सकारात्मकता
सकारात्मकता
ये कहानी है शीना की उसकी की जुबानी।
मेरा नाम शीना है मेरी कहानी शुरू होती है जब मैं 21साल की थी। एक नौ जवान सुंदर कन्या और होशियार भी ,सर्वगुण सम्पन्न भी कह सकते है। क्या होती है बीमारी इसका पता भी नहीं था मां पिता जी ने इतने लाड प्यार से जो पला था।
कभी सोचा नहीं की सकारात्मक और नकारात्मक सोच भी कुछ होती हैं। मैं अपनी दुनिया में मस्त रहती थी। धीरे धीरे करके साल निकलते गए और उम्र बढ़ती गई। अब ना जाने क्यों सब अच्छा खाते पीते भी बीमारी आने लगी , डॉक्टरो को दिखाया तो कभी लंबी दवाईयों की, कभी बहुत सारे टेस्ट की लिस्ट थमा देते।
सब कुछ करते होए भी कहीं कुछ कमी थी जो मैं समझ नहीं पा रही थी। मेरी मां ने मुझे समझाया की "चिंता चिता समान " होती हैं। इसलिए चिंता त्यागो और कहीं और अपने आप को व्यस्त कर लो और सोचो की तुम एक दम स्वथ्य हो। मैने ने वैसा ही किया, जब भी मुझे कोई ख्याल आता तो मेरी मां की कहीं बात याद आती ।।ऐसा करते करते ना जाने कब मेरे विचार सकारात्मक हो गए। अब मुझे याद ही नहीं था कि कभी बीमारी भी थी ।
जब एक दिन सहेली ने मुझसे पूछा कि अब तुम्हारी तबीयत ठीक रहती है तो मैं सोच में पड़ गई। कहां मैं लाखो रुपए डॉक्टर के यहां दिखने पर खर्च कर चुकी थी और आज मैं बिना दवाई के मस्त हूं।
कुछ देर सोच कर मैने सहली को बोला " इंसान अपनी सोचा से सब कुछ कर सकता है, मेरी सोच सकारात्मक हुई और मेरे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा के संचार से मेरी सारी बीमारी दूर होगी।।"
इसलिए कहते है:-
"सोच बदलो सितारे बदल जायेंगे,नजर बदलो नज़रे बदल जाएंगे।।"