शिक्षा प्रणाली
शिक्षा प्रणाली
शाम का वक़्त था में अपने मित्र के साथ चाय पी रहा था जब उनकी बहन अपने बेटे के साथ वहां आयी। में भी उनसे करीब 2 साल बाद मिल रहा था तो मैंने उनसे नमस्ते की और उनके बेटे की पढ़ाई के बारे में पूंछा तो दीदी ने बताया कि उनका बेटा दिल्ली के एक बड़े इंग्लिश स्कूल में 7वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा था।
दीदी ने साथ में उसकी स्कूल फीस व दूसरे खर्चे भी बताये। तो में बोल दीदी इतना महँगा स्कूल है तो आप कैसे खर्च उठा पाते हो। तब दीदी ने बताया कि उनके पति की तनख्वाह में से करीब 40% उनके बेटे की स्कूल खर्च में चले जाता है। इसी वजह से उन्हें अपनी ज्यादातर इच्छायें मारनी पड़ती हैं लेकिन उनका मानना था कि बच्चा अगर कामयाब होकर कुछ बन जाए तो उसके आगे इच्छायें मरना घाटे का सौदा नहीं। में भी दीदी की बातों से प्रभावित होकर सोचने लगा कि जब मेरे बच्चे होंगे तो उनको भी दिल्ली के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ाऊंगा चाहे उसके लिए मुझे कितनी भी मेहनत करनी पड़े या इच्छायें मारनी पड़े।
में अपनी सोच में खोता जा रहा था जब दीदी ने मुझसे मेरा फोन नंबर मांगा। और अपने बेटे कबीर से मेरा नंबर उनके फोन में सेव करने को कहा। मेने अपना नंबर बोला, .... सत्तानवे, ग्यारह, नवास्सी...... इतने में कबीर ने मुझे रोक और बोला मामाजी प्लीज इंग्लिश में बताइये। मुझे केवल ग्यारह समझ आया है। तो में बोला की स्कूल में हिंदी की गिनती नहीं सिखाई। उसने बहुत ही गर्व के साथ मुँह हिलाकर मना करदिया। तभी दीदी ने बोलीं, भाई इंग्लिश स्कूल है वह हिंदी पर ध्यान नहीं देते वैसे भी आगे जाकर सभी जगह इंग्लिश ही चलेगी तो ये भी बेकार में हिंदी सीखने में अपना समय क्यों खराब करे। जितना जरूरी है उतनी हिंदी तो स्कूल में सिखा ही देंगे।
दीदी की बात सुनकर में हक्का-बक्का रह गया। मेने इंग्लिश में अपना नंबर कबीर को बताया लेकिन मेरे चेहरे पर साफ दिख रहा था कि मुझे अजीब लगा है तो दीदी ने मुझसे पूंछा ' क्या हुआ वरुण कुछ बुरा लगा क्या?' मेने उत्तर दिया की दीदी लगा तो है लेकिन में आपके विचारों से सहमत बैशाख ना रहूँ लेकिन उन्हें गलत नहीं कह सकता। दीदी ने कबीर को खेलने भेजा और बोली तू बेझिझक बोल मुझे बुरा नही लगेगा।
मेने कहा दीदी मेने हिंदी माध्यम से पढ़ाई की उसके बाद नोकरी लगने से पहले 3 साल एक संस्थान में इग्लिश स्पीकिंग औऱ कोममुनिकेशन पढ़ाया। में अपनी कक्षा में किसी भी बच्चे से हिंदी में बात नहीं करता था क्योंकि वहां इंग्लिश पढ़ाता था लेकिन जबसे मेने पढ़ाना छोड़ा है इंग्लिश का प्रयोग केवल वहीं करता हूँ जहां उसकी जरूरत है। आखिर मेरी अपनी भाषा तो हिंदी ही है। आज एक इतने महँगे स्कूल में भी हिंदी की गिनती तक बच्चे को नहीं सिखाई जा रही। और बच्चा भी इस बात को गर्व से बात रहा है जिस बात पर उसे शर्म आनी चाहिए उसकी भी क्या गलती है शर्म उसके मात-पिता को आनी चाहिए जो शायद खुद ही उसे इंग्लिश को इतना फेन्सी करके दर्शा रहें हैं की आगे जाकर वह अपनी संस्कृति त्यागने में भी कोई संकोच नहीं करेगा। मान लीजिए कॉलेज के बाद वह पच्छिमी संस्कृति से प्रभावित होकर नोकरी मिलते ही अपनी गर्लफ्रैंड के साथ लिविंग में रहने जाता है। क्योंकिं पच्छिमी देशो में ऐसा होना आम बात है। और अब भारत मे भी आम होती जा रही है। तब आप किसे दोष देंगे अगर ऐसा हुआ तो? क्या इसमे बच्चे की गलती है?
