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Varun Anand

Drama

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Varun Anand

Drama

खानाबदोश

खानाबदोश

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बचपन मैं एक बार यह शब्द मेरी चेतना का कारण बना जब मैंने अपने ताऊजी के मुंह से एक वाक्य सुना- 'अपनी नासमझी में आकर जब कोई बालक घर से भागता है हीरो बनने के लिए तो उसका जीवन एक खानाबदोश का बनकर रह जाता है।'

 मैं जानना चाहता था की कौन होते हैं खानाबदोश, कहाँ मिलेंगे ? अपने स्कूल जाते समय मैंने देखा कही निर्माण कार्य चल रहा था जहाँ एक औरत करीब 30 वर्ष की रही होगी। वह वहाँ मजदूरी कर रही थी और उसका बेटा वही मिट्टी में खेल रहा था। तो मैंने एक व्यक्ति से पूछा कि वह मजदूर कहाँ से आये, इतने सारे जिनमें महिलायें और बच्चे भी थे, तो वह बोले ये सब खानाबदोश हैं और अपना पेट पालने के लिए मजदूरी करते हैं। 

मैं उस दिन स्कूल ना जाकर वही रुक गया और उस महिला को देखने लगा जो एक पुरानी लाल साड़ी में मिट्टी से सनी हुई ईंटों को अपने सिर पर लादकर ऊपर छोड़कर आ रही थी। फिर नीचे उतरते हुए अपने बेटे को देखती जो वहीं बिखरा हुई रेत में खेल रहा था। वह बार-बार उसे देखती, फिर ईंटें लादकर ले जाती। वहीं पास में कुछ टेंट लगे हुए थे जिनमें वे मजदूर रहते थे।

कुछ देर बाद वह औरत अपने बेटे को गोद में उठाकर टेंट में ले गई जहां वह खाना खाने लगी और अपने बेटे को खिला रही थी, बीच-बीच में उसके पास बिना घी की रोटी थी जिसे कच्ची प्याज के साथ खा रही थी। तब मैं अपने घर में बनने वले भोजन के बारे मे सोच रहा था कि मेरी माँ रोटी में घी अच्छे से भरकर 2 सब्जियों के साथ मुझे देती है साथ मे रायता या छाछ भी, सलाद के साथ। 

अपने ख्यालों में खोते समय मुझे एहसास हुआ कि कितना दर्द है उन लोगों की ज़िंदगी में, केवल गरीबी के कारण। पूरा दिन मेहनत करने के बावजूद उन्हें 2 वक्त का खाना भी ठीक से नहीं मिल पा रहा। तभी मेरा ध्यान जब उस बच्चे की ओर गया जो यहां-वहां अपनी माँ के आसपास घूमते हुए रोटी का टुकड़ा खा रहा था। उसके चेहरे पर अलग की तरह की खुशी थी जिसके कारण उसकी माँ का चेहरा भी खिला हुआ था। मैं तब हैरान था कि इतनी गरीबी में दर्द सहते हुए भी वे खानाबदोश खुश थे। केवल एक दूसरे को खुशी देने की वजह से। वह बच्चा अपनी माँ के हाथों से रोटी लेकर खुश था और उसकी माँ अपने बेटे का चेहरा देखकर पूरे दिन की थकान भुलाकर खुश थी। 


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