STORYMIRROR

Laxmi Tyagi

Inspirational

4  

Laxmi Tyagi

Inspirational

श्राद्ध

श्राद्ध

6 mins
376

नई नवेली दुल्हन जब घर में आ जाती है, तो बहु की जिम्मेदारी तो बढ़ती ही हैं लेकिन सास की जिम्मेदारियां भी कम नहीं होतीं। बहु को अपने घर के तौर- तरीक़े समझाना ,बहु को उसकी जिम्मेदारियों से परिचित कराना। विवाह से पहले लड़कियाँ अपने घर में लापरवाही से रहतीं हैं। पढ़ाई -लिखाई में रहतीं हैं लेकिन ससुराल में सास ही होती है जो बहु को जीवन में आगे बढ़ने ,परिवार की जिम्मेदारियों से परिचित कराती है। आज उनकी सहेली हमारे घर आईं ,सास को अपनी बहु के साथ काम करते देखकर बोली -क्या पवित्रा! तुम अब भी काम में लगी रहती हो ?अब तो घर में बहु आ गयी ,अब तो आराम कर सकती हो।तब मेरी सास ने जबाब दिया -बहु आ गयी है तो क्या ?मेरे अपने भी बहुत से काम हैं। अकेली बहु पर ही घर का सारा काम कैसे छोड़ सकती हूँ ?वो तो घबरा जाएगी ,उसके लिए तो यहाँ नई जगह है। फिर उसे अपने घर के तौर -तरीक़े तो मैं ही सिखाऊंगी। मैं इतनी बूढी भी नहीं कि सारा काम बहु पर सौंपकर बैठ जाऊँ। उनकी बातें सुनकर मुझे अच्छा लगा कि मेरी सास में इतनी तो इंसानियत है कि बहु की परेशानी समझ सके। अक़्सर वो कहतीं -आजकल के बच्चों को अपने रीति -रिवाज़ मालूम ही नहीं है। बड़े और जिम्मेदार होने के नाते हमें ही सिखाना पड़ेगा। 


         जब भी कोई त्यौहार आता, वे सुबह से ही उठकर साफ -सफाई और उनकी तैयारी में लग जातीं साथ में हमें भी समझाती रहतीं। हम भी उनके साथ -साथ काम में लगे रहते। उनका कहना भी सही था। जितना काम वो करतीं वो मैं अकेले नहीं संभाल पाती। हमें त्योहारों में कैसे पूजना है ?क्या -क्या करना है ?उन्हीं से जानकारी मिलती। कुछ चीजें महिलाओं को विवाह के बाद पता चलती हैं ,सो मैं भी नई -नई जानकारी जुटा रही थी, क्योंकि कुछ चीजें हर वर्ष करनी होती हैं। ये नई -नई चीजें सीखने में और करने में मजा भी आ रहा था। इसी बीच श्राद भी आये, वो बोलीं -बहु ये तो तुम जानती ही हो कि श्रादों में हमारे पूर्वज आते हैं ,उनका मान -सम्मान करना होता है और भी बहुत सी बातें बताईं जिनकी मुझे कोई जानकारी नहीं थी लेकिन कुछ बातें बताईं भी तो स्वयं ही उन्हें मानने से इंकार कर दिया, ज्यादा अन्धविश्वास में वो नहीं पड़ना चाहतीं थीं ,लेकिन कभी -कभी उनमें सास का असर आ ही जाता बोलीं -क्या तुम्हारी मम्मी नहीं करती थीं। मैंने कहा -नहीं वो तो सिर्फ़ अमावस्या ही मनातीं थीं। गाँव में दादी करतीं हैं सब। तब सासूमाँ झट से बोलीं -आजकल की पीढ़ी क्या करके खायेगी ?कुछ आता ही नहीं ,इसकी माँ ने तो इसे कुछ भी नहीं सिखाया। तब मैंने कहा -आप सीखा रहीं हैं तो सब सीख़ जाऊँगी। मैंने हँसते हुए कहा -उन्होंने मेरे लिए एक अच्छी अध्यापिका जो ढूंढी है। मेरी बात सुनकर वो मुस्कुरा दीं। 

         उनके कहे अनुसार हम काम करते रहे शाम को उन्होने देहली करने के लिए बोला। मैंने उनकी कथनानुसार कार्य किया ,उसके पश्चात घर के जितने भी पुरुष सदस्य थे, उसको उलाँघकर गए। मैंने पूछा -ये किसलिए करते हैं? तो उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया में उन्हें घर लाते हैं। क्या औरतें नहीं कर सकतीं ?मैंने पूछा। नहीं ये इनके ही पूर्वज है, आने वाली पीढ़ी ही लाती है ,उन्होंने जबाब दिया। और उस पीढ़ी को लाता कौन है ?मेरे इस प्रश्न पर वो मेरा मुँह देखने लगीं। बोलीं -हमने तो अब तक ऐसे ही देखा है। वो मेरे पति के दादाजी यानि हमारी सासूमाँ के ससुर का श्राद था। हमारी सासूमाँ ने उनके लिए ख़ुशी -ख़ुशी दो सब्जियाँ ,खीर सलाद ,रायता ,अचार ,पापड़ सब बनवाये, बनवाते समय बोलीं -हमारे ससुर बहुत ही चटोरे थे। उन्हें ये सब पसंद था उसके बाद वो किसी ब्राह्मण के घर खाना दे आयी। मैंने पूछा -सुना है कि घर पर ही बुलाकर खिलाते हैं।तब वो बोलीं -कुछ नहीं होता, ज्यादा प्रपंचों में' मैं 'नहीं पड़ती। कुछ दिन बाद हमारी सासूमाँ की सास का श्राद था। उनकी भी देहली हुई। मैंने पूछा -औरत का तो औरत ही स्वागत करती होंगी ?लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया।