दीदी ने कोई जवाब नहीं दिया बस उनकी आंखें नम होने लगीं। मेने उनसे माफी मांगी जो कुछ बोल उसके लिए। दीदी ने पूछा फिर क्या करे भाई। में बोल दीदी आप हमारे बड़े हैं में आपको क्या बता सकता हूँ बस इतना ही कहूँगा की अपनी संस्कृति भी बच्चे को सीखना उतना ही जरूरी है जितना उसकी पढ़ाई। और इतने महँगे स्कूल से निकलकर उसे अपनी कमाई के हिसाब से ही स्कूल में पढ़ाई करवाइये। क्योंकि आप अपनी ही नहीं उसकी भी इच्छायें मार रहें हैं क्योंकि आज उसकी कक्षा में साथ में पड़ने वाले बच्चे आर्थिक रूप से ताक़तवर होंगें। स्कूल में भी उनको देखकर कबीर भी कभी कभी ऐसी ज़िद्द करता होगा जिसे आप शायद पूरी ना कर पाएं।
दीदी ने तभी सिर हिलाकर हां कहा और बोली कल ही ये अपने पापा से बोल रहा था की इसे स्कूटर पर स्कूल से लेने न आया करें और उनसे गाड़ी खरीदने की जिद्द करने लगा। बोल रहा था की इसके सारे दोस्त गाड़ी से स्कूल आते हैं। में बोल दीदी अपने बच्चों के प्यार में उन्हें सबकुछ देने के चक्कर में कभी कभी हम उनकी असल जरूरते भूल जाते हैं।
उसी दिन घर आकर मुझे महसूस हुआ की शायद दीदी से ज्यादा ही बोल दिया। अब इतना महंगा स्कूल है और सरकारी स्कूल में तो न के बराबर फीस है कुछ तो फर्क होगा ही दोनों की शिक्षा प्रणाली में। तब मैंने सोचा कि 10वीं का CBSE पेपर सरकारी और प्राइवेट स्कूलों का एक ही आता है। तो में पुराने कुछ सालों के 10वीं कक्षा परिणाम नेट पर ढूंडने लगा। मुझे GNCT OF DELHI की एक रिपोर्ट में मिला कि 2017 में सरकारी स्कूक के 92.44 प्रतिशत बच्चे पास हुए जबकि प्राइवेट स्कूल के 99.68 प्रतिशत। दोनो स्कूलों के परिणामो में केवल 7% का फर्क था। तब मैंने अपने एक दोस्त को फ़ोन किया जो दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में 9वीं व 10वीं कक्षा में गणित का अध्यापक था। सरकारी नोकरी लगने से पहले वह 2 साल एक प्राइवेट इंग्लिश स्कूल में गणित पड़ा चुका था। तो मैने उसका हल-चल पूछकर उससे शिक्षा प्रणाली के बारे में पूंछा तब उसने बताया कि उसके पड़ने में कोई फर्क नहीं आया सरकारी स्कूल में आने के बाद भी बस उसे एक ही फर्क मिला। क्योंकि प्राइवेट स्कूल के बच्चों के माता-पिता उन्हें महँगी ट्यूशन दिलवाते हैं तो उसके लिए ज्यादा आसान था उन बच्चो की तैयारी करवाना और सरकारी स्कूल में बहुत से बच्चो के माता-पिता उन्हें ट्यूशन नहीं दिलवा पाते तो उसे बच्चो की तैयारी के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। मेने उसका फ़ोन रखा ओर खाना खाने चले गया।
खाना खाते समय में अपनी पत्नी से पूछा की जब हमारा बच्चा होगा तो उसकी शिक्षा के लिए क्या करना ठीक होगा मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा। वह असमंजस में थी कि में इस अजीब सवाल क्यों करने लगा। तब मैंने उसे सारी घटना बताई । मेरी पत्नी एकदम से उत्सुकता से बोली हम तो सरकारी स्कूल में ही दाखिल कारवायंगे उसका। मेने पूंछा ऐसा क्यों? वह बोली एक बच्चे को स्कूल के साथ जरूरत होती है अच्छे माहौल की घर में तो हम उसे घर में अच्छा वातावरण देंगे पढ़ाई का साथ ही खेल खुद का भी सबकुछ सीखेंगे बाकी CBSE में तो सब स्कूलों का पेपर एकजैसा ही होता है साथ में कॉलेज में भी बच्चे के नंबर के आधार पर दाखिल मिलेगा उसके स्कूल के नाम पर नहीं।
तब जाकर मेरा मन शांत हुआ और इस बात को समझ गया कि शायद हमारे देश की शिक्षा प्रणाली में सुधार कारने से ज्यादा जरूरत है अपनी सोच में सुधार करने की। मेने अनुरोध करूँगा की जो भी इस कहानी को पढ़ रहै हैं। सभी बच्चों को गिनती हिंदी में बताएं। आपको भी कई बच्चे ऐसे मिलेंगे इन्हें हिंदी में गिनती नहीं आती।