कर रहा था।
उसने मर्द जैसे कपड़े तो पहने थे मगर उसकी पर्सनालिटी मर्द जैसी नहींं थी। उसने जैसे ही सहरा उतारा तो सहेरे की आड़ पे छुपे काले लंबे बाल उछल कर बहार आ गए!
बाल ऐसे झूल रहे थे जैसे फूलों से लड़ी बेले झूल रही हो।
हाय ये तो लड़की हैं! बहेद खुबसूरत लड़की!
'क्या ये भी मेरी तरह आई होगी? क्या वो भी मेरे तरह आस लेके आई होगी? मतलब के मैं दुल्हन के लिए और वो दूल्हे के लिए? - मेरे अंदर सवालों के तीर छूटने लगे मैं उससे कुछ पूछता उससे पहले वो खुद ही बोल पड़ी।
'सही सबक सिखाया आपने इस ढोंगी बाबा को' - कोयल से कंठ से बोली।
'जी आप दूल्हे के लिए आई थी? - ना जाने कैसे? मेरे मुँह से निकल गया।
'हाँं मेरे मम्मी पप्पा लाए थे।'
'तो दूल्हा मिला?'
'नहींं। '
'तो दूल्हे की तलाश फिर अधूरी रह गई जैसे मेरी दुल्हन की रह गई?'
'नहींं अब पुरी हो गई।'
'मगर आप ने अभी बताया ना की दूल्हा नहींं मिला?’
'हाँ पर मुझे कहाँ पता था की आप दुल्हन के लिए आए हैं?' - उसने हलकी सी हँसी दिखाकर शर्म से आँखे चुरा ली
उसने इशारे से हरीलाल को हरी झंडी दिखा दी थी।
'दुल्हन बने दूल्हे की दुल्हन बनोगी? -मैंने उसके सामने जा कर कहाँ।
उसने बस हलके से मुस्कुराके अपनी प्यारी पलके झुका दी। अचानक हाथों पर कुछ बुंदो का एहसास हुआ तो पता चला के हलकी सी बारिश हो रही थी। मैंने आसमान की तरफ देखा और तब तक देखता रहा जब तक मेरा चहेरा बारीश की बूंदों से भीग नहींं गया। इन्द्रधनुष भी उभर आया था मानो वो भी सात रंगो की रंगोली आसमान में बनाकर हमारे प्यार को स्वीकृति दे रहा हो।
अब मेरा जीवन भी रंगों से हरा भरा रंगबिरंगा हो गया था क्योंकि मुझे मेरी दुल्हन जो मिल गई थी।


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