 

     अगले दिन सासूमाँ में मैंने कोई उत्साह नहीं देखा। मैंने सोचा शायद भूल न गयीं हों ,याद दिलाते हुए मैंने कहा -मम्मीजी! आज तो दादीजी का श्राद है, आज क्या बनेगा ?तो बोलीं -जवे[छोटी सिवईं जैसे ] बना देना। सिर्फ जवे ,क्या दादीजी को अच्छा खाना पसंद नहीं था? मुझे तो नहीं मालूम क्योंकि वो मेरे सामने नहीं थीं लेकिन जिन्होंने देखा था ''कहते थे कि बड़ी सीधी थीं।'' सीधी थीं तो इसलिए उनके लिए खीर या और सामान नहीं बनेंगे मैंने पूछा। औरतों के लिए इतने सामान कौन बनाता है ?उनका तो ऐसे ही बन जाता है। ये बात अपने सही कही मम्मीजी !औरतों का जीते जी तो बनता ही है और मरने के बाद भी उनकी इज्जत नहीं होती। वैसे तो मैंने लोगों को कहते ये भी सुना है, कि मरने के बाद खाने कौन आता है ?लेकिन इस बात से मैं क्या समझूँ ? कि औरत की इज्जत तो मरने के के बाद भी नहीं। आप तो स्वयं एक औरत हैं। आपने भी औरत होकर एक औरत को सम्मान नहीं दिया। ये कैसे रीति -रिवाज़ हैं ?जिस औरत से घर की वंश बेल चलती है, उसका जीते जी तो क्या, मरने के बाद भी सम्मान नहीं।  

       रीति -रिवाजों ,संस्कारों से हम अपनी परम्पराओं को जान पाते हैं, अपने बड़ों का मान -सम्मान सीखते हैं। परम्पराएँ हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। अब तक जो मैं समझ पाई हूँ ,उससे पता चलता है कि इन रीति -रिवाजों में अपनों के लिए मान -सम्मान ,प्यार अपनापन झलकता है। इंसानों के लिए ही नहीं पेड़ -पौधे व जीव -जन्तुओं की भी पूजा की जाती है और इन परम्पराओं को आगे बढ़ाने वाली हम औरतें ही हैं वरना आदमियों को तो इन विषयों में कोई जानकारी नहीं होती। इतना सब होने के बाद भी औरत अपने सम्मान के लिए जागरूक नहीं होती। आप कुछ रीति -रिवाजों को जानते हुए भी जो आपको पसंद नहीं आते ,उन बातों का स्वयं ही बहिष्कार करतीं हैं। अपने मन से बदल भी देतीं हैं उन्हीं रूढ़िवादी परम्पराओं को मानने से इंकार करती हैं। जिन परम्पराओँ का आप स्वयं ही सम्मान नहीं करतीं उन्हें आने वाली पीढ़ी पर थोपती हैं। फिर कहतीं हैं -पता नहीं आजकल की बहुएँ क्या करेंगी ,करेंगी भी कि नहीं। मुझे तो ये सब अच्छा लग रहा है ,नए अनुभव हो रहे हैं लेकिन आप वो ही तो सिखाइये जिनका आपके मन में भी सम्मान हो 


      मैं मानती हूँ ,मैं ज्यादा इन रीति -रिवाजों के बारे में नहीं जानती जो भी मैंने देखा या सीखा है वो आप से ही सीखा है। अब तक जो भी मैंने जाना है उसका दिल से सम्मान करती हूँ। त्यौहार तो घर में खुशहाली लाते हैं। त्यौहार , रीति -रिवाज़ न हों तो जिंदगी 'बेनूर' हो जाये। हमारी परम्पराओं के बारे में पता भी न चले। घर में साफ -सफाई से लेकर कई कार्य हो जाते हैं जिससे मन भी लगा रहता है और जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार होता है। मेरा तो यही मानना है हम जो भी करें सम्मान के साथ करें इनमें हमारे बड़े -बूढ़ों के प्रति सम्मान झलकता है किन्तु स्वयं एक औरत होकर ,औरत का तिरस्कार मुझे समझ नहीं आया। जब हम अपनी इज्जत स्वयं ही नहीं करेंगे तो किसी और से क्या उम्मीद रख सकते हैं ? 

   बहु के मुँह से इतना लम्बा भाषण सुनकर उसकी सास ने क्या किया होगा या क्या कहा होगा यह अनुमान आप स्वयं लगाइये। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational