सहमी हुई सी तितली रानी
सहमी हुई सी तितली रानी
सुबह सुबह आँख खुली एक तितली आँखों के सामने आयी
डरी सही सी थी वो जाने क्या कह रह थी मुझे से
मुझे लगा बेजान सी हो गयी है
मैं पास गयी धीमे से उसको पकड़ी
तितली अपने पर फैलाने लगी मानो अप्सरा उतर आयी बांहों में
अपने चिकने रंगबिरंगी रंगे पंख से हाथ छुड़ा गयी मेरा
कहने लगी मैं बागों कि रानी भटक आयी हूँ कहीं दूर
और मुझसे भी दूर जाने लगी कही सहम कर
झुई मुई सी नाजुक थी वो पर नखरे बड़े प्यारे कर रही थी
इन्द्रधनुष से पंख पसारे फूलों से रंग लिये बैठ गयी पास मेरे
फिर मैंने नाजुक से पंख पकड़कर छोड़ आयी
उसके फूलों कि वादियों में वो पंख पसारे
पल भर में ओछल हो गयी मुझे
न जाने कितना दर्द था उसमें
किसको ढूंढ रही थी क्यारी में और
चुपके चुपके मनचली सी उड़ गयी आसमान में
बड़ी खूबसूरत हो तुम तितली रानी छुना चाहो उड़ जाती हो
फूल फूल का रस पीती हो मानो उसी पर जीती हो
पुष्प रानी तुम स्वप्न कि अप्सरा हो तुम तितली रानी।
