शॉल
शॉल
शहनाज़ अपने अब्बू के साथ मामा के घर जा रही थी। बहुत ठंड थी और उनकी ट्रेन भी रात की थी। अम्मी ने शहनाज़ के गर्म कपड़े बैग में रख दिए थे। चलते-चलते अम्मी ने शहनाज़ को एक शॉल ओढ़ा दिया और कहा, "आज रात बहुत ठंड है, इससे अपना सिर ढक कर रखना।" शहनाज़ अपने अब्बू के साथ स्टेशन पहुँची और ट्रेन में जाकर अपनी सीट पर बैठ गई। उसकी सीट खिड़की के पास थी। बाहर बहुत ही ठंडी हवा चल रही थी। शहनाज़ को अपनी अम्मी की बात याद आ गई। उसने शॉल से अपना सिर ढक लिया, कुछ देर बाद ट्रेन चल पड़ी। शहनाज़ खिड़की से बाहर देखने लगी। अब्बू थोड़ी देर बाद सो गए पर शहनाज़ को नींद ही नहीं आ रही थी।
कुछ देर बाद ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी। चाय वाले आवाजें लगा रहे थे। तभी ट्रेन में एक लड़का चाय बेचने आया। उसने सिर्फ एक बनियान पहन रखा था। वो लड़का ठंड से कांपता हुआ आवाज़ लगा रहा था,"गरमा-गरम चाय।" शहनाज़ बड़े ही ध्यान से उसे देखती रही। कुछ देर बाद वो लड़का ट्रेन से उतर गया, शहनाज़ ने अपनी खिड़की खोली तो एकदम से ठंडी हवा का झोंका आया। शहनाज़ ने उस लड़के को आवाज़ लगाई "ओ चाय वाले।" तभी ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी, शहनाज़ ने अपनी शॉल उतारी और चाय वाले लड़के की ओर उछाल दी। उस लड़के ने वो शॉल उठाया और शहनाज़ की तरफ हाथ हिलाने लगा, जैसे वो शहनाज़ को धन्यवाद कर रहा हो। ट्रेन अब बहुत तेजी से दौड़ने लगी। शहनाज़ ने खिड़की बन्द कर दी। फिर बैग से अपनी जैकेट निकाल कर पहन ली। उसकी जैकेट में टोपी भी थी।
